उर्जा
प्रक्षेपण की तकनीक और मार्ग
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आपने शिव के तीसरे नेत्र के बारे में सुना है और यह भी सुना होगा की उन्होंने अपनी दृष्टि से कामदेव
को भष्म कर दिया था |आपने सभी देवी -देवताओं के मस्तक पर तीसरे नेत्र के बारे में भी सूना होगा जबकि काली ,तारा आदि में यह स्थायी रूप से चित्रित होता है |यद्यपि
इनके अपने गूढ़ निहितार्थ हैं किन्तु यह दृष्टि
की शक्ति को भी व्यक्त
करते हैं |आपने महाभारत में गांधारी का प्रकरण
सुना है कि उन्होंने वर्षों
तक अपनी आँखों पर पट्टी बांधे रखी और जब खोली तो दृष्टि पड़ते ही दुर्योधन का शरीर वज्र सा हो गया |गांधारी कोई विरक्त
साध्वी नहीं थी ,वह एक गृहस्थ
रानी थी जिसके अनेक पुत्र थे और वह सांसारिक जीवन में थी ,किन्तु गांधारी एक साधिका थी |उसमे प्रबल शक्ति थी |वहां प्रकरण
कुछ भले अलग रहा हो किन्तु कार्य तंत्र सूत्रों पर हुआ था |कुछ ऐसी ही क्रिया तंत्र के उच्च साधक और सिद्ध अपनाते हैं ,जहाँ वह अपनी शक्ति किसी व्यक्ति पर प्रक्षेपित करते हैं |लोगो को प्रभावित कर रही नकारात्मक शक्तियों को हटाते हैं ,लोगों की नकारात्मक ऊर्जा को कम करते हैं ,शक्ति और ऊर्जा प्रदान
करते हैं तथा किसी प्रकार
के अभिचार
आदि का प्रभाव हटाते हैं |
यह प्रक्रिया ब्रह्माण्ड के ऊर्जा नियमों के अंतर्गत तंत्र सूत्रों पर आधारित
होती है और इन्ही नियमों
पर कुछ भिन्न पद्धतियों में अनेक प्रकियाएं बनाई गयी हैं |हमारी प्रक्रिया तो तंत्र पर आधारित होती है तथापि हम इस विषय के भिन्न पद्धतियों पर भी संक्षिप्त चर्चा करते हैं |हम यहाँ पूर्ण तकनीक तो नहीं दे रहे क्योंकि कापी -पेस्ट बौद्धिक चोर ,पोस्ट कापी करके अपने नाम से प्रकाशित करेंगे
ही और स्वयं को सिद्ध साबित कर लोगों को मूर्ख बनाने का भी प्रयत्न करेंगे |हमने इसीलिए
अपने ब्लागों ,पेजों ,ग्रुपों और यू ट्यूब चैनल पर पहले ही इसे प्रकाशित कर दिया है जहाँ नम्बर और सम्पर्क सूत्र भी उपलब्ध है |जैसा की आप जानते हैं कि हर व्यक्ति में एक निश्चित ऊर्जा होती है और वह उसके शरीर से निकलती रहती है जिसका उदाहरण कद्दू अथवा कुम्हड़े के छोटे फल की ओर ऊँगली दिखाने
से उसके सूख जाने से प्रमाणित होता है ,लाजवंती या छुई मुई के पौधे को छोटे ही सिकुड़ने से प्रमाणित होता है ,किसी के मस्तक पर आँखों के मध्य भृकुटी के पास तर्जनी ऊँगली ले जाने पर उत्पन्न सम्वेदना से प्रमाणित होता है ,चरणों से ऊर्जा निकलने
के कारण श्रेष्ठ लोगों के चरण छूकर आशीर्वाद लेने की परंपरा से प्रमाणित होता है |कुछ ऐसा ही सक्षम की दृष्टि में ऐसी क्षमता आ जाती है की वह किसी की ऊर्जा संतुलित कर सकता है ,नकारात्मक ऊर्जा ,भूत -प्रेत -बाधाएं
हटा सकता है ,अपनी सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर सकता है और व्यक्ति का आभामंडल बदल सकता है |हम कुछ पद्धतियों की चर्चा करते हैं |
[१] रेकी
--------- आज रेकी का बड़ा नाम है जिससे ऊर्जा संतुलित की जाती है ,चक्र असंतुलन दूर किया जाता है और नकारात्मक ऊर्जा कम की जाती है ,आभामंडल सुधारा जाता है जिससे कई लाभ होते हैं |कहने को तो इस पद्धति में हर शहर -क्षेत्र में अनेक जानकार हैं पर इसमें केवल बहुत ही उच्च स्तर का सक्षम ही कुछ सुधार कर पाता है जबकि खुद को रेकी का मास्टर कहने वालों की ही दशा ठीक नहीं होती |इसमें एकाग्रता ,आत्मबल ,स्वयं की शुद्धता मुख्य होती है जबकि हाथों और वस्तुओं का प्रयोग उद्देश्य अनुसार
होता है |इससे किसी अभिचार ,तांत्रिक क्रिया
,वायव्य बाधा को नहीं हटाया जा सकता और न ही कोई बड़ा परिवर्तन किया जा सकता है |
[२] सात्विक साधू -सन्यासी
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सामान्य साधू -सन्यासी की मुख्य शक्ति उनका आशीर्वाद और शुभता की कामना होती है जबकि उच्च स्तर के सिद्ध सन्यासी इच्छा और दृष्टि बल से किसी को ऊर्जा ,शक्ति दे सकते हैं ,उसका आभामंडल बदल सकते है ,भाग्य तक बदल सकते हैं किन्तु
इनमे सांसारिकता में कोई रूचि नहीं और यह उसे पीछे छोड़ चुके होते हैं जिससे वह ऐसा करते ही नहीं या किसी में रूचि ही नहीं लेते |इसके बाद इन्हें खोजना ही बहुत कठिन है | सात्विक वैदिक ईष्ट के उपासक सन्यासी सकारात्मक प्रभाव
बढ़ा देते हैं जिससे नकारात्मकता का संतुलन
कम हो जाता है किन्तु
नकारात्मकता हटती नहीं ,हां लाभ अवश्य होता है संतुलन
ठीक होने से |इनमे किसी शक्ति को किसी पर भेजने में रूचि नहीं होती |
[३] ओझा -गुनिया -पंडित -कर्मकांडी -शाबर साधक
----------------------------------------------------------- इनकी मुख्य शक्ति मन्त्र की शक्ति होती है जो यह किसी के लिए जप करते हैं या झाड़ा देते हैं |इनकी आतंरिक
शक्ति उच्च स्तरीय नहीं होती और न ही इनकी कुंडलिनी जाग्रत
होती है |यह भौतिक लिप्साओं में लिप्त और सांसारिक उद्देश्यों के लिए अनुष्ठान -क्रिया करने वाले होते हैं |निश्चित उद्देश्य के संकल्प के साथ मंत्र जप या छोटी क्रियाएं यह करते हैं जिनमे लाभ होगा या नहीं यह उर्जा संतुलन पर निर्भर
करता है |इनकी क्रिया मान्त्रिक अनुष्ठान और पदार्थ
की ऊर्जा पर आधारित होती है तथा स्वयं की शक्ति आधारित
न होने से परिवर्तन होगा ही यह संदिग्ध होता है |यह किसी पर कोई शक्ति किसी टोन -टोटके आदि के माध्यम से भेज सकते हैं किन्तु
वह नकारात्मक शक्ति ही होती है और अक्सर किसी का नुक्सान करने को ही यह क्रियाएं होती हैं जबकि लाभ हेतु की जा रही क्रिया में कोई शक्ति नहीं भेजी जाती अपितु क्रिया
की उर्जा का उपयोग किया जाता है |
[४] योगी -कुंडलिनी जाग्रत सिद्ध -शक्ति सिद्ध
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उद्देश्य परक क्रिया अथवा उर्जा प्रक्षेपण -निष्कासन के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व होते हैं जो नकारात्मक शक्ति -ऊर्जा को हटा भी सकते हैं ,सकारात्मक /धनात्मक ऊर्जा प्रदान भी कर सकते हैं ,चक्र सुधार सकते हैं ,आभामंडल सुधार सकते हैं |यह इच्छा मात्र और दृष्टि
द्वारा दोनों से परिवर्तन कर सकते हैं |किसी भी बाधा को हटा सकते हैं और व्यक्ति में आमूल परिवर्तन यह कर सकते हैं |इनके लिए कुछ भी असंभव नहीं होता बशर्ते
यह रूचि लें और यह मिल जाएँ |इस स्थिति
में आने पर अक्सर यह खुद को व्यक्त
नहीं करते या समाज से दूर रहने का प्रयत्न करते हैं जिससे इनसे सामान्य लोगों को बहुत लाभ नहीं मिल पाता |
[५] नाथ -सिद्ध -अघोर साधक -अघोरी -श्मशान साधक
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इनमे अधिकतर
शाबर मंत्र के साधक होते हैं यद्यपि कुछ मूल तांत्रिक मन्त्रों से भी साधना करते हैं |वास्तविक अघोरी -औघड़ अवस्था
पर पहुंचा
साधक इच्छा से परिवर्तन कर सकता है और उसके लिए किसी क्रिया की आवश्यकता नहीं होती किन्तु इस स्तर पर गिने चुने ही पहुँचते हैं और फिर पहले से ही यह समाज से अलग रहने के कारण और भी दूर हो जाते हैं |सामान्य नाथ -सिद्ध -अघोर परंपरा
में तामसिक
/श्मशानिक शक्तियों की साधना आम है किन्तु अधिकतर आधार शाबर आदि मंत्र होने से एक निश्चित अवस्था तक पहुंचे बिना आतंरिक
शक्ति बहुत प्रबल नहीं होती यद्यपि पृथ्वी की शक्तियां इनके पास होती हैं |यह नकारात्मकता आसानी से हटा देते हैं किन्तु धनात्मक ऊर्जा प्रदान करना ,सकारात्मकता बढाना ,आभामंडल सुधारना ,चक्र संतुलित करना इनमें उच्च अवस्था पर पहुँचने पर ही सम्भव होता है जबकि कुंडलिनी जाग्रत
हो जाय जो बहुत मुश्किल होता है |यह किसी पर कोई शक्ति भेज सकते हैं यहाँ तक की मारण ,वशीकरण आदि क्रियाये इनके लिए आसान होती हैं किन्तु धनात्मक ऊर्जा प्रक्षेपण या शक्ति भेजना इनके लिए मुश्किल होता है चूंकि सकारात्मक शक्तियों की साधना यह कम ही करते हैं |
[६] महाविद्या सिद्ध -दुर्गा सिद्ध -उच्च देव सिद्ध -कुंडलिनी साधक
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सांसारिक लोगों को इनकी ही कृपा सर्वाधिक मिल पाती है चूंकि इनकी आध्यात्मिक यात्रा
बीच में होती है और इन्हें कुछ भौतिक जरूरते भी होती है और इनके सांसारिक -भौतिक -पारिवारिक कर्म भी होते हैं |इनकी समाज को और समाज को इनकी जरूरत होती है |इनके द्वारा किया गया कार्य निश्चित सफलता देता है |इस स्तर पर इच्छा मात्र से थोड़े परिवर्तन तो होते हैं किन्तु बड़े परिवर्तन के लिए इन्हें भी एकाग्र
हो क्रिया
करनी होती है |यह नाकारात्मक अथवा सकारात्मक दोनों ही प्रकार की उर्जाओं या शक्तियों को किसी पर या कहीं भेज सकते हैं तथा यह स्वयं की ऊर्जा का भी प्रक्षेपण कर सकते हैं |हमारा विषय सभी विषयों पर विश्लेषण करना नहीं है अपितु मात्र नकारात्मकता से सम्बन्धित है अतः हम इसे ही थोडा विश्लेषित करने का प्रयत्न करते हैं |चूंकि हम स्वयं इस मार्ग पर हैं अतः इसकी तकनीक हमें मालूम है जिस पर पूर्ण प्रकाश तो हम नहीं डालेंगे क्योंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है पर थोडा इसे विस्तार से समझायेंगे अपने अगले अंक - कैसे नकारात्मकता हटाते हैं तंत्र -कुंडलिनी साधक में |
.........................................................हर हर महादेव
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