रोग ठीक कर
सकता है ,और रोग दे भी सकता है आपका अवचेतन
----------------------------------------------------------------------------------
आपके मानसिक
कार्यों का विभाजन करके एक कार्य चेतन मन को और दूसरा कार्य अवचेतन मन करता है
|आपका अवचेतन मन सुझाव की शक्ति का हमेशा पालन करता है |आपके शरीर के सभी कार्यों
,स्थितियों और अनुभूतियों पर आपके अवचेतन मन का पूरा नियंत्रण होता है |आप अच्छी
तरह जानते हैं की सम्मोहित व्यक्तियों में किसी भी बिमारी के लक्षण पैदा किये जा
सकते हैं |जैसे सम्मोहित अवस्था में दिए गए सुझाव की प्रकृति के अनुसार व्यक्ति को
बुखार हो सकता है ,उसका चेहरा लाल हो सकता है या उसे सर्दी हो सकती है |आप व्यक्ति
को सुझाव दे सकते हैं की उसे लकवा मार गया है और वह चल नहीं सकता और ऐसा ही होगा
|अगर कोई आपको बताता है की उसे घास से एलर्जी है तो आप उसे सम्मोहित करके उसके नाक
के सामने कोई कागज़ या फूल या खाली गिलास रखकर उससे कह सकते हैं की यह घास है |उसमे
एलर्जी के सामान्य लक्षण प्रकट हो जायेंगे |इससे हमें यह पता चलता है की शारीरिक
लक्षण अवचेतन मन के कारण पैदा हुए हैं |इन लक्षणों का इलाज भी अवचेतन मन से ही
होता है |ऐसा ही होता है मानसिक रूप से बीमार ,हीन भावना युक्त लोगों में और हमेशा
नकारात्मक तथा बुरा सोचने वालों में |यदि लगातार बुरा ही बुरा सोचें तो सचमुच बुरा
होने लगता है क्योकि यह अवचेतन में घर कर जाता है और अवचेतन उसी दिशा में कार्य
करने लगता है |खुद को लगातार रोगी महसूस करने मात्र से आप कुछ दिनों में सचमुच
बीमार हो जायेंगे और आपकी स्थिति सम्मोहन में दिए सुझाव सी हो जायेगी ,क्योकि आपके
चेतन मन से बार बार खुद के बीमार होने की सूचना अवचेतन तक पहुंची और वहां एक
स्थायी विचार बन गया |आपके बीमार होने पर ऐसी स्थिति में जल्दी कोई भी दावा काम भी
नहीं करेगी ,क्योकि आप मानसिक रूप से भी बीमार हो चुके हैं |
कुछ चिकित्सा
पद्धतियों में अवचेतन मन की शक्ति का उपयोग सीधे किया जाता है तो कुछ में अपरोक्ष
रूप से पर सब में इसका उपयोग होता जरुर है |जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी फेल
हो जाता है वहां यह अवचेतन की चिकित्सा प्रणाली कार्य करती है |जब कोई डाक्टर कहता
है की अब तो भगवान ही सहारा है ,अर्थात जब डाक्टर भी अपने इलाज से शशंकित हो उठता
है और चमत्कार हो जाता है तो उसका कारण यही अवचेतन मन होता है |सारे चमत्कार यही
करता है |विभिन्न चिकित्सा पद्धतियाँ ,कर्मकांड ,अनुष्ठान के मूओल में अवचेतन का
उपचारक सिद्धांत होता है |रोगी के अपने छिकित्सा और चिकित्सक पर विश्वास होने
मात्र से उसकी समस्या ठीक होने लगती है भले डाक्टर उसे केवल विटामिन की गोली मात्र
ही क्यों न दे रहा हो |शरीर की रक्षा प्रणाली अवचेतन मन के अनुसार ही क्कारी करती
है |अगर विश्वास हो की में ठीक हो जाऊँगा तो रोग /समस्या बहुत जल्दी ठीक हो जाती
है और अगर डरा हुआ मन हो और दुविधाग्रस्त हो की पता नहीं में ठीक हो पाऊंगा या
नहीं तो ठीक होने में देर लगती है |ऊँगली के घाव पर मात्र पट्टी बाँध देने से भी
वह ठीक हो सकता है और बहुत से इलाज करने पर भी ठीक होना मुश्किल होआ है ,यह निर्भर
करता है आपके अवचेतन मन की स्थिति पर |
विभिन्न
धार्मिक समूहों में भिन्न -भिन्न प्रकार की उपचार की प्रक्रियाएं होती हैं ,पर
आतंरिक और मूल क्रिया सबकी अवचेतन पर ही निर्भर होती है |कुछ समूह जल अभिमंत्रित
करके पिलाकर तो कुछ छिडककर ,तो कुछ दोनों करके इलाज करते हैं |कुछ धुंएँ से कुछ
मंत्र आदि बुदबुदाकर इलाज करते हैं |कुछ मंत्र से हवंन करके इलाज करते हैं |कुछ
अभिमंत्रित यंत्र ,वस्तुएं आदि के साथ इलाज करते हैं तो कुछ विशेष प्रार्थनाएं
करवाकर इलाज करते हैं |कुछ शरीर पर हाथ फेरकर तो कुछ फूंक मारकर इलाज करते हैं
|कुछ चुम्बकीय वस्तुएं ,धातु ,कांच ,रत्न आदि से इलाज करते हैं तो कुछ वनस्पतियों
से |इन पद्धतियों में जो वस्तु उपयोग होती है उसमे स्थित ऊर्जा तो अलग है मूल
शक्ति अवचेतन पर प्रभाव होता है |मात्र रोगी को विश्वास हो जाए की यह बेहतरीन
चिकित्सा प्रणाली या चिकित्सक है ,उसकी चकित्सा अवचेतन द्वारा शुरू हो जाती है
,अन्य वस्तुएं तो मात्र चिकित्सा की गति को ही प्रभावित करती हैं |शरीर पर हाथ
फेरते हुए रोगी को विश्वास में लेने से वह ठीक होने लगता है |सम्मोहनावस्था में
उसे सुझाव देने से वह ठीक होने लगता है |सभी प्रकार की उपचार की प्रक्रिया एक
निश्चित ,सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण से चलती है \निश्चित आतंरिक दृष्टिकोण या
सोचने का तरीका जिसे आस्था कहते हैं
|उपचार विश्वासपूर्ण उम्मीद के कारण होता है ,जो अवचेतन मन को शशक्त सुझाव देती है
|इसी से उपचार की शक्ति प्राप्त होती है |
आपकी आस्था की
वस्तु सच्ची हो या झूठी आपको परिणाम समान ही मिलेंगे |अगर आप भगवान राम की प्रतिमा
पर उतना ही विश्वास करें जितना आप सामने भगवान राम के होने पर उनमे करते तो आपको
प्रतिमा से भी वही परिणाम मिलेंगे जो स्वयं भगवान राम से मिलते |कह सकते हैं की यह
अंधविश्वास है ,पर यह चमत्कार करती है |अंधविश्वासों के चमत्कार आपके अवचेतन मन से
ही होते हैं ,वह प्रतिमा या भगवान राम मात्र एक प्रतीक हैं ,असली चमत्कार तो आपका
अवचेतन करता है |गुरु में विश्वास है की वह चमत्कार करेगा तो चमत्कार होगा ,गुरु
के प्रति भावना माध्यम होगी फिर गुरु कैसा भी हो व्यक्तिगत रूप से |आप कुछ नहीं
जानते और उसमे गहरी श्रद्धा और विश्वास रखते हैं तो आपको हमेशा सकारात्मक परिणाम
ही मिलेंगे भले व्यक्तिगत रूप से वह गुरु कुछ भी करता हो |आपमें तो श्रद्धा और
विश्वास सच्चा है अतः आपको परिणाम अच्छा ही मिलेगा |यही वह सूत्र है हर चमत्कार के
पीछे का |आप किसी समस्या से पीड़ित हैं और मंदिर में पत्थर की मूर्ती के आगे सर पटक
देते हैं |मन में विश्वास है की भगवान हर हाल में सुनेगा ,उसे सुनना ही होगा तो
चमत्कार होगा |मतलब नहीं की उस मंदिर में पूजा होती है या नहीं अथवा वहां मूर्ती
प्राण प्रतिष्ठित है या नहीं ,प्रतिष्ठा तो वहां आपका मन कर देगा |यह प्रबल
विश्वास आपके अवचेतन तक पहुँचते ही अवचेतन अपना कार्य प्रारम्भ कर देगा और जन्मों
जन्मों की सूचना आपके सामने लाने लगेगा तथा कहीं न कहीं से समस्या मुक्ति का सुझाव
ढूंढ ही लेगा या ऐसा व्यक्ति सुझा देगा जो समस्या हल कर सके या ऐसी युक्ति निकाल
देगा जिससे समस्या खत्म हो जाए |मूर्ती ,भगवान् माध्यम होंगे कार्य आपका अवचेतन
करेगा |अगर उस मूर्ती ,गुरु या माध्यम के वास्तव में कुछ ऊर्जा है तो चमत्कार
जल्दी होगा और बिना किसी रुकावट के होगा |
इन सबका अपना
वैज्ञानिक सिद्धांत है |साड़ी क्रियाएं वैज्ञानिक नियमों ,प्रकृति कके नियमों पर
होती हैं |आपका विश्वास ,आपकी श्रद्धा ,आपकी आस्था आपके अवचेतन तक पहुंचकर विशेष
तरंगें उत्पन्न करती हैं |अगर आपकी आस्था की वस्तु डाक्टर ,गुरु ,मूर्ति में उरगा
है तो वह इन तरंगों के माध्यम से जुड़ जाती है और आपको इस माध्यम से प्राप्त होने
लगती है जिससे एक तो आपके अवचेतन के आस्था की शक्ति दुसरे माध्यम की ऊर्जा मिलकर
सचमुच चमत्कार कर देती हैं |अगर माध्यम में ऊर्जा न भी हो तो आपका अवचेतन ही खुद
चमत्कार करता है ,बस थोड़ी विलम्ब हो सकती है |आप आसानी से उन अद्भुत परिस्थितियों
की कल्पना कर सकते हैं ,जो आत्मविश्वास और कल्पना से उत्पन्न हो सकती हैं |खासकर
तब जब ये दोनों ही चीजें रोगी और उसे प्रभावित करने वाले के बीच प्रवाहित हों
|निश्चित स्मृति चिन्हों के प्रभाव से होने वाले उपचार उनकी कल्पना और आत्मविश्वास
के प्रभाव हैं |आप किसी यन्त्र अथवा ताबीज को पहने और आपको विश्वास हो की यह कार्य
करेगा तो वह जरुर काम करता है |जब आप किसी संत की समाधि पर जाएँ और अपनी समस्या का
इलाज मांगें तो वह भी पूर्ण होता है |नीम हकीम और दार्शनिक जानते हैं की यदि किसी
संत की अस्थियों की जगह किसी सामान्य इंसान की अस्थियों को रख दिया जाए तब भी
बीमारों को उतने ही लाभकारी परिणाम मिलेंगे बशर्ते की उन्हें यकीन हो की यह सच्चे
स्मृति चिन्ह हैं |यही होता है इसमें |आपका विश्वास की वहां अमुक की अस्थियाँ हैं
और वह वहां है आपमें गहरा विश्वास और आस्था जगा देता है की आपकी समस्या हल होगी
|वहां कोई शक्ति है या नहीं महत्त्व बहुत नहीं ,आपका अवचेतन उस विश्वास के अनुरूप
कार्य कर आपकी समस्या हल करने में मदद कर देता है और आपको लगता है की वहन से हमारा
कार्य हुआ और आपकी आस्था और प्रबल हो जाती है जो आगे के कार्यों को सफल बनाने में
सहायक हो जाती है |
आजकल एक
प्रचलन चल रहा साईं बाबा के मुस्लिम होते हुए भी उन्हें चन्दन टीका लगाकर हिन्दू
अपने देवी -देवताओं के साथ स्थान दे रहे |मंदिर में जगह दे रहे या मंदिर बना रहे
|इन सबकी सोच यही है की साईं भगवान् थे और कृपा करेंगे या कर रहे |यहाँ साईं कृपा
करें न करें क्योकि वह एक अलग धर्म से सम्बंधित भी थे और आज भी एक आत्मा ही होंगे
जिसकी अपनी सीमाएं होती हैं ,पर जो लोग इस अंध आस्था के शिकार हैं उनके काम भी
होंगे |यह साईं की वजह से हो जरुरी नहीं हाँ यह उनके अवचेतन की वजह से जरुर होंगे
|उनमे जो गहरा विश्वास ,आस्था उत्पन्न हो गया वह अवचेतन तक पहुंचकर ऊर्जा
उत्प्पन्न करता है और अवचेतन अपनी शक्ति से उस आस्था के अनुरूप कार्य करके समस्या
हल करने में मदद करता है ,जबकि लोगों को लगता है की साईं ने यह कार्य कर दिया |अगर
शुभाष चन्द्र बोस ,सचिन तेंदुलकर अथवा गांधी ,अथवा अम्बेडकर की मूर्तियों को पूजें
और गहरी आस्था हो की मेरे कार्य यह करेंगे तो साईं की तरह ही आपके काम होंगे जरुर
,क्योकि प्रक्रिया समान होगी ,बस माध्यम बदल जाएगा |यही सूत्र कार्य करता है सभी
मस्जिद ,कब्र ,समाधि ,स्मृति चिन्ह ,चौरी ,ब्रह्म पीठ आदि की पूजा से होने वाले
लाभ पर |मूल काम आपका अवचेतन करता है ,नाम भले भिन्न भिन्न स्थानों अथवा शक्तियों
का हो का हो |हाँ मूल देवताओं के मंदिरों और ऊर्जा की स्थिति थोड़ी भिन्न होती है
क्योकि वहां वास्तव में प्रकृति की धनात्मक ऊर्जा होती है जो अवचेतन से जुडती है
|.............................................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment