आपकी प्रार्थना से चमत्कार होते हैं
-----------------------------------[[भाग -२ ]]
हमने अपने पिछले अंक में प्रार्थना की आधारभूत बातों पर चर्चा की ,की प्रार्थना हर समुदाय ,धर्म ,जाती में की जाती है ,एक आधार के रूप में |आपात स्थिति में केवल प्रार्थना ही निकलती है मन से ,कोई मंत्र पद्धति याद नही रहता उन विषम परिस्थितियों में जब बुद्धि काम करना बंद कर देती है |सामान्य स्थिति में अधिकतर व्यक्तियों को प्रार्थना के परिणाम नहीं मिलते जबकि आपात स्थिति में मिल जाते हैं | आप जिस चीज के लिए प्रार्थना करते हैं ,अकसर आपको उसके उलटे परिणाम क्यों मिलते हैं |लोग बार बार हमसे पूछते हैं की बार बार प्रार्थना करने के बावजूद मुझे मांगी हुई चीज क्यों नहीं मिली |इसके कारण है |इसका कारण उस सूत्र को न जानना है जिससे आपकी प्रार्थना फलीभूत नहीं होती |
बहुत से लोग सोचते हैं की व्यक्ति की प्रार्थना का जबाब उस चीज के कारण मिलता है ,जिसमे वह विश्वास करता है |ऐसा नहीं है |उसे तो जबाब अपने विश्वास के कारण मिलता है उस चीज में
विश्वास से नहीं |प्रार्थना का फल तो तब ही मिलता है ,जब व्यक्ति का अवचेतन मन उस व्यक्ति की मानसिक तस्वीर या विचार पर प्रतिक्रिया करके उसे हकीकत में बदल देता है |विश्वास का यह नियम दुनिया के सभी धर्मों का गोपनीय सिद्धांत है |यह उसके मनोवैज्ञानिक सत्य का छिपा हुआ कारण है |धार्मिक भिन्नताओं के बावजूद बौद्ध ,ईसाई ,मुश्लिम ,सिक्ख ,हिन्दू और यहूदी लोगों को अपनी प्रार्थनाओं के जबाब मिलते हैं |ऐसा कैसे हो सकता है |इसका कारण यह है की प्रार्थनाओं के जबाब किसी ख़ास आस्था ,धर्म ,जुड़ाव ,कर्मकांड ,संस्कार ,आराधना ,भजन ,मंत्र ,बलि ,या चढ़ावे के कारण नहीं मिलते हैं |जबाब तो उस आस्था या मानसिक स्वीकृति के कारण मिलते हैं जिसके साथ प्रार्थना की जाती है |
जीवन का नियम आस्था का नियम है |आस्था या विश्वास को संक्षेप में आप मष्तिष्क का विचार कह सकते हैं |व्यक्ति जैसा सोचता ,महसूस करता और विश्वास करता है ,वैसी ही उसके मन ,शरीर और परिस्थितियों की स्थिति होती है |आप क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, यह जान लेने के बाद आप अवचेतन मन की मदद से ऐसी तकनीक तैयार कर सकते हैं ,जो आपको जीवन की सभी अच्छी चीजें दिलाये |सफल प्रार्थना का मूल अर्थ मनोकामना पूरी होना है |यह संभव होता है अवचेतन मन की शक्ति से |आपकी प्रार्थना जब आपके अवचेतन में एक निश्चित तस्वीर और प्रकृति बनाती है ,तब चमत्कार होने शुरू होते हैं |यही मूल सिद्धांत सभी साधानाओं की ,सिद्धियों की भी होती है |इनका धर्म ,जाती से कोई लेना देना नहीं होता |धर्म ,जाती कल्पना और विश्वास उत्पन्न करते हैं ,,चमत्कार तो आपका अवचेतन करता है |यहाँ किसी ख़ास ईश्वर का कोई महत्त्व नहीं ,यह कोई भी हो सकता है |हाँ इसकी अपनी एक तकनिकी ,सूत्र और सिद्धांत हैं ,जिनके अनुसार यह कार्य करता है |इसे ही जान लेने पर सफलता मिलने लगती है |
आपके अवचेतन मन की चमत्कारी शक्तियां उस समय भी मौजूद थी ,जब आप या मै पैदा भी नहीं हुए थे |जब कोई चर्च नहीं था ,मंदिर नहीं था ,जब दुनिया ही नहीं थी |जीवन की महान शाश्वत सच्चाइयां और सिद्धांत उस समय भी मौजूद थे ,जब कोई धर्म शुरू नहीं हुआ था |आप इस अद्भुत ,जादुई ,कायापलट कर देने वाली शक्ति तथा उसकी उपयोगिता को जानकर मानसिक और शारीरिक घावों को भर सकते हैं |डरे मन को हौसला दे सकते हैं |गरीबी ,असफलता ,दुःख ,कमी तथा कुंठा की सीमाओं से पूरी तरह आजाद हो सकते हैं |आपको तो मानसिक और भावनात्मक रूप से उस अच्छी चीज के साथ जुड़ना है बस ,जिसे आप हकीकत बनाना चाहते हैं |आपके अवचेतन मन की रचनात्मक शक्तियाँ इसी के अनुसार प्रतिक्रया करेंगी |जब आपके अवचेतन में कोई भाव उत्पन्न हो स्थायी होता है तो एक आकृति और प्लान उत्पन्न होता है ,जिसके कारण प्रकृति की समान ऊर्जा स्वतः आपके आसपास और आपके शरेर में संघनित होने लगती है और आपकी सफलता बढने लगती है |अवचेतन में जन्मों के संगृहीत सूचनाएं स्वतः मार्ग बनाने लगती हैं |इसीलिए एक कहावत कही गयी है की जब व्यक्ति चाह ही ले तो प्रकृति भी उसकी मदद करने लगती है |इस कहावत का यही तात्पर्य है |पर हाँ आपकी सोच आपके अवचेतन तक पहचनी चाहिए ,और उसे प्रभावित करनी चाहिए |९९.९९ मामलों में ऐसा नहीं होता |चेतन मन तक ही सोच और क्रियाएं रह जाती हैं और सफलता असफ़लत का संतुलन मात्र शारीरिक और मानसिक स्थूल योग्यता पर निर्भर रह जाता है |आप सब जानते हैं मीरा बाई के बारे में और
यह भी की उन्हें विष देने पर भी विष प्रभावहीन हो गया किन्तु आपने कभी सोचा ऐसा
क्यों और कैसे हुआ |मीरा तो कोई
साधिका नहीं थी ,वह तो भक्त थी अपने प्रभु की फिर ऐसा कैसे हुआ |हम आपको समझाते
हैं |यह सब चमत्कार था अवचेतन का |अवचेतन में उनके जन्म से ही प्रभु भक्ति के बीज
थे और जब उन्होंने इस जीवन में प्रभु में मन लगाया तो अगाध श्रद्धा और प्रेम से
वातावरण में फैली प्रभु की ऊर्जा उनसे जुड़ गयी उन्हें अपनी शक्ति से संतृप्त करने
लगी फलस्वरूप इस ऊर्जा से सम्बन्धित शारीरिक चक्र भी क्रियाशील हो गया जबकि एक
चक्र तो सबका जन्म से ही अधिक क्रियाशील होता है |इस प्रकार दूसरा चक्र भी अधिक
क्रियाशील हुआ तो शारीरिक रासायनिक क्रियाएं भी बदली और ग्रह प्रभाव भी |रासायनिक
परिवर्तन से विष का प्रभाव भी उनके लिए बदल गया चूंकि विष भी तो रासायनिक तत्व ही
था |वह तो मानव से महामानव हो चुकी थी प्रभु की ऊर्जा से संतृप्त होकर |इसका मूल
था उनका भक्ति में चेतन स्तर पर इतना लीं होना की वह अवचेतन स्तर पर भी प्रभु से
जुड़ गयी |यही अवचेतन सारा चमत्कार करता है और जब प्रार्थना इतने भाव से हो की वह
अवचेतन तक पहुँच जाए तो चमत्कार होने लगते हैं |
इस तकनीक को की कैसे हम अपने अवचेतन को क्रियाशील करके सफलता पायें ,हम विश्लेषित करेंगे अपने अगले अंकों में |प्रार्थना कैसे फलीभूत हो |क्या तकनिकी अपनाई जाए इसे हम अगले अंकों में लिखेंगे |चूंकि विषय बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण है ,इसलिए पूर्ण व्याख्या के साथ चलना आवश्यक है |सम्पूर्ण समझ के लिए आगे के अंकों को क्रमशः देखते रहें |.....................................................................हर-हर महादेव
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