पारिवारिक
स्थिति और वातावरण भी नशे की लत उत्पन्न करता है
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नशे की लत उच्च आदर्शों का पालन करने वाले अथवा संस्कारित परिवारों में कम देखी जाती है |जिन परिवारों में कोई नशा आदि नहीं करता ,जिन परिवारों में कलह ,लड़ाई ,झगड़े ,तनाव का माहौल नहीं होता ,जहाँ बच्चों
से पारिवारिक समस्याएं दूर रखी जाती हैं ,जहाँ माता -पिता बच्चों के सामने आदर्श रखते हैं ,अपने विवाद उनके सामने नहीं लाते ,अपशब्दों के प्रयोग
नहीं होते ,एक -दुसरे की इज्जत होती है ,जहाँ बच्चों को अच्छे से समझाया
जाता है ,उच्च आदर्शवादी बातें होती हैं ,जहाँ बड़ों की इज्जत होती है ,महिलाओं का सम्मान
होता है ,वहां बच्चों में बड़े होने पर नशा ,दुर्व्यसन ,चारित्रिक दोष कम उत्पन्न होता है |यही हाल आसपास के वातावरण का होता है |जहाँ अच्छे लोग रहते हैं ,जहाँ का सामाजिक वातावरण अच्छे संस्कारों वाला होता है ,जहाँ अच्छे शिक्षा
स्तर वाले ,समझदार
लोग रहते हैं ,जहाँ लोग एक दुसरे का सम्मान
करते हैं ,बातें मानते और समझते हैं ,जहां गलत कार्य नहीं होते वहां के युवा नशे की गिरफ्त में कम आते हैं |
कोई माने या न माने किन्तु
युवाओं पर बचपन का प्रभाव
ही सबसे पहले किसी भी बुरे आचरण के लिए जिम्मेदार होता है |माता -पिता का आदर्श ही उनके चरित्र
निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है |केवल बड़ी बड़ी बातें करने से बच्चों में आदर्श नहीं उत्पन्न होता अपितु उनके सामने आदर्श कर्म से रखना होता है |जहाँ इनकी कमी हो जाती है वहां कितना भी प्रयास
हो कुछ कमियां उत्पन्न हो ही जातीं हैं युवाओं में |बड़ा होता बच्चा देखता है की माता -पिता -परिवार के लोग किन बातों से दूर रहते हैं ,कौन बुराइयां उनमें नहीं हैं ,किन चीजों को वह बुरा मानते हैं ,किन कारणों
की क्या कमियां होती हैं |इन सबका उसके विचारों ,भावनाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह बातें उसके अवचेतन में घर कर जाती हैं |जब कोई संस्कार अवचेतन में स्थायी हो जाता है तो जब भी वैसा कुछ होता है उसके अन्दर से अपने आप प्रतिक्रिया होती है की अमुक कार्य बुरा है या अमुक कार्य उपयुक्त है |घर -परिवार के आसपास रहनी वाले लोगों ,उनके संस्कारों ,उनके चाल -चलन ,उनके दोष -गुण का बच्चों
और युवा पर गंभीर प्रभाव
पड़ता है |घर के बाद बच्चा इनके ही सम्पर्क में आता है |युवा इनके साथ ही खेलता -कूदता और बड़ा होता है |अच्छे शिक्षित वातावरण में रहने वाले युवा अपने आप शिक्षा
-प्रतियोगिता और उन्नति
की ओर अग्रसर होने लगते हैं ,क्योंकि उन्हें आसपास स प्रेरणा मिलती है |
नशे के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी आसपास का वातावरण और दोस्त -मित्र होते हैं |व्यक्ति या युवा इनमे से ही किसी के साथ नशे की ओर बढ़ता है और जब उसे इसका स्वाद मिल जाता है तब वह खुद इनकी प्राप्ति के लिए प्रयासरत हो जाता है |प्रथम बार परिवार
को ज्ञात होने पर परिवार
की प्रतिक्रिया उसके आगे बढने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती
है क्योंकि वह शुरू मीन डरा होता है की जाने कौन क्या कहेगा |उसी समय उपयुक्त प्रतिक्रिया उसमे इससे दूरी बना सकती है या यह भी भावना उत्पन्न कर सकती है की कोई क्या कर लेगा |बडो के प्रति सम्मान
और अनजाना
सा भय नशे से युवा को दूर रखने में सहायक होता है |नशे में लिप्त व्यक्ति के प्रति व्यवहार भी उसे या तो नशा छुडाने में मददगार
होता है या उसे और अधिक तनावग्रस्त कर नशे में डाल देता है |अधिकतर युवाओं
में नशे की शुरुआत आनंद लेने के लिए ही होती है ,किन्तु
बाद में उनके दैनिक तनाव -दबाव में नशा कर्ण पर तनाव -दबाव भूलने पर उन्हें लगता है की नशे से उन्हें राहत मिलती है |यह भावना ही उनमे नशे को स्थायी कर देता है |
नशे की लत के लिए साहसी या दब्बू होना ,अंतर्मुखी या बहिर्मुखी होना आदि बहुत मायने नहीं रखता |इसके लिए व्यक्ति का अवचेतन
और उसमे स्थापित संस्कार सबसे अधिक उत्तरदायी होते हैं |जो बातें उनमे बैठी होती हैं बचपन से वही बड़े होने पर बाहर आती हैं और कर्मों में झलकती हैं |इनका इलाज भी यही से हो सकता है |बाहर से समझाकर ,बातें करके ,दवायें
करके ,नशा मुक्ति
केंद्र में डालके ,इनका स्थायी इलाज नहीं किया जा सकता |अवचेतन में बैठे हुए नशे के प्रति भावना को जब तक न बदला जाए ,नशे की कमियां जब तक वहां न स्थापित की जाएँ ,नशे के प्रति अरुचि जब तक न उत्पन्न की जाए ,जब तक व्यक्ति में नशा छोड़ने का आत्मविश्वास न उत्पन्न किया जाए व्यक्ति नशे से पूरी तरह नहीं मुक्त हो सकता |इसीलिए
व्यक्ति को सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद की आवश्यकता होती है नशा आदि में लिप्त होने पर |...............................................................हर हर महादेव
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