Sunday, 15 March 2020

वुडू प्रयोग ,पुतली विद्या और काला जादू [Vudoo spell ,Putli Vidya and Black Magic]

वुडू प्रयोग ,पुतली विद्या और काला जादू
[Vudoo spell ,Putli Vidya and Black Magic]
================================== [[ भाग -१ ]]
 वूडू एक ऐसी विद्या है जो एक धर्म का रूप ले चुकी है |यह जादूगरों के धर्म के रूप में जानी जाती है और मूल रूप से इसका नाम अफ्रीका के आदिवासियों से सम्बन्ध रखता है |वुडू नाम ही अफ्रीका से सम्बंधित होता है ,जबकि इस तरह के जादू से समबन्धित प्रायोगिक धर्म दुनिया के हर हिस्से में भिन्न रूप से आदिम जनजातियों में पाए जाते हैं |हर देश और क्षेत्र में इसका नाम और प्रायोगिक तरीका थोड़े बहुत फेरबदल के साथ अलग हो सकता है लेकिन मूलतः यह जादू -टोने ,झाड़ -फूंक ,स्थानीय देवता और स्थानीय परंपरा से सम्बंधित होता है |  
इसे पूरे अफ्रीका का धर्म माना जा सकता है, लेकिन केरीबी द्वीप समूह में आज भी यह जादू की धार्मिक परंपरा जिंदा है और यहाँ इसे वास्तविक माना जाता है । इसे यहां वूडू कहा जाता है।इसी के नाम पर पुतली विद्या को लोग वुडू के नाम से जानने लगे | हाल-फिलहाल बनीन देश का उइदा गांव वूडू बहुल क्षेत्र है। यहां सबसे बड़ा वूडू मंदिर है, जहां विचित्र देवताओं के साथ रखी है जादू-टोने की वस्तुएं। धन-धान्य, व्यापार और प्रेम में सफलता की कामना लिए अफ्रीका के कोने-कोने से यहां लोग आते हैं। कई गांवों में वूडू को देवता माना जाता है. देवता से मनोकामना पूरी करने की मांग की जाती है. एक वूडू देवता का नाम जपाटा है यानि पृथ्वी का देवता.देवताओं की पूजा के दौरान एल्कोहल, बीयर और सिगरेट भी चढ़ाई जाती है. कुछ जगहों पर मुर्गी या बकरे की बलि भी दी जाती है. लोग मानते हैं कि हर देवता का खुश होने का अपना स्टाइल है.जो लोग भविष्य जानना चाहते हैं, वे फा कहे जाने वाले ओझाओं से मिलते है. कोई भी सवाल नहीं किया जा सकता. अपनी मृत्यु के बारे में सवाल करना वर्जित है..
 वूडू प्रकृति के पंचतत्वों पर विश्वास करते हैं। जैसा की भारत के आदिवासियों में समूह में गाने और नाचने की परंपरा है वैसा ही वूडू नर्तक परंपरागत ढोल-डमरूओं की ताल पर नाच कर देवताओं का आह्वान करते हैं। ये प्रार्थनागत नाच गाना कई घंटों तक चलता है। इस तरह की परंपरा को अंग्रेजी में टेबू कह सकते हैं। यह आज भी दुनिया भर में जिंदा है। नाम कुछ भी हो पर इसे आप आदिम धर्म कह सकते हैं। इसे लगभग 6000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना धर्म माना जाता है। ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद इसके मानने वालों की संख्या घटती गई और आज यह पश्चिम अफ्रीका के कुछ इलाकों में ही सिमट कर रह गया है। हालांकि वूडू को आप बंजारों, आदिवासियों, जंगल में रहने वालों का काल्पनिक या पिछड़ों का धर्म मानते हैं, लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि वूडू की परंपरा आज के आधुनिक धर्म में भी न्यू लुक के साथ मौजूद है। भारत में तांत्रिकों और शाक्तों का धर्म कुछ-कुछ ऐसा ही माना जा सकता है। क्या चर्च में भूत भगाने के उपक्रम नहीं किए जाते? मंदिर में भूत -प्रेत का निवारण नहीं होता ,तांत्रिकों में आदिम मन्त्रों का प्रयोग और आदिम पद्धतियों का प्रयोग नहीं होता |यह सब प्राचीन इन्ही परम्पराओं से स्थान विशेष के साथ थोडा थोडा बदलते हुए सूदूर क्षेत्र तक जाकर अलग रूप ले लेता है |      
वुडू की मुख्य विशेषता इसमें इस्तेमाल होने वाले जानवरों के शरीर के हिस्से व पुतले हैं | इसमें जानवरों के अंगों से समस्या समाधान का दावा किया जाता है। इस जादू से पूर्वजों की आत्मा किसी शरीर में बुलाकर भी अपना काम करवा सकते हैं। इसके अलावा दूर बैठे इंसान के रोग व परेशानी के इलाज के लिए पुतले का भी उपयोग किया जाता है। वूडू जानने वालों का मानना है कि इस धरती पर मौजूद हर जीव शक्ति से परिपूर्ण है। इसलिए उनकी ऊर्जा का उपयोग करके बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। काला जादू के विशेषज्ञों के अनुसार यह वो ऊर्जा (शक्ति) है जिसका इस्तेमान नहीं होता।भारतीय वैदिक परंपरा और तंत्र शास्त्र दोनों में पुतली निर्माण की अवधारणा रही है और इसका भिन्न रूपों में उपयोग भी वैदिक काल से ही रहा है जबकि वैदिक काल लाखों वर्ष पूर्व का माना जाता है ,यद्यपि प्रक्रिया और पदार्थ भिन्न हो जाते हैं |एशिया की आदिम जनजातियों में यही प्रक्रिया अलग रूप में पाने जाती है और अलग धर्म में अलग रूप में |इसे यहाँ वुडू की तरह धर्म का रूप तो नहीं प्राप्त किन्तु इसका प्रयोग हमेशा से होता आया है |जैसे किसी खोये व्यक्ति के न मिलने पर उसे मृतक मान उसका पुतला बनाकर आह्वान कर उसका शव दाह करना |पूजन में विभिन्न खाद्य वस्तुओं से विभिन्न जंतु अथवा शरीर की आकृति का निर्माण कर विविध उपयोग करना |मिटटी के पुतले आदि का निर्माण कर उसपर विभिन्न क्रियाएं करना ,धातु के पुतलों का उपयोग आदि |यह वैदिक और पुरातन काल से हो रहा अर्थात वुडू से भी प्राचीन विद्या यह हमारे संस्कृति में हैं |[Tantra Marg ब्लॉग के लिए लिखित लेख -क्रमशः ]
 वुडू को लोग काला जादू मानते हैं ,पुतली विद्या को लोग काला जादू मानते हैं जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है |दोनों में ही मूल अवधारणा लोगों की भलाई ही थी किन्तु जिस प्रकार तंत्र का उपयोग स्वार्थ हेतु करने से वह दुरुपयोग हो गया वैसा ही वुडू के साथ हुआ और हर प्रकार की ऐसी क्रियाओं के साथ हुआ |कारण यह की यह विद्या ऊर्जा उपयोग और ऊर्जा प्रक्षेपण की है जिसको इच्छानुसार प्रयोग किया जाता है |जब यह इच्छा स्वार्थ हो तो दुरुपयोग हो जाती है और जब यह इच्छा लोगो की भलाई की हो तो सदुपयोग हो जाती है |वास्तव में वुडू ,पुतली निर्माण अथवा ऐसी समस्त विद्याएँ तंत्र विज्ञान के अंतर्गत आती हैं जिनका अपना निश्चित विज्ञान होता है जो आज के विज्ञान से भी बहुत आगे हैं |यह एक बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया है जिसे बहुत ही विशेष परिस्थितियों में अंजाम दिया जाता है। इसे करने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता की जरूरत होती है।कुछ ही लोग इसे करने में सक्षम होते हैं। इस प्रक्रिया में गुड़िया जैसी मूर्ति का इस्तेमाल होगा है। यह गुड़िया कई तरह की खाने की चीजों जैसे बेसन, उड़द के आटे ,कपडे ,धातु ,लकड़ी ,बाल ,वनस्पति ,पौधे अथवा उनके अवयव आदि से बनाया जाता है ,जैसी क्षेत्र विशेष अथवा समुदाय विशेष की परंपरा हो अथवा जैसी जरुरत हो । इसमें विशेष मंत्रों से जान डाली जाती है। उसके बाद जिस व्यक्ति पर जादू करना होता है उसका नाम लेकर पुतले को जागृत किया जाता है। इस प्रक्रया को सीखने के लिए व्यक्ति को विशेष प्रार्थना और पूजा पाठ करनी पड़ती है। कड़ी तपस्या के बाद ही यह सिद्धि प्राप्त होती है |
काला जादू हो या सफ़ेद जादू अथवा कोई भी व्यक्ति विशेष पर आधारित तांत्रिक क्रिया यह और कुछ नहीं बस एक संगृहित ऊर्जा है। जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है या कहें एक इंसान के द्वारा दूसरे इंसान पर भेजा जाता है। विज्ञान की भाषा में ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है, न खत्म किया जा सकता है, उसे सिर्फ एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है। यदि ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल है, तो नकारात्मक इस्तेमाल भी है। ऊर्जा सिर्फ ऊर्जा होती है, वह न तो पॉजीटिव होती है, न नेगेटिव। आप उससे कुछ भी कर सकते हैं।वुडू अथवा पुतली विद्या व्यक्ति विशेष अथवा किसी एक मूल व्यक्ति पर ही मूल रूप से आधारित विद्या है जबकि भारतीय मूल तंत्र आदि बहु आयामी प्रयोग पर आधारित हैं |वुडू आदि जैसी विद्याओं में स्थानीय मन्त्रों ,स्थानीय वस्तुओं का उपयोग होता है जैसे हमारे यहाँ मूलतः व्यक्ति आधारित ग्रामीण क्रियाओं में शाबर मन्त्रों का उपयोग होता है |ऐसा ही हर जाती ,जनजाति ,धर्म ,क्षेत्र में होता है और इसमें मुख्य शक्ति भी स्थानीय देवता ही होता है |  पुतले से किसी इंसान को तकलीफ पहुंचाना इस जादू का उद्देश्य नहीं है। इसे भगवान शिव ने अपने भक्तों को दिया था भारिय परंपरा और तंत्र में ,जबकि अन्य जगह इसे वहां का स्थानीय देवता अपने लोगों की भलाई के लिए दिया अथवा बताया होता है । पुराने समय में इस तरह का पुतला बनाकर उस पर प्रयोग सिर्फ कहीं दूर बैठे रोगी के उपचार व परेशानियां दूर करने के लिए किया जाता था। कुछ समय तक ऐसा करने पर तकलीफ खत्म हो जाती थी। मगर समय के साथ-साथ इसका दुरुपयोग होने लगा।वुडू में भी यही परम्परा रही और हर प्रकार के पुतला निर्माण में भी |वैदिक पुतला निर्माण बिलकुल अलग प्रक्रिया थी जिसमे इसे मुक्ति और मोक्ष तक जोड़ा गया है |    
कुछ स्वार्थी लोगों ने इस प्राचीन विधा को समाज के सामने गलत रूप में स्थापित किया। तभी से इसे काला जादू नाम दिया जाने लगा। दरअसल, उन्होंने अपनी ऊर्जा का उपयोग समाज को नुकसान पहुंचाने के लिए किया। गौरतलब है जिस तरह जादू की सहायता से सकारात्मक या धनात्मक ऊर्जा पहुंचाकर किसी के रोग व परेशानी को दूर किया जा सकता है। ठीक उसी तरह सुई के माध्यम से किसी तक अपनी नकारात्मक ऊर्जा पहुंचाकर। उसे तकलीफ भी दी जा सकती है। जब यह किसी को कष्ट देती है अथवा हानि पन्हुचाती है तब यह काला जादू कहलाती है ,और जब लाभ पहुचाती है तो सफ़ेद जादू ,यद्यपि यह दोनों ही नाम बस भ्रम हैं ,जादू कोई भी न काला होता है न सफ़ेद |यह तो बस ऊर्जा का उपयोग और उसका एक स्थान से दुसरे स्थान तक स्थानान्तरण और स्वरुप परिवर्तन मात्र है |सदुपयोग -दुरुपयोग दोनों उसी प्रक्रिया से हो सकता है जो करता की इच्छा पर निर्भर करता है |..........[क्रमशः ][[अगला अंक -पुतली विद्या अथवा वुडू कैसे कार्य करता है ]]...............................................................हर -हर महादेव

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