:::::::::::::मूल बंध :::::::::::::
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मूल बंध को योनी बंध भी कहते हैं |गुदा तथा उपस्थ के प्रदेश को उपर संकुचित करके रखना तथा प्राण और अपान को मिलाना मूल बंध है |योगतत्वोपनिषद के अनुसार एडी से योनी स्थान को दबाकर भीतर खींचे |इस प्रकार अपांन वायु को उपर की ओर उठाकर प्राणवायु से मिलाने पर योनी बंध कहलाता है |इस प्रकार प्राण ,अपान ,नाद और बिंदु में मूल बंध द्वारा एकता प्राप्त होती है |यह योग निःसंदेह सिद्धि प्राप्त कराने वाला होता है |
गोरक्ष संहिता के अनुसार इस बंध से मूत्र -मल आदि विकारों का क्षय होता है और यदि साधक वृद्ध हो तो युवा जैसी शक्ति प्राप्त करता है |शिव संहिता के अनुसार योनी मुद्रा या मूल बंध सिद्ध हो जाने पर पुरुष भूतल पर और क्या सिद्ध नहीं कर सकता ,यानी सभी कुछ सिद्ध कर लेना उसके लिए संभव हो जाता है |
इस बंध का उपयोग महामुद्रा आदि अनेक मुद्राओं का आवश्यक अंग है |यह शारीर के अनेकानेक समस्याओं का शमन करता है |....................................................हर-हर महादेव
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