Sunday, 20 May 2018

कुंभक प्राणायाम


कुंभक प्राणायाम 
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किसी भी प्रकार का प्राणायाम करते वक्त तीन क्रिया करते हैंरेचकपूरक और कुम्भक। श्वास कोअंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक और बाहर रोकने की क्रिया को बाहरी कुम्भक कहते हैं। कुम्भककरते वक्त श्वास को अंदर खींचकर या बाहर छोड़कर रोककर रखा जाता है।
1.आंतरिक कुम्भकइसके अंतर्गत नाक के छिद्रों से वायु को अंदर खींचकर जितनी देर तक श्वासको रोककर रखना संभव हो रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ दिया जाता है।
2.बाहरी कुम्भकइसके अंतर्गत वायु को बाहर छोड़कर जितनी देर तक श्वास को रोककर रखनासंभव रोककर रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को अंदर खींचा लिया जाता है। 
मात्रा या अवधिकुम्भक क्रिया का अभ्यास सुबहदोपहरशाम और रात को कर सकते हैं। कुम्भकक्रिया का अभ्यास हर 3 घंटे के अंतर पर दिन में 8 बार किया जा सकता है।
ध्यान रहे कि कुम्भक की आवृत्तियां शुरुआत में 1-2-1 की होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदिश्वास लेने में एक सैकंड लगा हैतो उसे दो सैकंड के लिए अंदर रोके और दो सैकंड में बाहर निकालें।फिर धीरे-धीरे 1-2-2, 1-3-2, 1-4-2 और फिर अभ्यास बढ़ने पर कुम्भक की अवधि और भी बढ़ाईजा सकती है। एक ओंकार उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्र माना जाता है। सामान्यतयाएक सेकंड या पल को मात्रा कहा जाता है।
विशेषताकुम्भक को अच्छे से रोके रखने के लिए जालंधरउड्डियान और मूलबंध बंधों का प्रयोगभी किया जाता है। इससे कुम्भक का लाभ बढ़ जाता है। मूर्च्छा और केवली प्राणायाम को कुम्भकप्राणायाम में शामिल किया गया है।
लाभकुम्भक के अभ्यास से आयु की वृद्धि होती है। संकल्प और संयम का विकास होता है। भूखऔर प्यास कर कंट्रोल किया जा सकता है। इससे खून साफ होता हैफेफड़े शुद्ध-मजबूत होते हैं।शरीर कांतिमान बनता है। नेत्र ज्योति बढ़ती है। नकारात्मक चिंतन सकारात्मक बनता है तथा भयऔर चिंता दूर होते हैं।................................................................हर-हर महादेव


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