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विवाह वह समय है ,जब दो अपरिचित युगल दाम्पत्य सूत्र में बंधकर एक नए जीवन का प्रारंभ करते है ,,ज्योतिष में योग ,दशा और गोचरीय ग्रह स्थिति के आधार पर विवाह समय का निर्धारण होता है ,परन्तु कभी-कभी विवाह के योग ,दशा और अनुकूल गोचरीय
परिभ्रमण के द्वारा विवाह काल का निश्चय करने पर भी विवाह नहीं होता क्योकि
जातक की कुंडली में विवाह में बाधक या विलम्ब कारक योग होते है |विवाह के लिए पंचम ,सप्तम ,द्वितीय और द्वादश भावों का विचार किया जाता है ,द्वितीय भाव सप्तम से अष्टम होने के कारण विवाह के आरम्भ व् अंत का ज्ञान कराता है ,साथ ही कुटुंब कभी भाव होता है ,द्वादश भाव शैया सुख के लिए विचारणीय होता है |स्त्रियों के संदर्भ
में सौभाग्य ज्ञान अष्टम से देखा जाता है अतः यह भी विचारणीय है |शुक्र को पुरुष के लिए और स्त्री
के लिए गुरु को विवाह का कारक माना जाता है |प्रश्न मार्ग में स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि होता है |सप्तमेश की स्थिति
भी महत्वपूर्ण होती है ,,,विवाह के लिए निम्न योग और ग्रह बाधक होते है |
.[१] सूर्य लग्नस्थ हो और शनि स्वगृही सप्तमस्थ हो तो विवाह में बाधा आती है |
.[२] सूर्य और शनि की युति लग्न में हो तो विवाह में विलम्ब होता है |
.[३] चन्द्रमा सप्तम भाव में और शनि लग्न में हो अथवा शनि और चन्द्रमा की युति सप्तम भाव में हो तो विवाह में विलम्ब होता है |
.[४]६ भाव में शनि ही ८ भाव में सूर्य हो और अष्टमेश निर्बल
-पापाक्रांत हो तो विवाह में विलम्ब
होता है |
[५]यदि सूर्य सप्तम भाव में हो और शनि की उस पर दृष्टी हो तो विवाह में विलम्ब संभव है |
.[६]यदि सूर्य ,शनि के साथ सप्तमेश शुक्र हो तो विवाह में देरी होती है |
.[७]शुक्र-चन्द्रमा की सप्तम में स्थिति
भी चिंतनीय होती है ,,यदि मंगल-शनि उनसे सप्तम में हो तो निश्चित रूप से विवाह में विलम्ब होता है |
.[८]यदि शुक्र शत्रु राशिगत
होकर सप्तमस्थ हो तो विवाह में अनेक अवरोध आते है और विलम्ब होता है |
.[९]सूर्य और चन्द्रमा बलि होकर सप्तमेश शुक्र के साथ हो और इनपर गुरु की दृष्टि न हो तो विवाह नहीं होता है ,गुरु की दृष्टि होने पर एक बार विवाह हो जाता है परन्तु कटुता जीवन भर रहती है |
[१०] यदि लग्नेश और चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में हो तथा सप्तमेश द्वादश भाव में हो विवाह में विलम्ब होता है |यदि शुक्र और चन्द्रमा से मंगल और शनि सप्तमस्थ हो तो विवाह में विलम्ब
की सम्भावना होती है |
.[११] सप्तम भाव यदि शनि और मंगल के पापकर्तरी योग में हो तो विवाह में विलम्ब हो सकता है |
.[१२] शनि और गुरु की युति लग्न या सप्तम भाव में हो विवाह में विलम्ब हो सकता है|..............................................................हर-हर महादेव
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