कैसे काम करते हैं टोने -टोटके -गंडे और
ताबीज
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यह ब्रह्माण्ड अपने
विशिष्ट और शाश्वत नियमों से संचालित होता है जिसे प्रकृति के नियम कहते है |इन्ही नियमों के अन्वेषण के आधार पर आधुनिक भौतिक विज्ञानं के चमत्कारिक समझे जाने वाले आविष्कारो का संसार खड़ा है |इन्ही नियमों को
जानकर वैज्ञानिक उन पर अनुसंधान करके नए नए आविष्कार करते हैं |सभी की एक निश्चित कार्यप्रणाली होती है |जिन कार्य या घटनाओ या प्रभाव के कारणों और नियमों का हमें ज्ञान होता है वे सामान्य और तर्कसंगत लगती है ,पर जिन नियमों का ज्ञान हमें नहीं होता उनके कारण होने वाली घटनाओ को हम चमत्कार मान लेते है |जब तक घोड़े पर चलते थे
मामूली समझी जाने वाली आज की सायकिल भी चमत्कार थी जो बिना किसी अन्य के सहारे खुद
हम चला सकते हैं |पेट्रोल की उपयोगिता नहीं पता थी मोटरसायकिल के बारे में नहीं
सोच सकते थे |अब इनकी कार्यविधि पता है तो सामान्य बातें हैं ,पर अभी भी जिन चीजों
या यंत्रों की कार्यप्रणाली नहीं मालूम वह हमारे लिए चमत्कार हो जाती हैं |
, ,,,तंत्र-मन्त्र
,टोने-टोटके ,ताबीज ,यंत्र ,और अनुष्ठान आदि की शक्ति भी प्रकृति की शक्ति से और नियमों
से काम करती है |वास्तव में तंत्र-मन्त्र ,योग ,पूजा ,अनुष्ठान ,यज्ञ ,यंत्र ,टोने-टोटके ,ताबीज आदि में एक बृहद उर्जा विज्ञानं काम करता है ,जो ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना ,क्रिया ,तरंगों ,उनसे निर्मित भौतिक इकाइयों की उर्जा संरचना का विज्ञानं है | ,,,इस उर्जा संरचना
को ही तंत्र कहा जाता है |इसकी तकनीक प्रकृति की स्वाभाविक तकनीक है ,,,यही तकनीक तंत्र ,योग ,सिद्धि
,साधना में प्रयुक्त की जाती है ,,,प्रायोगिक स्वरुप भिन्न होता है |तन्त्र -मंत्र -यन्त्र -टोन
-टोटके सब कुछ इन्ही ब्रह्माण्ड के नियम और प्रकृति के नियम पर ही काम करते हैं |जैसे
आप रेडियो के आविष्कार के पूर्व उसे अचानक सुनने पर चमत्कार माने |टेलीविजन पर
चित्र अपने से उभारना और समझ न आना की कैसे हो रहा चमत्कार जैसा है |ऐसा ही कुछ
तन्त्र-टोन-टोटकों में भी होता है |सारा खेल ऊर्जा के
परिवर्तन और उसके स्थानान्तरण का है |तांत्रिक इसे समझता है ,[पूरा तो जानना उसके
लिए भी मुश्किल है ]मंत्र -पदार्थ की
ऊर्जा का भिन्न विशिष्ट संयोग और स्थानान्त्र्ण ही tantra-टोन-टोटकों के पीछे भी काम करते हैं |
. टोने-टोटके-ताबीज में प्राणी के शारीर और प्रकृति की उर्जा संरचना ही कार्य करती है | ,इनका मुख्य आधार मानसिक शक्ति का केंद्रीकरण और भावना होता है ,|,,,प्रकृति में उपस्थित वनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जा परिपथ कार्य करता है |,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है और
ऊर्जा भिन्न रूप में बनी रहती है | ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे
ली जाती है और निष्कासित की जाती है | जब किसी वास्तु या पदार्थ
पर मानसिक
शक्ति और भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्ट क्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों का उत्सर्जन होने लगता है ,,|यह कुछ वैसा ही होता है जैसे सामने बैठे
व्यक्ति को आदेश देना अथवा दृष्टि से वस्तुओं को हिलाना |,,जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिए किया जाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है ,|उदहारण के लिए यदि किसी के बाल जलाये जाये तो उससे उत्पान्न तरंग का ग्रहणकर्ता वही व्यक्ति होगा जिसके वह बाल होंगे ,क्योकि उसी की ऊर्जा और शरीर के अनुकूल वह
बाल होंगे |,
सामान्यतया यह महसूस नहीं होता ,किन्तु
वही बाल यदि तीब्र मानसिक
शक्ति वाला व्यक्ति बुरी भावना के साथ विशिष्ट क्रियाए करके जला दे तो बालो से उत्पन्न तरंगे प्राप्तकर्ता की उर्जा परिपथ की प्रकृति ही बदल देगे |,,वह रुग्ण ,मानसिक रूप से क्षुब्ध ,अवसाद ग्रस्त हो जायेगा | जैसे किसी अच्छे खासे चलते हुए मशीन में कचरा
डाल दिया जाए |इस तरह वह मशीन भी खराब हो जायेगी और उसकी कार्यप्रणाली भी ,कुछ ऐसा
ही बुरी भावना के प्रक्षेपण से हो जाता है |मानसिक विकृति पहले उसके बॉस शारीरिक
विकृति उससे उत्पन्न हो सकती है |इसी प्रकार कोई पदार्थ अच्छी भावना से मानसिक शक्ति केंद्रित करके विशिष्ट क्रिया करके दी जाये तो प्राप्तकर्ता की उर्जा परिपथ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
और उसे लाभ होता है |सभी जगह उर्जा ही कार्य करती है |मानसिक
शक्तियों द्वारा
उन्हें परिवर्तित अवश्य किया जा सकता है
.यही सब प्रकृति की नियम पर आधारित
तकनीक ही ताबीज बनाने में भी उपयोग होती है | ताबीज बनाने वाला जब अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्ट के अनुसार भाव को प्राप्त होता है अर्थात उसका ईष्ट की ऊर्जा से सामंजस्य बैठता है | ,,भाव गहन है तो मानसिक
शक्ति एकाग्र
होती है ,जिससे वह शक्तिशाली होती है ,यह शक्तिशाली हुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक
तंत्र शक्तिशाली होता है और शक्तिशाली तरंगे उत्सर्जित करता है |ये शक्तिशाली तरंगे ईष्ट को आकर्षित कर उसकी ऊर्जा से
संतृप्त करने लगती हैं साधक को और यह साधक के मानसिक बल के अनुसार काम करने लगती
हैं तथा स्थिर होने लगती हैं |ऐसा व्यक्ति यदि किसी विशेष समय,ऋतू-मॉस में विशेष तरीके से ,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र से उसे सिद्ध करता है तो वह ताबीज धारक व्यक्ति को अच्छे-बुरे भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |
यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति को उनका प्रभाव दिखाई देता है |इसमें प्रयुक्त पदार्थ
की ऊर्जा ,मॉस-ऋतू की ऊर्जा की विशेषता ,तिथि के अनुसार
ग्रहों की विशेषता ,साधक की ऊर्जा ,विशिष्ट मन्त्र और यन्त्र की ऊर्जा एक साथ
मिलकर साधक के मानसिक बल से संयुक्त हो जाती हैं और अभिमंत्रित करते ही वह वस्तु
विशेष में स्थिर हो जाती हैं |इससे तरंगों का उत्सर्जन होता रहता है जो धारण करने
वाले के मष्तिष्क ,वातावरण ,शरीर ,ऊर्जा परिपथ को प्रभावित करता है और कुछ सामय
में अनुकूल रासायनिक परिवर्तन भी होने लगता है जिससे व्यक्ति की सोच ,क्रिया कलाप ,सब
बदल जाते हैं ,औरा बदल जाती है ,वातावरण में जहाँ वह रहता है तदनुरूप परिवर्तन हो
सकते हैं |यह सामान्य क्रिया प्रणाली है |उच्च साधक और सिद्ध के लिए मानसिक बल और
इच्छा ही पर्याप्त होती है ,,ऋतू-मॉस-मुहूर्त-पदार्थ तक का महत्त्व नहीं रहा जाता ,,,वह जिस
भी वस्तु को अभिमंत्रित कर दे वाही ताबीज और सिद्द हो जाती है |..................
...............................................हर-हर महादेव
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