परिवार में दुर्घटनाएं /बीमारियाँ /अकाल मौतें क्यों हो रही ?
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कुछ परिवारों में अथवा कुछ लोगों के साथ दुर्घटनाएं अधिक होती हैं |सबकुछ ठीकठाक चलते चलते भी दुर्घटना हो जाती है |विशेषज्ञता होने पर भी गलती हो जाती है |कुछ परिवारों में किसी भी मांगलिक कार्य के पहले अक्सर दुर्घटना हो जाती है |कुछ परिवारों में विवाह आदि मांगलिक कार्य के पहले अकाल मृत्यु
जैसा भी कुछ होता है |कुछ खानदानों में ,परिवारों में अकाल मौतें बहुत होती हैं ,अक्सर लोग अपनी आयु पूरी नहीं कर पाते |कुंडली
और भाग्य ,कुछ और आयु बताती है पर व्यक्ति असमय ही किसी कारण चला जाता है | कुछ परिवारों में बीमारियों का तांता लगा रहता है |कभी कभी ऐसी बीमारियाँ होती हैं की चिकित्सक के अनुसार कोई बीमारी
ही नहीं होती ,जांच में कुछ नहीं निकलता पर व्यक्ति बीमार होता है ,उसे कष्ट रहता है ,स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है तथा कोई दवा काम नहीं करती |कुछ परिवारों में लगातार कई पीढ़ियों में एक ही प्रकार की मानसिक अथवा शारीरिक समस्या देखने में आती है |यद्यपि
यह सब किसी भी परिवार
में हो सकते हैं ,किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है किन्तु जब बहुत बार ,या लगातार ऐसा हो तो कारण सामान्य नहीं होता |उपरोक्त सभी स्थितियों को सामान्य नहीं माना जाता और इनका अपना कारण होता है पर जब बार बार अथवा लगातार हो तो स्थिति बहुत गंभीर होती है |
कुछ परिवार आर्थिक
रूप से बहुत सम्पन्न होते हैं अथवा बहुत शक्तिशाली और उच्च पदस्थ होते हैं पर फिर भी उनके परिवारों में अथवा व्यक्तियों के साथ दुर्घटनाएं अधिक होती हैं |ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं जिनका इलाज चिकित्सा जगत नहीं कर पाता ,अचानक सबकुछ अच्छा चलते हुए अकाल मौत हो जाती है ,अचानक सामान्य सी स्थिति
इतनी बिगड़ जाती है की चारो तरफ दुश्मन
ही दुश्मन
हो जाते हैं |कभी ऐसी गलती हो जाती है जिसकी खुद वह कल्पना नहीं कर सकता या परिवार
के लोग सोच तक नहीं सकते |अचानक से परिवार
बिखर जाता है ,अचानक छोटे अथवा बड़े अलग हो जाते हैं ,अचानक कलह -झगड़े और दुश्मनी शुरू हो जाते हैं |खुशियों के सभी साधन होते हुए भी कोई एक ऐसी समस्या रहती है की व्यक्ति खुश नहीं रह पाता |घर क बाहर तो कुछ रहत रहती है घर का नाम ही दिमाग में आने पर तनाव शुरू हो जाता है |घर में घुसते ही घुटन महसूस होता है ,थकान अधिक महसूस होता है ,एकांत की इच्छा होती है और चिंता घेर लेती है |एक अनजाना सा भय किसी भी मुख्य पर्व या कार्य के पहले रहता है |हमेशा मन में रहता है बस सब अच्छे से बीत जाय |कभी कभी बहुत प्यार करने वाले दम्पति अलग हो जाते हैं और बच्चों का भविष्य दांव पर लग जाता है ,तो कभी कभी बच्चों
के कारण सम्मान चली जाती है अथवा बच्चा ही विमुख हो जाता है |
उपरोक्त सभी समस्याओं का कारण गंभीर प्रकृति की नकारात्मक शक्तियाँ होती हैं या नकारात्मक प्रभावों का उत्पन्न होना हो सकता है जिनका समाधान सामान्य तरीकों
से नहीं हो पाता है |यह पूर्वजों की गलतियों से हो सकता है ,अपनी गलतियों से हो सकता है अथवा किसी कमी के कारण हो सकता है |इन नकारात्मक शक्तियों में जमीन के नीचे दबी कोई शक्ति हो सकती है जिसके आसपास या उपर मकान बन गया हो ,किसी पुराने कुएं ,तालाब को पाटकर मकान बन गया हो अथवा जिस स्थान पर अनेक मौतें हुई हों वहां मकान हो |कोई पित्र अकाल मृत्यु को प्राप्त हो और उसे शान्ति नहीं मिल रही हो |परिवार
में पितरों
की संख्या
बहुत बढ़ गयी हो जिनमे बहुत से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हों |पितरों
के साथ कोई बाहरी शक्ति जुड़ गयी हो जिसे परिवार से कोई लगाव न हो और वह मात्र अपनी संतुष्टि चाहती हो |कहीं से किसी बाहरी का प्रवेश हो गया हो अथवा करा दिया गया हो जिसकी प्रकृति ही विनाश में सुख पाने की हो |परिवार में कोई शक्ति पूजी जाती रही हो जिसकी पूजा अब बंद हो गयी हो |किसी शत्रु -विरोधी द्वारा
आभिचारिक क्रिया
कर या करा दी गयी हो |
उपरोक्त अकाल मौतें ,दुर्घटनाएं और बीमारियाँ तब भी उत्पन्न होती हैं जब कुलदेवता /देवी परिवार
का साथ छोड़ देते हैं और सुरक्षा नहीं करते |इससे दो तरह की दिक्कतें एक साथ शुरू होती हैं |पहला तो यह की कोई भी बाहरी शक्ति या आसपास की शक्ति अपनी इच्छा पूर्ण करने लगती है और परिवार में कष्ट बढाने लगती हैं ,इसे रोकने वाला कोई नहीं होता |दूसरा यह की व्यक्तियों और परिवार
द्वारा किसी भी इष्ट के लिये किया जाने वाला पूजा -अनुष्ठान उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता जिससे सुधार के सारे प्रयास
व्यर्थ होने लगते हैं और सारा धर्म कर्म व्यर्थ जाने लगता है |कुलदेवता /देवी कब और किन स्थितियों में साथ छोड़ देते हैं यह जानने के लिए हमारा पूर्व का लेख "कहीं आपके कुलदेवता /देवी नाराज या निर्लिप्त तो नहीं " देखें ,क्योंकि विवरण लिखने में यह लेख बहुत बड़ा हो जाएगा |किसी स्वार्थवश या मनौती /मान्यता के कारण कोई उद्देश्य पूरा होने पर किसी आसुरी शक्ति या किसी प्रेत शक्ति की पूजा करना भी कुल देवता को रुष्ट करता है |वह साथ तो छोड़ ही देते हैं वह आसुरी शक्ति भी जब कभी पूजा न मिले तो परिवार
का विघ्वंश करने लगती है |इस स्थिति में कुलदेवता साथ नहीं देते ,पित्र जो अच्छे हैं वह भी अलग हट जाते हैं ,ईष्ट को पूजा नहीं मिल पाती और सुधार के सारे प्रयास पूजा -जप -अनुष्ठान काम नहीं करते |
यदि कोई बाहरी या नकारात्मक शक्ति परिवार में सक्रीय
है तो परिवार में होने वालीं मौतों की आत्माएं उस शक्ति के अधीन होती जाती हैं जिससे एक तो परिवार
की समस्त पूजा लेकर और कुलदेवता /देवी का स्थान लेकर वह अपनी शक्ति बढाता है दूसरा मृतक आत्माओं को अपने अधीन करता जाता है जिससे उसकी शक्ति बहुत तेजी से बढती है |कुछ समय अथवा पीढ़ियों में उसकी शक्ति इतनी बढती है की उसकी इच्छा विरुद्ध परिवार
नहीं चल पाता |चूंकि यह नकारात्मक ,तामसिक और अतृप्त
शक्ति होती है अतः हमेशा उसका प्रयास अपनी संतुष्टि ही होता है और वह शोषण करता है |कभी उसके विरुद्ध जाने पर अथवा परिवार
में उसकी पूजा बंद होने पर अथवा किसी पारंपरिक धर्म कर्म ,पूजा -पाठ के प्रयास पर वह व्यवधान उत्पन्न करता है |बार बार ऐसा होने पर वह परिवार
को विनष्ट
करने लगता है जिससे अकाल मौतें बढ़ जाती हैं ,बीमारियाँ ऐसी होती हैं की चिकित्सा नहीं हो पाती ,अनायास दुर्घटनाएं होती हैं |यह शक्ति उपर दिए गए कारणों
में से किसी भी कारण आई हो सकती है अथवा उत्पन्न हुई हो सकती है |भिन्न धर्म से सम्बन्ध रखने वाली शक्तियाँ अधिकतर
विनाश ही करती हैं और मात्र अपनी संतुष्टि में ही लगी रहती हैं जबकि व्यक्ति के धर्म से सम्बन्धित शक्तियाँ बहुत उग्रता न दिखाकर
और सामने न आकर ऐसा करती हैं जिससे परिवार धीरे धीरे पतन की ओर जाता है |
उपरोक्त स्थितियों में ,इन उपद्रवों में ग्रहीय
स्थितियों ,भाग्य आदि का महत्त्व नहीं रहता |भाग्य आदि के सहारे व्यक्ति की आय और स्वभाव
चलती है जिससे भाग्य प्रबल होने पर आर्थिक
स्थिति ठीक होती है ,व्यक्ति ठीक रहता है ,अच्छे पद पर हो सकता है ,सम्मानित और सम्पन्न हो सकता है किन्तु अकाल मौतें ,दुर्घटनाएं और बीमारियाँ परिवार में आती रहती हैं |इनका ग्रहों के प्रभाव
से अलग अपना प्रभाव होता है जब यह भिन्न प्रभाव उत्पन्न कर व्यक्ति से गलतियाँ करवा दें ,कोई ऐसी कमी उत्पन्न कर दें जो पकड में न आये और व्यक्ति बीमार हो जाए गंभीर रूप से ,क्योंकि यह शक्तियाँ दिखाई नहीं देती और विज्ञान इनका अस्तित्व तक नहीं पकड़ पाता तो इनके प्रभाव को कैसे पकड़ेगा |ग्रह व्यक्ति का स्वभाव
,शरीर ,गुण -अवगुण ,क्षमता निर्धारित करते हैं ,समय समय पर जीवन की दिशा -दशा भी बदलते हैं किन्तु इनका प्रभाव
सबके लिए अलग अलग होता है |किसी परिवार में ,किसी व्यक्ति के साथ बार बार दुर्घटनाएं होना ,लम्बी और पकड़ में न आने वाली बीमारी
होना ,ऐसी मौत हो जाना जिसकी कोई सम्भावना न हो ग्रहीय स्थितियों से भिन्न समस्याएं हैं जबकि कोई बाहरी शक्ति या पृथ्वी की सतह से जुडी कोई शक्ति अपनी ऊर्जा किसी व्यक्ति के विरुद्ध लगा देती है |इन शक्तियों /उर्जाओं का आकलन ज्योतिष से नहीं हो सकता क्योंकि इनका प्रभाव
और सघनता भिन्न स्थान पर भिन्न होती है |किसे प्रभावित करेंगे कहा नहीं जा सकता |इनका प्रभाव व्यक्ति के कारण उत्पन्न होता है |
हमने बहुत नजदीक से बहुत से ऐसे परिवारों को देखा है जहाँ बड़े साधक और शक्ति आराधक थे |नवरात्र में खुद चंडी पाठ करते थे दूसरों के यहाँ शतचंडी कराते भी थे ,समय समय पर ,बड़े -बड़े अनुष्ठान करते -कराते थे ,महामृत्युंजय से लेकर शतचंडी तक ,किन्तु उनके यहाँ दुर्घटनाओं ,बीमारियों की कमी नहीं थी ,खुद के घर के मांगलिक कार्य रुक जा रहे थे ,उन्नति
नहीं हो पा रही थी बच्चों की ,खुद में बड़े विद्वान् और शक्ति साधक थे किन्तु परिवार तबाह हो रहा था |इनमे से कुछ की मृत्यु से पहले तक तो कुछ रहत थी इनकी मृत्यु के बाद परिवार तहस -नहस हो गया |दिक्कत यह भी होती है इनके साथ की यह कोई सलाह नहीं मानते चूंकि खुद पर अतिविश्वास होता है और अपनी साधना पर भी |यह उपर दिए गए कारणों को नहीं मानते और सोचते हैं की इनका क्या अस्तित्व जब यह इतनी बड़ी बड़ी साधनाएं और अनुष्ठान कर रहे |यहीं गलती हो जाती है जब पारलौकिक विज्ञान को कोई नहीं समझ पाता |इन धार्मिक और साधकों के परिवारों में हमने ऐसे ऐसे उपद्रव
देखे हैं की इनका पूजन घर तक इन उपद्रवों में जल गया है ,घर के लोगों को दिन में ही आँखें ही आँखें और छायाएं नजर आई हैं |इन साधकों के बाद इनके परिवार
में अकाल मौतों से अगली पीढ़ी की उम्मीद
तक समाप्त
हो गयी |
उपरोक्त साधकों ,धार्मिक लोगों के साथ जरुरी नहीं की किसी नकारात्मक शक्ति के कारण ही ऐसा हुआ हो ,यह सब कुछ उनकी गलती से किसी दैवीय शक्ति के उग्र रुष्ट होने से भी हो सकता है किन्तु कुछ नकारात्मक शक्तियाँ ऐसी भी होती हैं जिन पर व्यक्ति द्वारा किये गए किसी अनुष्ठान का ,पूजा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा यदि वह रुष्ट हो जाय तो परिवार
नष्ट हो जाता है |किसी परिवार
में यदि कोई अच्छा धार्मिक व्यक्ति हो और ईष्ट उपासना
,मंत्रादी जप करता हो तो जब वह अकाल मृत्यु
को प्राप्त होता है तथा असंतुष्ट होता है तब खुद उसके परिवार के किसी भी सदस्य का कितना भी बड़ा साधक हो जाना महत्त्व नहीं रखता |उसको रोक पाना किसी भी पारिवारिक साधक के लिए सम्भव नहीं क्योंकि दुर्गा ,काली ,शिव आदि नैसर्गिक शक्तियाँ अपनी पीढ़ी के पितरों
का अनिष्ट
नहीं करती और उनके प्रति विपरीत क्रिया के लिए उदासीन रहती हैं |इनकी चाहे कितनी भी शक्ति प्राप्त कर ली जाए अपने ही पितरों को नहीं रोका जा सकता क्योंकि यह रक्त और सूक्ष्म शरीर की ऊर्जा का सम्बन्ध होता है |यह पारलौकिक ऊर्जा विज्ञान है जिसके अधीन ही किसी साधक की ऊर्जा अपने आप उसके रक्त सम्बन्धियों में वितरित होती है और इसी विज्ञानं के अंतर्गत व्यक्ति के उच्च सिद्ध होने पर उसके माता -पिता को भी मुक्ति
मिल जाती है |
उपरोक्त प्रकार का पित्र अगर अनुभव करे की उसके लिए कुछ नहीं हो रहा ,वह रुष्ट हो जाय और अपने परिवार का होना न होना उसे बराबर लगे तो वह अपने परिवार को नष्ट भी कर सकता है और ऐसा उदासीन भी हो सकता है कि कोई बाहरी शक्ति परिवार का विनाश करने लगे |इस प्रकार
का पित्र परिवार में होने पर कुलदेवता की सुरक्षा पर्याप्त नहीं मिलती और वह खुद असंतुष्ट होते हैं क्योंकि उनके ही संरक्षित कुल का एक सदस्य परिवार के आचरण के कारण असनुष्ट होता है |यहाँ कोई महत्त्व नहीं रखता की साधक कितना शक्तिशाली है उसका जोर पित्र पर नहीं चलेगा |ब्रह्म
आदि की समस्या कुछ ऐसी ही होती है जबकि किसी तांत्रिक तक की शक्ति उनके लिए कोई प्रभाव नहीं दे पाती |इन मामलों
में बाहरी शक्तिशाली साधक द्वारा
दुर्गा ,काली आदि का प्रयोग सफल हो सकता है किन्तु यहाँ एक समस्या आती है की सभी शक्तियों के साथ पित्र भी जल जाते हैं जिससे कुलदेवता हमेशा के लिए रुष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के परिवार
का सुरक्षा आवरण हट जाता है |इस स्थिति
में ईष्ट तक पूजा नहीं पहुँचती जिससे घर की दुर्घटनाएं ,बीमारियाँ तो रुक जाती हैं किन्तु मुक्ति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं |इन मामलों
में मात्र पितरों को मनाना ही एकमात्र विकल्प
होता है चाहे साधक कितना भी बड़ा क्यों न हो जाय |
सामान्य लोगों के लिए उपरोक्त प्रकार
की स्थितियों में ऐसी शक्ति की स्वयं आराधना करनी चाहिए जो उसके कुलदेवता /देवी का भी प्रतिनिधित्व करें और नैसर्गिक उच्च शक्तियों का भी |किसी बाहरी हस्तक्षेप से जितना सम्भव हो बचना चाहिए विशेषकर ब्राह्मणों को तो किसी बाहरी हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए क्योंकि अधिकतर ब्राह्मणों के घर में पित्र ब्रह्म
ही होते हैं जिन पर एक तो सामान्य साधक का प्रभाव नहीं होता और अगर कोई बड़ी क्रिया करि जाए तो पित्र जल जाते हैं जिससे उनकी मुक्ति
नहीं होती |तब कुलदेवता परिवार का साथ छोड़ देते हैं और लोगों की मुक्ति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं ,किसी ईष्ट तक पूजा पहुंचनी मुश्किल हो जाती है |इसलिए सबसे बेहतर है की उपरोक्त स्थितियों में हर व्यक्ति चाहे कोई भी हो खुद आराधना करें और सुधार का प्रयास करे |खुद के प्रयास विशेष तकनीक से हों तो वह सफल हो जाते हैं और बीमारियों ,दुर्घटनाओं ,अकाल मौतों स परिवार को मुक्ति मिल जाती है |इसकी अपनी एक तकनीक होती है जिस पर चलने से पित्र भी संतुष्ट होते हैं ,कुलदेवता /देवी को भी पूजा मिलने लगती है ,वह संतुष्ट होते हैं |बाहरी किसी भी शक्ति की ऊर्जा क्रमशः क्षीण होने लगती है जिससे धीरे धीरे उसका प्रभाव कम होने लगता है |कुछ समय बाद परिवार अपनी मूल स्थिति में आ जाता है जहाँ लोगों को उनके अपने भाग्य के अनुसार परिणाम
मिलने लगते हैं |...............................................................हर हर महादेव
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