कपालभाति प्राणायाम
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ध्यानात्मक आसन में बैठें। पेट को फैलाते हुए श्वास लें। पेट की पेशियों को बलपूर्वक संकुचित करतेहुए श्वास छोड़ें, किन्तु अधिक जोर न लगायें। अगली श्वास उदर की पेशियों को बिना फैलाते हुएसहज ढंग से लें। पूरक सहज होना चाहिए,उसमें किसी प्रकार का प्रयास नहीं लगना चाहिए। प्रारम्भमे 10 बार रेचक करें। गिनती मानसिक रूप से करें। 10 बार रेचक करने के बाद गहरी श्वास लेकरगहरी श्वास छोड़ें। यह एक चक्र पूरा हुआ। ३ से ५ चक्र अभ्यास करें। उच्च अभ्यासी १०चक्र या उससेअधिक अभ्यास कर सकते हैं। जैसे- जैसे उदर की पेशियाँ मजबूत होती जायें, श्वास- प्रश्वास कीसंख्या को 10 से बढ़ाकर 20 तक ले जा सकते हैं।
नोटः- श्वास लेते और निकालते समय पसलियों के बीच की मांसपेशियाँ यथासम्भव जैसी की तैसीस्थिति में रखी जाती हैं और केवल पेट की मांसपेशियों को उठाया और गिराया जाता है। पूरक औररेचक में लगने वाले समय में भी बड़ा अन्तर है। उदाहरणार्थ अगर एक रेचक और एक पूरक मेंमिलकर एक सेकेण्ड लगता हो, तो रेचक में चौथाई सेकेण्ड और पूरक में पौन सेकेण्ड समझनाचाहिए। इसका आशय यह है कि कपालभाति में रेचक की ही मुख्यता है।
लाभ- इड़ा और पिङ्गला नाड़ी का शोधन। मन से इन्द्रिय विक्षेपों को दूर करता है। निद्रा, आलस्यको दूर करता है। मन को ध्यान के लिये तैयार करता है। दमा,वातस्फीति,ब्रोन्काइटिस और यक्ष्मा सेपीड़ित व्यक्तियों के लिये उत्तम। तन्त्रिका तन्त्र में सन्तुलन लाता एवं पाचन तन्त्र को पुष्ट करताहै। आध्यात्मिक साधकों के लिए यह अभ्यास विचारों एवं सूक्ष्म दृश्यों को रोकता है।
सावधानियाँ- हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, चक्कर आना, मिर्गी, हर्नियाँ या गैस्ट्रिक अल्सर से पीड़ितव्यक्ति यह प्राणायाम न करें। ..............................................................हर-हर महादेव
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