Sunday, 20 May 2018

सहस्रार-चक्र


सहस्रार-चक्र
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सहस्र पंखुणियों वाला यह चक्र सिर के उर्ध्व भाग में नीचे मुख करके लटका हुआ रहता हैजोसत्यमयज्योतिर्मयचिदानंदमय एवं ब्रह्ममय हैउसी के मध्य दिव्य-ज्योति से सुशोभित वरऔर अभय मुद्रा में शिव रूप में गुरुदेव बैठे रहते हैं। यहाँ पर गुरुदेव सगुण साकार रूप में रहते हैं।सहस्रार-चक्र में ब्रह्ममय रूप में गुरुदेव बैठकर पूरे शरीर का संचालन करते हैं। उन्ही के इशारे परभगवद् भक्ति भाव की उत्प्रेरणा होती है। उनके निवास स्थान तथा सहयोग में मिला हुआ दिमाग यामस्तिष्क भी उन्ही के क्षेत्र में रहता है जिससे पूरा क्षेत्र एक ब्रह्माण्ड कहलाता हैजो शरीर में सबसेऊँचे सिर उसमें भी उर्ध्व भाग ही ब्रह्माण्ड है। योगी-यतिऋषि-महर्षि अथवा सन्त-महात्मा आदिजो योग-साधना तथा मुद्राओं से सम्बंधित होते हैंवे जब योग की कुछ साधना तथा कुछ मुद्रा आदिबताकर और कराकर गुरुत्व के पद पर आसीन हो जाते हैं उनके लिए यह चक्र एक अच्छा मौका देताहैजिसके माध्यम से गुरुदेव लोग जितने भी योग-साधना वाले हैं अपने साधकों को पद्मासन,स्वास्तिकासनसहजासनवीरासन आदि आसनों में से किसी एक आसान पर जो शिष्य के अनुकूलऔर आसान पड़ता होपर बैठा देते हैं और स्वांस-प्रस्वांस रूप प्राणायाम के अन्तर्गत सोsहं काअजपा जाप कराते हैं। आज्ञा-चक्र में ध्यान द्वारा किसी ज्योति को दर्शाकर तुरन्त यह कहने लगतेहैं कि यह ज्योति ही परमब्रह्म परमेश्वर है जिसका नाम सोsहं तथा रूप दिव्य ज्योति है। शिष्यबेचारा क्या करे ? उसको तो कुछ मालूम ही नहीं हैक्योंकि वह अध्यात्म के विषय में कुछ नहींजानता। इसीलिए वह उसी सोsहं को परमात्मा नाम तथा ज्योति को परमात्मा का रूप मान बैठताहै। खेचरी मुद्रा से जिह्वा को जिह्वा मूल के पास ऊपर कण्ठ-कूप होता है जिसमें जिह्वा को मूल सेउर्ध्व में ले जाकर क्रिया कराते हैंजिसे खेचरी मुद्रा कहते हैंइसी का दूसरा नाम अमृत-पान कीविधि भी बताते हैं। साथ ही दोनों कानों को बंदकर अनहद्-नाद की क्रिया कराकर कहा जाता है कियही परमात्मा के यहाँ खुराक हैजिससे अमरता मिलती है और यही वह बाजा है जो परमात्मा केयहाँ सदा बजता रहता है। योग की सारी जानकारी तो आज्ञा-चक्र में आत्मा से मूलाधार स्थित जीवपुनः मूलाधार स्थित जीव से आज्ञा-चक्र स्थित आत्मा तक ही होतीहै।...............................................................हर हर महादेव 



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