Tuesday 28 May 2019

शारीरिक सम्बन्ध जीवन भर की हानि दे सकता है


शारीरिक सम्बन्ध जीवन भर की हानि भी दे सकता है और मुक्ति भी बिगाड़ सकता है
=================================================
           देखने समझने में मामूली सा लगने वाला आपसी शारीरिक सम्बन्ध पूरे जीवन अपना अच्छा अथवा बुरा प्रभाव डालता ही रहता है ,भले एक बार ही किसी से शारीरिक सम्बन्ध क्यों  बने हों यह मात्र लिंगयोनी का सम्बन्ध और आपसी घर्षण से उत्पन्न आनंद ही नहीं होता ,अपितु यह दो ऊर्जा संरचनाओं ,ऊर्जा धाराओं के बीच की आपसी प्रतिक्रया भी होती है ,दो चक्रों की उर्जाओं का आपसी सम्बन्ध भी होता है |बहुत लोग असहमत हो सकते हैं ,बहुत लोगों को मालूम नहीं हो सकता ,बहुत लोगों ने कभी सोचा ही नहीं होगा किन्तु यह अकाट्य सत्य है की यह आपसी सम्बन्ध ऊर्जा स्थानान्तरण करते हैं एक से दुसरे में ,यहाँ तक की बाद में भी इनमे ऊर्जा स्थानान्तरण होता रहता है ,बिना सम्बन्ध के भी | इसकी एक तकनिकी है ,इसका एक रहस्यहै ,जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा धारा से सम्बंधित है |इसे हमारे ऋषि मुनि जानते थे ,इसीलिए उन्होंने कईयों से शारीरिक सम्बन्ध रखने की वर्जना की ,भिन्न जातियों ,भिन्न लोगों से सम्बन्ध रखने को मना किया |
           हिन्दू धर्म सहित कई धर्मो में पत्नी को अर्धांगिनी माना जाता है ,क्यों जबकि वह खून के रिश्ते में भी नहीं होती ,इसलिए ,क्योकि वह आधा हिस्सा [ऋणात्मकहोती है जो पति [धनात्मकसे मिलकर पूर्णता प्रदान करती है | इसका मूल कारण इनका आपसी शारीरिक सम्बन्ध ही होता है ,अन्यथा वैवाहिक व्यवस्था तो एककृत्रिम सामाजिक व्यवस्था है सामाजिक उश्रृंखलता रोकने का ,और यह सभी धर्मों में समान भी नहीं है |  वैवाहिक विधियाँ ही समान है , परम्पराएं समान हैं |मन्त्रों से अथवा परम्पराओंरीतीरिवाजों से रिश्ते नहीं बनते और  ही वह अर्धांगिनी बनती है | यही वह सूत्र है जिसके बल पर उसे पति के पुण्य का आधा फल प्राप्त होता है और पति को उसकेपुण्य का | वह सभी धर्मकर्म ,पापपुण्य की भागीदार होती है ,इसलिए उसे अर्धांगिनी कहा जाता है |पत्नी के अर्धांगिनी होने का मूल कारण शारीरिक सम्बन्ध ही है |होता यह है की जब आपमें कामुकता अथवा उत्तेजना जाग्रत होती है तब आपका मूलाधार बहुत तीव्र क्रिया करता है और उससे तरंगों का उत्सर्जन बढ़ता है |दोनों में ऐसा होता है |शारीरिक संयोग की स्थिति में आपसी शारीरिक घर्षण से अलग एक अन्य क्रिया भी होती है जो दो मूलाधारों के बीच तरंगों और उर्जाओं के आदान प्रदान के रूप में होती है |यहाँ दोनों के बीच ऊर्जा विनिमय होता है जो सूक्ष्म शरीर से सम्बन्धित चक्र से जुड़ा होता है |एक बार यह जुड़ाव हो जाने पर कभी पूर्ण रूप से नहीं टूटता और इनमे कम या अधिक उर्जा का आदान प्रदान होता रहता है | यही वह जुड़ाव है जो पत्नी को अथवा पति को उसके ऊर्जा का आधा प्रदान कर देता है स्वयमेव चाहे बाद में सम्बन्ध बने या बने |
                  सोचने वाली बात है कि ,जब पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध रखने मात्र से उसे आपका आधा पाप पुण्य मिल जाता है ,तो जिस अन्य स्त्री या पुरुष से आप सम्बन्ध रखेंगे ,क्या उसे आपका पापपुण्य ,धर्म कर्म नहीं मिलेगा | जरुर मिलेगा इसका सूत्र और तकनिकी होता है | यह सब ऊर्जा का स्थानान्तरण है ,यह ऊर्जा का आपसी रति है ,यह उर्जाओं का आपसी सम्बन्ध है ,जो मूलाधार से सबन्धित होकर आपसी आदानप्रदान का माध्यम बन जाता है | यह भी भ्रम नहीं होना चाहिए की एक बार के सम्बन्ध से कुछ नहीं होता | एक बार का सम्बन्ध जीवन भर ऊर्जा स्थानान्तरण करता है ,भले उसकी मात्रा कम हो ,किन्तु होगी जरुर | भले आप किसी वेश्या या पतित से सम्बन्ध बनाएं किन्तु तब भी ऊर्जा का स्थानान्तरण होगा | आपमें सकारात्मक ऊर्जा है तो वह उसकी तरफ और उसमे नकारात्मक ऊर्जा है तो आपकी तरफ आएगी भी और आपको प्रभावित भी करेगी | यह तत्काल समझ में नहीं आता ,क्योकि आपमें नकारात्मकता या सकारात्मकता अधिक होसकती है जो क्रमशः विपरीत उर्जा आने से क्षरित होती है | अगर नकारात्मकता और सकारात्मकता का संतुलन बराबर है और आपने किसी नकारामक ऊर्जा से ग्रस्त व्यक्ति से सम्बन्ध बना लिए तो आने वाली नकारात्मकता आपमें अधिक हो जायेगी और आपका संतुलन बिगड़ जाएगा ,फलतः आप कष्ट उठाने लगेंगे,,फिर भी चूंकि आपको इस रहस्य का पता नहीं है इसलिए आप इस कारण को  जान पायेंगे और  मानेंगे |किन्तु होता ऐसा ही है |
                  जब आप किसी से शारीरिक सम्बन्ध को उत्सुक होते हैं [भले वह काल गर्ल ही क्यों  हो या व्यावसायिक रूपसे सेक्स सेवा देने वाला पुरुष ही क्यों  हो ],तब आपने कामुकता जागती है और आपका मूलाधार अधिकसक्रिय हो अधिक तरंगें उत्पादित करता है | जब आप उस व्यक्ति या स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध बना रहे होते हैं तो आपके ऊर्जा चक्र और ऊर्जा धाराओं का सम्बन्ध उसकी ऊर्जा धाराओं और चक्रों से हो जाता है ,क्योकिप्रकृति का प्रत्येक जीव एक आभामंडल से युक्त होता है जिसका सम्बन्ध चक्रों से होता है | आपसी समबन्ध में यह सम्बन्ध बनने से दोनों शरीरों में उपस्थित धनात्मक अथवा रिनात्मक उर्जाओं का आदानप्रदान इस सेतु से होने लगता है | इसमें मानसिक संपर्क इसे और बढ़ा देता है | सम्बन्ध समाप्त होने के बाद भी यह घटना अवचेतन से जुडी रहती है ,भले आप प्रत्यक्ष भूल जाएँ किन्तु बने हुए ऊर्जा धाराओं के सम्बन्ध कभी पूरी तरह समाप्त नहीं होते | यह ऊर्जा विज्ञान है ,जिसे सभी नहीं समझ पाते | ऐसे में जब कभी आपमें जिस प्रकार की ऊर्जा बढ़ेगी वह स्थानांतरित स्वयमेव होती रहेगी | मात्रा भले कम हो पर होगी जरुर | मात्रा का निर्धारण सम्बंधित व्यक्ति से मानसिक जुड़ाव और संबंधों की मात्रा पर निर्भर करता है | इसी तरह जो आपके खून के रिश्ते में हैं वह भी आपके पापपुण्य पाते हैं ,क्योकि उनमे आपस में सम्बन्धहोते हैं | यही कारण है की कहा जाता है की पुत्र द्वारा किये धर्म से मातापिता अथवा बंधूबांधव स्वयं इस जगत के चक्रों से मुक्त हो सकते हैं |अथवा कहा जाता है की माता-पिता के पुण्य से संतान की वृद्धि होती है |यहाँ भी यही ऊर्जा कार्य करती है जो खून के सम्बन्ध को माध्यम बना स्थानांतरित होती रहती है |
         यही वह कारण है की साधूमहात्मा बचपन में घर त्याग को प्राथमिकतादेते हैं ,कि  अब और सम्बन्ध बनेगे  ऊर्जा स्थानान्तरण होगा | जो पहले से हैं उनमे तो होता ही होता है | अब और नए सम्बन्ध यथा पत्नी ,पुत्र ,पुत्री होने पर उनमे भी प्राप्त की जा रही ऊर्जा का स्थानान्तरण होगा और परम लक्ष्य के लिए अधिक श्रम करना होगा |पत्नी तो सीधे सर्वाधिक ऊर्जा प्राप्त करने लगती है ,संताने भी अति नजदीकी जुडी होने से ऊर्जा स्थानान्तरण पाती है |यही ऊर्जा स्थानान्तरण का विज्ञान ही ब्रहमचर्य का मूल कारण है |ब्रह्मचर्य का मतलब वीर्य का पतन कम शारीरिक सम्बन्ध बनाना अधिक होता है |ब्रह्मचारी का मतलब किसी से सम्बन्ध नहीं बनाएगा |इससे ऊर्जा स्थानान्तरण के नए मार्ग नहीं बनेंगे और जो अर्जित होगा खुद के लिए होगा और जो क्षय होगा मात्र पुराने खून के सम्बन्धों पर ही जाएगा |यही वह सूत्र है ,जिसके कारण भैरवी साधना में भैरवी [साधिकासे भैरव [साधकमें ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है |जब साधना की जाती है तो शक्ति या ऊर्जा का पदार्पण भैरवी में ही होता है | इसका कारण होता है की साधिका के ऋणात्मक प्रकृति का होने से उसकी और उर्जा या शक्ति शीघ्र आकर्षित होती है ,क्योकि शक्ति की प्रकृति भी ऋणात्मक ही होती है और तंत्र साधना में शक्ति की साधना की जाती है | भैरव की प्रकृति धनात्मक होने से उसमे शक्ति आने में अधिक प्रयास और श्रम करना पड़ता है | जब शक्ति या उर्जा साधिका में प्रवेश करती है तो वह मूलाधार के सम्बन्ध से ही साधक को प्राप्त होती है और साधक को सिद्धि और लक्ष्यप्राप्त होता है | साधिका सहायिक होने पर भी स्वयं सिद्ध होती जाती है ,क्योकि जिस भी ऊर्जा का आह्वान साधक करता है वह पहले साधिका से ही साधक को प्राप्त होती है जिससे वह खुद सिद्ध होती जाती है ,जबकिसमस्त प्रयास साधक के होते हैं |
         यह सूत्र बताता है की शारीरिक सम्बन्ध और आपसी ऊर्जा धाराओं की क्रिया से ऊर्जा स्थानान्तरण होता है | आप अपने पत्नी या पति के अतिरिक्त किसी अन्य से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं तो आपके अन्दर उपस्थित ऊर्जा [सकारात्मक या नकारात्मक ]उस व्यक्ति तक भी स्थानांतरित होती है |मान लीजिये आपने किसी पुण्य या साधना से या किसी अच्छे कर्म से १००लाभदायक उर्जा प्राप्त की | आप अपनी पत्नी से सम्बन्ध रखते हैं ,इस तरह पत्नी को आधा उसका मिल जाएगा ,किन्तु आप किसी अन्य से भी शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं तो तीनो में वह ऊर्जा ३३ - ३३विभाजित हो जाएगी और उन्हें मिल जायेगी | यदि आपने कईयों से एक ही समय में सम्बन्ध रखे हैं तो प्राप्त या पहले से उपस्थित ऊर्जा उतने ही हिस्सों में बट जाएगी और आपको लेकर जितने लोग शारीरिक सम्बन्ध के दायरे में होंगे उतने हिस्से हो आपको एक हिस्सा मिल जायेगा बस |यहाँ कहावत हो जायेगी मेहनत की १०० के लिए मिला १० |जब आप किसी से शारीरिक सम्बन्ध कुछ दिन रखते है [जैसे विवाह पूर्व अथवा बाद में ] और फिर वह सम्बन्ध टूट जाता है तब भी ऊर्जा स्थानान्तरण रुकता नहीं ,,हाँ मात्रा जरुर कम हो जाती है ,पर बिलकुल समाप्त नहीं होती ,क्योकि आपके सम्बन्ध को आपका अवचेतन याद रखता है और जो सम्बन्ध उस समय बने होते हैं वह अदृश्य ऊर्जा धाराओं में हमेशा के लिए एक समबन्ध बना देते हैं |ऐसे में आप जीवन भर जो कुछ ऊर्जा अर्जित करेंगे वह उस व्यक्ति को खुद थोडा ही सही पर मिलता जरुर रहेगा और आपमें से कमी होती जरुर रहेगी |आप द्वारा किये गए किसी धर्मकर्म ,पूजा –साधना का पूर्ण परिणाम या साकारात्मक ऊर्जा आपको पूर्ण रूप में नहीं मिलेगा , आप जिसके लिए करेंगे उसे ही पूरा मिलेगा |
                इस मामले में चरित्रहीन और गलत व्यक्ति लाभदायक स्थिति में होते हैं |वह कईयों से सम्बन्ध झूठसच के सहारे बनाते हैं |स्थिर कहीं नहीं रहते और व्यक्ति बदलते रहते हैं |ऐसे में होना तो यह चाहिए की उनका पतन और नुकसान हो |पर कभी कभी ही ऐसा होता है ,अति नकारात्मकता के कारण अन्यथा ,जिनसे जिनसे उन्होंने सम्बन्ध बनाये हैं ,उनके पुण्य प्रभाव और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास इन्हें भी अपने आप लाभदायक ऊर्जा दिलाता रहता है |इस तरह ये पाप करते हुए भी नकारात्मकता में कमी पाते रहते है |नुक्सान सत्कर्मी अथवा सकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रयास रत अथवा सुख संमृद्धिशान्ति की कामना वाले का होता है,उसकी एक भूल उसे हमेशा के लिए सकारात्मक ऊर्जा में कमी देती ही रहती है |पूर्ण , फल उसे कभी नहीं मिल पाता अगर उसने कभी अन्य किसी से सम्बन्ध बना लिए हैं ,भले बाद में वह सुधर गया हो |उसे लक्ष्य प्राप्ति के लिए कई गुना अधिक प्रयास करना पड़ जाता है |किसी साधक –सन्यासी –साधू आदि से कोई अगर सम्बन्ध बना लेता है तो पहले तो तत्काल उसके नकारात्मक ऊर्जा का क्षय हो जाता है ,उसके बाद भी जब भी वह साधक या साधू साधना से ऊर्जा प्राप्त करेगा ,उसका कुछ अंश अवश्य सम्बन्ध बनाने वाली को मिलता रहेगा |नुक्सान सिर्फसाधक या ऊर्जा प्राप्ति का प्रयास करने वाले का होता है |यही स्थिति पापी और नकारात्मक ऊर्जा ग्रस्त के साथ होता है |यदि कोई सत्कर्मी महिला अथवा सत्कर्मी पुरुष या साधक किसी ऐसे से सम्बन्ध बना लेता है जो गलत है और नकारात्मक उर्जा अपने कर्मों से आकर्षित करता है तो उस महिला अथवा पुरुष या साधक की ओर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता रहेगा |यहाँ कई चरणों की क्रिया भी होती है |अर्थात कोई महिला अथवा पुरुष जिस जिस से सम्बन्ध बनाता जाएगा उतने विनिमय उसके पहले के सम्बन्धों पर भी प्रभावी होंगे मात्रा भले कम हो |
                इसलिए हमेशा इस दृष्टि से भी देखना चाहिए की आपकी एक गलती आपको जीवन भर कुछ कमी देती रहेगी |कभी आप पूर्ण सकारात्मक ऊर्जा अपने प्रयास का नहीं पायेंगे | यदि वह व्यक्ति जिससे आपने सम्बन्ध बनाए हैं नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त है तो आप बिना कुछ किये नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आयेंगे | यदि यह अधिक हुआ और संतुलन बिगड़ा तो आपका पतन होने लगेगा | इसलिए कभी किसी अन्य से या यहाँ वहां शारीरिक सम्बन्ध  बनायें | विवाह पूर्व ऐसे संबंधों से दूर रहें ,अन्यथा बाद में पति या पत्नी को बहुत चाहने और पूर्ण समर्पित होने के बाद भी आप उसे अपने धर्मकर्म का पूर्ण परिणाम नहीं दिला सकेंगे |बिना चाहे आपकी ऊर्जा कहीं और भी स्थानांतरित होती रहेगी|आप आज अपने पति या पत्नी को बहुत प्यार करने और उसका भला चाहने पर भी अपने पुण्य से भला नहीं कर पायेंगे |आपके किये व्रत -उपवास -पूजन का परिणाम उन्हें पूरी तरह नहीं मिलेगा |हो सकता है आपके पूर्व या आज के दुसरे से बनाए सम्बन्ध आपके पति या पत्नी या बच्चों के लिए घातक हो जाएँ जबकि आप आज जिससे सम्बन्ध बना रहे यदि वह नकारात्मक ऊर्जा वाला हुआ तो |उल्टा भी हो सकता है सकारात्मक ऊर्जा वाला हुआ तो सबका भला भी हो सकता है पर ऐसा कम होता है क्योंकि अनेकों से सम्बन्ध रखने वाले अक्सर नकारात्मक ऊर्जा ग्रस्त ही होते हैं |उपरोक्त स्थितियों में आपके अपने मुक्ति हेतु किये जाने वाले साधना -उपासना -प्रयास भी फलीभूत कम ही होंगे क्योंकि आपको बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त करनी होगी |…….............................................................हर हर महादेव
विशेष -कृपया कापी -पेस्ट करें |यह हमारे मौलिक विचार हैं वर्षों के अनुभव पर आधारित हैं और इसकी श्रृंखला हमारे ब्लागों पर प्रकाशित भी है और यह लेख भी तीनों ब्लॉग पर पहले से प्रकाशित है |



1 comment:

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...