Sunday, 20 May 2018

मणिपूरक-चक्र


मणिपूरक-चक्र
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नाभि मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अन्तर्गत मणिपूरक नामक तीसरा चक्र हैजोदस दल कमल पंखुनियों से युक्त है जिस पर स्वर्णिम वर्ण के दस अक्षर बराबर कायम रहते हैं। वेअक्षर –  एवं  हैं। इस चक्र के अभीष्ट देवता ब्रह्मा जी हैं। जो साधकनिरन्तर स्वांस-प्रस्वांस रूप साधना में लगा रहता है उसी की कुण्डलिनी-शक्ति मणिपूरक-चक्र तकपहुँच पाती है आलसियों एवं प्रमादियों की नहीं। मणिपूरक-चक्र एक ऐसा विचित्र-चक्र होता हैजोतेज से युक्त एक ऐसी मणि हैजो शरीर के सभी अंगों-उपांगों के लिए यह एक आपूर्ति-अधिकारी केरूप में कार्य करता रहता है। यही कारण है कि यह मणिपूरक-चक्र कहलाता है। नाभि कमल पर हीब्रह्मा का वास है। सहयोगार्थ-समान वायु - मणिपूरक-चक्र पर सभी अंगों और उपांगों की यथोचितपूर्ति का भार होता है। इसके कार्य भार को देखते हुये सहयोगार्थ समान वायु नियत की गयीताकिबिना किसी परेशानी और असुविधा के ही अतिसुगमता पूर्वक सर्वत्र पहुँच जाय। यही कारण है कि हरप्रकार की भोग्य वस्तु इन्ही के क्षेत्र के अन्तर्गत पहुँच जाने की व्यवस्था नियत हुई है ताकि काफीसुविधा-पूर्वक आसानी से लक्ष्य पूर्ति होती रहे।
मणिपूरक-चक्र के अभीष्ट देवता ब्रह्मा जी पर ही सृष्टि का भी भार होता है अर्थात गर्भाशय स्थितशरीर रचना करनाउसकी सामग्रियों की पूर्ति तथा साथ ही उस शरीर की सारी व्यवस्था का भारजन्म तक ही इसी चक्र पर रहता है जिसकी पूर्ति ब्रह्मनाल (ब्रह्म-नाड़ीके माध्यम से होती रहतीहै। जब शरीर गर्भाशय से बाहर  जाता है तब इनकी जिम्मेदारी समाप्त हो जातीहै।.....................................................................हर हर महादेव 

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