हस्त मुद्रा से चिकित्सा भी और सिद्धि भी
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मानव शरीरपृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश तथा वायु, पंचतत्वसे निर्मित है और हाथों की पांचों उंगलियों में अलग अलग तत्व मौजूद है जैसे अंगूठे मेंअग्नि तत्व, तर्जनी उंगली में वायु तत्व,मध्यमा उंगली में आकाश तत्व और अनामिकाउंगली में पृथ्वी और कनिष्का उंगली में जलतत्व मौजूद है। शरीर में जो ठोस है,वह पृथ्वीतत्व ,जो तरल या द्रव्य है वह जल तत्व,जोऊष्मा है वह अग्नि तत्व,जो प्रवाहित होता हैवह वायु तत्व और समस्त क्षिद्र आकाश तत्व है|
साधारणतया आहार विहार का असंतुलन इन पंचतत्वों के संतुलन को विखण्डित करता है औरफलस्वरूप मनुष्य शरीर भांति भांति के रोगों से ग्रसित हो जाता है | यूँ तो नियमित व्यायामतथा संतुलित आहार विहार सहज स्वाभाविक रूप से काया को निरोगी रखने में समर्थ हैं , परवर्तमान के द्रुतगामी व्यस्ततम समय में कुछ तो आलस्यवश और कुछ व्यस्तता वश नियमितयोग सबके द्वारा संभव नहीं हो पाता , परन्तु योग में कुछ ऐसे साधन हैं जिनमे न ही अधिकश्रम की आवश्यकता है और न ही अतिरिक्त समय की. इसे " मुद्रा चिकित्सा " कहते हैं |विभिन्न हस्तमुद्राओं से अनेक व्याधियों से मुक्ति संभव है |
योग में आसन प्राणायाम, मुद्रा, बंध अनेक विभाग बनाए गए हैं। इसमे हस्त मुद्राओंका बहुत ही खास स्थान है। मुद्रा जितनी भी प्रकार की होती है उन्हे करने के लिए हाथों की सिर्फ10 ही उंगलियों का उपयोग होता है। उंगलियों से बनने वाली मुद्राओं में रोगों को दूर करने काराज छिपा हुआ है। हाथों की सारी उंगलियों में पांचों तत्व मौजूद होते हैं। मुद्रा और दूसरेयोगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग के इस ग्रंथ कोमहर्षि घेरण्ड ने लिखा था। इस ग्रंथ में योग के देवता भोले शंकर ने माता पार्वती से कहा है कि हेदेवी, मैने तुम्हे मुद्राओं के बारें में ज्ञान दिया है सिर्फ इतने से ही ज्ञान से सारी सिद्धियां प्राप्तहोती है।
मुद्रा के द्वारा अनेक रोगों को दूर किया जा सकता है। उंगलियों के पांचों वर्ग पंचतत्वोंके बारें में बताते हैं। जिससे अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिये मुद्रा विज्ञान में जबउंगलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब विद्युत बहकर होकर शरीर में समाहितशक्ति जाग उठती है और हमारा शरीर निरोगी होने लगता है।
अँगुलियों को एक दुसरे से स्पर्श करते हुए स्थिति विशेष में इनकी जो आकृति बनती है,उसे मुद्राकहते हैं | मुद्रा के द्वारा अनेक रोगों को दूर किया जा सकता है। उंगलियों के पांचों वर्ग पंचतत्वोंके बारें में बताते हैं। जिससे अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिये मुद्रा विज्ञान में जबउंगलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब विद्युत बहकर होकर शरीर में समाहितशक्ति जाग उठती है और हमारा शरीर निरोगी होने लगता है। मुद्रा चिकित्सा में विभिन्न मुद्राओंद्वारा असाध्यतम रोगों से भी मुक्ति संभव है |वस्तुतः भिन्न तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हाथकी इन अँगुलियों से विद्युत प्रवाह निकलते हैं और विद्युत प्रवाहों के परस्पर संपर्क से शरीर केचक्र तथा सुसुप्त शक्तियां जागृत हो शरीर के स्वाभाविक रोग प्रतिरोधक क्षमता कोआश्चर्यजनक रूप से उदीप्त तथा परिपुष्ट करती है | पंचतत्वों का संतुलन सहज स्वाभाविक रूपसे शरीर को रोगमुक्त करती है |रोगविशेष के लिए निर्देशित मुद्राओं को तबतक करते रहनाचाहिए जबतक कि उक्त रोग से मुक्ति न मिल जाए |रोगमुक्त होने पर उस मुद्रा का प्रयोग नहींकरना चाहिए | मुद्राओं से केवल काया ही निरोगी नहीं होती, बल्कि आत्मोत्थान भी होता है,क्योंकि मुद्राएँ शूक्ष्म शारीरिक स्तर पर कार्य करती है |कुछ मुद्राएँ कभी भी कही भी अथवा रोज की जा
सकती या की जाती है |इनसे लाभ ही होता है |पूजा में भी मुद्रा प्रदर्शित की जाती है ,जिसका मूल
कारण सम्बंधित शक्ति जिसकी पूजा की जा रही है उसकी उर्जा और संतुलन शरीर में
नियमित किया जाए ,ताकि जब प्रकृति की सामान ऊर्जा प्राप्त हो तो
आसानी से स्वीकार ह सके और शीघ्र तथा बिना बाधा के सिद्धि प्राप्त हो सके |
योग विज्ञान में मुद्राओं के द्वारा बहुत से लाभों के बारें मे बताया गया है जैसे- शरीर से सारेरोग समाप्त हो जाते है, मन में अच्छे विचार पैदा होते है आदि। जो व्यक्ति अपने जीवन कोखुशहाल, निरोग और स्वस्थ बनाना चाहता है उनको अपनी जरूरत के मुताबिक मुद्राओं काअभ्यास करना चाहिए। मुद्राओं को बच्चों से लेकर बूढ़े सभी कर सकते हैं। हस्त मुद्रा तुरंत हीअपना असर दिखाना चालू कर देती है। जिस हाथ से ये मुद्राएं बनाते है, शरीर के उल्टे हिस्से मेंउनका प्रभाव तुरंत ही नज़र आना शुरू हो जाता है। इन मुद्राओं को करते समय वज्रासन,पदमासन या सुखासन आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। इन मुद्राओं को रोजाना 30 से 45मिनट तक करना लाभकारी होता है। इन मुद्राओं को अगर एक बार करने में परेशानी आए तो 2-3 बार में भी करके पूरा लाभ पाया जा सकता है। किसी भी मुद्रा को करते समय हाथ की जिसउंगली का मुद्रा बनाने में कोई उपयोग ना हो उसे बिल्कुल सीधा ही रखना चाहिए। एक बात काध्यान रखना जरूरी है कि जिस हाथ से मुद्रा की जाती है उसका प्रभाव उसके बाईं ओर के अंगोंपर पड़ता है।.....................................................हर-हर महादेव
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