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कामाख्या मंदिर गुवाहाटी(असम) से 8 किलोमीटर दूर जनपद कामरूप में नीलाचल पव॑त पर
स्थित हॅ । यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है
व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान
में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। इसे तांत्रिकों का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता
है ; मान्यता है कि पराविद्धया(रहस्य विज्ञान) के जितने भी प्रेक्टिशनर हैं, यदि वे यहाँ नहीं आये तो उनके कार्यों में शिफा नहीं मिलता। मां
भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान
रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं
सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला
अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों
के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार
तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। पौराणिक
सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की
गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से
रक्त प्रवाहित होता
है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
देवी के 51 शक्तिपीठों में से यह भी एक है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी। इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। माता की शक्ति में जो लोग विश्वास करते हैं वह भी यहां आकर अपने को धन्य मानते हैं। जिन्हें ईश्वरीय सत्ता पर यकीन नहीं है वह भी यहां आकर माता के चरणों में शीश झुका देते हैं और देवी के भक्त बन जाते हैं।...........................................................हर-हर महादेव
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