Tuesday, 28 May 2019

पूजा -अनुष्ठान पर लाखों खर्च ,लाभ दिखता नहीं

लाखों के पूजा -अनुष्ठान करा दिए पर लाभ समझ नहीं आया
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       जब तक व्यक्ति का जीवन आराम से चलता रहता है वह पूजा -पाठ ,देवी -देवता ,ज्योतिषी -पंडित -तांत्रिक की तरफ कम ध्यान देता है |यदि संस्कार में पूजा पाठ न हो तो लोग कम ही पूजा पाठ करते हैं |कुछ का जीवन आराम से चलने और भाग्य ठीक रहने पर वह ईश्वर के ही अस्तित्व को नकार देते हैं |आधुनिक विज्ञान की शिक्षा पाए और पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने वाले पूजा -पाठ ,अनुष्ठान आदि की वैज्ञानिकता को नहीं समझ पाते और मानते हैं की इनसे कुछ नहीं होता क्योंकि विज्ञान अभी पूरी तरह सक्षम नहीं हो पाया है की इन सभी के पीछे की वैज्ञानिकता को समझ पाए |जहाँ तक विज्ञान समझ पाता है लोग उतना सही मानते जा रहे जबकि विज्ञान वही कह रहा जो हमारे ऋषि मुनि हजारों साल पहले बता गए |विज्ञान आज का वहां तक भी नहीं पहुंचा जहाँ भारत में महाभारत काल का विज्ञान था |आज के भौतिक उन्नति को ही सर्वोच्च उन्नति माने वाले आज के आधुनिक लोग जब जीवन संघर्षों में पड़ते हैं ,भाग्य करवट लेता है तब उसका कारण खोजने निकलते हैं और उन्हें आधुनिक विज्ञान में जब जबाब नहीं मिलता तब वैदिक विज्ञान ज्योतिष ,तंत्र और पूजा पाठ में इसका उत्तर खोजते हैं |यहाँ आकर उन्हें उपाय बताये जाते हैं किन्तु अधिकतर को इस विज्ञानं की समझ नहीं होती और वह सामान्य पूजा -पाठ भी ठीक से नहीं कर पाते |इस स्थिति में उनका प्रयास होता है की कोई उनका काम कर दे और उन्हें कुछ न करना पड़े ,पर फल उन्हें ही मिले |
        अभी भी भारत में अधिसंख्य लोग ईश्वर को मानते हैं और उपरोक्त आधुनिक पाश्चात्य वादी लोग कम हैं किन्तु जो ईश्वर को मानते हैं और घर में अथवा मंदिर में पूजा पाठ करते हैं उनमे भी पूर्ण जानकारी का अधिकतर अभाव है |अधिकतर लोग यही मानने वाले हैं की कलयुग में ईश्वर का नाम जपना ही काफी है |कारण नहीं समझना चाहते इस उक्ति का ,यह नहीं जानना चाहते की तब इतने कठिन कठिन पद्धति क्यों बनाए गए ,क्यों साधक कठिन कठिन क्रियाएं करते हैं ,जबकि मात्र नाम से ही सब काम हो जाना चाहिए |जब ऐसा ही है तो इतने नियम -कायदे -पद्धति आदि क्यों बनाए और बताये जाते हैं |इनकी दिक्कत तब बढ़ जाती है जब यह किसी समस्या अथवा जीवन संघर्ष में पड़ते हैं तथा ज्योतिषी -तांत्रिक -पंडित द्वारा कोई पूजा -अनुष्ठान बता दिया जाता है |अब खुद तो जानकारी कम है इसलिए करने से डरते हैं की कहीं गलती न हो जाए अथवा कुछ लोग सोचते हैं की इन झंझटों में कौन पड़े कुछ पैसे देकर किसी से यह पूजा -अनुष्ठान करा लिया जाय |कुछ लोग अपना रोज का दिनचर्या न बिगड़े और खुद मेहनत न करना पड़े इसलिए भी खोजते हैं किसी पूजा -पाठ करने वाले को |
          उपरोक्त दोनों ही स्थितियों में जब व्यक्ति किसी अन्य को खोजने लगता है तब फिर यह पूजा व्यावसायिक रूप लेने लगती है ,क्योंकि पैसे देकर पूजा खरीदी जा रही |इसके लिए आजकल व्यवसाय शुरू हो गया है |बाकायदा प्रचार दिया जाने लगा है की अमुक शान्ति ,अमुक पूजा ,अमुक जगह कराई जाती है |बहुत से ऐसे भी ज्योतिषी ,पंडित ,तांत्रिक होते हैं जो खुद प्रस्ताव देते हैं की इतना खर्च होगा हम पूजा करा देंगे |पूजा करने वाले ,जप -अनुष्ठान करने वाले पंडित ,तांत्रिक बहुत से हैं और इनमे कुछ वास्तविक जानकार भी हैं पर सभी वहां तक पहुँच नहीं पाते |बहुत से ऐसे भी हैं जो मात्र इसी को अपना व्यवसाय बानाए हुए हैं ऐसे में यह कितना न्याय करंगे कहा नहीं जा सकता |हमने ऐसे भी पंडित देखे हैं जो शुद्ध मंत्र नहीं बोल सकते पर कर्मकांड कराते हैं |वास्तविक स्थिति यह है आज की शुद्ध कर्मकांडी ,अच्छा तांत्रिक ,पारंपरिक ज्योतिष जीने वाला ज्योतिषी मिलना मुश्किल हो रहा जबकि यह हर गली -मुहल्ले में कहने को तो हैं |व्यक्ति जब समस्याग्रस्त होता है और उलझन में पड़ा होता है तब वह रुकना नहीं चाहता ,सोचना नहीं चाहता ,परखना नहीं चाहता |उसे तो बस अपनी समस्या से जल्दी से मुक्ति चाहिए होती है |वह खुद कुछ नहीं करना चाहता और चाहता है कोई सबकुछ कर दे और उसकी समस्या ख़त्म हो जाए |यहीं कई तरह की दिक्कत हो जाती है की उसका पैसा भी बरबाद होता है और उसे कोई लाभ भी नहीं समझ आता |कभी कभी तो स्थिति और बिगड़ तक जाती है |
      उपरोक्त दो प्रकार के लोगों के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार के लोग भी होते हैं जिनका सामान्यतः भाग्य साथ देता है और यह आस्थावादी भी होते हैं |यह मंदिर ,चौकी ,मस्जिद ,मजार ,गुरुद्वारा सब जगह सर झुकाते रहते हैं |जो मिल रहा उसे ईश्वर की देन मानते हैं तथा पूजा -अनुष्ठान कराते ,करते रहते हैं |कभी यह नहीं सोचते की सही हो रहा या गलत ,अपनी दृष्टि में यह धर्म -कर्म करते रहते हैं |प्रवचन -सत्संग सुनते रहते हैं |अच्छे विचार रखते हैं और सामान्यतः धार्मिक होते हैं फिर भी जीवन में अनेक समस्याओं ,कठिनाइयों ,दुर्घटनाओं ,बीमारियों का सामना करते रहते है |प्रबल भाग्यवादी भी इनमे कुछ होते हैं जो सबकुछ भाग्य का मानते हैं और पूजा पाठ ,धर्म -कर्म को कर्तव्य मानते हुए करते रहते हैं |दान -पुन्य करते रहते हैं |कोई कुछ बताता है तो बिन समझे सोचे उसे करने का प्रयत्न भी करते हैं |इनका फल मिला जुला होता है |कभी इन्हें इनके धर्म -कर्म का ,पूजा -पाठ का फल मिलता है कभी नहीं मिलता |यह उस ओर ध्यान भी नहीं देते |अगर यह थोडा ध्यान दें तो इनका लाभ कई गुना बढ़ सकता है |कुछ ऐसे भी लोग होते हैं इनमे जो अति बौद्धिकतावादी होते हैं |धर्म कर्म भी करते हैं ,पूजा पाठ भी करते हैं पर सब कुछ को नहीं मानते |खुद के ज्ञान को ही श्रेष्ठ मानते हैं और कभी ऐसी शक्तियों को भी महत्त्व देते हैं जो नैसर्गिक शक्तियाँ नहीं होती अथवा जो एक प्रकार की प्रेतिक शक्तियाँ होती हैं |यह अपनी पीढ़ियों के साथ खिलवाड़ करते हैं |आज भाग्य साथ दे रहा ,सब ठीक चल रहा तो बौद्धिकता दिखा रहे ,कल जब वह शक्तियाँ स्थान बना लेंगी तो पीढियां भुगतेंगी |यह तो होंगे नहीं की इन्हें सामना करना पड़े ,इसलिए इनकी समझ में नहीं आता |इनका किया कराया गुड ,गोबर के बराबर हो जाता है |हमने कुछ कारणों को पूजा -अनुष्ठान की असफलता का कारण पाया है ,जो लाखों के पूजा अनुष्ठान को असफल बना देते हैं |चाहे कई बार में पूजा अनुष्ठान हो रहे हों |
[ १ ] पूजा -अनुष्ठान -जप करने वाले पंडित -ज्योतिषी -तांत्रिक यदि अच्छे जानकार न हुए और शुद्ध जप /पूजा /अनुष्ठान नहीं किया अथवा जल्दबाजी में विधि पूर्ण नहीं की तो व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता |
[ २ ] यदि संकल्प पूर्वक किसी को अनुष्ठान -पूजा नहीं दी गयी और बिन संकल्प क पूजा अनुष्ठान किया गया तो उसका फल व्यक्ति को नहीं मिलता |
[ ३ ] पूजा करने वाले विद्वान् से पूजन में कोई भी गलती हो जाए अथवा जो व्यक्ति पूजा करवा रहा उससे अनुष्ठान अवधि में कोई गलती हो जाए ,विरुद्ध आचरण हो जाए तो पूजा फल तो नहीं ही मिलता कभी कभी विपरीत परिणाम भी सामने आते हैं |
[ ४ ] यदि परिवार के कुल देवता /देवी रुष्ट हैं ,नाराज हैं अथवा उन्हें पूजा नहीं मिल रही तो व्यक्ति द्वारा करवाया गया कोई भी पूजा -अनुष्ठान ईष्ट तक नहीं पहुँचता और पूजा फल नहीं मिलता |
[ ५ ] यदि घर -परिवार में किसी ब्रह्म -प्रेत -सती -शहीद -वीर आदि की पूजा हो रही हो तो कुलदेवता /देवी को पूजा नहीं मिलती तथा ईष्ट या किसी उद्देश्य से की गयी कोई भी पूजा सम्बन्धित देवता तक नहीं पहुँचती और लाभ नहीं मिलता |
[ ६ ] किसी घर -परिवार में कोई प्रेत या आसुरी शक्ति का प्रकोप हो और कोई पूजा -अनुष्ठान कराया जाए तो उसे कष्ट होता है और वह उत्पात कर सकता है |पूजा -अनुष्ठान में पर्याप्त शक्ति /ऊर्जा न हो तो घर -परिवार की परेशानी बढ़ जाती है |
[ ७ ] किसी अन्य द्वारा किये जाने वाले पूजा -जप का छठा अथवा चौथा हिस्सा ही व्यक्ति को प्राप्त होता है वह भी यदि सब कुछ ठीक ढंग से हो और योग्य जानकार करे |
[ ८ ] यदि रहने वाले घर में वास्तुदोष हो ,नकारात्मक ऊर्जा हो ,किसी शक्ति की छाया हो ,स्थान दोष हो ,भूमि दोष हो ,ग्रह भी विपरीत हों तो किये जाने वाले पूजा -अनुष्ठान की अधिकतर ऊर्जा का लाभ व्यक्ति को नहीं मिलता और जिस उद्देश्य से पूजा कराई जा रही वह उद्देश्य पूरा होना कठिन होता है |
[ ९ ] यदि व्यक्ति की किसी पहले की गलती से कोई शक्ति रुष्ट हो गयी है तो वह व्यक्ति तक पूजन लाभ नहीं पहुँचने देती और व्यक्ति के प्रयास असफल होते हैं |
[ १० ] पूजन -अनुष्ठान का नियम है की सबकुछ व्यक्ति के खर्च पर ही होना चाहिए यहाँ तक भी अनुष्ठान करने वाले का भोजन भी ,ऐसे में कार्य बाद भुगतान का पूर्ण फल नहीं मिलता |अनुष्ठान कर्ता की भावना का महत्त्व होता है की वह संतुष्ट रहे और मन से चाहे की अमुक के कार्य पूर्ण हों |
[ ११ ] यदि किसी ईश्वरीय शक्ति के भरम में किसी प्रेतिक शक्ति को पूजने लगता है कोई व्यक्ति या कोई परिवार तो कुछ समय बाद उसका सारा पूजा -पाठ वह शक्ति लेने लगती है |न वह पूजा कुलदेवता /देवी तक पहुँचने देती है ,न ईश्वर तक |खुद पूजा ले अपनी शक्ति बढाती है |भविष्य में जब भी पूजा बंद हो जाए परिवार के विनाश पर उतारू हो जाती है |मृत्यु होने पर व्यक्ति की अधिकतम गति उस शक्ति के अधीन उसके लोक तक ही हो पाती है और उसकी मुक्ति नहीं होती |सारे पूजा -अनुष्ठान ऐसी स्थिति में असफल हो जाते हैं |
         उपरोक्त स्थितियों में व्यक्ति द्वारा कराये गए पूजा -अनुष्ठान का फल उसे नहीं मिल पाता ,भले वह लाखों खर्च कर दे |इन्ही कारणों से कोई संतति हीन संतान गोपाल कराके भी संतान हीन रह जाता है ,कोई कालसर्प की पूजा कराके भी संघर्ष करता रह जाता है ,कोई पित्र शान्ति के अनेक उपाय करके भी खुशहाली नहीं पाता ,कोई मांगलिक का उपाय करके भी दाम्पत्य सुख नहीं प्राप्त कर पाता ,कोई ग्रहों के जप कराके भी कोई अंतर नहीं पाता ,कोई नवरात्र के अनुष्ठान कराके भी कष्ट उठाता है ,कोई तीर्थों में घूमकर भी कष्टप्रद जीवन जीता है ,कोई लक्ष्मी उपासना करके भी विपन्न होता है ,कोई सत्यनारायण की कथा सुन सुन के भी उन्नति नहीं कर पाता ,कोई मंदिर में दर्शन करते हुए भी कठिनाइयाँ झेलता रहता है |अंत में सब करके थक कर कहता है सब बेकार है ,कोई लाभ नहीं ,कोई भगवान् नहीं सुनता ,जो भाग्य में है वही होगा |कारण कोई नहीं खोजता कहाँ चूक हो गयी ,भाग्य वह नहीं होता जो वह महसूस करता है |दिक्कत वहां होती है की जो भाग्य में है वह भी नहीं मिल पाता इन उपरोक्त कमियों के कारण |इनके कारण ही उद्देश्य सफल नहीं होता और व्यक्ति भगवान् और भाग्य को दोषी बना खुद को सांत्वना दे लेता है |
        उपरोक्त स्थितियों में भी समस्या का निदान हो सकता है और पूजा -आराधना फल मिल सकता है किन्तु इसके लिए खुद खड़ा होना होता है |किसी अन्य के सहारे अपने कुल देवता /देवी ,बाहरी शक्तियों ,पितरों ,आसुरी शक्तियों ,विभिन्न दोषों को नहीं साधा जा सकता |इन्हें तो खुद की सुलझाया जा सकता है |भाग्य परिवर्तित भी किया जा सकता है ,भाग्य बदला भी जा सकता है ,सभी पूजा का फल प्राप्त भी किया जा सकता है ,किन्तु खुद लड़ना होता है |इसकी अपनी तकनिकी होती है और इन तकनीकों पर चलकर सबकुछ पाया जा सकता है |हमने इन विषयों पर अनेक लेख लिखे हैं |यहाँ उपाय केवल इतना ही है की व्यक्ति खुद प्रयास करे ,खुद आगे बढे तो सबकुछ हो सकता है |खुद प्रयास करने से पूजा का पूर्ण फल मिलता है ,घर की नकारात्मक शक्तियों के उतने प्रतिरोध का सामना नहीं करना होता जितना बाहर का वह करती हैं |कुलदेवता /देवी की रुष्टता कम होती है और पित्र विघ्न नहीं उत्पन्न करते |घर में वास कर रही कोई शक्ति कम उपद्रव करती है |किसी अन्य द्वारा किसी त्रुटी की सम्भावना समाप्त हो जाती है |खर्च बचता है |खुद का विश्वास जगता है और आस्था चमत्कार करती है |सीधे व्यक्ति का तारतम्य सम्बन्धित ऊर्जा से बनता है |.............................................................हर हर महादेव

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