अनाहत्-चक्र
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हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरोंसे सुशोभित चक्र ही अनाहत्-चक्र है। जिन द्वादश(१२) अक्षरों की बात काही जा रही है वे – ठ, ट,ञ, झ, ज, छ, च, ड़, घ, ग, ख और क हैं। इस के अभीष्ट देवता श्री विष्णु जी हैं। अनाहत्-चक्र हीवेदान्त आदि में हृदय-गुफा भी कहलाता है, जिसमें ईश्वर स्थित रहते हैं, ऐसा वर्णन मिलता है।ईश्वर ही ब्रह्म और आत्मा भी है।
क्षीर सागर – सागर का अर्थ अथाह जल-राशि से होता है और क्षीर का अर्थ दूध होता है। इस प्रकारक्षीर-सागर क अर्थ दूध का समुद्र होता है। इसी क्षीर-सागर में श्री विष्णु जी योग-निद्रा में सोये हुयेरहते हैं। नाभि-कमल स्थित ब्रह्मा जी जब अपनी शरीर रचना की प्रक्रिया पूरी करते हैं उसी समयक्षीर सागर अथवा हृदय गुफा अथवा अनाहत् चक्र स्थित श्री विष्णु जी अपनी संचालन व्यवस्था केअन्तर्गत रक्षा व्यवस्था के रूप में आवश्यकता अनुसार दूध की व्यवस्था करना प्रारम्भ करने लगतेहैं और जैसे ही शरीर गर्भाशय से बाहर आता है वैसे ही माता के स्तन से दूध प्राप्त होन
े लगता है और आवश्यकतानुसार दूध उपलब्ध होता रहता है। यहाँ पर कितना दूध होता है, उसकाअब तक कोई आकलन नहीं हो सका है। सन्तान जब तक अन्नाहार नहीं करने लगता है, तब तकदूध उपलब्ध रहता है, इतना ही नहीं जितनी सन्तानें होंगी सबके लिए दूध मिलता रहेगा। ऐसी विधिऔर व्यवस्था नियत कर दी गयी है। दूसरे शब्दों में ब्रह्मा जी का कार्य जैसे ही समाप्त होता है, श्रीविष्णु जी का कार्य प्रारम्भ हो जाता है और श्री विष्णु जी का कार्य जैसे ही समाप्त होता है, शंकर जीका कार्य वैसे ही प्रारम्भ हो जाता है। माता के दोनों स्तनों में तो क्षीर (दूध) रहता है परन्तु दोनोंस्तनों के मध्य में ही हृदय-गुफा अथवा अनाहत्-चक्र जिसमें श्री विष्णु जी वास करते हैं, होता है।अर्थात् जो क्षीर-सागर है, वही हृदय गुफा है और जो हृदय गुफा है वही अनाहत्-चक्र है और इसी चक्रके स्वामी श्री विष्णु जी हैं।...................................................................हर हर महादेव
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