कुंडलिनी ::कुंडलिनी जागरण और उसकी शक्ति
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क्या आप कुंडलिनी जागरण और शारीरिक ऊर्जा चक्र से ब्रह्मांडीय ऊर्जा चक्र का सम्बन्ध जानते हैं |नहीं जानते तो ध्यान दें |कुंडलिनी जागरण ,शारीरिक ऊर्जा चक्र का ब्रह्मांडीय ऊर्जा
संरचना से सम्बन्ध का ज्ञान ,सूक्ष्म शरीर की क्रियाविधि और उसका स्थूल
शरीर से सम्बन्ध भारतीय मनीषियों का ज्ञान है जिसे हम भूलते जा रहे हैं किन्तु
पाश्चात्य विज्ञानं अब उन्हें ही प्रमाणित कर रहा है |अभी भी नागा साधू ,अघोरी ,तांत्रिक आदि इसे
जानते हैं |आज के वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ सालों में मान लिया है कि इनकी जानकारी और सहीउपयोग से आप अपने खुद के डीएनए को सुगठित व रिबिल्ड तक कर सकते हैं | सोचिये एक जिन्दा इंसान खुद का डीएनए रिबिल्ड कर सकता है जिसे नोबल पुरूस्कार प्राप्त वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में भी सिर्फ एक डीएनए कोडिंग पर सही ढंग से नहीं कर पाते |यह भारतीय सनातन ज्ञान की महानता है | आधुनिक विज्ञान का मानना है कि सारे आनुवांशिक और अन्य सभी रोगों का इलाज बिना किसी दवा के इस से संभव है | इसी के द्वारा हमारे पूर्वज बिना कुछ खाए पिए हजारों वर्ष तपस्या करते थे और जीवित रहते थे | आज हमें जरुरत है वेदों के रहस्यों को जानने की और अपने पुरातन ज्ञान को प्राप्त करने की आधुनिक विज्ञान वहीँ से निकल रहा है |आधुनिक और विक्सित कहे जाने वाले पाश्चात्य वैज्ञानिक और विज्ञान उन्ही
जानकारियों को प्रमाणित करके उन्नत अपने को साबित कर रहा है जिसे हम हजारों साल
पहले से जानते रहे हैं |
Korotkov नामक वैज्ञानिक ने आधुनिक उपकरणों व हमारे वैदिक साइंस का मिश्रण कर के रिसर्च की और योग का चक्रों पर प्रभाव व शरीर से निकलने वाले बायो मैग्नेटिक प्रभाव पे व्यापक अध्ययन किया |ये सब वही है जिसे हम वेदों में पढ़ते हैं |तंत्र शास्त्रों में पाते हैं | जब व्यक्ति का उर्जा चक्रों पर नियंत्रण हो जाता है तो उस व्यक्ति की हर भौतिक परेशानी का हल मिलने लगता है ,वह खुद उन्हें नियंत्रित कर पाता है |इससे कुंडली जागरण आदि संभव है ,और संभव है उस व्यक्ति की हर भौतिक परेशानी का हल अच्छा भी और बुरा भी |
हमारी प्राण शक्ति के केंद्र कुंडलिनी को अंग्रेजी भाषा में 'serpent power' कहते हैं। पहलेविज्ञान भी इसको नहीं मानता था , क्यूँ की वो खुद कर के देख नहीं सकते थे पर आज उर्जा चक्रों कीउर्जा वो देख चुके हैं तो वो आगे खोज कर रहे है कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में मूलाधार के केंद्र में सोई हुई अवस्था में रहती है। इससे सभी नाड़ियों का संचालन होता है। योग में मानव शरीर के भीतर 7 चक्रों का वर्णन किया गया है। कुंडलिनी को जब ध्यान के द्वारा जागृत किया जाता है, तब यही शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों को क्रियाशील करती है। योग अभ्यास से सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषम्ना में स्थित चक्रों का भेदन कराते हुए सहस्रार तक ले जाया जाता है। यह कुंडलिनी ही हमारे शरीर, भाव और विचार को प्रभावित करती है।
शरीर में मूलत: सात चक्र होते हैं |मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार।इनके साथ दो और चक्र यद्यपि होते हैं किन्तु प्रमुखता इन्ही की होती है |शरीर की प्राण वायु का नियमन तीन नाड़ियों द्वारा होता है |ये नाड़ीयाँ
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना हैं | नाड़ियों को शुद्ध करने के लिए विभिन्न तरह के प्राणायाम का अभ्यास करना होता है | इनके शुद्ध होने से शरीर में स्थित 72 हजार नाड़ियाँ भी शुद्ध होने लगती हैं। कुंडलिनी जागरण में नाड़ियों का शुद्ध और पुष्ट होना आवश्यक है। स्वर विज्ञान में इसका उल्लेख मिलता है। सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार (Basal plexus) से आरंभ होकर यह सिर के सर्वोच्च स्थान पर अवस्थित सहस्रार तक आती है। सभी चक्रसुषुम्ना में ही विद्यमान हैं। इड़ा को गंगा, पिंगला को यमुना और सुषुम्ना को सरस्वती कहा गया है।इन तीन नाड़ियों का पहला मिलन केंद्र मूलाधार कहलाता है। इसलिए मूलाधार को मुक्तत्रिवेणी औरआज्ञाचक्र को युक्त त्रिवेणीकहते हैं।
मेरुरज्जु (spinal card) में प्राणों के प्रवाह के लिए सूक्ष्म नाड़ी है जिसे सुषुम्ना कहा गया है।इसमें अनेक केंद्र हैं। जिसे चक्र अथवा पदम कहा जाता है। कई नाड़ियों के एक स्थान पर मिलने से इनचक्रों अथवा केंद्रों का निर्माण होता है। कुंडलिनी जब चक्रों का भेदन करती है तो उस में शक्ति कासंचार हो उठता है, मानों कमल पुष्प प्रस्फुटित हो गया और उस चक्र की गुप्त शक्तियाँ प्रकट हो जातीहैं।चक्र की क्रियाशीलता बढने से वहां से तरंगों का उत्सर्जन बढ़ जाता है जो पूरे शरीर ,ऊर्जा परिपथ
और व्यक्ति को प्रभावित करने के साथ ही आसपास का वातावरण भी प्रभावित करती है |
कुंडलिनी जागरण ऐसी क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर मौजूद कुंडलिनी शक्ति को जगाकर दिव्यशक्ति को प्राप्त कर सकता है। कुंडलिनी के साथ 7 चक्रों का जागरण होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता है। वह भूत और भविष्य का जानकार बन जाता है। वह शरीर में बाहर निकल कर कहीं भी भ्रमण कर सकता है। वह अपनी सकारात्मक शक्ति के द्वारा किसी के भी दुख दर्द-दूर करने में सक्षम होता है। सिद्धियों की कोई सीमा नहीं होती।शक्तियों की कोई सीमा नहीं होती |कुंडलिनी जागरण के विभिन्न मार्गों में
विभिन्न नियम हैं |योग इसके जागरण हेतु सहस्त्रार से चलता है और
मूलाधार तक आकर फिर ऊपर जाता है |इसमें सख्त वर्जनाएं
होती हैं |जबकि तंत्र मूलाधार से चलकर सहस्त्रार तक जाता
है |यह भौतिकता में रहकर भी मुक्ति ,सिद्धि या जागरण में विश्वास करता है |
कुंडलिनी जागरण के सामान्य नियम :: स्वयं को शुद्ध और पवित्र रखें । शुद्धता और पवित्रता आहार और व्यवहार से आती है। आहार अर्थात सात्विक और सुपाच्चय भोजन तथा उपवास और व्यवहार अर्थात अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सत्य बोलना और सभी से विनम्रतापूर्वक मिलना।स्वयं की दिनचर्या में सुधार करते हुए जल्दी उठना और जल्दी सोना। प्रात: और संध्या को संध्यावंदन करते हुए नियमित रूप से प्राणायाम, धारणा और ध्यान का अभ्यास करना। कुंडलिनी जागरण के लिए कुंडलिनी प्राणायाम, अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। अपने मन और मस्तिष्क को नियंत्रण में रखकर कुंडलिनी योग का लगातार अभ्यास किया जाए तो 6 से 12 माह में कुंडलिनी जागरण होने लगती है। लेकिन यह सब किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ही संभव होता है। संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार ध्यान करने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता। वह दिव्य पुरुष बन जाता है।
कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है। यह बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है। हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है,लेकिन यदि व्यक्ति संयम और ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है। जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है। फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर जाकर रुकती है उसके बाद फिर ऊपर उठने लग जाती है। जिस चक्र पर जाकर वह रुकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक उर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वस्थ और स्वच्छ कर देती है।
यद्यपि कुंडलिनी सहस्त्रार से मूलाधार तक फैली होती है ,किन्तु इसका कोई भौतिक अस्तित्व व्यक्ति के भौतिक शरीर में नहीं पाया जाता
|यह उर्जात्मक सर्पिल संरचना है ,जिसका मूल सम्बन्ध सूक्ष्म शरीर से होता है |यही कारण है की आज तक वैज्ञानिक इसको प्रमाणित नहीं कर पाए और शुरू में इस
पर अविश्वास का भी यह एक कारण था |आज तक वैज्ञानिक और
आधुनिक विज्ञानं सूक्ष्म शरीर ,भूत-प्रेतों का उर्जा शरीर ही नहीं पकड़ पाए तो यह तो उससे भी उच्च स्थिति है |इसका सम्बन्ध भौतिक शरीर की ऊर्जा संरचना [इलेक्ट्रानिक
बाडी] से जुड़े सूक्ष्म शरीर से होता है |यह सूक्ष्म शरीर का नियंत्रक है और सूक्ष्म शरीर ,भौतिक शरीर की ऊर्जा शरीर का ,ऊर्जा शरीर ,भौतिक शारीर का नियामक है |
कुंडलिनी के जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर हो जाता है और उसका रूझान आध्यात्म व रहस्य की ओर हो जाता है। कुंडलिनी जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति और सिद्धि का अनुभव करने लगता है। जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो व्यक्ति को देवी-देवताओं के दर्शन होने लगती हैं। ॐ या हूं हूं की गर्जना सुनाई देने लगती है। आंखों के सामने पहले काला, फिर पील और बाद में नीला रंग दिखाई देना लगता है। उसे अपना शरीर हवा के गुब्बारे की तरह हल्का लगने लगता है। वह गेंद की तरह एक ही स्थान पर अप-डाउन होने लगता है। उसके गर्दन का भाग ऊंचा उठने लगता है। उसे सिर में चोटी रखने के स्थान पर अर्थात सहस्रार चक्र पर चींटियां चलने जैसा अनुभव होता है और ऐसा लगता है कि मानो कुछ है जो ऊपर जाने की कोशिश कर रहा है। रीढ़ में कंपन होने लगता है। इस तरह के प्रारंभिक अनुभव होते हैं।.................................................................हर-हर महादेव
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