अपानवायु मुद्रा ::दिल मजबूत करे ,गैस रिलीज करे
==================================
तर्जनी (अंगूठे के पास वाली) उंगली
को अंगूठे की जड़ में लगाकर अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा और अनामिका (बीच की दोनों अंगुलियां) के अगले सिरे से मिला देने से अपानवायु
मुद्रा बनती है| इस मुद्रा में
कनिष्ठिका अलग से सहज एवं सीधी रहती है| इस मुद्रा का प्रभाव हृदय पर विशेष रूप से पड़ता है| अतः इसे हृदय या मृत संजीवनी मुद्रा भी
कहते हैं|
अपानवायु मुद्रा में
दो मुद्राएं अपान मुद्रा तथा वायु मुद्रा एक साथ की जाती हैं| अतः दोनों मुद्राओं का सम्मिलित और
तत्क्षण प्रभाव एक साथ पड़ता है| जैसे पेट की गैस और शारीरिक वायु दोनों का ही शमन होता है|हाथ में सूर्य पर्वत अति विकसित और चंद्र पर्वत
अविकसित होने तथा हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर यह मुद्रा १५ मिनट सुबह-शाम करने से लाभ मिलता है|
अपान वायु या हृदय-रोग-मुद्रा जिनका दिल कमजोर
है, उन्हें इसे प्रतिदिन करना
चाहिये । दिलका दौरा पड़ते ही यह मुद्रा करानेपर आराम होता है । पेटमें गैस होनेपर
यह उसे निकाल देती है । सिर-दर्द
होने तथा दमेकी शिकायत होनेपर लाभ होता है । सीढ़ी चढ़नेसे पाँच-दस मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़े । इससे उच्च
रक्तचाप में फायदा होता है ।
सावधानी:- हृदयका दौरा आते ही इस मुद्राका आकस्मिक तौरपर उपयोग करे ।
Apan-Vayu Mudra: This finger position works like an injection in cases of a heart
attack. Regular practice is an insurance in preventing heart attacks,
tacho-cardia, palpitations, depressions, sinking feeling of the heart. Also
known as the Mritsanjivani Mudra for arresting heart
attack.…………………………………………………...हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment