कुंडलिनी तंत्र साधना में प्रवेश
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अक्सर हमारे पास युवकों ,युवतियों ,साधकों ,साधिकाओं के फोन ,मेसेज आदि
आते रहते हैं जिनमें अधिकतर भैरवी साधना के इच्छुक होते हैं ,किन्तु कठिनतम साधना
पद्धति होने से अधिकतर इसके लिए अयोग्य होते हैं अथवा आसान या भौतिक सुख की
उपलब्धी के लालच में ही अधिकतर सम्पर्क किये जाते हैं |यद्यपि यह साधना प्रत्येक
गृहस्थ के योग्य बनाया गया था किन्तु आज के समय में योग्यता और पात्रता इस मार्ग
में इतनी कठिन और दुर्लभ है की लाखों में कोई एक इस साधना के योग्य होता है |पहले
के समय में गुरु श्रद्धा और समर्पण पूरी तरह था अतः तब सबके अनुकूल था ,आज श्रद्धा
,समर्पण के अभाव से यह साधना कठिनतम की श्रेणी में आ गयी है |
आज के समय में कुंडलिनी तंत्र साधना सीखना और जानना तो बहुत लोग चाहते हैं
किन्तु वास्तविक योग्यता और पात्रता अधिकतर के पास नहीं होती साथ ही वास्तविक गुरु
मिलना तो आज भूसे के ढेर में सुई ढूँढने जैसा है |कोई भी वास्तविक साधक और गुरु
खुद को कभी व्यक्त नहीं करता और समाज में सामान्य जीवन जीते हुए भी किसी को पता
नहीं लगने देता की वह कुंडलिनी तंत्र का साधक है |खुद को व्यक्त करने वाले अथवा
खुद को इस विद्या का गुरु बताने वाले अथवा कैम्प ,शिविर चलाने वाले अधिकतर की चाह
भौतिक होती है जबकि वास्तविक कुंडलिनी साधक भौतिकता से दूर अपने उद्देश्य पर
एकाग्र होता है ऐसे में आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं की समाज में दिखावा करने
वाले गुरु कैसे होंगे और इनका उद्देश्य क्या होगा |इस विद्या को सीखने के इच्छुक
लोग भी वास्तव में इसमें भौतिकता ,सिद्धि अथवा शक्ति की इच्छा से ही आते हैं जबकि
यह मोक्ष का मार्ग है और केवल एक प्रतिशत लोग ही इस उद्देश्य से इस क्षेत्र में
आते हैं ,इसीलिए अधिकतर वास्तविक साधक और गुरु यही कहते रहते हैं की वह इस विद्या
को नहीं सिखाए या नहीं जानते |यह परीक्षण में नहीं पड़ना चाहते और अपना समय व्यर्थ
नहीं गंवाना चाहते शिष्यों आदि के चक्कर में |बहुत योग्य शिष्य मिलने पर ही यह उसे
कुछ बताने को तैयार होते हैं जबकि आज के शिष्यों में धैर्य और समर्पण की नितांत
कमी देखी जाती है |पहले के समय में इस विद्या के आश्रम और साधना स्थल गुप्त
स्थानों और जंगलों में होते थे और आज भी कुछेक हैं किन्तु वहां सामान्य लोगों का
प्रवेश सम्भव नहीं केवल साधना को ही जीवन बना चुके लोगों के लिए वहां स्वीकार्यता
है |चूंकि मूलतः यह विद्या गृहस्थ के अनुकूल रही अतः इसके साधक आज अधिकतर समाज में
ही मिलते हैं किन्तु वह इसे गोपनीय रखते हैं क्योंकि समाज इस विद्या के रहस्य को
समझ नहीं पाता तथा इसे भोग मानता है |धारा के विपरीत चलने वाली साधना को धार्मिक
वर्ग भी अपने लिए खतरा मानता रहा है अतः इसके सम्बन्ध में भ्रांतियां भी बहुत
फैलाई गयी हैं तथा इसे ध्रिनास्पद प्रचारित किया गया है |वास्तविकता यह है की यह
मोक्ष मार्गीय साधना है जो गृहस्थ अपने पारिवारिक दायित्व पूर्ण करते हुए भी अपने
साथी के साथ साधनारत रहते हुए वह सबकुछ पा सकता है जो एक योगी और सन्यासी पा सकता
है |
इस क्षेत्र में प्रवेश भी
अति कठिन है और साधना तो अत्यंत कठिन है ही |यहाँ हर कार्य धारा के विपरीत है और
हर क्रिया में आत्मबल की आवश्यकता है |प्रत्येक जीव की प्रवृत्ति इस पृथ्वी पर
अधोगामी है जिसमें वह जन्म लेकर पृथ्वी पर गिरता है ,जीवन भर पृथ्वी पर गिरता
-पड़ता रहता है ,पृथ्वी पर ही और पृथ्वी से उत्पन्न तत्वों पर ही अपनी ऊर्जा फेंकता
रहता है तथा अंततः पृथ्वी पर ही बिखर जाता है |मनुष्य की ऊर्जा की प्रवृत्ति भी
अधोगामी होती है और इसे भी अपनी ऊर्जा को अधोगामी रखने में ही सुख महसूस होता है
क्योंकि यह सामान्य प्रकृति है |बलात्कार ,बलात संग ,छेड़छाड़ ,गलत दृष्टि ,विपरीत
लिंगी के प्रति आकर्षण ,असंतुष्टि आदि सभी के पीछे मनुष्य की यही अधोगामी
प्रवृत्ति है जिससे वह हमेशा पतित होना चाहता है ,उसे ऊर्जा फेंकने में सुख महसूस
होता है ,उसकी उर्जा गिरना चाहती है |यह सृष्टि रचना अर्थात नए मनुष्य की उत्पत्ति
अर्थात संतानोत्पत्ति तक तो ठीक है ,यही इसका उद्देश्य भी होता है किन्तु मनुष्य
इससे भी अलग इसका दुरुपयोग करता है या इसे यहाँ वहां फेंकता फिरता है ,इसमें उसे
सुख मिलता है |इस सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत जाकर इसे नीचे गिरने से रोक देना हर
धर्म -सम्प्रदाय में सिद्धि और शक्ति प्राप्ति का स्रोत माना गया है |इसे ही
ब्रह्मचर्य कहा गया है |सामान्यतया ब्रह्मचर्य का अर्थ संसर्ग विहीन होना माना
जाता है अर्थात अपनी ऊर्जा को रोक लेना |इससे उर्जा संचित हो शक्ति देती है |हर
साधना -उपासना में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने को कहा जाता है क्योंकि इससे
शक्ति प्राप्त होती है जो सिद्धि में सहायक होती है |यही ऊर्जा जब अधोमुखी न होकर
उर्ध्वमुखी हो जाती है तो कुंडलिनी जाग्रत कर देती है |
जब सामान्य ब्रह्मचर्य अर्थात
बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के सामान्य रूप से ऊर्जा पतन को रोक लेने से शक्ति और
सिद्धि आसान हो जाती है तो सोचिये इस ऊर्जा को तीव्रतम स्थिति तक बढाकर यदि रोक
दिया जाय तो यह कितनी तीव्र क्रिया करेगी |कुंडलिनी तंत्र साधना इसलिए ही अति कठिन
है की इस उर्जा को तीव्र करते हुए रोक कर उर्ध्वगामी किया जाता है जिससे सामान्य
स्थिति की तुलना में कई गुना अधिक शक्ति से ऊर्जा उठती है और चक्रों का भेदन कर
कुंडलिनी जागरण करती है |वर्षों की साधना ,तपस्या के परिणाम महीनों में मिलते हैं
और व्यक्ति को भौतिक के साथ ही आध्यात्मिक उपलब्धियां भी शीघ्र ही प्राप्त होती
हैं |
इस क्षेत्र में प्रवेश ही
सबसे कठिन है क्योंकि कोई भी गुरु किसी भी सामान्य व्यक्ति को शिष्य नहीं बनाता
|वह योग्यता और क्षमता देखता है |हमने अपने अनुभव के आधार पर एक प्रक्रिया बनाई है
जो किसी किताब में ,किसी शास्त्र में नहीं है और पूरी तरह खुद की सोच और अनुभव की
देन है |यह प्रक्रिया उन लोगों में योग्यता और क्षमता उत्पन्न करने के लिए है जो
वास्तव में इस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं |यह प्राथमिक चरण है अपनी ऊर्जा
बढाने और योग्य बनने का जब तक की गुरु न मिल जाय |हर गुरु और सम्प्रदाय की अलग
-अलग प्रक्रिया होती है जो वह अपने निर्देशन में कराते हैं किन्तु सभी व्यक्ति की
क्षमता और योग्यता परखने के बाद ही कुछ सिखाना शुरू करते हैं |इस प्रक्रिया को
अपनाकर आप योग्य बन सकते हैं |आप गुरु तलाशते रहें तथा बताई जा रही साधना करते
रहें तो आपमें शक्ति और क्षमता उत्पन्न हो जायेगी और गुरु आपको स्वीकार कर ले इसकी
सम्भावना बढ़ जायेगी |
सबसे पहला काम तो यह करें
की अपने आज्ञा चक्र की तरंगों को नियंत्रित करें अर्थात विचारों को नियंत्रित करें
|व्यक्ति के विचार गणेश जी के सूंड की तरह हमेशा हिलते डुलते यानी यहाँ वहां भागते
रहते हैं |इन्हें नियंत्रित किये बिना कोई साधना सफल नहीं हो सकती |आज्ञा चक्र का
आधिपत्य गणेश जी को प्राप्त है और यही सभी सफलताओं का केंद्र है |इनकी कृपा बिना
कोई कार्य सफल नहीं हो सकता तो सबसे पहले यहीं से शुरू करना होगा |इसके लिए आप
ध्यान करें अथवा त्राटक करें |गणपति पर ध्यान करते हुए उन्ही पर एकाग्र हो अपने
विचारों नियंत्रित और संतुलित करें |यह क्रिया सुबह -सुबह मात्र १५ मिनट करें पूरी
एकाग्रता से |सुबह का अर्थ सुबह ही है दिन के दस बजे आप सोकर उठते हों तो वह सुबह
नहीं है |इसे तो 5 बजे ही करना होगा
|इस अवधि में आप चाहें तो गणपति का मंत्र जप भी कर सकते हैं |इसके साथ ही आप
रात्री दस बजे कालिका सहस्त्रनाम का पाठ रोज करें पूरे नियम से |नियम और तरीका के
साथ सहस्त्रनाम का पाठ हमने अपने पहले के विडिओ में महाकाली की सिद्धि और साधना
कैसे हो नाम से प्रकाशित कर रखा है आप उसे देख सकते हैं |यह दोनों क्रिया आप
लगातार १०८ दिन तक अनवरत करें और हाँ सबसे जरुरी बात इस १०८ दिन तक आपको अखंड
ब्रह्मचर्य का पालन करना है |अगर आप इस अवधि के बीच ब्रह्मचर्य तोड़ते हैं या किसी
कारण टूटता है तो आपको फिर से १०८ दिन का अखंड ब्रह्मचर्य का पालन दोनों पूजा
-साधना पद्धति के साथ करना होगा |१०८ दिन की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद आपको
पुनः १०८ दिन की यही प्रक्रिया दोहरानी है किन्तु यहाँ आपको सुबह के ध्यान में
निर्विकार होना है या शिव -शक्ति के एकीकृत स्वरुप पर ध्यान करना है |आपका विचार
निर्विकार हो या शिव शिवा पर केन्द्रित होना चाहिए भटकना नहीं चाहिए |रात के पाठ
की जगह आप काली के मन्त्रों का जप कम से कम आधा घंटा करेंगे रात १० बजे के बाद और
हाँ यहाँ आपको पूरी तरह निर्वस्त्र होकर जप करना है बाल बिखेरकर खुद को ही काली या
भैरव स्वरुप मानते हुए |इस १०८ दिन की प्रक्रिया में भी पूर्ण अखंड ब्रह्मचर्य का
पालन करना है |
इन दो चरण की प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद आप कुंडलिनी तंत्र साधना में
प्रवेश के योग्य बन जाए हैं यदि आपमें कोई शारीरिक कमी नहीं है तो |इन चरणों के
बाद आपका आभामंडल परिवर्तित हो जाएगा |आपका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा |आपकी सफल बढ़
जायेगी जीवन के हर क्षेत्र में |आपमें अतीन्द्रिय शक्ति का उदय होगा और आपमें काली
की शक्ति आ जायेगी जिससे आपके सोचे हुए कार्यों की सफलता का प्रतिशत बढ़ जाएगा
|आपकी और आसपास की नकारात्मकता का ह्रास होगा |मूलाधार सशक्त होगा और एकाग्रता बढ़
जायेगी जिससे याददास्त तो सुधरेगी ही अवचेतन की सक्रियता भी बढ़ जायेगी |आपमें वह
योग्यता विकसित होगी जो कुंडलिनी तंत्र साधना में आवश्यक है |आपमें यदि गुरु के
प्रति श्रद्धा और पूर्ण समर्पण की भावना होगी तो आप सफल हो जायेंगे |चूंकि यह
क्षेत्र जन्म मरण के चक्र से मुक्ति का तो है ही उससे भी आगे पूर्ण मोक्ष का है
अतः यहाँ गुरु को जब तक खुद को पूर्ण समर्पित नहीं कर देंगे आपकी सफलता संदिग्ध
होगी |गुरु भांप लेगा आपको और फिर वह अपना सबकुछ नहीं देगा |जितना आपकी श्रद्धा और
समर्पण होगा उतना ही वह आपको देगा |चूंकि यह क्षेत्र सांसारिक जीवन से जुड़ा है अतः
गुरु को पूर्ण सांसारिक जीवन समर्पित कर देना होता है और फिर उसके निर्देशों के
अनुसार चलना होता है तभी पूर्णता सम्भव है |...................................................हर हर महादेव
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