Thursday, 7 December 2017

भाग्य बदल सकता है

भाग्य में परिवर्तन असंभव नहीं
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सामान्यतया 99 प्रतिशत लोग भाग्यवादी होते हैं और अपने जीवन की स्थितियों के लिए अपने भाग्य को ,प्रकारांतर से भगवान को जिम्मेदार मानते हैं |यह आपको हर समय और स्थान पर कहते मिलेंगे की जो भाग्य में लिखा है वही होगा या होता है ,या जो भगवन की मर्जी है वही हो रह जो उन्होंने लिख दिया |पर यह सही नहीं हैं |भगवान खुद कुछ भी नहीं करता वह तो ऊर्जा या शक्ति स्वरुप है और तब तक कभी भी हस्तक्षेप नहीं करता जब तक की उसे इसके लिए कहा न जाय |वह खुद कुछ नहीं देखता उसे दिखाना होता है ,सुनाना होता है |भाग्य भी वह नहीं लिखता ,यह तो आपके कर्मों का परिणाम होता है जो प्रकृति के नियमों के अनुसार निर्मित होता है |इसके लिए प्रकृति ने एक निश्चित नियम बना रखें हैं जिनमे ग्रह ,नक्षत्र सहयोग करते हैं |यदि किसी में प्रकृति में हलचल मचाने की क्षमता आ जाए तो वह भाग्य बदल भी सकता है |
 हमारा यह लेख अनेक मिथकों और सोचों के विरुद्ध लोगों को लगेगा ,कुछ लोगों को बहुत बुरा भी लगेगा ,जो भी यह सोचते हैं की सबकुछ भाग्य द्वारा निर्धारित होता है ,उससे अलग कुछ नहीं हो सकता ,कोई कुछ भी करे |अनेक ज्योतिष में अतिविश्वास करने वालों को भी अच्छा नहीं लगेगा क्योकि यह सामान्य सोच के विपरीत है की सब कुछ ग्रहों -नक्षत्रों द्वारा ही निर्धारित होता है ,उससे अलग कुछ हो ही नहीं सकता |पर हम कहना चाहेंगे की व्यक्ति अगर चाहे तो उसके भाग्य में परिवर्तन संभव है |जरा गंभीरता से सोचिये ,क्या सबकुछ वैसे ही होता है एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में ,जितना ज्योतिष और भाग्य बताता है |उतना अच्छा तो नहीं ही होता और बुरा उससे अधिक हो जाता है |ऐसा इसलिए होता है की विभिन्न नकारात्मक प्रभाव से भाग्य और ग्रह की शुभता में कमी आती है और अच्छा होने में कमी आती है ,बुरा होने में अधिकता बढ़ जाती हैं |जब नकारात्मक प्रभाव से बुरे परिणाम में वृद्धि हो सकती है तो शुभ और सकारात्मक ऊर्जा बढाने पर अधिक शुभता और अच्छे परिणाम क्यों नहीं प्राप्त हो सकते |प्राचीन ऋषियों ने ज्योतिष आदि में और विभिन्न पूजा पाठों द्वारा उपाय की अवधारणा बुरे प्रभाव में कमी लाने के लिए की |इनके प्रभाव से ग्रहों से उत्पन्न अशुभ प्रभाव में कमी आती है | तो क्या उनके शुभ प्रभाव में वृद्धि नहीं की जा सकती |जब कमी -अधिकता हो सकती है तो सीधा मतलब है की हस्तक्षेप से भाग्य में जो लिखा है उससे अलग भी सम्भव है |क्यों कुछ महर्षि कई सौ सालों तक जीवन जीते हैं जबकि ज्योतिष के अनुसार तो आयु १२० वर्ष से अधिक होनी ही नहीं चाहिए |इससे अधिक की गणना ज्योतिष में है ही नहीं |कैसे बली ,व्यास ,परसुराम ,अश्वत्थामा आदि को चिरंजीवी कहा जाता है |कैसे देवरहा बाबा २५० साल ,तैलंग स्वामी ३०० साल जी गए |क्या इनपर ग्रहों का प्रभाव नहीं था |सीधा अर्थ है की अगर आप कुछ ऐसा करें की आप पर ग्रहीय प्रभाव बदल जाएँ या कम हो जाएँ तो आपके भाग्य बदल सकते हैं |हम साबित कर सकते हैं की भाग्य में परिवर्तन कैसे संभव है |अब तक हमने जो अनुभव किये हैं और जो तर्क से समझा है ,उसके अनुसार -
              .प्रत्येक व्यक्ति के जन्म से उसके चक्रों में से एक चक्र विशेष क्रियाशील रहता है ,जो ग्रह-स्थितियों और आनुवंशिक गुणों से प्रभावित होता है | इसी चक्र की क्रियाशीलता के अनुसार व्यक्ति के गुण- अवगुण, शरीर- मष्तिष्क- बुद्धि की स्थिति ,कर्म- भाग्य- प्रभाव शीलता आदि का निर्धारण होता है |व्यक्ति के जन्म समय पर उपस्थित ग्रह रश्मियों का प्रभाव जैसा होता है ,उसका असर मोटे तौर पर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है |पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार जो भाग्य उसका इस जीवन हेतु निर्धारित होता है ,उस भाग्य के अनुकूल जब ग्रह स्थितियां प्रकृति में बनती हैं तो वह व्यक्ति जन्म लेता है |अर्थात भाग्य उसका निश्चित होता है और उसी के अनुरूप ग्रह स्थितियों में उसका जन्म होता है जो पूरे जीवन उसे प्रभावित करते हैं |किन्तु जिस तरह से पूर्व कर्मों के अनुसार बने भाग्य का प्रभाव आज होगा ,उसी तरह आज का कर्म और मनोबल भी उस भाग्य को प्रभावित करेगा और उसमे कमी -अधिकता ला सकता है |प्राकृतिक शक्तियां भी इसमें कुछ परिवर्तन कर सकती हैं यदि वह इस दिशा में प्रक्षेपित की जाए |व्यक्ति इस भाग्य में अपने कर्म और प्रबल आत्मबल से परिवर्तन कर सकता है क्योकि वह इससे अपने शरीर के दुसरे किसी भी ऊर्जा चक्र को अधिक सक्रिय कर सकता है |इस सक्रियता के साथ ही परिवर्तन शुरू हो जाता है | यह प्रकारांतर से भाग्य में सीधा हस्तक्षेप न होकर पहले से उपस्थित सर्वाधिक प्रभावी ऊर्जा धारा के साथ ही एक अन्य ऊर्जा धारा को भी अधिक क्रियाशील कर उससे उत्पन्न बल द्वारा परिवर्तन होता है ,जो हर क्षेत्र को प्रभावित कर देता है और भाग्य में परिवर्तन हो सकता है |
,जब कोई अपने प्रबल आत्मबल से दूसरे चक्र को अधिक क्रियाशील करने का प्रयास करता है ,अथवा किसी उच्च देवी-देवता की साधना करता है ,किसी उच्च शक्ति के भाव में डूब जाता है तो उसका कोई दूसरा चक्र भी अधिक क्रियाशील हो जाता है [यह उस शक्ति पर निर्भर है की वह किस चक्र का प्रतिनिधित्व करता है ],| दूसरे चक्र की क्रियाशीलता के साथ ही शरीर की औरा ,प्रभावशीलता ,सोच, कर्म, दिशा सब बदल जाती है और एक अतीन्द्रिय मानसिक बल का उदय हो जाता है ,जो उसके मष्तिष्क के सोच की दिशा में कार्य करती है ,दूसरे चक्र की क्रियाशीलता के साथ ही चक्रों से तीब्र तरंगे निकलने लगती है ,और शरीर का प्रभामंडल बदलकर प्रभावी तथा उस शक्ति के अनुसार दीप्त हो जाता है ,साथ ही आस पास का वातावरण भी प्रभावित होता है | शारीरिक रासायनिक स्थितियों -क्रियाओं में भी परिवर्तन होता है और मानसिक बल ,सूक्ष्म शरीर सब अधिक उर्जावान हो जाते हैं जो ग्रहों के प्रभाव को सिमित या नियंत्रित कर देती है और व्यक्ति का भाग्य उसकी सोच के अनुसार परिवर्तित होने लगता है क्योकि कर्म परिवर्तित हो जाता है | चूंकि तात्कालिक प्रभावी ग्रह प्रभावों पर एक अलग शक्ति भी शरीर में कार्य करने लगती हैं फलतः ग्रहों की रश्मियों ,उनके प्रभावों की ग्रहण शीलता ,संवेदन शीलता भी बदल जाते हैं | इसके साथ ही पूर्वकर्म के प्रभाव में भी कमी जाती है और आज के कर्म के परिणाम प्राप्त होने लगते है ,यह उत्पन्न ऊर्जा मानसिक एकाग्रता से बढकर अन्य चक्रों का भेदन कर सकती है और व्यक्ति की कुंडलिनी जागने से उसका पूर्ण स्वरुप ही बदल सकता है जिससे वह दूसरों के भाग्य और प्रकृति में भी स्पंदन कर सकता है|यदि कोई न भी एकाग्र हो और न भी आगे बढ़े तो अलग परिवर्तन होने से भाग्य तो बदलने ही लगता है |
जब व्यक्ति में नए विशिष्ट प्रकार की औरा या प्रभामंडल का विकास होता है ,तो यह ग्रह रश्मियों के लिए भी अवरोधक हो जाता है ,और यह व्यक्ति के मानसिक बल और संकेत के अनुसार कार्य करता है ,जिससे हानिकारक ग्रहों का प्रभाव ,जो जन्मकालिक स्थिति में थे या गोचर से आते हैं ,उनके प्रभाव को रोक देता है |फलस्वरूप शुभ ग्रहों के प्रभाव में भी वृद्धि हो जाती है |होने वह लगता है जो शुभ ही शुभ हो |इस प्रकार भाग्य बदलता है |इसके साथ ही रासायनिक परिवर्तन से व्यक्ति की शारीरिक स्थिति बदलती है और कोशिका क्षय आदि रुक सकती है |सब कुछ मानसिक नियंत्रण और अवचेतन के अनुसार होने लगता है |ऐसी ही स्थिति कहानियों में पढ़ी जाने वाली योगियों की होती है |ठंडी गर्मी जैसे प्रभाव भी इससे बदलते हैं |यह सब कुंडलिनी और चक्रों के खेल हैं |मीरा इतना भाव में डूबी की उसकी कुंडलिनी जाग गई और विष का प्रभाव भी उनके लिए अमृत जैसा हो गया |इसी तरह व्यक्ति अगर सोच ही ले तो भाग्य भी बदल सकता है|

यह एक शाश्वत परिवर्तन है जो ब्रह्मांडीय शक्ति द्वारा होता है और अधिकतर योगी ,तांत्रिक ,साधक के भाग्य में परिवर्तन इस प्रकार से ही होता है |इसके साथ ही एक और तकनीक भाग्य में परिवरतन लाती है ,जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते ,जबकि वे खुद ऐसा कर सकते हैं ,क्योंकि यह शक्ति उनमे ही होती है |यह शक्ति हर मनुष्य में मौजूद अवचेतन मन है ,जो सैकड़ो जन्मों के ज्ञान ,यादें अपने में समेटे रहती है |यह अगर सही से क्रियाशील हो जाए ,अगर सही दिशा में कार्य करने लगे ,आज की परिस्थितियों के अनुसार खुद व्यक्ति में रहकर ही उसका मार्गदर्शन करने लगे तो व्यक्ति अपने भाग्य को भी बदल सकता है ,अपने भाग्य में लिखे समस्त शुभ परिणामों को पा सकता है ,अपने रोग ,शोक ,कष्ट ,असफलता ,अवरोध ,विकलांगता से मुक्ति पा सकता है |ग्रहों द्वारा उत्पन्न कष्ट ,रोग ,असफलता ,अवरोध ,शारीरिक कमियां अगर दूर होती हैं तो यह तो भाग्य में परिवर्तन ही हुआ ना |जबकि हर व्यक्ति में उपस्थित उसका अवचेतन यह सब आसानी से कर सकता है |बस उसे जगाने की जरुरत होती है ,उसे बताने की जरुरत होती है ,उसे अपने लक्ष्य की दिशा में लगाने की जरूरत होती है |हर व्यक्ति में उपस्थित अवचेतन से बड़ा कोई डाक्टर नहीं ,कोई वैज्ञानिक नहीं ,कोई ज्ञानी नहीं ,क्योकि इससे सदियों की ,सैकड़ों जन्मों की यादें और ज्ञान संगृहीत होती हैं |इसे जगाकर सिद्ध पूर्व जीवन को जानते हैं और भविष्य सुधारते हैं ,अपनी कमियों को दूर करते हैं |इससे इस संसार में सबकुछ पाया जा सकता है |इसकी क्रिया प्रणाली पर हमने अपने लेखों में "" चमत्कार ईश्वर नहीं आप करते हैं ""शीर्षक के अंतर्गत प्रकाश डाला है और इसके २० अंक हम अपने इसी ब्लॉग पर पोस्ट कर चुके हैं ,की कैसे व्यक्ति चाहे तो खुद चमत्कार कर सकता है ,असफलता ,कष्ट ,दुःख ,रोग ,समस्या से अपनी ही शक्ति से मुक्त हो सकता है |अगले अंक लिखने पर हम यहीं ब्लॉग पर पोस्ट करेंगे भी |यह सब परिवर्तन भाग्य में परिवर्तन ही होते हैं ,क्योकि जो आप सामान्यतया भुगत रहे होते हैं वही तो भाग्य है |उसमे किसी भी शक्ति से बदलाव ,परिवर्तन भाग्य में परिवर्तन ही तो है ,फिर वह शक्ति चाहे देवी- देवता की हो ,कुंडलिनी की हो या खुद आपमें ही मौजूद अवचेतन की |यह सभी क्रियाएं एक तकनीक हैं ,जिनका अपना विज्ञानं होता है |यह विज्ञानं आज के विज्ञान से बहुत आगे भी है और विकसित भी |जो समझ लेता है तो परिवर्तन कर लेता है और तब भाग्य तो बदलता है |हम आजमा चुके हैं ,परिवर्तन देख चुके हैं ,इसलिए यहाँ लिख रहे और नहीं मानते की सबकुछ भाग्य द्वारा ही निर्धारित है |कुछ मायनों में यह सच होता है पर बहुत कुछ ऐसा है जो बदला भी जा सकता है |बदलाव चाहे छोटा हो या बड़ा पर अगर होता है तो भाग्य परिवर्तन तो होता है ,क्योकि एक परिवर्तन ,फिर परिवर्तनों की अलग श्रृंखला शुरू करती है जो निर्धारित से अलग होता है |..... ...[व्यक्तिगत विचार ]   ....................................हर -हर महादेव 

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