Friday, 26 January 2018

दशरथ कृत शनि स्तोत्र


दशरथ कृत शनि स्तोत्र
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विनियोगः अस्य श्रीशनि-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः, कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध-पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
कर-न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः। कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा। अधोक्षजाय शिखायै वषट्। कृष्णांगाय कवचाय हुम्। शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट्। छायात्मजाय अस्त्राय फट्।
दिग्बन्धनः-
भूर्भुवः स्वः”
पढ़ते हुए चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं।
ध्यानः-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम्।।
अर्थात् नीलम के समान कान्तिमान, हाथों में धनुष और शूल धारण करने वाले, मुकुटधारी, गिद्ध पर विराजमान, शत्रुओं को भयभीत करने वाले, चार भुजाधारी, शान्त, वर को देने वाले, सदा भक्तों के हितकारक, सूर्य-पुत्र को मैं प्रणाम करता हूँ।
स्तोत्र
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नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय वै नम: ।।१।।
    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय
    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।। 
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ  वै नम:
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।।
    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:
    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।।
    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते
    नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय वै नम: ।।७।।
    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज  सूनवे
    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।
देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा:
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।।
    प्रसाद कुरु  मे  देव  वाराहोऽहमुपागत
       एवं स्तुतस्तद  सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।।......................................................हर हर महादेव


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