कौन थी राधा ?,क्या राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था ?
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हम में से बहुत से लोग यही जानते हैं कि राधाजी श्रीकृष्ण की प्रेयसी थीं परन्तु इनका विवाह नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित "गर्ग संहिता" में यह वर्णन है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। एक बार नन्द बाबा कृष्ण जी को गोद में लिए हुए गाएं चरा रहे थे। गाएं चराते-चराते वे वन में काफी आगे निकल आए। अचानक बादल गरजने लगे और आंधी चलने लगी। नन्द बाबा ने देखा कि सुन्दर वस्त्र आभूषणों से सजी राधा जी प्रकट हुई। नन्द बाबा ने राधा जी को प्रणाम किया और कहा कि वे जानते हैं कि उनकी गोद मे साक्षात श्रीहरि हैं और उन्हें गर्ग जी ने यह रहस्य बता दिया था। भगवान कृष्ण को राधाजी को सौंप कर नन्द बाबा चले गए। तब भगवान कृष्ण युवा रूप में आ गए। वहां एक विवाह मण्डप बना और विवाह की सारी सामग्री सुसज्जित रूप में वहां थी। भगवान कृष्ण राधाजी के साथ उस मण्डप में सुंदर सिंहासन पर विराजमान हुए। तभी वहां ब्रम्हा जी प्रकट हुए और भगवान कृष्ण का गुणगान करने के बाद कहा कि वे ही उन दोनों का पाणिग्रहण संस्कार संपन्न कराएंगे। ब्रम्हा जी ने वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह कराया और दक्षिणा में भगवान से उनके चरणों की भंक्ति मांगी। विवाह संपन्न कराने के बाद ब्रम्हा जी लौट गए।
नवविवाहित युगल ने हंसते खेलते कुछ समय यमुना के तट पर बिताया। अचानक भगवान कृष्ण फिर से शिशु रूप में आ गए। राधाजी का मन तो नहीं भरा था पर वे जानती थीं कि श्री हरि भगवान की लीलाएं अद्भुत हैं। वे शिशु रूपधारी श्री कृष्ण को लेकर माता यशोदा के पास गई और कहा कि रास्ते में नन्द बाबा ने उन्हें बालक कृष्ण को उन्हें देने को कहा था। राधा जी उम्र में श्रीकृष्ण से बडी थीं। यदि राधा-कृष्ण की मिलन स्थली की भौगोलिक पृष्ठभूमि देखें तो नन्द गांव से बरसाना 7 किमी है तथा वह वन जहाँ ये गायें चराने जाते थे नंद गांव और बरसाना के ठीक मघ्य में है। भारतीय वाङग्मय के अघ्ययन से प्रकट होता है कि राधा प्रेम का प्रतीक थीं और कृष्ण और राधा के बीच दैहिक संबंधों की कोई भी अवधारणा शास्त्रों में नहीं है। इसलिए इस प्रेम को दिव्य प्रेम की श्रेणी में रखते हैं। इसलिए कृष्ण के साथ सदा राधाजी को ही प्रतिष्ठा मिली।
राधा तंत्र के अनुसार राधा जी ,आदि महामाया त्रिपुरसुन्दरी श्री विद्या जी की दूती पद्मिनी माया की अंशावतार थी |चैत्र शुक्ल पुष्य युक्त नवमी को पद्मिनी जी ने कालिंदी जल में कमलपुष्प पर डिम्भ रूप में अवतार लिया था |यमुनातीर पर सतत तपस्यारत वृषभानु को भगवती कात्यायनी ने स्वयं उनके समान एक कन्या प्रदान करने का वर दिया और वह डिम्भ वृषभानु को सौंप दिया |वृषभानु ने वह डिम्भ अपनी पत्नी किर्तिदा को दिया और तब वह महा प्रकाशमान डिम्भ दो भागों में विभक्त हो गया |एक भाग से कृष्ण मोहिनी कन्या प्रकट होकर किर्तिदा से स्तनपान की इच्छा व्यक्त की |दुसरे बाग़ ने किर्तिदा के गर्भ में पल रहे भ्रूण में प्रवेश कर लिया |प्रथम भाग की पद्मिनी राधा २ वर्ष की अवस्था
में स्तनपान छोड़ गृहत्याग कर वन में महाकाली साधना करने चली गयी|
यह राधा अयोनिजा है जो कृष्ण के योग ,शक्ति ,साधना की सहचरी बनती है आगे चलकर |दूसरी राधा किर्तिदा से जन्म लेकर लौकिक स्वरुप में रहती है कृष्ण के साथ |इस राधा का जन्म दिवस भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
को मनाया जाता है |यह राधा योनिजा है |५ वर्ष की आयु में योनिजा और गर्भ से उत्पन्न राधा का विवाह हुआ |
कृष्ण ने जब कात्यायनी को प्रसन्न किया तो कात्यायनी ने प्रकट होकर कहा की - हे कृष्ण मेरी अंगभूता पद्मिनी ,वृन्दावन में राधा रूप में आविर्भूत है ,तुम उसका संग करो |जब कृष्ण ने कात्यायनी से पद्मिनी के दर्शन की इच्छा प्रकट की तब पद्मिनी सहस्त्रदल कमल में अपनी सहचरियों के साथ पराकात हुई और कृष्ण से कहा -हे कृष्ण आप ब्रज में जाएँ वहां मैं आपके साथ कुलाचार से साधना करुँगी |यह पद्मिनी अयोनिजा राधा है |जो २ वर्ष की आयु से व्रज वन में सिद्धि
प्राप्ति और कृष्ण को पति रूप पाने के लिए काली के मन्त्रों से साधना कर रही है |यह पद्मिनी कात्यायनी के वाम भाग में सिंह पर सवार होकर विराजित है |त्रिपुरसुन्दरी की दूती और कात्यायनी की शक्ति पद्मिनी ने अपने आप को कृष्ण मोहिनी राधा शक्ति में समिष्ट
किया और कृष्ण के साथ साधना में उनकी सहयोगिनी बन उन्हें
उनके लक्ष्यों तक पहुंचाया |दूसरी राधा जो योनिजा है लोग उसे ही मात्र कृष्ण की राधा मानते रहे ,जबकि वह मात्र माया रुपी शक्ति लौकिक दर्शन के लिए होती है |उसका विवाह किसी अन्य से होता है | ...[हमारे blog -Tantra Marg से ]..............................................हर-हर महादेव