उद्देश्य
परक दिव्य दृष्टि तांत्रिक शक्तिपात
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बिना किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए ,बिना किसी तांत्रिक -मान्त्रिक अनुष्ठान के कोई साधक या सिद्ध किसी की कोई समस्या दूर करने के लिए अपने आतंरिक बल पर कैसे ऊर्जा या शक्ति किसी पर प्रक्षेपित करता है यह लेख इस विषय पर प्रकाश डालता है जो व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है |हमने अपने पूर्व के लेख में विस्तार से चर्चा की है की किस प्रकार के साधक ,सिद्ध ,साधू ,सन्यासी ,कर्मकांडी ,ओझा -गुनिया ,तांत्रिक अथवा रेकी मास्टर किस प्रकार की उर्जा को हटा सकते हैं और किस प्रकार की ऊर्जा ,कैसी शक्तियां किसी पर भेज सकते हैं |हमने सबकी सीमाओं ,क्षमताओं का विश्लेषण किया है और बताया है की कौन सबसे अधिक सक्षमता से कैसा कार्य कर सकता है |किसी की नकारात्मक ऊर्जा हटाने ,अभिचार
-टोने -टोटके हटाने में तो बहुत सी विद्याओं के लोग सक्षम होते हैं किन्तु किसी को सकारात्मक ऊर्जा दे पाना ,किसी का आभामंडल सुधार पाना ,किसी का ऊर्जा संतुलन
बना पाना सबके लिए सम्भव नहीं होता |मात्र महाविद्या अथवा कुंडलिनी साधक ,सिद्ध महात्मा -सन्यासी ही ऐसा कर पाते हैं |जबकि रेकी मास्टर ,कर्मकांडी ,पुजारी ,ओझा -गुनिया ,श्मशान साधक ,अघोर पंथ के साधक ,तुच्छ शक्तियों के साधक ,शाबर साधक आदि सबकी सीमाए होती हैं और इनमे से अधिकतर के पास सकारात्मक ऊर्जा या तो होती नहीं या वह उसे प्रक्षेपित नहीं कर सकते |
साधू -सन्यासी -सिद्ध जिनके पास ऐसी शक्ति हो वह सामाजिक उद्देश्यों में रूचि नहीं लेते या उन्हें आवश्यकता नहीं रहती |मात्र रेकी मास्टर
,कुंडलिनी साधक और महाविद्या साधक ही ऐसे बचते हैं जो किसी पर सकारात्मक ऊर्जा भेजते हैं और नकारात्मकता हटाते हैं |रेकी और कुंडलिनी दोनों के साधकों के पास तांत्रिक अभिचार
,टोना -टोटका ,वायवीय बाधाओं ,किये -कराये ,खिलाये -पिलाए ,वशीकरण आदि षट्कर्म का प्रभाव
हटाने की शक्ति सामान्यतया इसलिए नहीं होती क्योंकि इसमें विशेष तकनीक और एक शक्ति की आवश्यकता होती है |यह सकारात्मक ऊर्जा भेज सकते हैं और सामान्य नकारात्मक ऊर्जा हटा सकते हैं |सामाजिक रूप से जुड़े लोगों में एकमात्र महाविद्या साधक ऐसा होता है जो सभी कार्य समग्रता के साथ कर सकता है चूंकि इनके पास शक्ति भी होती है ,आतंरिक बल भी होता है और तकनीक भी होती है |यह किसी बाधा को भी हटा सकते हैं ,नकारात्मक प्रभाव
या ऊर्जा हटा सकते हैं और सकारात्मक ऊर्जा के साथ दैवीय ऊर्जा भी भेज सकते हैं यदि वास्तव में उन्हें
तकनीक की जानकारी हो तो |यह अवश्य है की ऐसे महाविद्या साधक द्वारा कम से कम २१ लाख मूल मंत्र का जप किया होना चाहिए और कोई न कोई महाविद्या सिद्ध होनी चाहिए ,साथ ही तकनिकी
जानकारी पूर्ण होनी चाहिए |
हम महाविद्या साधक हैं और इस विषय पर बहुत वर्षों से कार्य करते रहे हैं अतः इसकी तकनिकी
पर थोड़ी चर्चा समझाने के उद्देश्य से करते हैं ,यद्यपि हम तकनीक इसलिए नहीं दे सकते की नए नए साधक अथवा भिन्न मार्गी साधक इनसे अपनी ही हानि न कर लें अथवा लोगों को मूर्ख न बना सकें |इसमें होता यह है की जब एक महाविद्या साधक गंभीर साधनाएं करते हुए एक निश्चित अवस्था
तक पहुँचता है तो उसका वह चक्र जो उस महाविद्या से सम्बन्धित है बहुत अधिक क्रियाशील हो जाता है |एक चक्र जन्म से क्रियाशील होता ही है जो की सभी व्यक्तियों में होता है |महाविद्या की उच्चता पर दो चक्रों की क्रियाशीलता से ग्रह प्रभाव भी परिवर्तित हो जाते हैं और शक्ति भी बदल जाती है |व्यक्ति सामान्य से विशेष ऊर्जा सम्पन्न हो जाता है |उसकी कुंडलिनी ऊर्जा बढ़ जाती है विशेष चक्र की सक्रियता के साथ |उसके पास विभिन्न मन्त्रों की शक्तियों में आतंरिक
दैवीय उर्जा आ जाती है |जिधर मानसिक एकाग्रता होती है वहां यह शक्तियाँ कार्य करती हैं |[द्वारा -पंडित जितेन्द्र मिश्र -8299886532] अब जब यह साधक किसी के प्रति किसी विशेष भावना से कोई क्रिया करता है तो उसकी आतंरिक
शक्ति ,दैवीय उर्जा और मंत्र शक्ति के साथ ही उसकी कुंडलिनी ऊर्जा की शक्ति सम्बन्धित व्यक्ति को प्रभावित करने लगती है जिसके लिए वह क्रिया कर रहा होता है |
इस प्रक्रिया में या तो व्यक्ति को सामने बैठाया जाता है अथवा उसके चित्र पर क्रिया की जाती है |चित्र अथवा फोटो तात्कालिक होते हैं जो हर एक बार की क्रिया पर बदले जाते हैं |यह चित्र अथवा सम्बन्धित व्यक्ति उद्देश्य अनुसार
वस्त्र सहित अथवा वस्त्र विहीन हो सकता है |यह कुछ कुछ गांधारी द्वारा आँख की पट्टी खोल दुर्योधन पर शक्तिपात सी होती है अथवा देवी के त्रिनेत्र से शक्तिपात सी होती है |इसमें साधक अपने आतंरिक बल ,दैवीय शक्ति को एकाग्र कर उद्देश्य अनुसार भावना से उद्देश्य विशेष के लिए मंत्र उच्चारण करते हुए अपनी ऊर्जा प्रक्षेपित करता है और व्यक्ति की हानिकारक ऊर्जा को हटाता है |इस तकनीक द्वारा किसी भी प्रकार की नकारात्मक -हानिकारक ऊर्जा को हटाया जाता है ,चाहे वह अभिचार हो ,किया -कराया -टोना -टोटका हो ,वशीकरण आदि कोई क्रिया हो ,सामान्य चक्रों
का असंतुलन हो ,चक्र विशेष की नकारात्मक ऊर्जा हो ,किसी बाधा का प्रभाव हो ,आभामंडल की नकारात्मकता हो |इसके साथ ही व्यक्ति को दैवीय ऊर्जा और सकारात्मक शक्ति प्रदान
की जाती है |इस तकनीक में साधना अथवा सिद्धि
का बल नहीं प्रयोग किया जाता क्योंकि इस स्तर पर पहुंचा
व्यक्ति अपनी शक्ति नहीं खर्च करता किसी के लिए |यहाँ तात्कालिक ऊर्जा प्राप्त कर उसका मानसिक बल से प्रक्षेपण होता है जो त्वरित क्रिया
करता है |
यह क्रिया और तकनीक मान्त्रिक अनुष्ठानों से बिलकुल
भिन्न होती है और समस्त क्रिया की शक्ति आतंरिक बल होता है |सामान्यतया हवन अथवा कोई क्रिया नहीं की जाती न ही किसी आत्मा शक्ति को भेजा जाता है |शुद्ध तरंगों
और ब्रह्मांडीय ऊर्जा विज्ञान पर आधारित
क्रिया होती है और इसके परिणाम लाभप्रद ही मिलते हैं क्योंकि किसी भी नकारात्मक ,तुच्छ अथवा भूत -प्रेत -श्मशान आदि की शक्तियों या किसी टोन -टोटके की क्रिया
की ऊर्जा का इसमें प्रयोग
नहीं होता |साधक की जैसी ऊर्जा प्रकृति होती है ,उसके ईष्ट महाविद्या की जो प्रकृति होती है ,उसकी जैसी भावना होती है वैसा प्रभाव पड़ता है और महाविद्या का उपयोग होने से प्रभाव उच्च स्तर का होता है |यह एक प्रकार का शक्तिपात है जो उद्देश्य विशेष के लिए किया जाता है |कोई व्यक्ति किसी भी समस्या से पीड़ित हो यह तकनीक लाभ देती है |यह जीवन के हर क्षेत्र के लिए उपयुक्त होती है तथा सैकड़ों
लोगों पर परीक्षित और अनुभूत
है स्वयं द्वारा |लेख व्यक्तिगत अनुभव तथा सोच पर आधारित है जिसका किसी शास्त्र अथवा किताब से कोई सम्बन्ध नहीं है ||[ द्वारा -पंडित जितेन्द्र मिश्र ]...................................................हर -हर महादेव
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