Friday, 31 May 2019

क्या राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था ?कौन थी राधा ?


कौन थी राधा ?,क्या राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था ?
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        हम में से बहुत से लोग यही जानते हैं कि राधाजी श्रीकृष्ण की प्रेयसी थीं परन्तु इनका विवाह नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित "गर्ग संहितामें यह वर्णन है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। एक बार नन्द बाबा कृष्ण जी को गोद में लिए हुए गाएं चरा रहे थे। गाएं चराते-चराते वे वन में काफी आगे निकल आए। अचानक बादल गरजने लगे और आंधी चलने लगी। नन्द बाबा ने देखा कि सुन्दर वस्त्र आभूषणों से सजी राधा जी प्रकट हुई। नन्द बाबा ने राधा जी को प्रणाम किया और कहा कि वे जानते हैं कि उनकी गोद मे साक्षात श्रीहरि हैं और उन्हें गर्ग जी ने यह रहस्य बता दिया था। भगवान कृष्ण को राधाजी को सौंप कर नन्द बाबा चले गए। तब भगवान कृष्ण युवा रूप में  गए। वहां एक विवाह मण्डप बना और विवाह की सारी सामग्री सुसज्जित रूप में वहां थी। भगवान कृष्ण राधाजी के साथ उस मण्डप में सुंदर सिंहासन पर विराजमान हुए। तभी वहां ब्रम्हा जी प्रकट हुए और भगवान कृष्ण का गुणगान करने के बाद कहा कि वे ही उन दोनों का पाणिग्रहण संस्कार संपन्न कराएंगे। ब्रम्हा जी ने वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह कराया और दक्षिणा में भगवान से उनके चरणों की भंक्ति मांगी। विवाह संपन्न कराने के बाद ब्रम्हा जी लौट गए।
          नवविवाहित युगल ने हंसते खेलते कुछ समय यमुना के तट पर बिताया। अचानक भगवान कृष्ण फिर से शिशु रूप में  गए। राधाजी का मन तो नहीं भरा था पर वे जानती थीं कि श्री हरि भगवान की लीलाएं अद्भुत हैं। वे शिशु रूपधारी श्री कृष्ण को लेकर माता यशोदा के पास गई और कहा कि रास्ते में नन्द बाबा ने उन्हें बालक कृष्ण को उन्हें देने को कहा था। राधा जी उम्र में श्रीकृष्ण से बडी थीं। यदि राधा-कृष्ण की मिलन स्थली की भौगोलिक पृष्ठभूमि देखें तो नन्द गांव से बरसाना 7 किमी है तथा वह वन जहाँ ये गायें चराने जाते थे नंद गांव और बरसाना के ठीक मघ्य में है। भारतीय वाङग्मय के अघ्ययन से प्रकट होता है कि राधा प्रेम का प्रतीक थीं और कृष्ण और राधा के बीच दैहिक संबंधों की कोई भी अवधारणा शास्त्रों में नहीं है। इसलिए इस प्रेम को दिव्य प्रेम की श्रेणी में रखते हैं। इसलिए कृष्ण के साथ सदा राधाजी को ही प्रतिष्ठा मिली।
            राधा तंत्र के अनुसार राधा जी ,आदि महामाया त्रिपुरसुन्दरी श्री विद्या जी की दूती पद्मिनी माया की अंशावतार थी |चैत्र शुक्ल पुष्य युक्त नवमी को पद्मिनी जी ने कालिंदी जल में कमलपुष्प पर डिम्भ रूप में अवतार लिया था |यमुनातीर पर सतत तपस्यारत वृषभानु को भगवती कात्यायनी ने स्वयं उनके समान एक कन्या प्रदान करने का वर दिया और वह डिम्भ वृषभानु को सौंप दिया |वृषभानु ने वह डिम्भ अपनी पत्नी किर्तिदा को दिया और तब वह महा प्रकाशमान डिम्भ दो भागों में विभक्त हो गया |एक भाग से कृष्ण मोहिनी कन्या प्रकट होकर किर्तिदा से स्तनपान की इच्छा व्यक्त की |दुसरे बाग़ ने किर्तिदा के गर्भ में पल रहे भ्रूण में प्रवेश कर लिया |प्रथम भाग की पद्मिनी राधा वर्ष की अवस्था में स्तनपान छोड़ गृहत्याग कर वन में महाकाली साधना करने चली गयी| यह राधा अयोनिजा है जो कृष्ण के योग ,शक्ति ,साधना की सहचरी बनती है आगे चलकर |दूसरी राधा किर्तिदा से जन्म लेकर लौकिक स्वरुप में रहती है कृष्ण के साथ |इस राधा का जन्म दिवस भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है |यह राधा योनिजा है | वर्ष की आयु में योनिजा और गर्भ से उत्पन्न राधा का विवाह हुआ |
     कृष्ण ने जब कात्यायनी को प्रसन्न किया तो कात्यायनी ने प्रकट होकर कहा की - हे कृष्ण मेरी अंगभूता पद्मिनी ,वृन्दावन में राधा रूप में आविर्भूत है ,तुम उसका संग करो |जब कृष्ण ने कात्यायनी से पद्मिनी के दर्शन की इच्छा प्रकट की तब पद्मिनी सहस्त्रदल कमल में अपनी सहचरियों के साथ पराकात हुई और कृष्ण से कहा -हे कृष्ण आप ब्रज में जाएँ वहां मैं आपके साथ कुलाचार से साधना करुँगी |यह पद्मिनी अयोनिजा राधा है |जो वर्ष की आयु से व्रज वन में सिद्धि प्राप्ति और कृष्ण को पति रूप पाने के लिए काली के मन्त्रों से साधना कर रही है |यह पद्मिनी कात्यायनी के वाम भाग में सिंह पर सवार होकर विराजित है |त्रिपुरसुन्दरी की दूती और कात्यायनी की शक्ति पद्मिनी ने अपने आप को कृष्ण मोहिनी राधा शक्ति में समिष्ट किया और कृष्ण के साथ साधना में उनकी सहयोगिनी बन उन्हें उनके लक्ष्यों तक पहुंचाया |दूसरी राधा जो योनिजा है लोग उसे ही मात्र कृष्ण की राधा मानते रहे ,जबकि वह मात्र माया रुपी शक्ति लौकिक दर्शन के लिए होती है |उसका विवाह किसी अन्य से होता है | ...[हमारे blog -Tantra Marg से ]..............................................हर-हर महादेव

ताबीज /यन्त्र /जंतर की शक्ति का रहस्य


ताबीज /यन्त्र /जंतर का रहस्यमय संसार
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  हम बहुत से लोगों को देखते हैं की वह गले में अथवा बाजू में ताबीज /जन्तर पहले होते हैं |कुछ लोग लाकेट पहनते हैं तो कुछ स्मृति चिन्ह |इनके धारण का मनोवैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही महत्त्व होता है |सामान्य लाकेट /स्मृति चिन्ह या देवी देवताओं के चित्र आदि धारण करने से मनोवैज्ञानिक बल मिलता है ,व्यक्ति महसूस करता है की अमुक देवता या शक्ति उसके साथ है जिससे उसका मानसिक बल और आत्मविश्वास बढ़ जाता है और लाभ होता है |बाजार से लिए गए अथवा कहीं से मंगाए गए धातु यंत्रों पर भी यही विज्ञान लागू होता है ,जबकि ताबीजों का विज्ञान बिलकुल अलग होता है |ताबीज आदि के निर्माण में एक वृहद् ऊर्जा वज्ञान काम करता है ,जिसे प्रकृति का विज्ञानं कहा जाता है |यह मूल ब्रह्मांडीय विज्ञान है जिसे हमारे ऋषि मुनि जानते थे और मानव की भलाई के लिए इसे उपयोगी बनाया |यह प्रक्रिया लगभग सभी धर्मों में किसी किसी रूप में प्रचलित रही है |यह सिद्ध व्यक्ति की साधना से प्राप्त ऊर्जा का किसी अन्य व्यक्ति के लिए उपयोग का माध्यम है |
ताबीजों का निर्माण तरंगों के विज्ञानं पर आधारित क्रिया होती है जिसमे ,एक विशिष्ट क्रिया ,विशिष्ट पद्धति और विशिष्ट समय में विशिष्ट वस्तुओं के संयोग से विशिष्ट व्यक्ति द्वारा निर्मित ताबीज और यंत्र में एक विशिष्ट शक्ति का समावेश हो जाता है ,जो किसी भी सामान्य व्यक्ति को चमत्कारिक रूप से प्रभावित करती है जिससे उसके कर्म ,स्वभाव ,सोच ,व्यवहार ,ग्रहों के प्रति संवेदनशीलता ,प्रारब्ध ,शारीरिक रासायनिक क्रिया सब कुछ प्रभावित होने लगता है ,जिससे उसके आगामी भविष्य पर प्रभाव पड़ता है |
ताबीज  में प्राणी के शरीर और प्रकृति की उर्जा संरचना ही कार्य करती है ,,इनका मुख्य आधार मानसिक शक्ति का केंद्रीकरण और भावना के साथ विशिष्ट वस्तुओं-पदार्थों-समय का तालमेल होता हैप्रकृति में उपस्थित वनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जा परिपथ कार्य करता है ,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है और निकलती रहती हैं ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे स्वीकार की जाती है और निष्कासित की जाती है |
जब किसी वस्तु या पदार्थ पर मानसिक शक्ति और भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्ट क्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों का उत्सर्जन होने लगता है |जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिए किया जाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है ,|उदहारण के लिए ,,,किसी व्यक्ति को व्यापार वृद्धि के लिए कुछ बनाना है ,तो इसके लिए इससे सम्बंधित वस्तुएं अथवा यन्त्र विशिष्ट समय में विशिष्ट तरीके से निकालकार अथवा निर्मित करके जब कोई उच्च स्तर का साधक अपने मानसिक शक्ति के द्वारा उच्च शक्तियों के आह्वान के साथ जब प्राण प्रतिष्ठा और अभिमन्त्रण करता है तो वस्तुगत उर्जा -यंत्रगत उर्जा के साथ साधक की मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का ऐसा अद्भुत संयोग बनता है की निर्मित ताबीज से तीब्र तरंगें निकालने लगती हैं |,इन्हें जब सम्बंधित धारक को धारण कराया जाता है तो यह ताबीज उसके सम्बन्धित चक्र को स्पंदित करने लगता है |,दैवीय प्रकृति की शक्ति आकर्षित हो धारक से जुड़ने लगती है और उसकी सहायता करने लगती है |
        इन शक्तियों के जुड़ने के साथ ही धनात्मक ऊर्जा संचार बढ़ जाता है और ऋणात्मक ऊर्जा का घेरा हटने लगता है जिससे अनावश्यक विघ्न बाधाएं हटने लगती है |,साथ ही मन और मष्तिष्क  भी प्रभावित होने लगता है ,जिससे उसके निर्णय लेने की क्षमता ,शारीरिक कार्यप्रणाली ,दैनिक क्रिया कलाप बदल जाते है |उसके प्रभा मंडल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है ,जिससे उसकी आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है ,बात-चीत का ढंग बदल जाता है ,सोचने की दिशा परिवर्तित हो जाती है ,कर्म बदलते हैं ,|,प्रकृति और वातावरण में एक सकारात्मक बदलाव आता है और व्यक्ति को लाभ होने लगता है,, |यह एक उदाहरण है ,ऐसा ही हर प्रकार के व्यक्ति के लिए हो सकता है उसकी जरुरत और कार्य के अनुसार ,|यहाँ यह अवश्य ध्यान देने योग्य होता है की यह सब तभी संभव होता है जब वास्तव में साधक उच्च स्तर का हो ,उसके द्वारा निर्मित ताबीज खुद उसके हाथ द्वारा निर्मित हो |,सही समय और सही वस्तुओं से समस्त निर्माण हो ,|ऐसा होने पर अपेक्षित लाभ नहीं हो पाता |ताबीज और यन्त्र तो बाजार में भी मिलते है और आजकल तो इनकी फैक्टरियां सी लगी हैं ,जो प्रचार के बल पर बेचीं जा रही हैं |,कितना लाभ किसको होता है यह तो धारक ही जानता है |
       ताबीज बनाने वाले साधक की शक्ति बहुत मायने इसलिए रखती है की जब वह अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्ट के अनुसार भाव को प्राप्त होता है ,|,भाव गहन है तो मानसिक शक्ति एकाग्र होती है ,जिससे वह शक्तिशाली होती है |यह शक्तिशाली हुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक तंत्र शक्तिशाली होता है और शक्तिशाली तरंगे उत्सर्जित करता है |ऐसा व्यक्ति यदि किसी विशेष समय,ऋतू-मॉस में विशेष तरीके से ,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र से उसे सिद्ध करता है तो वह ताबीज धारक व्यक्ति को उस भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति को उनका प्रभाव दिखाई देता हैयह ताबीजें इतनी शक्तिशाली होती हैं की व्यक्ति का प्रारब्ध तक प्रभावित होने लगता है |अचानक आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगते हैं |
आपने अनेक कहानियाँ सुनी होंगी की अमुक चीज अमुक साधू ने दिया और ऐसा हो गया |अथवा यह सुना होगा की अमुक तांत्रिक ने अमुक छीजें कुछ बुदबुदाकर फेंकी और व्यक्ति को लाभ होने लगा |यह बहुत छोटे उदाहरण हैं |जिस तरह साधना से ईश्वरीय ऊर्जा आती है उसी तरह यह मानसिक एकाग्रता से वस्तु और यन्त्र में स्थापित भी होती है |तभी तो मूर्तियाँ और यन्त्र प्रभावी होते हैं |यही यन्त्र ताबीजों में भरे जाते हैं और प्रभाव देते हैं |यह किसी  यन्त्र विशेष का प्रचार नहीं अपितु वैज्ञानिक विश्लेष्ण का प्रयास है और हमने इसे बहुत सत्य पाया है |यही कारण है की हम अपने सभी अनुष्ठानों में भोजपत्र पर यंत्र अवश्य बनाते हैं और साधना समाप्ति पर उन्हें धारण करते भी हैं और कराते भी हैं |यह धारण मात्र से साधना जैसा प्रभाव देते हैं |चूंकि हम खुद तंत्र साधक हैं और इनका गहन अनुभव हमें रहा है अतः यह जानकारी हमारे पेज और ब्लागों के पाठकों के लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे उन्हें वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके |
उच्च स्तर के सिद्ध साधक यदि प्रसन्न हो जाएँ तो वह किसी भी वस्तु में ,धागे में यहाँ तक की कंकड़ पत्थर में भी प्राण फूंक कर दे देते हैं और वह लेते ही या धारण करते ही व्यक्ति का भाग्य तक प्रभावित होने लगता है ,स्थितियां बदलना तो मामूली सी बात है |परन्तु ऐसे साधक मात्र प्रसन्न होंने पर ही ऐसा करते हैं ,इन्हें खोजा नहीं जा सकता ,ना ही इन्हें अनुरोध करके इस प्रकार का कुछ प्राप्त किया जा सकता है |इनका मिलना भी काफी कुछ सौभाग्य की ही बात होती है |जब भाग्य बनना होता तभी यह मिलते हैं |ऐसे में जब भाग्य विपरीत हो तब अच्छे स्तर के साधक या महाविद्या के साधक से संपर्क कर ,उनका उचित पारिश्रमिक प्रदान कर अपनी आवश्यकता के अनुसार सम्बंधित महाविद्या या शक्ति का कवच /ताबीज प्राप्त करना ही श्र्यास्कर होता है |भाग्य विपरीत होने पर भी इन ताबीज /कवच का प्रभाव अद्वितीय होता है और भाग्य की प्रतिकूलता को नियंत्रित कर चक्र विशेष की क्रियाशीलता बढ़ा व्यक्ति का भाग्य परिवर्तित करने की क्षमता रखती हैं |चक्र क्रियाशीलता ,आभामंडल ,रासायनिक क्रियाएं ,सोच ,क्रियाकलाप ,कर्म बदलने से भविष्य बदलने लगता है और भाग्य में भी बदलाव आने लगता है |.............................................................हर-हर महादेव

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...