:::::::::: ज्ञान मुद्रा :::::::::
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अनिद्रा-क्रोध-मानसिक विचलन का नाश ,बुद्धि -स्मरणशक्ति का विकास
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हाथ की तर्जनी (अंगूठे केसाथ वाली) अंगुली केअग्रभाग (सिरे) को अंगूठे केअग्रभाग के साथ मिलाकररखने और हल्का-सा दबावदेने से ज्ञान मुद्रा बनती है|इस मुद्रा में दबाना जरूरीनहीं है| बाकी उंगलियां सहजरूप से सीधी रखें| यहअत्यधिक महत्वपूर्ण अंगुली-मुद्रा है| इस मुद्रा का सम्पूर्णस्नायुमण्डल और मस्तिष्कपर बड़ा ही हितकारी प्रभावपड़ता है|
• ज्ञान मुद्रा किसी भी आसन या स्थिति में की जा सकती है| ध्यान के समय इसे पद्मासन में करनासर्वश्रेष्ठ माना गया है| इसे आप दोनों हाथों से, चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते, गृहस्थी केकार्य करते समय या आराम के क्षणों में, जब चाहें किसी भी समय, किसी भी स्थिति में और कहीं भीकर सकते हैं|
• इसे अधिक से-अधिक समय तक किया जा सकता है| इस मुद्रा के लिए समय की कोई सीमा नहींहै|
• हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से, इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से जीवन रेखा और बुध रेखा के दोषदूर होते हैं तथा अविकसित शुक्र पर्वत का विकास होता है|
ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है| विशेषकर, मानसिक तनाव के कारण होनेवालेदुप्रभावों को दूर करके मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल करती है| ज्ञान मुद्र के निरंतर अभ्यास सेमस्तिष्क की सभी विकृतियां और रोग दूर हो जाते हैं| अनिद्रा रोग में यह मुद्रा अत्यंत कारगर सिद्धहोती है| मस्तिष्क शुद्ध और विकसित होता है| मन शांत हो जाता है| चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नताझलकने लगती है|
• ज्ञान मुद्रा मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है| तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक एकदूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का-सा नाड़ी स्पन्दन महसूस होता है| वहां ध्यान लगाने से चित्त काभटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है|
• ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है| इसके अभ्यास से स्मरण शक्तिउन्नत और बुद्धि तेज होती है| साधना के क्षेत्र में साधक द्वारा लगातार ज्ञान मुद्रा करने से उसकाज्ञान-नेत्र (शिव-नेत्र) खुल सकता है| अन्तःदृष्टि प्राप्त होकर छठी इंद्रिय का विकास हो सकता है|दिव्य-चक्षु के खुलने से साधक त्रिकाल की घटनाओं को यथावत् देख सकने तथा दूसरे के मन कीबातें जान सकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है|
ज्ञान मुद्रा से स्मरण-शक्तिका विकास होता है और ज्ञानकी वृद्धि होती है, पढ़नेमें मन लगता है तथाअनिद्राका नाश, स्वभावमें परिवर्तन, अध्यात्म-शक्तिका विकास और क्रोधका नाश होता है ।
सावधानी:- खान-पान सात्त्विक रखना चाहिये, पान-पराग, सुपारी, जर्दा इत्यादिका सेवन न करे ।अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थोंका सेवन न करे ।
Gyan Mudra: In this
position the fingers are held with the tip of the index finger touching the tip
of the thumb and the remaining three fingers nearly straight--kind of like an
"OK" sign, except the palms of each hand are pointed up or front. This mudra is known as the “seal of
knowledge”. It is one of the most commonly used and highly recognized mudras.
When the first finger and thumb connect at the tips it is
thought to encourage wisdom. Circulation in the brain is also increased which
helps boost concentration and inspire creativity.
This mudra is good for: stresses and strains, insomnia,
emotional instability, indecisiveness, excessive anger, idleness, laziness,
indolence, and is a great help in increasing memory and I.Q. It can help cure
sleeplessness and get one off sleeping pills where these are being taken.
There are a number of variations of this
mudra for higher and higher degrees of attainment e.g. Purna Gyan Mudra,
Vairagya Mudra, Abhay Mudra, Varad Mudra, Dhyan Mudra, Mahagyan Mudra. As one
keeps attaining higher and higher levels of the mind, the mudra's change ..........................................................................हर-हर महादेव
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