चेहरे पर लिखा है आप कितने अच्छे /बुरे ,सफल /असफल हैं
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चेहरे की चमक और व्यक्तित्व का प्रभाव बता देता है की व्यक्ति में सकारात्मक उर्जा का संचार हो रहा है या नकारात्मक का ,मतलब नहीं की चेहरे की बनावट क्या है और रंग क्या है |आप सुन्दर हैं या असुंदर |आप लम्बे हैं या नाटे ,आप मोटे हैं या पतले |यह बाद में महत्त्व रखता है |प्रथम दृष्टया आपके व्यक्तित्व निर्धारण में इनका बहुत महत्त्व नहीं होता यद्यपि इनके प्रभाव
से लोग आकर्षत जरुर होते हैं किन्तु पास आने पर फिर दूर भाग सकते हैं |सबसे अधिक महत्वपूर्ण है की आपकी औरा या आभामंडल क्या कहती है |आपके आतंरिक सूक्ष्म चक्रों की क्या स्थिति है ,आपमें धनात्मक ऊर्जा संचार हो रहा अथवा ऋणात्मक या आपमें धनात्मक ऊर्जा की अधिकता है या ऋणात्मक की |इनके प्रभाव
से आपमें आतंरिक और वाह्य परिवर्तन आते हैं जिससे आपकी आदतें ,स्वभाव
,समझ ,झुकाव ,रूचि -अरुचि तो बनती ही हैं आप सामने वाले को प्रथम दृष्टि में ही अपनी प्रकृति के अनुसार
प्रभावित करते हैं |
आप में धनात्मक अथवा सकारात्मक ऊर्जा संचार रहने पर एक संतुष्टि ।आंतरिक प्रफुल्लता ।कर्म में ऊर्जा और व्यवहार में सहृदयता होगी क्योंकि यह मनुष्य
के मौलिक गुण हैं जो मूल रूप ऐसी स्थिति में प्राप्त करते हैं ।ऐसे में कोई भी सम्पर्क में आने वाला प्रभावित होता है ।साथ रहना चाहता है ।धनात्मक ऊर्जा आपके व्यक्तित्व को कुछ ऐसा बनाता है की आप चाहे या न चाहे लोग आपकी तरफ अपनी आप आकर्षित होते हैं |महत्त्व नहीं की आप किस पद पर हैं अथवा क्या करते हैं |लोगों की दृष्टि आपकी तरफ उठती है और लोग गौर करते ही हैं |यह अदृश्य ऊर्जा के कारण होता है जो एक आकर्षण
बनाता है |यही सफलता का भी सूत्र है |जब लोगों को आप प्रभावित करते हैं ,आकर्षित करते हैं तो तो निःसंदेह उनकी दृष्टि
में आते हैं |उनका लगाव आपके प्रति बढ़ता है और वह आपसे जुड़ना चाहते हैं |उन्हें
आकी अधिकतर
बातें अच्छी लगती हैं |यह रिश्तों को स्थायी
करने और नए रिश्ते बनाने में प्रमुख भूमिका
निभाता है और लोगों को आपके प्रति संवेदनशील बनाता है |
आपमें नकारात्मक ऊर्जा हो तो ठीक विपरीत परिणाम सामने आते हैं ।आपका स्वभाव कुछ ऐसा हो जाता है या आपकी प्रस्तुति कुछ ऐसी हो जाती है की आप बहुत अच्छी बात भी कहते हैं तो लोगों को पसंद नहीं आती |प्रथम दृष्टया ही लोगों में एक आतंरिक
अरुचि उत्पन्न होती है |आपके चाल -चलन रहन -सहन में उद्दंडता ,बेपरवाही ,लोगों के प्रति असम्मान उत्पन्न होता है जिससे अपने भी दूर होने लगते हैं |जब आप किसी से मिलते हैं तो वह आपसे दूर रहना चाहता है |आपको महत्त्व नहीं देता |अगर स्वार्थ न हो तो लोग अक्सर आपसे दूर रहेंगे |बेवजह आपसी सम्बन्धों के कटुता रहेगी क्योंकि साथ वाले को आपसे अरुचि रहेगी |खुद को व्यक्त करते समय आपसे अचानक कोई गलती हो जायेगी
और या तो आप हंसी के पात्र बनेंगे
या आपके उद्देश्य बिगड़ जायेंगे |आप बहुत धनवान या शक्तिशाली कुल में हो सकते हैं ,उच्च पद पर हो सकते हैं किन्तु आपके चाहने वाले वास्तव में बहुत कम होंगे जो साथ जुड़ेंगे किसी न किसी स्वार्थ में अबकी पीठ पीछे आपकी बुराई होगी |केवल किसी के चित्र मात्र से यह सब जाना जा सकता है ।सामने
पड़ने वाले व्यक्ति को देखकर समझा जा सकता है की उसमे धनात्मक ऊर्जा संचार है या ऋणात्मक |क्या स्थिति है चक्रों की और कौन ग्रह प्रभावी हैं तथा किसकी कमी है जिससे ऐसी ऊर्जा बन रही |जानकार यह समझ लेता है अबकी सामान्य मिलने वाले को उपरोक्त लक्षण या कमियां दिखाई देती है जिससे वह एक धारणा बनाता है की अमुक व्यक्ति अच्छा है या बुरा है |यह धारणा स्थायी होती है और सामने वाले के व्यवहार को आपके प्रति निर्धारित करती है |
यह धनात्मक या ऋणात्मक ऊर्जा अचानक नहीं उत्पन्न होती |इसकी शुरुआत आपके अवचेतन
से होती है |अवचेतन आपके व्यवहार ,सोच ,स्वभाव ,रूचि -अरुचि ,व्यक्तित्व को बहुत गहरे से प्रभावित करता है |आप न चाहते हुए भी ऐसे कार्य करते हैं की आपका अच्छा या बुरा होता है |स्वनियंत्रित प्रणाली है अवचेतन जिससे व्यक्ति अचानक कुछ ऐसा कर जाता है की उसके परिणाम प्रभावित हो जाते हैं |अवचेतन पर घर के माहौल ,लोगों के व्यवहार ,आसपास के वातावरण ,,माता -पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव
इस तरह से पड़ता है की व्यक्ति को पता नहीं चलता और यह प्रभाव
जीवन भर के लिए स्थायी
होता है |दूसरा प्रभाव व्यक्ति पर ग्रहों का होता है जो निर्धारित करते हैं की किस तरह की आपमें ऊर्जा है |धनात्मक या ऋणात्मक |इसके प्रभावानुसार आपके कर्म और विचार ,शारीरिक स्थिति ,रंग -रूप ,गुण -अवगुण बनते हैं |इस आधार पर आप कर्म करते हैं |तीसरा प्रभाव व्यक्ति पर पृथ्वी
की सतही ऊर्जा का होता है जहाँ वह रहता है |यह स्थानिक ऊर्जा उसके समस्त सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करती है जिससे आभामंडल या औरा बनती है |यदि ऋणात्मक या नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र या प्रभाव
में आप अधिक रहते हैं तो आपमें सबकुछ धनात्मक होते हुए भी धीरे धीरे आपकी औरा या आभामंडल नकारात्मक हो जायेगी जिससे आपकी असफलता बढ़ जायेगी
,कमियां -बुराइयां स्वयमेव उत्पन्न हो जायेंगी |
आभामंडल या औरा सुधारने के अनेक तरीके आजमाए जाते हैं किन्तु सभी बहुत सफल नहीं हैं |आजकल रेकी का बहुत प्रचालन है किन्तु हमने बड़े बड़े रेकी मास्टर
के ही चक्र असंतुलित देखे हैं |यद्यपि विद्या पर संदेह का कोई कारण नहीं किन्तु
चूंकि ऊर्जा चक्र पर प्रभाव
त्रिस्तरीय होता है अतः मात्र किसी एक दिशा में कार्य करने से स्थायी प्रभाव
नहीं पाया जा सकता |कुछ लोग आध्यात्मिक शक्ति का भी उपयोग आभामंडल सुधारने हेतु करते हैं किन्तु
यह तब स्त्थायी होता है जब खुद व्यक्ति भी थोडा धार्मिक हो जाए और धनात्मक ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास
करे |कुछ लोग यन्त्र -ताबीज से इसे सुधारते हैं जो की स्थायी नहीं होता तब तक जब तक की व्यक्ति खुद प्रयास
न करे ,अन्यथा यन्त्र
-ताबीज को समय -समय पर बदलना होता है |स्थायी प्रभाव पाने के लिए त्रिस्तरीय ही प्रयास
करने होते हैं |प्रथम अवचेतन को सुधारना ,दवितिय धनात्मक ऊर्जा देने वाले ग्रह का प्रभाव बढाना और तृतीय पृथ्वी
की सतही नकारात्मक ऊर्जा से बचाव रखना |इन पर एक साथ किया गया कार्य स्थायी
प्रभाव देता है और यह व्यक्ति की सफलता -असफलता
को गहरे से प्रभावित करता है |एक साथ किये गए प्रयास के परिणाम दीखते हैं जो व्यक्ति में भारी बदलाव तो लाते ही हैं उसके आसपास के लोग भी उससे गहरे प्रभावित होते हैं |.........................................................हर-हर महादेव
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