Tuesday, 28 May 2019

क्यों पूजा -पाठ फलित नहीं होता ,कितना भी उपाय करते हैं ?


उपाय काम नहीं करेंगे ,कितने भी उपाय करो
==========================
    जब भी किसी समस्या की बात आती है तो अंत में यही पूछा जाता है की इसका क्या उपाय है ,क्या निवारण है और निवारण ,उपाय लिखा भी जाता है |सभी लोग जो भी किसी समस्या से परेशान होते हैं वह कोई कोई उपाय करते हैं  ,कुछ लोग बहुत से उपाय करते हैं किन्तु अधिकतर लोग अंत में यही कहते हैं की उपाय काम नहीं किये या उपाय काम नहीं करते |बहुत कम प्रतिशत लोगों के उपाय सफल होते हैं जबकि अधिकतर की समस्या या तो जस की तस रहती है या बढ़ ही जाती है |कुछ लोग उपाय करते -करते इतने थक जाते हैं की अंत में यही कहते हैं और मान लेते हैं की भाग्य ही अंतिम है, उसे कोई नहीं बदल सकता ,जो भाग्य में लिखा है वही होगा |यहाँ तक की उनका विश्वास ईश्वर और पूजा -पाठ पर से भी उठने लगता है |कुछ लोग समस्या को भी भाग्य ही मान लेते हैं भले वह ठीक हो सकता हो अथवा भाग्य में हो या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हुआ हो |कारण की उनके उपाय काम नहीं करते |आखिर करें तो क्या इसलिए कष्ट को ही भाग्य मान संतोष कर लिया | टोने -टोटको के उपाय कुछ हद तक काम करते हैं किन्तु बड़े उपाय अधिकतर के लिए अक्सर काम नहीं करते |टोने -टोटकों में किसी उच्च शक्ति या देवी -देवता का उपयोग होकर वस्तुगत उरा और मानसिक ऊर्जा का प्रक्षेपण होता है इसलिए यह कुछ काम कर जाते हैं यदि कोई छोटी -मोटी समस्या हुई तो ,किन्तु बड़ी समस्या के उपाय काम नहीं कर पाते क्योंकि बड़ी शक्तियों का प्रयोग असफल हो जाता है |कालसर्प ,पित्र दोष ,अकाल मृत्यु भय ,गंभीर रोग ,मारक -कष्टकारक ग्रह के प्रभाव ,ब्रह्म -जिन्न -प्रेत बाधा के प्रभाव ,ईष्ट रुष्टता ,गंभीर आभिचारिक प्रयोग जैसे समस्या के उपाय अधिकतर के लिए असफल होते हैं क्योंकि यहाँ उच्च शक्तियों की आवश्यकता होती है |
        ज्योतिष हो या तंत्र सबमे उपाय की अवधारणा है और यह किसी किसी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं ,किसी किसी देवता का प्रतिनिधित्व करते हैं |उस देवता को प्रसन्न कर अथवा शन्ति कर ही समस्या निवारण होता है |जब उपाय किया ज्जाता है तो आशा की जाती है की वह देवता या शक्ति प्रसन्न होगा या शांत होगा और व्यक्ति को कष्ट से मुक्ति मिलेगी |इसके लिए उपाय की ऊर्जा उस देवता तक पहुंचनी चाहिए अर्थात उपाय की पूजा देवता को मिलनी चाहिए ज्जिससे वह प्रसन्न हो या शांत हो |अधिकतर मामलों में उपाय की उरा देवता तक नहीं पहुँचती या पूजा उसे नहीं मिलती |व्यक्ति अथवा पंडित पूरी तन्मयता से उपाय करता है किन्तु फिर भी लाभ नहीं होता क्योंकि जहाँ पूजा की ऊर्जा जानी चाहिए वहां नहीं जाती ,वह बीच में या तो किसी और द्वारा ले ली जाती है या बिखर जाती है |व्यक्ति सोच लेता है उपाय कर दिए समस्या हल होनी चाहिए ,किन्तु समस्या हल नहीं होती |कभी -कभी तो बढ़ भी जाती है |पंडित ने अपना कर्म कर दिया की अमुक पूजा करा दिया ,अपना दक्षिणा लिया और काम समाप्त मान लिया |उन्हें भी नहीं पता की पूजा जा कहाँ रही या काम करेगी या नहीं |शास्त्र में लिखा है यह करने से यह समस्या हल होगी ,उसने बताई और पूजा कर दी |ज्योतिषी ने किसी को अकाल मृत्यु भय से बचने को महामृत्युंजय जप बताया ,व्यक्ति ने ज्योतिषी के माध्यम से ही अथवा पंडित से जप करवा भी दिया किन्तु फिर भी व्यक्ति के साथ दुर्घटना हुई और उसकी मृत्यु हो गयी |अब वह महामृत्युंजय का जप गया कहाँ |उसका लाभ क्यों नहीं मिला | पंडित जानता है ज्योतिषी |व्यक्ति से सम्बन्धित लोग खुद मान लेते हैं की इतना बड़ा संकट था की महामृत्युंजय भी नहीं बचा सका या उन्हें कहा जाता है की समस्या बहुत गंभीर थी इसलिए जप बचा नहीं सका |यहाँ समस्या यह थी की महामृत्युंजय जप महादेव तक पहुंचा ही नहीं तो जान बचेगी कहाँ से |
          आश्चर्यचकित मत होइए और यह मत सोचिये की अब महादेव से भी बड़ा कोई हो गया क्या जो उन तक जप नहीं पहुंचा और कहीं और चला गया या महामृत्युंजय का जप भी कोई रोक सकता है क्या |ऐसा होता है और जप वातावरण में बिखर जाता है ,महादेव तक नहीं पहुँचता |कारण की महादेव ने ही वह तंत्र बनाया है जिससे उन तक जप पहुंचे |वह तंत्र बीच से टूटा हुआ है तो जप महादेव तक नहीं पहुंचेगा |महादेव भी अपने ही बनाए तंत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते |जो नियम और तंत्र महादेव और शक्ति ने मिलकर बनाया है उससे वह खुद बंधे हुए हैं |यदि वह किसी व्यक्ति के लिए तोड़ते हैं तो विक्षोभ हो जाएगा ,इसलिए वे उस तंत्र के अनुसार ही फल देते हैं |उन्होंने सभी के लिए एक विशिष्ट नियम और ऊर्जा संरचना बनाई है जिसके अनुसार ही ऊर्जा स्थानान्तरण होता है |उन तक पहुंचता है और उनसे व्यक्ति तक पहुंचता है |बीच में कुछ विशिष्ट कड़ियाँ हैं जो ऊर्जा रूपांतरण करती हैं |यह कड़ियाँ यदि टूट जाएँ या हो तो महादेव तक ऊर्जा नहीं पहुंचेगी और उनकी ऊर्जा व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगी |यह नियम सभी प्रकार के पूजा पाठ में ,उपाय में लागू होता है |व्यक्ति यदि सीधे उनतक पहुँच सकता तो फिर व्यक्ति को कोई समस्या ही नहीं होती |यह बीच की कड़ियाँ ,स्थान देवता ,ग्राम देवता ,क्षेत्रपाल और मुख्य रूप से कुलदेवता /देवी होते हैं जो पृथ्वी के व्यक्ति और महादेव या देवताओं के बीच की कड़ी होते हैं |यह महादेव और शक्ति के ही अंश हैं किन्तु यह उनकी पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील ऊर्जा रूप हैं और बीच की कड़ी हैं |जितने भी भूत -प्रेत -ब्रह्म आदि हैं वह भी महादेव के ही अंतर्गत आते हैं अतः इनके द्वारा उत्पन्न व्यवधान में भी महादेव सीधे हस्तक्षेप नहीं करते |अब हम बताते हैं की क्यों पूजा महादेव या किसी देवता तक नहीं पहुंचती या उपाय असफल क्यों हो जाते हैं |
         उपाय तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक वह कहीं स्वीकार हों |उपाय एक ऊर्जा प्रक्षेपण है |उपाय से ऊर्जा उत्पन्न कर एक निश्चित दिशा में भेजी जाती है |यह ऊर्जा जब तक कहीं स्वीकार की जाए अंतरिक्ष में निरुद्देश्य विलीन हो जाती है और कोई लाभ नहीं मिलता अथवा यह ऊर्जा अपने गंतव्य तक पहुंचे ,किसी और द्वारा ले ली जाए तो भी असफल हो जाती है ,अथवा उत्पन्न ऊर्जा का परिवर्तन प्राप्तकर्ता के योग्य ऊर्जा में हो पाए तो भी अपने उद्देश्य में ऊर्जा सफल नहीं होती | लोगों के कष्टों के हजारों उपाय शास्त्रों में दिए गए हैं ,इनमे ज्योतिषीय ,कर्मकांडीय अर्थात वैदिक पूजन प्रधान और तांत्रिक उपाय होते हैं |इन उपायों में छोटे टोटकों से लेकर बड़े -बड़े अनुष्ठान तक होते हैं |इन शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा की कैसे यह उपाय काम करते हैं |किस सूत्र पर कार्य करते हैं ,कैसे पितरों-देवताओं तक ऊर्जा पहुँचती है ,कैसे यहाँ के पदार्थों का पित्र लोक -देवलोक के पदार्थों में परिवर्तन होता है ,कौन यह ऊर्जा स्थानान्तरण करता है ,कब यह क्रिया अवरुद्ध हो जाती है ,कौन इस कड़ी को प्रभावित कर सकता है ,कैसे उपायों से कितनी ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है |कहीं कोई सूत्र नहीं दिए गए ,क्योंकि जब यह उपाय बनाए गए तब के लोग इन सूत्रों को समझते थे |उन्हें इसकी क्रियाप्रणाली पता थी |
         उस समय के ऋषियों को यह अनुमान ही नहीं था की आधुनिक युग जैसी समस्या आज के मानव उत्पन्न कर सकते हैं ,अतः उन्होंने इन्हें नहीं लिखा |उन्होंने जो संस्कार बनाए उसे यह मानकर बनाए की यह लगातार माने जायेंगे |इन्ही संस्कारों में उपायों की क्रिया के सूत्र थे अतः लिखने की जरूरत नहीं समझी |जब संकार छूटे तो सूत्र टूट गए |लोगों की समझ में अब नहीं आता की हो क्या गया |लोग अपनी इच्छाओं से चलने लगे तथा व्यतिक्रम उत्पन्न हो गया ऊर्जा संचरण में और सबकुछ बिगड़ गया |कुछ सूत्रों को पितरों के सम्बन्ध में गरुण पुराण में दिया गया है किन्तु पूरी तकनिकी वहां नहीं है क्योंकि बीच की कड़ी सामान्य जीवन से सम्बन्धित है |गरुण पुराण बताता है की विश्वेदेवा पदार्थ को बदलकर पित्र की योनी अनुसार उन्हें पदार्थ उपलब्ध कराते हैं ,किन्तु विश्वदेव तक ही कुछ पहुंचे तो क्या करें |विश्वदेव ही नाराज हो जाएँ तो क्या करें |आचार्य करपात्री जी ने विश्वेदेवा की कार्यप्रणाली को बहुत अच्छे उदाहरण से बताया है किन्तु समस्या उत्पन्न उर्जा के वहां तक ही पहुँचने में होती है |उनके द्वारा स्वीकार करने और परिवर्तित कर पितरों को प्रदान करने में ही होती है |यही हाल सभी पूजा पाठ का होता है |लोग कहते हैं की यहाँ कुछ भी चढ़ाया भगवान् नहीं खाता या नहीं लेता ,किन्तु ऐसा नहीं है भगवान् को यहाँ का भोग उसके स्वीकार करने योग्य ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है और वह वहां पहुंचता है किसी अन्य रूप में |तभी तो प्रसाद आदि को परम पवित्र माना जाता है और चढ़ाए पुष्प आदि को जलाया नहीं जा सकता |उसे स्वयं विघटित होने दिया जाता है |भगवान् को प्रदान की रही पूया की ऊर्जा का रूपांतरण उनके स्तर तथा लोक के अनुसार कुलदेवता और विश्वदेव करते हैं |
         उपाय ,पूजा -पाठ ,ऊर्जा रूपांतरण के सूत्र हमारे पूर्वज ऋषियों को ज्ञात थे और तदनुसार सभी प्रक्रिया ब्रह्माण्ड की ऊर्जा संरचना की क्रियाप्रणाली के आधार पर हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा बनाई गयी थी जो की आधुनिक वैज्ञानिकों से लाखों गुना श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे |इस प्रणाली में एक त्रुटी पूरे तंत्र को बिगाड़ देती है |चूंकि यह प्रणाली प्रकृति की ऊर्जा संरचना पर आधारित है अतः यहाँ देवी -देवता भी हस्तक्षेप नहीं करते ,क्योंकि वह भी उन्ही सूत्रों पर चलते हैं |उनकी उत्पत्ति भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है ,उन्हें भी उन्ही सूत्रों पर ऊर्जा दी जाती है ,उन्ही सूत्रों पर उन तक भी पूजा पहुँचती है |इस प्रकार ईष्ट चाहे कितना भी बड़ा हो ,देवी -देवता चाहे कितना ही शक्तिशाली हो कड़ियाँ टूटने पर कड़ियाँ नहीं बना सकता |सीधे कहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता |विरल स्थितियों में व्यक्ति विशेष के लिए इनके हस्तक्षेप होते हैं किन्तु यह हस्तक्षेप पित्र संतुष्टि अथवा देवताओं को पूजा मिलने को लेकर नहीं रहे हैं |पूजाओं की सबसे मूल कड़ी व्यक्ति के खानदान के मूल पूर्वज ऋषि के देवता या देवी होते हैं जिन्हें बाद में कुलदेवता /देवी कहा जाने लगा |इनका सीधा सम्बन्ध विश्वदेवा स्वरुप से होता है ,जो की पूजन स्थानान्तरण के लिए उत्तरदाई होते हैं |कुल देवता /देवी ब्रह्माण्ड की उच्च शक्तियों जिन्हें देवी /देवता कहा जाता है और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं और यह पृथ्वी की ऊर्जा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच सामंजस्य बनाते हैं |यह कड़ी जहाँ टूटी सबकुछ टूट जाता है और फिर चाहे कितनी भी पूजा - शान्ति कराई जाए देवताओं तक दी जा रही पूजा नहीं पहुँचती और वह असंतुष्ट ही रह जाते हैं या प्रसन्न नहीं होते |
      कुलदेवता प्रत्येक वंश के उत्पत्ति कर्ता ऋषि के वह आराध्य हैं जिनकी आराधना उन्होंने अपने वंश की वृद्धि और रक्षा के लिए अपने वंश के लिए उपलब्ध सामग्रियों के साथ अपने लिए उपयुक्त समय में की थी |जिस ऋषि और वंश की जैसी प्रकृति ,कर्म और गुण थे वैसे उन्होंने अपने कुलदेवता और देवी चुने किन्तु यह ध्यान रखा की सभी शिव परिवार से ही हों |कारण की शिव परिवार ही उत्पत्ति और संहार दोनों करता है |इनके बीच के कर्म ही अन्य देवताओं के अंतर्गत आते हैं |दूसरा कि शिव परिवार ही ऊर्जा का वह माध्यम है जो ब्रह्माण्ड से लेकर पृथ्वी तक समान रूप से व्याप्त है |तीसरा कि शिव परिवार की ऊर्जा ही पृथ्वी की सतह पर सर्वत्र व्याप्त है जो सतह पर पृथ्वी की ऊर्जा से मिलकर अलग स्वरुप ग्रहण करता है |चौथा पृथ्वी की समस्त सतही शक्तियाँ जैसे भूत ,प्रेत ,पिशाच ,ब्रह्म ,जिन्न ,डाकिनी ,शाकिनी ,श्मशानिक भैरव -भैरवी ,क्षेत्रपाल आदि सभी शिव के अधीन होते हैं |इन कारणों से सभी कुलदेवता शिव परिवार से माने गए |कुलदेवता /देवी वह सेतु हैं जो व्यक्ति /वंश और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा में समन्वय का काम करते हैं साथ ही यहाँ की स्थानिक शक्तियों से सुरक्षा भी करते हैं |यह वह बैंक हैं जो मुद्रा विनिमय जैसी क्रिया कर आपके द्वारा प्रदत्त मुद्रा अर्थात पूजन -भोज्य -अर्पित पदार्थ को बदलकर आपके पितरों तक ,आपके ईष्ट तक पहुंचाते हैं |यह वह चौकीदार हैं जो आपके वंश की ,परिवार की ,व्यक्ति की सुरक्षा २४ घंटे और १२ महीने करते हैं ताकि आपको किसी नकारात्मक ऊर्जा से कष्ट हो |इनकी ठीक से पूजा होने पर ,इन्हें भूल जाने पर यह असंतुष्ट या रुष्ट हो जाते हैं और पूजा ईष्ट तक नहीं जाने देते या नहीं भेजते |इसलिए उपाय काम नहीं करते |महामृत्युंजय कराइए किन्तु कुलदेवता यदि रुष्ट हैं तो महादेव तक जप नहीं जाएगा |महादेव का ही नियम है तो वह सीधे पूजा नहीं ले सकते |लाभ नहीं होगा |
        आपके घर में किसी बड़ी नकारात्मक या आसुरी शक्ति का वास हो या कोई ब्रह्म -प्रेत  -जिन्न -वीर -सहीद -सती -साईं आप द्वारा पूजा जाता हो तो यह धीरे -धीरे आपकी पूजा खुद लेने लगता है और अपनी शक्ति बढाता है जिससे कुलदेवता की पूजा बाधित होती है |कुछ समय बाद यह कुलदेवता का स्थान ले लेता है और कुलदेवता रुष्ट हो जाते हैं |अब सभी पूजा यह ले लेगा और आपके ईष्ट तक कोई पूजा नहीं पहुंचेगी |आप कोई उपाय करें ,कोई अनुष्ठान कराएं सफल नहीं होगा ,कोई पूजा करें देवता को नहीं मिलेगा |आप मात्र खुद को संतुष्टि देंगे यह मानकर की आप पूजा कर रहे या करा रहे पर परिणाम नहीं मिलेगा |अब यह भी शिव के ही गण हैं |इन्हें भी शिव ने ही बनाया है |कुलदेवता भी शिव के ही अंश हैं तो शिव सीधे कैसे हस्तक्षेप करें |कुलदेवता की ठीक से पूजा हो रही हो और कोई आसुरी शक्ति का प्रवेश हो जाय तो कुछ समय बाद वह सभी पूजा लेने लगता है कुलदेवता स्थान छोड़ देते हैं |फिर वह शक्ति उनका स्थान ले लेता है ,जब उसकी पूजा बंद ,खानदान की समाप्ति शुरू |कुलदेवता की अनुपस्थिति में पूजा ईष्ट तक नहीं जा रही और सभी उपाय असफल |एक तो कष्ट की समस्या दुसरे उपाय भी काम नहीं कर रहे |
           पितरों की असंतुष्टि भी कुलदेवता /देवी को रुष्ट कर देती है क्योंकि इन पितरों द्वारा वह पूजित हुए होते हैं |पितरों का सीधा सम्बन्ध कुलदेवता से होता है |कुलदेवता /देवी रुष्ट तो वह सहायक नहीं होते और तब कोई पूजा -पाठ फलित नहीं होता |उपायों की असफलता का एक कारण किसी देवी -देवता का क्रोध भी हो सकता है |यदि कभी किसी संकल्पित अनुष्ठान या पूजा में कोई गलती हो गयी हो अथवा आपने या आपके पूर्वजों ने किसी देवी -देवता की मनौती आदि मानी हो और पूर्ण की हो तो कोई देवी -देवता रुष्ट और क्रोधित हो सकता है |आज्ज आपको पता नहीं ,याद नहीं किन्तु इसका परिणाम आप भुगतते हैं |उपाय या पूया -पाठ किये जाने पर यह उसमे व्यवधान उत्पन्न करते हैं साथ ही उत्पन्न उर्जा का कुछ अंश भी खींच लेते हैं जिससे उपाय की शक्ति कम हो जाती है और लक्ष्य की दिशा में पर्याप्त शक्ति लग पाने से उपाय असफल हो जाता है |यह स्थिति होने पर कुछ संकेत भी मिलते हैं और बार -बार एक ही प्रकार के स्वप्न अथवा घटनाएं आती हैं |
           आप ध्यान दीजिये ,जब आप किसी पूजा -पाठ -अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं तो उसमे शब्द आते हैं ,स्थान देवता ,ग्राम देवता ,क्षेत्रपाल ,कुलदेवता तब ईष्ट देवता |अब आप सोचिये स्थान देवता की जगह कोई स्थानीय नकारात्मक शक्ति प्रभावी है ,ग्राम देवता को आप नहीं जानते या ठीक से पूज नहीं रहे |क्षेत्रपाल को आप नहीं जानते |आपके कुलदेवता /देवी रुष्ट हैं या कोई अन्य शक्ति आपके घर में प्रभावी है जो पूज्जा ले रही या आप अपनी गलतियों से किसी ऐसी शक्ति को पूज रहे अपने स्वार्थ में जो नैसर्गिक देवता की श्रेणी में नहीं आता ,तो आपके कुलदेवता आपका साथ छोड़ चुके हैं |ऐसे में अब कड़ी तो टूट गयी |आपकी पूजा वातावरण में बिखर जायेगी |अब आपके पूर्वज ऋषि मूर्ख तो थे नहीं जो उन्होंने पूजा -अनुष्ठान के संकल्प में इन लोगों का आह्वान किया था हमेशा |वह जानते थे की यह एक श्रृंखला है जो पूजा की ऊर्जा को ईष्ट तक पहुंचाती है ,तभी उन्होंने इसे सभी पूजा से जोड़ा था |आधुनिक लोग मन से भगवान् को मानने को ही मुख्य मान लिए और नियमों की अनदेखी की जिससे निष्काम पूजन तो ठीक ,किन्तु सकाम पूजन असफल होने लगे |सकाम पूजन के अपने नियम होते हैं और उन्हें उसी रूप में करना होता है यदि कोई विशिष्ट उद्देश्य है तो |उपाय इसी श्रेणी में आते हैं अतः यह असफल हो जाते हैं कड़ी टूटने पर ,फिर चाहे कितनी भी अधिक पूजा -जप किया जाए या किसी भी शक्ति को पूजा जाए |
           उपायों की असफलता का एक कारण यह भी होता है की जितनी ऊर्जा की आवश्यकता किसी कार्य की सफलता के लिए चाहिए होती है यदि उतनी ऊर्जा उपाय से उत्पन्न हो तो वह कार्य सफल नहीं होता और उपाय की ऊर्जा व्यर्थ चली जाती है |किसी ग्रह की शान्ति के लिए शास्त्र में ६००० जप लिखा है तो कलयुग में इसका फल पाने के लिए आपको २४ हजार जप करना होगा |खुद जप करना होगा तभी ६००० का फल मिलेगा |आप किसी और से जप कराते है तो आपको उसका छठा हिस्सा ही मिलता है जबकि छठा हिस्सा जप करने वाले के हिस्से चला जाता है भले वह सम्पूर्ण जप का फल संकल्प से आपको दे दे |चार हिस्से विभिन्न शक्तियों के लिए चले जाते हैं |इस प्रकार २४ हजार जप कराने पर आपको मात्र ४००० जप का परिणाम मिला |पूरे २४ हजार जप का फल पाने के लिए आपको १४४००० जप कराने होंगे |तब जाकर आपका उद्देश्य पूरा होगा नियमतः |अब यहाँ एक समस्या और है की यदि किन्ही कारणों से यह जप से उत्पन्न ऊर्जा किसी शक्ति द्वारा कुछ हद तक भी रोक दी जाए या ले ली जाए या इसमें कमी कर दी जाए तो आपको लाभ नहीं होगा क्योंकि आपकी जरूरत १४४००० की है |१४३००० पर आपका कार्य असफल हो आएगा और पूजा आपके लिए व्यर्थ हो जायेगी उद्देश्य विशेष के लिए |इसे रोकने या बीच में लेने का कार्य घर या स्थान पर सक्रीय नकारात्मक शक्तियाँ करती हैं जो नहीं चाहती की व्यक्ति उनके प्रभाव से मुक्त हो सुखी हो |
            उपाय आदि एक तकनिकी कार्य है |यहाँ मात्र भावनाओं का कोई महत्त्व नहीं होता ,क्योंकि आप एक ऊर्जा को पूजा या क्रिया से उत्पन्न कर अपने उद्देश्य के लिए किसी अन्य जगह भेज रहे |साथ में आप कह रहे की आपका अमुक कार्य हो अर्थात आप एक लक्ष्य को इंगित कर रहे |ऐसे में मात्र एक शब्द की त्रुटी आपका काम भी बिगाड़ सकती है और आपका अहित भी कर सकती है |एक गलत आचरण आपकी हानि कर सकती है ,क्योंकि उतन्न ऊर्जा कहीं तो लगनी है या बिखरनी है |उर्जा या शक्ति अनियंत्रित हुई तो हानि करेगी |शब्द ,क्रिया ,पदार्थ ,आचरण ,कर्म सबकुछ इस अवधि में सही होने चाहिए |उपायों में विशिष्ट प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है जो आपके लक्ष्य के अनुसार ही विशिष्ट कार्य करती है ,इसलिए यह पूरी दक्षता से होनी चाहिए |इसमें त्रुटी का कोई स्थान नहीं होता |अक्सर उग्र शक्ति की पूजा करते हुए लोग एक उद्देश्य भी रखते हैं और साथ ही यह भी मानकर चलते हैं की यह माँ है या पिता है जो गलती को क्षमा करेगा |उद्देश्य विशेष की पूजा में क्षमा नहीं होता क्योंकि आप निःस्वार्थ प्रेम या स्मरण नहीं कर रहे |आप तो स्वार्थ में पूज रहे और उसकी शक्ति को किसी उद्देश्य में लगाना चाह रहे |ऐसे में कोई गलती वह क्षमा नहीं करता और आपको गलती के अनुसार सजा भी मिलती है |
         कभी -कभी उपाय करने पर समस्या और बढ़ जाती है |कारण यह होता है की उपाय करते समय गलती हो जाती है और ऊर्जा अनियंत्रित हो खुद का ही अहित कर जाती है |कभी -कभी ऐसा भी होता है की घर में उपस्थित किसी शक्ति को आपके उपाय और पूजा पाठ से कष्ट होता है और वह उपद्रव शुरू कर देता है ,ताकि आप उपाय या पूजा पाठ बंद कर दें |उपाय से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जबकि यह शक्तियाँ नकारात्मक गुण की होती है ,इसलिए इन्हें कष्ट होता है और यह उपद्रव करती हैं |आप सोचते हैं की उपायों से हानि हो रही और आप उपाय बंद कर देते हैं |स्थिति यथावत बनी रहती है और समस्या जस की तस |जब -जब पूजा -पाठ होता है घर में समस्याएं और बढ़ जाती हैं |कभी -कभी ढेर सारे उपाय करने पर ,बड़े -बड़े अनुष्ठान करने पर भी परिणाम नहीं मिलता |समझ नहीं आता की आखिर यह हो क्या रहा और पूजा जा कहाँ रही |यह भी इन नकारात्मक शक्तियों के कारण होता है जो पूजा खुद लेते हुए अपनी शक्ति बढाते हैं और खुद को देवता की तरह व्यक्त करते हैं |
            अंत में समाधान की बात |कोई पंडित ,कोई ज्योतिषी ,कोई तांत्रिक आपके कुलदेवता /देवी को संतुष्ट नहीं कर सकता ,उन्हें वापस नहीं ला सकता |वह मात्र उपाय कर सकता है ,उपाय बता सकता है किन्तु वह तभी सफल होगा जब उपरोक्त स्थितियां हों |कुलदेवता /देवी की संतुष्टि आपको करनी होगी ,उनकी रुष्टता आप ही दूर कर सकते हैं ,अगर वह खानदान छोड़ चुके हैं तो उन्हें आप ही ला सकते हैं या उनकी अन्य रूप में स्थापना आप ही कर सकते हैं |आपको ही यह करना होगा ,दूसरा इनमे कुछ नहीं कर सकता |अगर आपके घर में किसी अन्य शक्ति का वास है अथवा आपके घर में किसी अन्य शक्ति को जैसा उपर लिखा गया है ,को पूजा जा रहा है तो आपको ही उसका समाधान निकालना होगा कुछ इस तरह की सांप भी मर जाय और लाठी भी टूटे |आप स्वयं कभी किसी प्रेतिक ,पैशाचिक ,श्मशानिक शक्ति को घर में स्थान दें तो तात्कालिक लाभ के लिए कोई वचनबद्ध पूजा करें |यदि आप उपरोक्त परिस्थिति में हैं तो अपने घर में ऐसी शक्ति की स्थापना करें जो कुलदेवता /देवी और पितरों को प्रसन्न /संतुष्ट करे ,उन तक तालमेल उत्पन्न करे ,प्रेतिक या श्मशानिक या पैशाचिक या अन्य शक्ति के प्रभाव को कम करते हुए समाप्त करे |यह शक्ति पितरों को भी संतुष्ट करे और उनकी मुक्ति में भी सहायक हो यह देखना भी अति आवश्यक है |
           यहाँ मूल चरण यह होगा की ऐसी शक्ति की स्थापना हो जो कुलदेवता /देवी की भी कमी पूरी करते हुए उनका रिक्त स्थान पूर्ण करें |यह शक्ति ऐसी हो की घर में या व्यक्ति पर प्रभावी किसी भी तरह की नकारात्मक शक्ति के प्रभाव को रोकने की क्षमता रखे और उन्हें हटा सके ,साथ ही उस नकारात्मक शक्ति को भी घर में इनकी स्थापना स्वीकार्य हो |उन्हें यह लगे की किसी प्रकार का व्यवधान उनके लिए उत्पन्न किया जा रहा ,हालांकि व्यवधान होगा ही उनके लिए किन्तु धीरे -धीरे |यह शक्ति ऐसी भी होनी चाहिए की घर में या व्यक्ति द्वारा भूल वश या स्वार्थ वश या पूर्वज्जों की गलती वश किसी भी कारण पूजी जा रही किसी शक्ति को भी हटाने की क्षमता रखे |इसके बाद अपने कुलदेवता /देवी को स्थान दे ,नियमानुसार उनकी पूजा करें |यदि उनका पता आपको नहीं चलता कि कौन आपके कुलदेवता /देवी हैं या थे तो उपर कही गयी शक्ति की स्थापना करें जो इनकी कमी पूरी कर दे और वही रूप ले ले जो कल के कुलदेवता /देवी की थी |तब जाकर आपके उपाय भी सफल होंगे और आपकी पूजा भी आपके ईष्ट तक पहुंचेगी | यह शक्ति ऐसी भी होनी चाहिए की यह स्वयं में पूर्ण हो और मोक्ष भी दे सके इतने उच्च स्तर की हो |यह बीच की टूटी सभी कड़ियों को खुद में समाहित रखते हुए मात्र नाम से दी जा रही पूजा को भी पूर्ण कर सके अर्थात इसी शक्ति में अन्य देवताओं जैसे स्थान देवता ,ग्राम देवता ,क्षेत्रपाल ,कुलदेवता /देवी सबका आह्वान हो सके |इसका एक आधार हो और नियमित पूजा हो तो उपाय भी काम करेंगे ,नकारात्मक शक्तियाँ भी हटेंगी ,पित्र भी संतुष्ट होंगे और ईष्ट प्रसन्नता भी हो जायेगी |....................................................हर हर महादेव

No comments:

Post a Comment

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...