महाकाली कवच कब धारण करते हैं ? क्या लाभ होते हैं ?
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भागवती महाकाली प्रकृति की मूल और आदि शक्ति हैं ,जिनसे ही समस्त शक्तियाँ और महाविद्यायें उत्पन्न हुई हैं, किन्तु इनकी एक विशेष प्रकृति और विशेष स्वरुप है जिससे इनका भौतिक उपयोग विशेष स्थितियों में अधिक लाभप्रद होता है ,यद्यपि यह सभी उद्देश्य पूर्ण कर सकती हैं |इनके ऊर्जा की प्रकृति सबसे अलग और विशेष होती है जिससे यह विशिष्ट कर्मों
के लिए अति उपयुक्त होती हैं |इनके यन्त्र को इनका आवास माना जाता है जहाँ इनकी प्रतिष्ठा करने पर इनकी ऊर्जा उस यन्त्र को धारण करने पर मिलती है |
इस यन्त्र को कब धारण करें -
[ १ ] जब आपकी उन्नति रुक जाए और घर -परिवार
अथवा बाहर की कोई नाकारात्मक ऊर्जा /शक्ति आपके लिए अवरोधक हो जाए |
[ २ ] जब शत्रु प्रकोप बढ़ जाए और प्राणों पर संकट महसूस हो अथवा शत्रु इतना प्रबल हो जाए की हर तरह से परेशान करने लगे और उस पर विजय की आकांक्षा हो |
[ ३ ] जब आपको अक्सर विवाद ,मुकदमे
अथवा मारपीट
का सामना करना पड़ रहा हो तथा विवादों ,मुकदमों में विजय की आकांक्षा हो |
[ ४ ] जब अधिकारी वर्ग प्रतिकूल चल रहा हो ,कार्य व्यवसाय में अडचनें आ रही हों ,लोग प्रतिकूल हो रहें ,लोगों और अधिकारियों की अनुकूलता की आकांक्षा हो |
[ ५ ] जब किसी स्थायी
सम्पत्ति से सम्बन्धित विवाद चल रहा हो अथवा कोई आपकी सम्पत्ति हड़प रहा हो |भूमि -भवन प्राप्ति की दिशा में अड़चनें
आ रही हों |
[ ६ ] आप किसी तांत्रिक अभिचार ,टोने -टोटके ,किये -कराये से पीड़ित हों |आप पर बार बार टोने -टोटके हो रहे हों |
[ ७ ] आपका आवागमन ऐसे क्षेत्रों से हो जहाँ वायव्य बाधाओं
,भूत -प्रेत -पिशाच -जिन्न आदि द्वारा
प्राभावित होने का भय हो |
[ ८ ] आपके घर -परिवार में किसी ऐसी नकारात्मक शक्ति का वास हो जो आपको शारीरिक ,मानसिक कष्ट दे रहा हो जिससे आप सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हों |
[ ९ ] आपकी औरा अथवा आभामंडल नकारात्मक हो रही हो जिससे लोग आपके प्रति आकर्षित न होते हों |आपको लोगों का समुचित सम्मान न मिलता हो |लोग आपसे प्रभावित न होते हों |
[ १० ] किसी पूजा -पाठ ,साधना -उपासना में त्रुटी
हो गयी हो और कोई देवी -देवता रुष्ट हो गया हो अथवा ईष्ट अप्रसन्नता का सामना कर रहे हों |
[ ११ ] आपके अधिकारी रुष्ट हों ,कार्यक्षेत्र में खतरे की सम्भावना हो , दुर्घटना की सम्भावना हो ,स्थायित्व का अभाव हो अथवा बार बार अनिच्छित स्थानान्तरण से परेशान हों |
[ १२ ] ठीक से कार्य न कर पाते हों ,ऊर्जा -उत्साह -शक्ति की कमी महसूस होती हो अथवा आलस्य -प्रमाद -एकाग्रता की समस्या हो |
[ १३ ] आपको बहुत लोगों को नियंत्रित करना हो जिसमे आपको दिक्कत
आती हो |अधीन कर्मचारी अवहेलना कारते हों ,समूह को नियंत्रित -आकृष्ट करना हो |
[ १४ ] नवग्रह पीड़ा से पीड़ित हो ,शनि -राहू -केतु से सम्बन्धित परेशानियां ,रोग ,व्यवधान आदि हो ,ग्रहीय उपचार काम न कर रहे हों अथवा ग्रहीय
उपाय ठीक से काम करने की आकांक्षा हो |
[ १५ ] असाध्य
और लम्बी बीमारी से पीड़ित हों अथवा आपकी बीमारी चिकित्सक की पकड़ में न आ रही हो ,कोई अंग ठीक से कार्य न कर रहा हो ,हड्डियों ,नसों ,कमर का कष्ट हो |
[ १६ ] स्वास्थ्य कमजोर हो ,नपुंसकता हो अथवा स्त्रियों में स्त्री
जन्य समस्या
हो ,डिम्भ बन्ने में समस्या हो ,कमर -जाँघों
-हड्डियों की समस्या
हो ,मोटापे से परेशान हों |
[ १७ ] कहीं मन न लगता हो ,चिंता ,तनाव ,डिप्रेसन हो ,पूर्णिमा -अमावस्या को डिप्रेसन अथवा मन का विचलन होता हो ,हमेशा बुरा होने की आशंका बनी रहती हो ,खुद अथवा परिवार के अनिष्ट
की सम्भावना लगती हो |
[ १८ ] अकेले में भय लगता हो अथवा बुरे स्वप्न आते हों ,कभी महसूस हो की कमरे में अथवा साथ में कोई और है किन्तु
कोई नजर न आये |कभी लगे कोई छू रहा है अथवा पीड़ित कर रहा है ,कभी कोई आभासी व्यक्ति दिखे अथवा आत्मा परेशान करे |
[ १९ ] आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव से परेशान हो, अच्छा खासा कमाने पर भी बचत न हो पाती हो ,अनायास व्यय अथवा अपव्यय होता हो |ऋण की स्थिति
बार बार उत्पन्न होती हो |
[ २० ] कोई धन दबाकर बैठा हो ,दिया पैसा या उधार वापस न मिल पा रहा हो ,साझेदार धोखा दे रहे हों ,मित्र -सहयोगी धोखे पर उतारू हों |
[ २१ ] दाम्पत्य अथवा पारिवारिक कलह बहुत बढ़ गया हो ,अनायास
विवाद होते हों ,पर्याप्त सम्मान न मिलता हो ,अपने विरोध में खड़े हों तो आपको काली कवच धारण करना चाहिए |
यन्त्र /कवच धारण से लाभ
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१. भगवती काली की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है |,
२. शत्रु पराजित होते है ,शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ,उसका स्वयं विनाश होने लगता है |
३. ,मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है |सर्वत्र विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |
४. कर्मचारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,व्यक्तित्व का प्रभाव
बढ़ता है |सम्मान प्राप्त होता है ,| आभामंडल की नकारात्मकता समाप्त होती हैं |शरीर का तेज बढ़ता है |
५. मानसिक चिंता ,विचलन ,डिप्रेसन से बचाव होता है और राहत मिलती है |,पूर्णिमा -अमावस्या के मानसिक विचलन में कमी आती है |
६.किसी अभिचार /तंत्र क्रिया
द्वारा अथवा किसी आत्मा आदि द्वारा शरीर को कष्ट मिलने से बचाव होता है |
७. पारिवारिक सुख ,दाम्पत्य सुख बढ़ जाता है |पौरुष अथवा काम क्षमता में वृद्धि
होती है ,दाम्पत्य जीवन की संतुष्टि बढ़ जाती है |
८. नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है |
९.,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,पहले से कोई प्रभाव हो तो क्रमशः धीरे धीरे समाप्त हो जाती है |,
१०. तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,भविष्य की किसी संभावित क्रिया
से सुरक्षा मिलती है |किये -कराये -टोने -टोटके की शक्ति क्रमशः
क्षीण होते हुए समाप्त होती है |
११. ,परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |हीन भावना में कमी आती है ,खुद पर विश्वास बढ़ता है |एकाग्रता बढती है तथा उत्साह ,ऊर्जा में वृद्धि होती है |
१२. भूत-प्रेत-वायव्य बाधा की शक्ति क्षीण होती है ,क्योकि इसमें से निकलने वाली सकारात्मक तरंगे उनके नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास करते हैं और उन्हें कष्ट होता है |,
१३. उग्र देवी होने से नकारात्मक शक्तियां इनसे दूर भागती हैं और धारक के पास आने से कतराती हैं |किसी वायव्य
बाधा का प्रभाव शरीर पर कम हो जाता है |
१४. मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है |ग्रह बाधाओं
का प्रभाव
कम होता है |शनि -राहू -केतु के दुष्प्रभाव की शक्ति क्षीण होती है |
१५. नपुंसकता ,स्त्रियोचित समस्या
,काम उत्साह में कमी ,कार्यक्षमता में कमी दूर होती है |यदि बंधन आदि के कारण संतानहीनता है तो बंधन समाप्त
होता है |
१६. शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह
बढने से आत्मबल और कार्यशीलता में वृद्धि
होती है |कोशिका
क्षय की दर कम होती है |
१७. आलस्य ,प्रमाद का ह्रास होता है |व्यक्ति की सोच में परिवतन आता है ,उत्साह में वृद्धि
होती है |नया जोश उत्पन्न होता है |
१८. किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है |,पारिवारिक कलह ,विवाद कम हो जाता है तथा लोगों पर आकर्षक
शक्तियुक्त प्रभाव
पड़ता है |
१९. घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है जिससे उसका प्रभाव कम होने लगता है |पारिवारिक सौमनस्य में वृद्धि
होती है |
२०. जाँघों -कमर के दर्द ,नसों अथवा हड्डियों की समस्या
,लकवा अथवा किसी अंग की कम क्रियाशीलता में सुधार होता है |मोटापे की समस्या ,प्रमाद -आलस्य -उत्साह में कमी -साहस की कमी में राहत मिलती है |
२१. स्थान दोष ,मकान दोष ,पित्र दोष ,वास्तु दोष का प्रभाव व्यक्ति पर से कम हो जाता है क्योकि अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होने लगता है उसमे |
यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी |,यन्त्र में उसे बनाने वाले साधक का मानसिक
बल ,उसकी शक्ति से अवतरित और प्रतिष्ठित भगवती की पारलौकिक शक्ति होती है जो वह सम्पूर्ण प्रभाव प्रदान
करती है जो साधना में प्राप्त होती है |,अतः आज के समय में काली की साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है किन्तु धारणीय
यन्त्र का यदि उपयुक्त लाभ प्राप्त करना हो तो ,कम से कम २१ हजार मूल मन्त्रों से अभिमन्त्रण और उपयुक्त मुहूर्त में विधिवत तांत्रिक विधि से प्राण प्रतिष्ठा होना आवश्यक
है, अन्यथा मात्र रेखाएं
खींचने से कुछ नहीं होने वाला ,जबतक की उन रेखाओं में भगवती को प्रतिष्ठित न किया जाए और उपयुक्त शक्ति न प्रदान की जाए |२१ हजार मन्त्रों से अभिमन्त्रण में खर्च अधिक आता है अतः सामर्थ्य अनुसार 1100 अथवा 11000 मन्त्रों से अभिमंत्रित भी इन्हें
कराया जा सकता है ,बस ऊर्जा कुछ कम हो जायेगी इन ताबीज /कवच की |..............................................................हर-हर महादेव
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