Sunday, 7 January 2018

श्री वैद्यनाथ /बैजनाथ जी [ Shri Vaidyanath ji ]


ज्योतिर्लिंग जय श्री बैद्यनाथ / बैजनाथ जी
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यह ज्योतिर्लिंग झारखण्ड प्रांत के संथाल परगने में देवघर नमक स्थान पर स्थित है, मतान्तर अनुसार इसकी स्थिति महाराष्ट्र के बीड जिले के परली नामक ग्राम और हिमाचल प्रदेश के पालमपुर नगर के समीप भी बताई जाती है lश्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवाँ स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे 'वैद्यनाथधाम' कहा जाता है। यह स्थान वर्त्तमान झारखंड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।
 जिस समय भगवान शंकर ,सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का हृत्पिण्ड अर्थात हृदय भाग गलकर गिर गया था। भगवान शंकर ने सती के उस हृत्पिण्ड का दाह-संस्कार उक्त स्थान पर किया था, जिसके कारण इसका नाम चिताभूमिपड़ गया। श्री शिव पुराण में एक निम्नलिखित श्लोक भी आता है, जिससे वैद्यनाथ का उक्त चिताभूमि में स्थान माना जाता है।
प्रत्यक्षं तं तदा दृष्टवा प्रतिष्ठाप्य च ते सुरा:
वैद्यनाथेति सम्प्रोच्य नत्वा नत्वा दिवं ययु:।।
अर्थात देवताओं ने भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उसके बाद उनके लिंग की प्रतिष्ठा की। देवगण उस लिंग को वैद्यनाथनाम देकर, उसे नमस्कार करते हुए स्वर्गलोक को चले गये।
 इस ज्योतिर्लिंग के विषय में कथा है---राक्षस राज रावण ने हिमालय पर भगवान शिव का दर्शन प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की, एक-एक करके उसने अपने नौ सर काट कर शिव जी को अर्पित कर डाले l जब वह दसवां और अंतिम सर चढाने के लिए उद्धत तो भगवान् ने प्रकट होकर उस से वर मांगने के लिए कहा, रावण ने वर के रूप में उनके शिवलिंग को अपनी राजधानी लंका ले जाने कि अनुमति मांगी l भगववान ने उसे एक शर्त पर वरदान दिया कि यदि इसे रास्ते पर कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जायेगा फिर इसे उठा सकोगे l चलते-चलते मार्ग में लघुशंका करने की आवश्यकता महसूस हुयी, तब रावण ने शिवलिंग एक अहीर के हाथ में थमा कर निवृति के लिए चल पड़ा l कहा जाता है कि वो अहीर बालक गणेश जी का रूप था और उसने शिवलिंग लंका ले जाया जाये इस लिए उसको वहीँ भूमि पर रख गायब हो गया l जब रावण लौटा उसने बहुत प्रयास किया किन्तु शिवलिंग को उठा पाया और अंत में शिवलिंग पर अंगूठे का निशान बना कर वहीं छोड़ लंका लौट आया l वही ज्योतिर्लिंग श्री बैद्यनाथ जी के नाम से जाना जाता है l
एक अन्य कथानुसार रावण ने बल प्राप्ति के निमित्त घोर तपस्या की। शिव ने प्रकट होकर रावण को शिवलिंग अपने नगर तक ले जाने की अनुमति दी। साथ ही कहा कि मार्ग में पृथ्वी पर रख देने पर लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण शिव के दिये दो लिंग 'कांवरी' में लेकर चला। मार्ग मे लघुशंका के कारण, उसने कांवरी किसी 'बैजू' नामक चरवाहे को पकड़ा दी। शिवलिंग इतने भारी हो गए कि उन्हें वहीं पृथ्वी पर रख देना पड़ा। वे वहीं पर स्थापित हो गए। रावण उन्हें अपनी नगरी तक नहीं ले जाया पाया।जो लिंग कांवरी के अगले भाग में था, चन्द्रभाल नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा जो पिछले भाग में था, वैद्यनाथ कहलाया। चरवाहा बैजू प्रतिदिन वैद्यनाथ की पूजा करने लगा। एक दिन उसके घर में उत्सव था। वह भोजन करने के लिए बैठा, तभी स्मरण आया कि शिवलिंग पूजा नहीं की है।सो वह वैद्यनाथ की पूजा के लिए गया। सब लोग उससे रुष्ट हो गए। शिव और पार्वती ने प्रसन्न होकर उसकी इच्छानुसार वर दिया कि वह नित्य पूजा में लगा रहे तथा उसके नाम के आधार पर वह शिवलिंग भी 'बैजनाथ' कहलाए।

शिव पुराण में कई ऐसे आख्यान हैं जो बताते हैं कि शिव वैद्यों के नाथ हैं। कहा गया है कि शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपने ससुर दक्ष का सिर त्रिशुल से अलग कर दिया। बाद में जब काफ़ी विनती हुई तो बाबा बैद्यनाथ ने तीनों लोकों में खोजा पर वह मुंड नहीं मिला। इसके बाद एक बकरे का सिर काट कर दक्ष के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिया। इसी के चलते बकरे की ध्वनि - ... के उच्चरण से महादेव की पूजा करते हैं। इसे गाल बजा कर उक्त ध्वनि को श्रद्धालु बाबा को खुश करते हैं। पौराणिक कथा है कि कैलाश से लाकर भगवान शंकर को पंडित रावण ने स्थापित किया है। इसी के चलते इसे रावणोश्वर बैद्यनाथ कहा जाता है।.........[[ अगला अंक - दसवां ज्योतिर्लिंग - श्री नागेश्वर जी ]..............................................................हर-हर महादेव  ....

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