ध्यान मुद्रा और उसके लाभ
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पद्मासन में बैठकर बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की
हथेली को (उल्टे हाथ पर सीधे
हाथ को) हल्के से रखने से
ध्यान मुद्रा बनती है| ध्यान
रखें कि इस मुद्रा में सिर, गर्दन
एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे| आंखें
और होंठ सहज से बन्द रहें| ध्यान
अपने इष्टदेव के स्वरूप पर टिकाएं अथवा शरीर से समता रखते हुए कुछ देर के लिए
विचार रहित अवस्था में रहने का प्रयास करें| अष्टांग योग (यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) के एक
अंग ‘ध्यान’ की साधना में यह मुद्रा विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुई है|
जो व्यक्ति पद्मासन नहीं कर सकते, उन्हें ध्यान मुद्रा सुखासन या स्वस्तिक
अथवा पालथी आसन में करना चाहिए| यह सहज मुद्रा है| सहज
ध्यान मुद्रा को साधारण व्यक्ति अधिक लम्बे समय तक सरलता से कर सकता है|इससे ध्यान मुद्रा के लाभ भी मिल जाते हैं| ध्यान मुद्रा में यदि हथेलियां एक दूसरे
पर रखने के बाद दोनों हथेलियां ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखी जाएं तो ध्यान
मुद्रा तथा ज्ञान मुद्रा के सम्मिलित लाभ के साथ पद्मासन के लाभ भी मिल जाते हैं| साधक के लिए ध्यान मुद्रा में समय की कोई
सीमा नहीं है| लेकिन सहजता के
साथ पद्मासन करने की क्षमता के अनुरूप ध्यान मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए| साधारण व्यक्ति को इसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए कम-से-कम २० मिनट से एक घंटे
तक करना चाहिए| ध्यान मुद्रा न
कर सकने की अवस्था में सहज ध्यान मुद्रा करके लाभ उठाना चाहिए| इससे मन की चंचलता शांत होकर चित्त की
एकाग्रता बढ़ती है| सात्विक
विचारों की उत्पत्ति होती है और प्रभु भजन में मन लगता है| ध्यान के प्रभाव से साधक को ध्यान की उच्चतर स्थिति में पहुंचने में
सहायता मिलती है| आत्म
साक्षात्कार और ईश्वर के साक्षात्कार में यह मुद्रा सहायक है|
Dhyana mudra: A mudra of contemplation. The two hands are placed in the lap, right
over left with palms up and thumb tips touching. This mudra is best used in
quiet meditation for an incredibly calming state of mind. It is a gesture of
perfect balance of thought and total
relaxation..........................................हर-हर महादेव
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