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यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है l इस स्थान पर नर्मदा के दो धाराओं के विभक्त हो जाने पर बीच में एक टापू सा बन गया है, इस टापू को मान्धाता पर्वत या शिवपुरी कहते हैं l नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण की ओर होकर बहती है l दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा मानी जाती है l इसी मान्धाता पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर स्थित है l पूर्व काल में महाराजा मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न किया था, इसी से इस पर्वत को मान्धाता पर्वत कहा जाने लगा l इस ज्योतिर्लिंग मन्दिर के भीतर दो कोठरियों से होकर जाना पड़ता है l भीतर अँधेरा होने के कारण यहाँ निरंतर प्रकाश की व्यवस्था है l ओंकारेश्वर लिंग मनुष्य निर्मित नहीं है l इस ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप हैं, एक को ममलेश्वर (अमलेश्वर) के नाम से जाना जाता है l यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है, पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक में ही की जाती है l
ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है। वे लोग इस पर्वत की परिक्रिमा भी करते हैं।
धार्मिक दृष्टि से मान्धाता टापू में ओंकारेश्वर की एक छोटी और एक बड़ी दो परिक्रमाएँ की जाती हैं। ओंकारेश्वर क्षेत्र की सम्पूर्ण तीर्थयात्रा तीन दिनों में पूरी की जा सकती है। मान्धाता द्वीप में कोटि तीर्थ पर स्नान करने के बाद कोटेश्वर महादेव, हाटकेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, गायत्रीश्वर, गोविन्देश्वर, तथा सावित्रीश्वर आदि देवों के दर्शन किये जाते हैं। तदनन्तर भूरीश्वर, श्रीकालिका माता और पाँच मुख वाले गणपति सहित नन्दी का दर्शन करने के बाद ओंकारेश्वर-मन्दिर महादेव का दर्शन प्राप्त होता है। ओंकारेश्वर-मन्दिर में शुकदेव जी, मान्धातेश्वर, मनागणेश्वर, श्री द्वारिकाधीश, नर्मदेश्वर भगवान, नर्मदा देवी, महाकालेश्वर, भगवान वैद्यनाथेश्वर, सिद्धेश्वर, रामेश्वर, जालेश्वर आदि का दर्शन करने के बाद विशल्या-संगम तीर्थ पर विशल्येश्वर का दर्शन किया जाता है।इस ओंकारेश्वर-तीर्थ में कार्तिक मास (नवम्बर) की पूर्णिमा तिथि को भारी मेला लगता है। नर्मदा में स्नानकर भगवान अमलेश्वर के दर्शन का बहुत महत्त्व पुराणों में दर्शाया गया है। नर्मदा नदी के स्नान तो क्या, उसके दर्शन मात्र से भी मनुष्य में पवित्रता आती है।
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