Sunday, 20 May 2018

कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -१]


कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -]
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कुण्डलिनी योग अंतर्गत शक्तिपात विधान का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है  योग वशिष्ठ,तेजबिन्दूनिषद्योग चूड़ामणिज्ञान संकलिनी तंत्रशिव पुराणदेवी भागवतशाण्डिपनिषद,मुक्तिकोपनिषदहठयोग संहिताकुलार्णव तंत्रयोगनी तंत्रघेरंड संहिताकंठ श्रुति ध्यानबिन्दूपनिषदरुद्र यामल तंत्रयोग कुण्डलिनी उपनिषद्शारदा तिलक आदि ग्रंथों में इस विद्या केविभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है  फिर भी वह सर्वांगपूर्ण नहीं है कि उस उल्लेख के सहारेकोई अजनबी व्यक्ति साधना करके सफलता प्राप्त कर सके  पात्रता युक्त अधिकारी साधक औरअनुभवी सुयोग्य मार्ग-दर्शन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही ग्रंथों में इस गूढ़ विद्या परप्रायः संकेत ही किये गये हैं 
योरोपियन तांत्रिकों में जोकव बोहम की ख्याति कुण्डलिनी साधकों के रूप में रही है  उनके जर्मनशिष्य जान जार्ज गिचेल की लिखी पुस्तक 'थियोसॉफिक प्रोक्टिकामें चक्र संस्थानों का विशद वर्णनहै जिसे उन्होंने अनुसंधानों और अभ्यासों के आधार पर लिखा है  जैफरी हडस्वन ने इस संदर्भ मेंगहरी खोजें की हैं और आत्म विज्ञान एंव भौतिक विज्ञान के समन्वयात्मक आधार लेकर चक्रों मेंसन्निहित शक्ति और उसके उभार उपयोग के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है 
कुण्डलिनी साधना को अनेक स्थानों पर षट्चक्र वेधन की साधना भी कहते हैं ।पंचकोशी साधना यापंचाग्नि विद्या भी गायत्री की कुण्डलिनी या सावित्री साधना के ही रूप हैं  एम..एक डिग्री है इसेहिन्दी अंग्रेजीसिविक्सइकॉनॉमिक्स किसी भी विषय से प्राप्त किया जा सकता है  उसी प्रकारआत्म-तत्वआत्म शक्ति एक हैउसे प्राप्त करने के लिए विवेचन विश्लेषण और साधना विधानभिन्न हो सकते हैं  इसमें किसी तरह का विरोधाभास नहीं है  तैत्तरीय आरण्यक में चक्रों कोदेवलोक एवं देव संस्थान कहा गया  शंकराचार्य कृत आनन्द लहरी के १७ वें श्लोक में भी ऐसा हीप्रतिपादन है  योग दर्शन समाधिपाद का ३६वाँ सूत्र है-'विशोकाया ज्योतिष्मती' ,,इसमें शोक संतापोंका हरण करने वाली ज्योति शक्ति के रूप में कुण्डलिनी शक्ति की ओर संकेत है 
इस समस्त शरीर को-सम्पूर्ण जीवन कोशों को-महाशक्ति की प्राण प्रक्रिया संम्भाले हुए हैं  उसप्रक्रिया के दो ध्रुव-दो खण्ड हैं  एक को चय प्रक्रिया (एनाबॉलिक एक्शनकहते हैं  इसी को दार्शनिकभाषा में शिव एवं शक्ति भी कहा जाता है  शिव क्षेत्र सहस्रार तथा शक्ति क्षेत्र मूलाधार कहा गया है ।इन्हें परस्पर जोड़ने वालीपरिभ्रमणिका शक्ति का नाम कुण्डलिनी है  सहस्रार और मूलाधार काक्षेत्र विभाजन करते हुए मनीषियों ने मूलाधार से लेकर कण्ठ पर्यन्त का क्षेत्र एवं चक्र संस्थान 'शक्ति'भाग बताया है और कण्ठ से ऊपर का स्थान 'शिवदेश कहा है 
मूलाद्धाराद्धि षट्चक्रं शक्तिरथानमूदीरतम् 
कण्ठादुपरि मूर्द्धान्तं शाम्भव स्थानमुच्यते॥ -वराहश्रुति
मूलाधार से कण्ठपर्यन्त शक्ति का स्थान है  कण्ठ से ऊपर से मस्तक तक शाम्भव स्थान है  यहबात पहले कही जा चुकी है 
मूलाधार से सहस्रार तक कीकाम बीज से ब्रह्म बीज तक की यात्रा को ही महायात्रा कहते हैं  योगीइसी मार्ग को पूरा करते हुए परम लक्ष्य तक पहुँचते हैं  जीवसत्ताप्राणशक्ति का निवासजननेन्द्रिय मूल में है  प्राण उसी भूमि में रहने वाले रज वीर्य से उत्पन्न होते हैं  ब्रह्म सत्ता कानिवास ब्रह्मलाक में-ब्रह्मरन्ध्र में माना गया है  यह द्युलोक-देवलोक स्वर्गलोक है आत्मज्ञान काब्रह्मज्ञान का सूर्य इसी लोक में निवास करता है  कमल पुष्प पर विराजमान ब्रह्म जी-कैलाशवासीशिव और शेषशायी विष्णु का निवास जिस मस्तिष्क मध्य केन्द्र में है-उसी नाभिक (न्यूविलसकोसहस्रार कहते हैं  आत्म साक्षात्कार की प्रक्रिया यहीं सम्पन्न होती है  पतन के स्खलन के गर्त मेंपड़ी क्षत-विक्षत आत्म सत्ता अब उर्ध्वगामी होती है तो उसका लक्ष्य इसी ब्रह्मलोक तकसूर्यलोकतक पहुँचना होता है  योगाभ्यास का परम पुरुषार्थ इसी निमित्त किया जाता है  कुण्डलिनी जागरणका उद्देश्य यही है ..............................................................हर-हर महादेव 

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