:::::::::::::योनि मुद्रा योग::::::::::::
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हस्त मुद्राएं कई प्रकार की होती है और उन सबके अलग अलग स्वास्थ्य लाभ हैं। यौगिक दृष्टि योग मुद्राओं में योनि मुद्रा को भी खास महत्व मिला हुआ है। हालांकि तंत्रशास्त्र में इसका अलग महत्व है लेकिन यहां यह मुद्रा प्राणवायु के लिए उत्तम मानी गई है। यह बड़ी चमत्कारी मुद्रा है|यौगिक दृष्टि से यौगिक दृष्टि से अपने अंदर कई प्रकार के रहस्य छिपाए रखनेवाली मुद्रा कावास्तविक नाम ‘योनि मुद्रा’ है| तत योग के अनुसार केवल हाथों की उंगलियों से महाशक्ति भगवतीकी प्रसन्नता के लिए योनि मुद्रा प्रदर्शित करने की आज्ञा है| प्रत्यक्ष रूप से इसका प्रभाव लंबी योगसाधना के अंतर्गत तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना से भी दृष्टिगोचर होता है| इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास सेसाधक की प्राण-अपान वायु को मिला देनेवाली मूलबंध क्रिया को भी साथ करने से जो स्थिति बनतीहै, उसे ही योनि मुद्रा की संज्ञा दी है| यह बड़ी चमत्कारी मुद्रा है|
इस योनि हस्त मुद्रा योग (yoni mudra yoga) के निरंतर अभ्यास के साथ मूलबंध क्रिया भी की जाती है। योनि मुद्रा को तीन तरह से किया जाता है। ध्यान के लिए अलग, सामान्य मुद्रा अलग लेकिन यहां प्रस्तुत है कठिनाई से बनने वाली मुद्रा का विवरण।
पहले किसी भी सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों का उपयोग करते हुए सबसे पहले दोनों कनिष्ठा अंगुलियों को आपस में मिलाएं और दोनों अंगूठे के प्रथम पोर को कनिष्ठा के अंतिम पोर से स्पर्श करें। फिर कनिष्ठा अंगुलियों के नीचे दोनों मध्यमा अंगुलियों को रखते हुए उनके प्रथम पोर को आपस में मिलाएं। मध्यमा अंगुलियों के नीचे अनामिका अंगुलियों को एक-दूसरे के विपरीत रखें और उनके दोनों नाखुनों को तर्जनी अंगुली के प्रथम पोर से दबाएं।
लाभ :
===== योनि मुद्रा बनाकर और पूर्व मूलबंध की स्थिति में सम्यक् भाव से स्थित होकर प्राण-अपान को मिलाने की प्रबल भावना के साथ मूलाधार स्थान पर यौगिक संयम करने से कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं| अंगूठा शरीर के भीतर की अग्नि को कंट्रोल करता है। तर्जनी अंगुली से वायु तत्व कंट्रोल में होता है। मध्यमा और अनामिका शरीर के पृथ्वी तत्व को कंट्रोल करती है। कनिष्ठा अंगुली से जल तत्व कंट्रोल में रहता है। इसके निरंतर अभ्यास से जहां सभी तत्वों को लाभ मिलता है वहीं इससे इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति बढ़ती है। इससे मन को एकाग्र करने की योग्यता का विकास भी होता है। यह शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक का विकास करती है। इससे हाथों की मांसपेशियों पर अच्छा खासा दबाव बनता है जिसके कारण मस्तिष्क, हृदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।
पद्मासन की स्थिति में बैठकर, दोनों हाथों की उंगलियों से योनि मुद्रा बनाकर और पूर्व मूलबंध कीस्थिति में सम्यक् भाव से स्थित होकर प्राण-अपान को मिलाने की प्रबल भावना के साथ मूलाधारस्थान पर यौगिक संयम करने से कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं|ऋषियों का मत है किजिस योगी को उपरोक्त स्थिति में योनि मुद्रा का लगातार अभ्यास करते-करते सिद्धि प्राप्त हो गईहै, उसका शरीर साधनावस्था में भूमि से आसन सहित ऊपर अधर में स्थित हो जाता है| संभवतःइसी कारण आदि शंकराचार्यजी ने अपने योग रत्नावली नामक विशेष ग्रंथ में मूलबंध का उल्लेखविशेष रूप से किया है|मूलबंध योग की एक अद्भुत क्रिया है| इसको करने से योग की अनेककठिनतम क्रियाएं स्वतः ही सिद्ध हो जाती हैं, जिनमें अश्विनी और बज्रौली मुद्राएं प्रमुख हैं| इनमुद्राओं के सिद्ध हो जाने से योगी में कई प्रकार की शक्तियों का उदय हो जाता है|
This mudra is presented by joining and holding folding both the
little fingers (kanishtika) upwards, holding the ring finger of the right hand
on that of the left hand and hold them with the pointing fingers(tarjani),
joining the middle fingers (madhyama) and joining the thumbs (angusta) and
little fingers (kanishtika) pointing downwards as shown in the above
photographs.
To connect with Kali’s primal
energy, form Yoni Mudra, the Mudra of the Goddess, and chant to
her. Representing the female reproductive organs, Yoni Mudra is a hand
gesture that signifies holding and bearing, like a womb, a source, like Kali. It
represents source. When we form Yoni Mudra, we acknowledge life’s vastness, our
place within that vastness, and how we hold vastness within
ourselves……………………………………………………….हर-हर महादेव
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