Sunday, 20 May 2018

उज्जायी प्राणायाम


उज्जायी प्राणायाम 
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उज्जायी प्राणायाम उत् + जयी शब्दों से मिलकर बना है। उत् अर्थात् ऊर्ध्वगति तथा जयी का अर्थ हैइन्द्रिय जय होना अर्थात् इन्द्रिय जय सहित प्राणों के उन्नयन में इससे मदद मिलती है। कण्ठ मेंविशुद्धि चक्र हैयह चक्र मस्तिष्क तथा हृदय के बीच में दोनों के बीच समन्वय सन्तुलन बनाता है,इसलिए इस प्राणायाम में कण्ठ को सक्रिय करते हुए प्राणायाम किया जाता है। यह प्राणायाम शान्तिप्रदान करने के साथसाथ शरीर को उष्णता प्रदान करता है। अनिद्रा को दूर करता है। उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए उपयोगी है। यह प्राणायाम रक्तअस्थिमज्जामेदवीर्यत्वचा एवंमांस की व्याधि को दूर करता है। 
ध्यानात्मक आसन में बैठें। ठोड़ी को थोड़ा झुका लें। गले में सरसराहट की आवाज के साथ श्वासखींचेंथोड़ी देर रोकेंपुनः दोनों नथुनों से श्वास बाहर निकाल दें। नासिका में आती जाती श्वास केप्रति सजग बने रहें और श्वसन को धीमा एवं लयपूर्ण होने दें। थोड़ी देर बाद अपनी सजगता गले परले जाएँ। ऐसा अनुभव करें कि श्वास नासिका से नहींबल्कि गले के एक छोटे से छिद्र से जा रहीहै। श्वास की आवाज बहुत तेज नहीं होनी चाहिए। वह केवल अभ्यासी को सुनाई पड़नी चाहिए।दूसरा व्यक्ति जब तक बहुत निकट  बैठा होउसे यह आवाज सुनाई नहीं पड़नीचाहिए।........................................................हर-हर महादेव 

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