कुंडलिनी शक्ति ::::योगिक और
तांत्रिक दृष्टि
=============================
कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन
फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है |जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति
सांसारिक विषयों की और भागता रहता है |परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है की कोई
सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है |यह बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है |कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारो
तरफ लिपटा हुआ जब उपर की और गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक
पहुँचना होता है ,लेकिन यदि व्यक्ति
संयम ,ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर
गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है |
हमारी प्राणशक्ति के केंद्र कुंडलिनी को अंग्रेजी
भाषा में surpent power कहते है ||पहले विज्ञानं भी
इसको नहीं मानता था ,क्यूंकि वे खुद
इसके अनुभवी नहीं थे ,पर आज ऊर्जा
चक्रों की ऊर्जा वे देख चुके हैं तो वो आगे खोज कर रहे हैं |आज वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं की कुछ तो विशेष
है जो दिखाई नहीं देता और जिसे अभी प्रमाणित किया जाना बाकी है ,पर वह सबसे विशेष है और उसकी शक्ति असीमित है |
ऋग्वेद ६ १६ १३ में एक मन्त्र आता है
तवामग्ने पुष्कराद्ध्यथर्वा निर्मंथत |मूर्ध्ना विश्वस्य वाघत ||
कुछ लोगों को लगता है की कुंडलिनी शक्ति जादू है पर
ये हमारे शरीर की ही ऊर्जा है जो सभी ऊर्जा चक्रों पर पूर्ण नियंत्रण के बाद जागती
है और हमारे पूर्वज इसे जानते थे |तभी
ये अधिकतर लोगों को सुना-सुना लगता
है |
कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी के सबसे निचले हिस्से
में नाभि के नीचे मूलाधार में सोई हुई अवस्था में रहती है |………………………………………………………………………हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment