Tuesday, 28 May 2019

पित्र दोष बना रहेगा ,कितने भी उपाय करें


पित्र शान्ति नहीं होगी चाहे कितने भी उपाय कर लो
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          उपाय तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक वह कहीं स्वीकार हों |उपाय एक ऊर्जा प्रक्षेपण है |उपाय से ऊर्जा उत्पन्न कर एक निश्चित दिशा में भेजी जाती है |यह ऊर्जा जब तक कहीं स्वीकार की जाए अंतरिक्ष में निरुद्देश्य विलीन हो जाती है और कोई लाभ नहीं मिलता अथवा यह ऊर्जा अपने गंतव्य तक पहुंचे ,किसी और द्वारा ले ली जाए तो भी असफल हो जाती है ,अथवा उत्पन्न ऊर्जा का परिवर्तन प्राप्तकर्ता के योग्य ऊर्जा में हो पाए तो भी अपने उद्देश्य में ऊर्जा सफल नहीं होती |ऐसा ही कुछ पित्र शान्ति के उपायों में होता है |बहुत से लोगों की कुंडलियों में पित्र दोष होता है |बहुत से लोग पित्र पीड़ा से परेशान रहते हैं और बहुत से लोग पित्र शान्ति करते हैं या कराते हैं |इसके उपरान्त भी उनकी समस्या समाप्त नहीं होती |ज्योतिषी को जब बताते हैं की यह -यह पूजा करा दी तो वह मान लेते हैं की पित्र शान्ति हो गयी होगी ,लेकिन वास्तव में पित्र संतुष्ट नहीं होते ,उनको पूजा नहीं मिली होती या वह नहीं लेते और पित्र तृप्ति के उपायों का कोई लाभ नहीं होता |जब किसी ज्ञानी तांत्रिक को समस्या बताई जाती है तब वह बार -बार कहता है पित्र असंतुष्ट हैं ,पूजा नहीं मिल रही |तंत्र की पूजाएँ भी उन्हें नहीं मिलती और वह लगातार असंतुष्ट बने रहते हैं |जानकारों तक को समझ नहीं आता की हो क्या रहा है ,पूजा जा कहाँ रही है ,कौन ले रहा है ,क्यों लाभ नहीं मिल रहा |अधिकतर ज्योतिषी -तांत्रिक एक पक्ष को जानने वाले होते हैं , इसकी पूर्ण तकनिकी सबको ज्ञात नहीं होती ,अतः वह बता नहीं पाते की ऐसा क्यों हो रहा ,लाभ क्यों नहीं हो रहा |वह मान लेते हैं की इतना -इतना हुआ तो पित्र शांति हो गयी |यथार्थ में जातक को कोई लाभ नहीं मिलता |
           पित्र शान्ति के हजारों उपाय शास्त्रों में दिए गए हैं ,इनमे ज्योतिषीय ,कर्मकांडीय अर्थात वैदिक पूजन प्रधान और तांत्रिक उपाय होते हैं |इन उपायों में छोटे टोटकों से लेकर बड़े -बड़े अनुष्ठान तक होते हैं |इन शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा की कैसे यह उपाय काम करते हैं |किस सूत्र पर कार्य करते हैं ,कैसे पितरों तक ऊर्जा पहुँचती है ,कैसे यहाँ के पदार्थों का पित्र लोक के पदार्थों में परिवर्तन होता है ,कौन यह ऊर्जा स्थानान्तरण करता है ,कब यह क्रिया अवरुद्ध हो जाती है ,कौन इस कड़ी को प्रभावित कर सकता है ,कैसे उपायों से कितनी ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है |कहीं कोई सूत्र नहीं दिए गए ,क्योंकि जब यह उपाय बनाए गए तब के लोग इन सूत्रों को समझते थे |उन्हें इसकी क्रियाप्रणाली पता थी |उस समय के ऋषियों को यह अनुमान ही नहीं था की आधुनिक युग जैसी समस्या आज के मानव उत्पन्न कर सकते हैं ,अतः उन्होंने इन्हें नहीं लिखा |उन्होंने जो संस्कार बनाए उसे यह मानकर बनाए की यह लगातार माने जायेंगे |इन्ही संस्कारों में उपायों की क्रिया के सूत्र थे अतः लिखने की जरूरत नहीं समझी |जब संकार छूटे तो सूत्र टूट गए |लोगों की समझ में अब नहीं आता की हो क्या गया |लोग अपनी इच्छाओं से चलने लगे तथा व्यतिक्रम उत्पन्न हो गया ऊर्जा संचरण में और सबकुछ बिगड़ गया |कुछ सूत्रों को पितरों के सम्बन्ध में गरुण पुराण में दिया गया है किन्तु पूरी तकनिकी वहां नहीं है क्योंकि बीच की कड़ी सामान्य जीवन से सम्बन्धित है |गरुण पुराण बताता है की विश्वेदेवा पदार्थ को बदलकर पित्र की योनी अनुसार उन्हें पदार्थ उपलब्ध कराते हैं ,किन्तु विश्वदेव तक ही कुछ पहुंचे तो क्या करें |विश्वदेव ही नाराज हो जाएँ तो क्या करें |आचार्य करपात्री जी ने विश्वेदेवा की कार्यप्रणाली को बहुत अच्छे उदाहरण से बताया है किन्तु समस्या उत्पन्न उर्जा के वहां तक ही पहुँचने में होती है |उनके द्वारा स्वीकार करने और परिवर्तित कर पितरों को प्रदान करने में ही होती है |
             यह सभी प्रक्रिया ब्रह्माण्ड की ऊर्जा संरचना की क्रियाप्रणाली के आधार पर हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा बनाई गयी थी जो की आधुनिक वैज्ञानिकों से लाखों गुना श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे |इस प्रणाली में एक त्रुटी पूरे तंत्र को बिगाड़ देती है |चूंकि यह प्रणाली प्रकृति की ऊर्जा संरचना पर आधारित है अतः यहाँ देवी -देवता भी हस्तक्षेप नहीं करते ,क्योंकि वह भी उन्ही सूत्रों पर चलते हैं |उनकी उत्पत्ति भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है ,उन्हें भी उन्ही सूत्रों पर ऊर्जा दी जाती है ,उन्ही सूत्रों पर उन तक भी पूजा पहुँचती है |इस प्रकार ईष्ट चाहे कितना भी बड़ा हो ,देवी -देवता चाहे कितना ही शक्तिशाली हो कड़ियाँ टूटने पर कड़ियाँ नहीं बना सकता |सीधे कहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता |वायरल स्थितियों में व्यक्ति विशेष के लिए इनके हस्तक्षेप होते हैं किन्तु यह हस्तक्षेप पित्र संतुष्टि अथवा देवताओं को पूजा मिलने को लेकर नहीं रहे हैं |पित्र संतुष्टि की सबसे मूल कड़ी व्यक्ति के खानदान के मूल पूर्वज ऋषि के देवता या देवी होते हैं जिन्हें बाद में कुलदेवता /देवी कहा जाने लगा |इनका सीधा सम्बन्ध विश्वदेवा स्वरुप से होता है ,जो की पूजन स्थानान्तरण के लिए उत्तरदाई होते हैं |कुल देवता /देवी ब्रह्माण्ड की उच्च शक्तियों जिन्हें देवी /देवता कहा जाता है और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं और यह पृथ्वी की ऊर्जा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच सामंजस्य बनाते हैं |यह कड़ी जहाँ टूटी सबकुछ टूट जाता है और फिर चाहे कितनी भी पित्र शान्ति कराई जाए पितरों को संतुष्टि नहीं मिल पाती |उन तक दी जा रही पूजा नहीं पहुँचती और वह असंतुष्ट ही रह जाते हैं |
            व्यक्ति के कुलदेवता /देवी ही उसके ईष्ट देवी /देवता हों जरुरी नहीं |इष्ट देवी देवता ३३ कोटि देवी देवता में से कोई भी हो सकते हैं किन्तु कुलदेवता /देवी हमेशा हर खानदान के एक ही रहते हैं |ईष्ट देवी देवता आप अपनी इच्छा से चुन सकते हैं ,जब मन हो बदल सकते हैं ,किन्तु कुलदेवता /देवी को बदल सकते हैं खुद चुन सकते हैं |ईष्ट देवी /देवता किसी भी प्रकार की ऊर्जा अथवा कोई भी हो सकते हैं किन्तु कुलदेवता /देवी हमेशा शिव परिवार से ही होते हैं |शिव /शक्ति ही उत्पत्ति और संहार के कारक हैं ,यही पृथ्वी के नियंता हैं अतः यही कुलदेवता /देवी होते हैं किसी किसी रूप में |सभी कुलदेवता /देवी इनके ही रूप होते हैं भले उनका नाम कहीं कुछ भी रख दिया गया हो |अवतारों तक को इनकी पूजा करनी ही होती है |इनके बिन पृथ्वी पर कोई कार्य सफल नहीं हो सकता |सभी पित्र जिस किसी खानदान /वंश से होते हैं उनके रहते हुए भी कुलदेवता के संरक्षण में होते हैं और मृत्यु के बाद भी कुलदेवता द्वारा ही उन तक अंश पहुँचता है |कुलदेवता /देवी द्वारा ही देव पूजन या ईष्ट पूजन भी देवता या ईष्ट तक पहुँचता है |यदि यह कुलदेवता की कड़ी टूट गयी या कुलदेवता रुष्ट हुए ,इनकी पूजा नहीं हो रही तो पित्र शांति के सारे उपाय ,प्रयास असफल हो जाते हैं |यहाँ तक की देवताओं तक को पूजा नहीं पहुँचती |पित्र शांति के उपायों में किसी किसी देवता को ही पूजा दी जाती है ,विभिन्न प्रयोजन किये जाते हैं किन्तु यह सीधे पितरों तक या देवताओं तक नहीं पहुँच सकते |कुलदेवता /देवी के बिन यह सब व्यर्थ हो जाता है |कहने को कोई कुछ भी कहे कि देवता चाहें तो क्या नहीं हो सकता ,किन्तु यह मात्र भ्रम ही होगा ,लोग खुद को दिलासा देंगे या यह अहंकार के बोल होंगे ,क्योंकि देवी /देवता भी इसी सूत्र से बंधे हैं |इतनी शक्ति भी आज के मानव में नहीं कि कोई देवता आकर सीधे उसके लिए हस्तक्षेप करे |सारी श्रृष्टि ऊर्जा सूत्रों पर चलती है जिसकी कड़ी टूट जाने पर ऊर्जा संचरण बाधित हो जाता है |
           कुलदेवता या देवी सीधे ब्रह्माण्ड की उच्चतर शक्तियाँ होने पर भी उनके अंश अथवा पृथ्वी से जुडी उनकी ऊर्जा होते हैं |इनका सम्बन्ध परिवार की उत्पत्ति और सुरक्षा के साथ ही लोगों की मृत्यु के बाद की गति से होता है |कुलदेवता /देवी व्यक्ति के किसी खानदान में जन्म लेने से लेकर अगले जन्म अथवा मुक्ति के बीच की समस्त स्थितियों में समान प्रभाव रखते हैं |जन्म से मृत्यु तक की समस्त आयु में सुरक्षा ,पारिवारिक सुरक्षा ,समस्त क्रियाकलाप ,के बाद मृत्यु उपरान्त पित्र लोक की स्थिति में श्राद्ध आदि का पहुंचना कुलदेवता /देवी के अंतर्गत आता है |यह व्यक्ति के मूल वंशज द्वारा स्थापित /पूजित होते हैं इसलिए इन्हें वह भोज्य आदि दिया जाता है जो उस समय भारत में उत्पन्न होता था और परिवार में उपयोग होता था |इन्हें कुल वृद्धि ,मांगलिक कार्य होने पर विशेष पूजा दी जाती है जबकि किसी की मृत्यु होने पर सम्बत क्षय तक इनकी पूजा नहीं होती |इनकी पूजा पद्धति पूर्ण पारंपरिक और खानदान के अनुसार होती है |इस प्रकार यह समझा जा सकता है की यह किस प्रकार की शक्तियाँ होते हैं |इनकी अनुपस्थिति में शिव /शक्ति की स्थापना करनी होती है कुलदेवता रूप में क्योंकि यह शिव /शक्ति से जुडी शक्तियाँ होते हैं |यह भिन्न खानदान में भिन्न स्वरुप में होते हैं जिससे किसी अन्य के खानदान वाले किसी अन्य खानदान के कुलदेवता को नहीं पूज सकते |इनकी ऊर्जा की प्रकृति हर खानदान में भिन्न होती है |मूल शिव /शक्ति से जुडी शक्ति होने पर भी इनमे पृथ्वी की सतह पर ऊर्जा में भिन्नता होती है ,अतः सबके अलग -अलग प्रकृति के कुलदेवता होते हैं |इनकी पूजा घर की कन्याएं नहीं देखती क्योंकि उन्हें किसी अन्य गोत्र में जाना होता है विवाह बाद |
            कुलदेवता /देवी की कड़ी तब टूट जाती है जब उन्हें पूजा मिले उनके लिए नियत समय पर |उन्हें जब खानदान के लोग भूल जाएँ |यह तब नाराज और असंतुष्ट हो जाते हैं जब खानदान में परम्पराओं का पालन हो ,भिन्न आचरण हो ,किसी अन्य शक्ति को अथवा किसी मृत मानव की प्रेतिक शक्ति को घर में देवताओं सा स्थान दे दिया जाय ,बुजुर्गों का अपमान होने लगे ,किसी और के कुलदेवता को पूजित किया जाय ,किसी अन्य धर्म के किसी शक्ति को पूजित किया जाय ,किसी ऐसी प्रेत शक्ति को देवता की तरह पूजा जाय जो कभी मानव था भले ही वह अपने ही खानदान का हो ,किसी पैशाचिक ,श्मशानिक शक्ति को घर में स्थान दे पूजा जाय ,पितरों का सामयिक श्राद्ध हो आदि |जब कुलदेवता /देवी की पूजा ही हो और उन्हें भूल गए हों तब तो पित्र तृप्ति के उपाय पूरी तरह असफल हो जाते हैं और पित्र दोष खानदान में स्थायी हो जाता है ,किन्तु जब कुलदेवता /देवी असंतुष्ट हों तब इनके द्वारा व्यतिक्रम उत्पन्न होता है |इन्हें इस स्थिति में संतुष्ट किया जा सकता है और संतुष्टि बाद पित्र तृप्ति के उपाय सफल होने लगते हैं |जिन गलतियों के कारण कुलदेवता /देवी रुष्ट हो रहे हों उन्हें सुधारने और इनकी पारंपरिक पूजा देने पर पित्र हेतु किये जाने जाने वाले प्रयास परिणाम देने लगते हैं |
      किसी अन्य शक्ति या प्रेत शक्ति या पीर ,ब्रह्म ,साईं ,सती ,वीर को घर में पूजने पर भी कुलदेवता परिवार छोड़ देते हैं जिससे पित्र दोष स्थायी हो जाता है और कोई भी पित्र तृप्ति का उपाय चाहे कितना भी बड़ा किया जाय सफल नहीं होता |यह शक्तियाँ घर की पूजा खुद लेने लगती हैं और अपनी शक्ति बढाते हुए ईष्ट की भी पूजा लेने लगती हैं |कुलदेवता तो परिवार छोड़ते ही हैं इस स्थिति में ईष्ट तक पूजा नहीं पहुँचती और पित्र शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाते हैं क्योंकि उन तक कोई पूजा नहीं पहुँचती |कुलदेवता घर से हट जाते हैं तो पित्र तक कोई उपाय नहीं पहुँचते जिससे वह असंतुष्ट तो रहते ही हैं उनकी मुक्ति के प्रयास भी असफल होते हैं |इससे बड़ी दिक्कत यह हो जाती है की किसी भी इष्ट तक कोई पूजा नहीं पहुँचती जिससे मुक्ति का मार्ग भी अवरुद्ध हो जाता है |मृत्यु के बाद व्यक्ति अपने पितरों में जाकर उस शक्ति के अधीन प्रेत लोक में चला जाता है |वीर या ब्रह्म या सती की पूजा उनके स्थान पर उनके खानदान वाले कर सकते हैं किन्तु घर में इनकी स्थापना होने पर यह उपरोक्त स्थिति उत्पन्न कर देते हैं |साईं ,पीर ,मजार ,शहीद आदि की पूजा कुलदेवता /देवी को भी स्वीकार्य नहीं होती और पित्र तो गंभीर रुष्ट हो जाते हैं |इन्हें आज के समय में सामान्य ढंग से लिया जाता है क्योंकि हिन्दू दयालु और सबको समान मानने वाला होता है |जिससे वह अपने पैर पर अधिक कुल्हाड़ी मारता है अन्य ऐसा नहीं करते |हिन्दू अपनी अंध श्रद्धा में अथवा अपने स्वार्थ में कहीं भी सर झुका देता है ,इनकी ऊर्जा संरचना ,प्रकृति ,स्वभाव आदि को नहीं समझता अथवा अनदेखा करता है अपने को अतिबुद्धिमान मानकर |
        कुछ अतिआधुनिक पाश्चात्यवादी कह सकते हैं कि जहाँ कुलदेवता की अवधारणा ही नहीं उनका क्या ,तो यह ध्यान देना होगा की वहां पित्र तृप्ति के उपाय भी या तो नहीं होंगे या कोई माध्यम जरुर होगा बीच में जिससे उन तक श्रद्धा पहुंचाई जा सके |दूसरी बात और की वहां फिर मुक्ति अथवा मोक्ष की पूर्ण अवधारणा भी सम्पूर्ण विज्ञान के साथ नहीं होगी |वहां भारतीय वैदिक ज्योतिष भी नहीं होगा जिसमे पित्र दोष दीखता है और उसके प्रभाव भी दिखते हैं |वहां कालसर्प ,मांगलिक योग जैसे योग भी नहीं होते जिनका सीधा प्रभाव व्यक्ति पर होता है |कालसर्प आदि का सीधा सम्बन्ध पित्र दोष से होने से कालसर्प आदि ज्योतिषीय दोषों के लिए किये जाने वाले उपाय भी कुलदेवता की अनुपस्थिति अथवा रुष्टता पर काम नहीं करते |यह हाल सभी ज्योतिषीय उपायों का होता है जहाँ भी पूजा का प्रयोग हो ,क्योंकि पूजा मूल ईष्ट तक ही नहीं पहुँचती अतः उपाय अपेक्षित परिणाम नहीं देते |
          अंत में समाधान की बात |कोई पंडित ,कोई ज्योतिषी ,कोई तांत्रिक आपके कुलदेवता /देवी को संतुष्ट नहीं कर सकता ,उन्हें वापस नहीं ला सकता |वह मात्र पित्र संतुष्टि के उपाय कर सकता है किन्तु वह तभी सफल होगा जब उपरोक्त स्थितियां हों |कुलदेवता /देवी की संतुष्टि आपको करनी होगी ,उनकी रुष्टता आप ही दूर कर सकते हैं ,अगर वह खानदान छोड़ चुके हैं तो उन्हें आप ही ला सकते हैं या उनकी अन्य रूप में स्थापना आप ही कर सकते हैं |आपको ही यह करना होगा ,दूसरा इनमे कुछ नहीं कर सकता |अगर आपके घर में किसी अन्य शक्ति का वास है अथवा आपके घर में किसी अन्य शक्ति को जैसा उपर लिखा गया है ,को पूजा जा रहा है तो आपको ही उसका समाधान निकालना होगा कुछ इस तरह की सांप भी मर जाय और लाठी भी टूटे |आप स्वयं कभी किसी प्रेतिक ,पैशाचिक ,श्मशानिक शक्ति को घर में स्थान दें तो तात्कालिक लाभ के लिए कोई वचनबद्ध पूजा करें |उपर लिखी गयी किसी शक्ति की स्थापना आप घर में आज के लाभ के लिए करें जिससे भविष्य में आपके खानदान वालों के लिए कांटे उत्पन्न हों |यदि आप उपरोक्त परिस्थिति में हैं तो अपने घर में ऐसी शक्ति की स्थापना करें जो कुलदेवता /देवी और पितरों को प्रसन्न /संतुष्ट करे ,उन तक तालमेल उत्पन्न करे ,प्रेतिक या श्मशानिक या पैशाचिक या अन्य शक्ति के प्रभाव को कम करते हुए समाप्त करे |इसके बाद अपने कुलदेवता /देवी को स्थान दे ,नियमानुसार उनकी पूजा करें |यदि उनका पता आपको नहीं चलता कि कौन आपके कुलदेवता /देवी हैं या थे तो ऐसी शक्ति की स्थापना करें जो इनकी कमी पूरी कर दे और वही रूप ले ले जो कल के कुलदेवता /देवी की थी |तब जाकर आपके उपाय भी सफल होंगे और आपकी पूजा भी आपके ईष्ट तक पहुंचेगी |........................................................................हर हर महादेव

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