================
ज्योतिष का यह सिद्धांत बिलकुल परम सत्य है की आप अपने ही पिछले कर्म भाग्य के रूप में भुगतते हैं |जो पिछले जन्मों में आपने किये वह अब भुगत रहे ,जो आज कर रहे उनमे से कुछ तो आज ही भुगतेंगे और जो भुगतने से बचेंगे वह अगले जन्मों में भुगतेंगे |ऐसा ही पहले जन्म का इस जन्म में हो रहा |चूंकि ज्योतिष की उत्पत्ति वेद से हुई है और वेद कोई धार्मिक ग्रन्थ नहीं अपितु ब्रह्माण्ड के ऊर्जा सूत्र हैं ,प्रकृति के नियमों और सूत्रों का संकलन हैं ,ज्योतिष उसका अंग होने से इन सूत्रों का ही गणितीय रूप है ,जो आपके कर्मों से उत्पन्न ग्रह स्थितियं के कारण आपके निर्मित भाग्य को बताता है |अतः इसके सिद्धांत पूर्ण रुपें प्रकृति के सिद्धांत हैं |
|क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का नियम है ,अतः जो भी आप करेंगे उसकी प्रतिक्रिया आपको भुगतनी ही होगी |आप कह सकते हैं की भाग्य और ग्रह स्थितियां ही तो स्वभाव ,मष्तिष्क ,सोच भी निर्धारित करते हैं तो कर्म तो वैसे ही होंगे |पर यह सत्य होकर भी पूर्ण नहीं है ,क्योकि इसमें ग्रह स्थितियों के साथ ही आपकी आत्मा और अवचेतन भी जुड़े होते हैं जिनपर ग्रह प्रभाव नहीं पड़ता अतः आप इनमे परिवर्तन भी कर सकते हैं |आप कर्म सुधार भी सकते हैं ,और भाग्य के प्रभाव कम अधिक भी कर सकते हैं |अगर ऐसा न होता तो उपाय ,पूजा पाठ ,धर्म कर्म ,दान आदि की अवधारणा ही न होती ,जबकि इनकी अवधारणा है ,अर्थात ऊर्जा के अलग रूपों के उपयोग से परिवर्तन संभव है और यह प्रकृति ऊर्जा रूप है |
हमारा मूल विषय कर्म के परिणाम हैं जो आपको आज मिल रहे जैसा की आपने पहले किया हुआ है |कल मिला जैसा आप आज कर रहे |भले आप कहें की कल किसने देखा ,लेकिन यह सत्य नहीं है ,प्रकृति सब कुछ देख रही |इसे ही कहते हैं की भगवान् सब कुछ देख रहा |वास्तव में इसका तात्पर्य यह है की आप जिस तरह के कर्म करते हैं उससे जिस तरह ऊर्जा रूपांतरण होता है वह प्रकृति की याददास्त में चला जाता है और आपको भविष्य में वैसा ही परिणाम मिलता है |यही आपके अवचेतन में भी संकलित हो जाता है जो अगले जन्मों में समय समय पर प्रभाव दिखाता है |उदाहरण के लिए आज के वैज्ञानिक पूर्व के मानवों की आवाज पकड़ने में सक्षम हो चुके हैं की किस्मे कब क्या कहा |इसका मतलब हुआ किसने क्या किया यह भी संकलित है प्रकृति में .भले आज विज्ञानं यह नहीं पकड़ पा रहा |कल पकड़ ले ऐसा संभव है ,जब सैकड़ों वर्ष पूर्व बोली गयी बोली पकड़ ले रहा तो |सीधा मतलब है आपके कर्म कहीं नहीं जाते और वह घूमकर आपतक आकर आपको प्रभावित करते ही हैं |
आप आज ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर अपने कर्म से च्युत हो शूद्र सा व्यवहार करें ,और अपने स्तर से तात्कालिक स्वार्थ या लगाव में नीचे गिर जाएँ तो आपको कल इनके परिणाम अवश्य मिलेंगे |आप कुछ अच्छे कर्मों के बल पर ब्राह्मण कुल में जन्म फिर भले ले लें पर आपके कर्म शूद्रवत ही होंगे और आपको जीवन में वैसे ही लोग मिलेंगे |ऐसा सबके साथ होता है ,शूद्र यदि ब्राह्मण सा जीवन यापन करे तो उसे अगला जन्म ब्राह्मण मिल सकता है |जिस तरह के कर्म होंगे उसी तरह के कर्म लायक जन्म संभव है | आज आप अपने पति या पत्नी को धोखा देते हैं किसी निम्न स्तर से सम्बन्ध बनाते हैं ,पति या पत्नी को छोड़ देते हैं तो आपको अगले जन्म में जरुर कोई छोड़ देगा |आपको निम्न स्तर के व्यक्ति ही मिलेंगे सम्बन्ध के लिए और आपकी मानसिकता ऐसी होगी की आप अपने कुल धर्म के विरुद्ध कार्य करेंगे ,तात्कालिक स्वार्थ या शारीरिक सुख या धन आदि भौतिक सुख के लिए |
अक्सर दाम्पत्य बिगड़ने वाली कुंडलियों में ऐसे दोष होते हैं की दाम्पत्य बिगड़ेगा ,अर्थात पिछले जन्मों में उन्होंने ऐसा किया है ,इसलिए उन्हें ऐसा परिणाम मिल रहा |आपके कर्मों के अनुसार आपको बड़ी या छोटी उम्र के लोग सम्बन्ध को मिलेंगे ,उच्च या निम्न जाति के मिलेंगे ,और दुर्भाग्य आपका यह होगा की आप उस समय इसे समझ नहीं पायेंगे और तात्कालिक भौतिक सुख के लिए इन्हें अपना भी लेंगे ,क्योकि आपको अभी भुगतना जो है ,अभी आपकी मुक्ति जो नहीं होनी ,अभी आपका पतन जो होना है |कृष्ण ने कहा था ,विनाशकाले विपरीत बुद्धि |आपकी बुद्धि ऐसी ही हो जायेगी यदि आप सतर्क न रहे |इसी तरह यदि आप किसी की हत्या करते हैं ,किसी को पीड़ा पहुचाते हैं तो आपको अगले जन्मों में पीड़ा के योग बने मिलेंगे ,दुर्घटना और अकाल मृत्यु के योग बने मिलेंगे |धन अपहरण करेंगे तो दरिद्रता के योग मिलेंगे |उच्च कुल में नीच सा कर्म करेंगे तो नीच में जन्म लेंगे |यह प्रकृति के नियम हैं जो आपके कर्मों के परिणाम देते हैं |
आपने अपने कर्मों से किसी की शारीरिक क्षमता छीन ली तो आप अपाहिज होंगे अगले जन्मों में |धोखा दिया तो धोखा खायेंगे |परस्त्री गमन किया तो ऐसी स्त्री मिलेगी जो परपुरुष गमन करे |आपने अपने पत्नी या पति को कष्ट दिया तो आपको मिलेगा ,आपने दुसरे के चलते किसी को छोड़ा तो कोई आपको छोड़ देगा अगले जन्मों में |आपने किसी जंतु को कष्ट दिया तो जंतु आगे आपको कष्ट देगा |माता पिता को रुलाया तो आप रोयेंगे |बच्चों को अनाथ किया तो खुद किसी द्वारा ठुकरा दिए जायेंगे |जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान् ,ये है गीता का ज्ञान ,ऐसा कहा गया है |गीता भले कहे न कहे ,भगवान् भले फल दे न दे ,पर प्रकृति जरुर वैसे ही फल देती है |वास्तव में प्रकृति ही भगवान् होती है ,जिसके अपने नियम हैं और यही फल ,परिणाम आपकी क्रिया के प्रतिक्रिया स्वरुप देती है |
सभी कर्मों के परिणाम आपको मिलते हैं पर फिर भी सबसे बड़ी कठिनाई होती है की आपको कुछ पता नहीं होता ,आपको कुछ याद नहीं होता हालांकि सब यादें आपके ही अवचेतन में सुरक्षित रहती हैं सैकड़ों जन्मों की भी ,पर फिर भी आपको याद नहीं आती |आपको अजीब अजीब सपने दीखते हैं ,अजीब जगहों पर आप सपनों में जाते हैं ,लगता है आप कभी यहाँ गए हैं फिर भी आपको याद नहीं रहता |यह सब अवचेतन दिखाता है ,पर चेतन को याद नहीं रहता |यह भी प्रकृति का ही एक विलक्षण खेल है जो गर्भ से निकलने पर पूर्व की याददास्त ले लेती है |जो बहुत शुद्ध पवित्र हों उन्हें याद रहता है ,या याद आता है ,जिससे वह और सुधार कर सकें |
कुछ लोग दूसरों का तो बहुत कुछ देख लेते हैं पर खुद का कुछ भी नहीं देख पाते |उनकी यह अतीन्द्रिय शक्ति उनके पिछले कुछ अच्छे कर्मों का परिणाम जरुर होती है किन्तु अन्य गलतियाँ उन्हें खुद का देखने नहीं देती क्योकि उन्हें अपनी गलतियों के परिणाम भुगतने बाकी हैं |अगर खुद का देख लेंगे तो उन्हें सुधार सकते हैं ,लेकिन प्रकृति यह शक्ति उन्हें नहीं देती |ऊपर से उनका स्वभाव ऐसा बना देती है की वह बार बार खुद गलतियाँ भी करते हैं |कर्म खराब करते हैं जिससे उन्हें खराब परिणाम मिलें |कुछ लोग ही अपने कर्मों को नियंत्रित कर ,अपने अवचेतन को जगाकर ,प्रबल आत्मबल के सहारे भाग्य की कठिनाइयों से लड़कर ,कुंडलिनी जगाकर ,किसी उच्च ईष्ट को प्रसन्न कर खुद को उठा पाते हैं ,इन कर्म बंधनों को काट पाते हैं ,मुक्त हो पाते हैं इन बन्धनों से ,पर इनकी संख्या करोड़ों में एक दो की होती है ,अन्य तो बस प्रकृति के चक्कर में घनचक्कर बने घुमते ही रहते हैं |
ऐसा नहीं की कर्म बंधन काटे नहीं जा सकते पर इनके लिए उतनी ही ऊर्जा लगती है जितनी मात्रा में कर्म भोग की ऊर्जा है |प्रकृति ऊर्जा स्वरुप है और सबकुछ इस ऊर्जा का रूपांतरण है |प्रकृति की हर क्रिया में ऊर्जा है |नकारात्मक ऊर्जा को हटाने के लिए उससे अधिक धनात्मक ऊर्जा चाहिए |अतः कर्मों के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा से मुक्त होने के लिए कर्म द्वारा ही इतनी अधिक ऊर्जा प्राप्त करनी होगी जो कर्मों की ऊर्जा के ऋण की पूर्ती कर सके |तभी इससे मुक्त हुआ जा सकता है |इतनी ऊर्जा केवल कुंडलिनी साधना अथवा किसी उच्च महाविद्या ,नैसर्गिक धनात्मक शक्ति की पूर्ण कृपा होने पर ही संभव है अन्य किसी भी रूप में नहीं |...........................................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment