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संतान
न होना किसी भी दम्पति के लिए बेहद कष्टकारक होता है ,किन्तु संतान हो फिर भी वह
अच्छी न हो तो स्थिति और कष्टकारक हो जाती है |संतान हो और वह कुमार्गी हो जाए
,भविष्य के प्रति लापरवाह ,अपनों की ही क्षति करने वाली हो जाए तो माता -पिता
-परिवार के लिए जीवन भर का कष्ट हो जाता है |संतान न होने से कोई आर्थिक -सामाजिक
हानि नहीं होती किन्तु संतान हो और वह गलत रास्ते पर हो तो सामाजिक -आर्थिक
-मानसिक ,सभी तरह के कष्ट देती है |जबकि कोई भी माता -पिता अथवा खानदान -परिवार के
लोग नहीं चाहते की उनके घर का कोई सदस्य या बच्चा गलत रास्ते पर जाए |खुद कोई
कितना भी बिगड़ा हो पर अपनी संतान को हमेशा अच्छा बनाना चाहता है और उसकी उन्नति के
लिए उससे जितना भी हो सकता है जरुर करता है ,भले संतान को यह लगे की उसके माता
-पिता उसके लिए कुछ नहीं कर रहे |
अक्सर सुनने में आता है की संतान अथवा बच्चा बिगड़ रहा है या बिगड़ गया है
,बात नहीं मानता ,गलत आदतों का शिकार हो गया है ,गलत संगत में पड़ गया है ,गलत या
अनुचित कार्य ही उसे पसंद आते हैं |परिवार -खानदान-माँ-बाप की प्रतिष्ठा को ठेस पंहुचा रहा है ,अपना
भविष्य बिगाड़ रहा है | दुर्जनों के बहकावे में आ जा रहा है ,माँ-बाप या परिवार के विरोधियों के भड़काने में आकर
अपने ही लोगों को अपना दुश्मन समझ रहा है ,अपने लोगों की अवहेलना कर रहा है
,अनुचित कार्यों -प्यार-मुहब्बत में
रूचि ले रहा है जिसके परिणामों की उसे समझ नहीं रही ,सम्मान की चिंता नहीं है
,भविष्य की चिंता नहीं है ,|किसी बच्चे में नशे की लत लग गयी है तो किसी बच्ची में
उश्रीन्ख्लता आ गयी है |किसी को गुंडागर्दी ,नेतागिरी पसंद आ रही तो किसी को क्लब
,पब ,होटल और उन्मुक्त क्रिया कलाप पसंद आ रहे |
यह आज के समय में बहुत अधिक दिख रहा है ,जिसके अनेक कारण है ,नैतिकता का
पतन,संस्कार हीनता ,समाज का खुलापन
,माता -पिता का ध्यान न दे पाना या खुद में व्यस्त रह आदर्श प्रस्तुत न कर पाना
,मीडिया के मनोरंजन का अत्यधिक उपलब्ध होना ,सिनेमा आदि का प्रभाव ,भौतिकता की
इच्छा ,आदि आदि ,किन्तु फिर भी हर माता -पिता का प्रयास रहता है की उनका बच्चा
सबसे अच्छा ,सद्गुणी ,प्रगतिशील ,उच्च पद पाने वाला ,सम्मानित हो |
सामाजिक कारण ,आसपास का वातावरण ,परिवारियों का स्वभाव तो कुछ कारण बच्चों
के बिगड़ने के हैं ही पर अक्सर ऐसा भी देखने में आता है की उसी माहौल में रहते हुए
,उससे भी खराब आर्थिक स्थिति में जीते हुए ,कम सुख -सुविधा पाते हुए भी कुछ बच्चे
बहुत उन्नति कर जाते हैं और कुछ बहुत पीछे चले जाते हैं ,जबकि जिन्हें हर सुख
सुविधा दी गयी ,अच्छा माहौल देने का प्रयास किया गया ,अच्छे स्कूल ,वातावरण दिए गए
वे नहीं उन्नति कर पा रहे ,या एक ही माहौल में कोई उपर निकल गया ,उन्नति कर गया
,कोई नीचे गिरता गया ,किसी में बहुत कमिय आ गयी और किसी में अच्छे गुणों का विकास
हो गया |अब यहाँ पर वातावरण -आर्थिक स्थिति -सामाजिक स्थिति कारक नहीं तो फिर ऐसा क्या है जो यह बच्चे
उन्नति नहीं कर पा रहे या बिगड़ जा रहे |जब हम इसका विश्लेष्ण करते हैं तो पाते हैं
की यहाँ कुछ अन्य कारक अपना प्रभाव दिखाते
हैं जैसे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ,कुलदेवता /देवी दोष ,पित्र दोष ,किसी शक्ति का परिवार अथवा बच्चों को प्रभावित करना
,किसी अभिचार आदि का प्रभाव आदि आदि अनेकानेक
कारण हैं इनके और अक्सर रोकथाम के उपाय या समझाना व्यर्थ जाता है |
इस प्रकार के मामले किसी के भी साथ हो सकते हैं |स्त्री-पुरुष-बालक-बालिका सभी में किन्ही
परिवारों में यह देखा जाता है |यह स्थिति परिवारीजन या सम्बंधित व्यक्ति से जुड़े
लोगों के लिए बहुत कष्टकारक होती है |इनका प्रभाव भी परिवार के सभी बच्चों पर समान
हो जरुरी नहीं ,क्योकि जब भाग्य बहुत प्रबल हो तब कम प्रभाव होगा और जब ग्रह स्थितियां
थोड़ी भी कमजोर हों तो प्रभाव अधिक हो जाता है |इन प्रभावों से बच्चे तथा परिवार की
उन्नति रुक जाती है |बच्चों का मन भटकता है ,मानसिक चंचलता बढ़ जाती है ,जिससे नशे
-धूम्रपान आदि की ओर रुझान बनता है |याददास्त बिगडती है क्योकि दिनचर्या और भोजन
-शयन का समय अनियमित होता है | पारिवारिक संस्कारों के प्रति ,संस्कृति के प्रति
विद्रोह उत्पन्न होता है क्योकि प्रभाव नकारात्मक हो तो उल्टा ही होता है |
धार्मिक रूचि कम हो जाती है ,बड़ों की बातें अच्छी नहीं लगती ,घर में अकेले में
रहना अच्छा लगता है ,घर में रहते हुए अशांति ,चिडचिडाहट ,अनमनापन बढ़ जाता है ,जबकि
बाहर निकलते ही अच्छा लगता है |रोग -बीमारी बढ़ जाती है ,अक्सर बच्चों में आँख और
सर की समस्या उत्पन्न होती है |उनका मन घर में नहीं लगता ,पढ़ाई और संस्कारों से मन
उचटता है ,ख़्वाब बड़े किन्तु प्रयास अपूर्ण होते हैं |कितना भी वह प्रयास भी करें
फिर भी सफलता नहीं मिलती |किसी की शादी नहीं हो रही तो किसी की नौकरी नहीं लग रही
|
इस तरह की समस्याओं के लिए अनेक उपाय तंत्र में हैं |इनमे उच्चाटन भी एक
क्रिया है जो तांत्रिक षट्कर्म के अंतर्गत आती है |यह क्रिया किसी के मन , स्थिति
, समस्या ,स्थान ,व्यक्ति सम्बन्ध आदि को उच्चाटित करने के लिए की जाती है |यह
क्रिया किसी भी समस्या पर की जा सकती है जिसमे अलगाव की आवश्यकता हो |समस्या विशेष
के साथ मंत्र -विधि-प्रक्रिया और
वस्तु बदल जाते हैं |इस क्रिया में विभिन्न शक्तियों और वस्तुओं की उर्जा का उपयोग
समस्या विशेष के अनुसार किया जाता है |किसी के प्रति किसी पर यह क्रिया कर देने पर
उसके प्रति व्यक्ति का मन उचट जाता है |किसी समस्या के प्रति क्रिया कर देने पर उस
समस्या या आदत के प्रति मन उचट जाता है |नशे आदि के प्रति मन उचट जाता है यदि इस
समस्या के लिए विशिष्ट क्रिया कर दी जाए तो |प्रभाव के उच्चाटन पर व्यक्ति अपने
दिमाग से अच्छा बुरा समझने लगता है और सुधर जाता है |सम्बंधित व्यक्ति या समस्या
के प्रति जब मन उच्चाटित ही जाता है तो वह छूट जाता है और व्यक्ति समस्या या
प्रभाव से मुक्त हो जाता है |इस क्रिया का दुरुपयोग भी हो सकता है अतः कोई
प्रक्रिया सार्वजनिक रूप से नहीं दी जा सकती |यदि किसी के यहाँ ऐसी कोई समस्या हो
तो किसी अच्छे तंत्र के जानकार से संपर्क करना चाहिए और उसके बताये अनुसार चलना
चाहिए |वह आपको कुछ क्रियाएं बता भी सकता है और कुछ स्वयं कर सकता है ,जो सम्बंधित
समस्या के लिए निर्दिष्ट होते हैं
|प्रक्रिया करने पर सम्बंधित समस्या समाप्त हो जाती है |
इस तरह की समस्या से निकलने का दूसरा तरीका यन्त्र /कवच होता है |ऐसे कवच
विशिष्ट यन्त्र से परिपूर्ण होते है ,जिसके साथ विभिन्न प्रकार के अन्य घटक होते
हैं |यह कवच संतान अथवा प्रियजन को आपके अनुकूल या वशीभूत नहीं करता है ,न ही किसी
प्रकार से मष्तिष्क पर बोझ डालकर उसे परिवर्तित करता है ,,अपितु इसकी कार्यप्रणाली
पूर्णतः प्रकृति की ऊर्जा संरचना के अनुरूप कार्य करती है और धारक के स्वचेतना में
परिवर्तन कर देता है ,आतंरिक और शारीरिक ऊर्जा में सकारात्मकता के संचार से
व्यक्ति के सोचने-समझने की दृष्टि
में परिवर्तन हो जाता है और वह अपना हित -अहित ,अच्छा-बुरा ,भूत-भविष्य-वर्त्तमान के प्रति सजग और सतर्क हो जाता है
|अंतरात्मा ,नैतिकता कवच की अलौकिक ऊर्जा से जाग उठती है |नकारात्मक ऊर्जा ,किये-कराये ,तांत्रिक अभिचार ,पित्र दोष ,वास्तु दोष
,स्थान गत नकारात्मकता आदि का प्रभाव रूक जाता है और व्यक्ति अपने खुद के मष्तिष्क
और सोच के अनुरूप अपने हित के लिए कार्य करने लगता है |शरीर और आसपास सकारात्मक
ऊर्जा का संचार होने से संस्कार-परिवार-माता-पिता-पति-पत्नी-धर्म-समाज-इज्जत के प्रति
संवेदनशील हो जाता है और उन्नति के साथ भविष्य की और सोचने लगता है |उच्च शक्ति से
सम्बंधित कवच होने से एक अलौकिक अदृशीय ऊर्जा उसे प्रेरित करती है फलतः उसके आचार-व्यवहार-सोच-कर्म में परिवर्तन होने
लगता है और वह सुधरकर उन्नति की और अग्रसर
हो जाता है |
इस
तरह की समस्या समस्या से निकलने का तीसरा तरीका परिवार को प्रभावित कर रहे किसी भी
तरह की नकारात्मक शक्ति /ऊर्जा ,किये -कराये ,अभिचार ,वास्तु दोष ,स्थान दोष ,भूत
-प्रेत -वायव्य बाधा ,पित्र दोष ,आदि के प्रभाव को रोक देना है |जब तक इन सब
प्रभावों को समाप्त करने लायक स्थितियां न बने तब तक तो उन्नति होनी ही चाहिए ,अतः
तब तक के लिए इनके प्रभावों को रोक दिया जाए ,जिससे परिवार और बच्चे उन्नति तो कर
लें ,इस लायक परिवार की स्थिति तो हो जाए की बाधाओं ,नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त
करने के प्रयास वह कर सकें ,क्योकि समाप्त करने की प्रक्रिया कई चरणों वाली तथा
बड़े आर्थिक खर्च वाली होती है |अतः जब प्रभाव रुके रहेंगे तो सफलता -उन्नति मिलती
रहेगी ,दुर्गुणों में कमी आएगी |यह हमारे अनुभव और सोच हैं ,जो हम अपने पास आने
वाली समस्याओं को देखकर बने हैं ,जिसे हम अपने ब्लॉग और पेजों के पाठकों के लिए
लिख दे रहे |जरुरी नहीं की सबकी समझ में आये ,किन्तु यदि कुछ माता -पिता की समझ
में आये और उनके बच्चों का भला हो जाए तो अच्छा है
|..........................................................हर -हर महादेव
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