Sunday 20 May 2018

कुंडलिनी का कार्य


कुंडलिनी का कार्य
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कुंडलिनी से ही सभी नाड़ियों का सञ्चालन होता है |योग में मानव शरीर के भीतर ७ चक्रों का वर्णन किया गया है |कुंडलिनी को जब ध्यान अथवा तंत्र के द्वारा जाग्रत किया जाता है तब यही शक्ति जागृत होकर मष्तिष्क की और बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों को क्रियाशील करती है |योग अभ्यास से शारीर के सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषुम्ना में स्थित चक्रों का भेदन कराते हुए सहस्त्रार तक ले जाया जाता है |यह कुंडलिनी ही हमारे शरीर ,भाव और विचार को प्रभावित करती है |
शरीर में मूलतः सात चक्र होते हैं --मूलाधार ,स्वाधिष्ठान ,मणिपुर ,अनाहत ,विशुद्धि ,आज्ञा और सहस्त्रार |
इसके साथ ही शरीर में तीन मुख्या नाड़ियाँ होती हैं ,,इडा [इंगला],पिंगला और सुषुम्ना |नादियों को शुद्ध करने के लिए ही सभी तरह के प्राणायाम किये जाते हैं |इनके शुद्ध होने से शरीर में स्थित ७२ हजार नाड़ियाँ भी शुद्ध होने लगती हैं |कुंडलिनी जागरण में नाड़ियों का शुद्ध और पुष्ट होना आवश्यक है |स्वर विज्ञान में इसका उल्लेख मिलता है |
सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार से आरम्भ होकर सर के सर्वोच्च स्थान सहस्रार तक आती है |सभी चक्र सुषुमन में ही स्थित होते हैं |इडा को गंगा ,पिंगला को यमुना और सुषुम्ना को सरस्वती कहा गया है |इन तीन नाड़ियों का पहला मिलन केंद्र मूलाधार कहलाता है |इसलिए मूलाधार को मुक्ति त्रिवेणी और आज्ञा चक्र को युक्त त्रिवेणी कहते हैं |
मेरुरज्जु में प्राणों के प्रवाह के लिए सूक्ष्म नाड़ी है जिसे सुषुम्ना कहा गया है |इसमें अनेक केंद्र हैं जिसे चक्र अथवा पद्म कहा जाता है |कई नाड़ियों के एक स्थान पर मिलने से इन चक्रों अथवा केन्द्रों का निर्माण होता है |कुंडलिनी जब चक्रों का भेदन करती है तो उस चक्र में विशेष शक्ति का संचार हो उठता है |मानो कमल पुष्प प्रस्फुटित हो गया है और उस चक्र की गुप्त शक्तियां प्रकट हो जाती हैं |यही सिद्धियों के रूप में सामने आती हैं |
कुंडलिनी योग ऐसी योग क्रिया है जिसमे व्यक्ति अपने भीतर मौजूद कुंडलिनी शक्ति को जगाकर दिव्यशक्ति को प्राप्त कर सकता है |कुंडलिनी के साथ सात चक्रों का जागरण होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता है |यह भूत और भविष्य का जानकार बन जाता है |वह शरीर से बाहर निकल कर कहीं भी भ्रमण कर सकता है |वह अपनी सकारात्मक शक्ति के द्वारा किसी के भी दुःख -दर्द दूर करने में सक्षम होता है |सिद्धियों की कोई सीमा नहीं होती |………………………………………………………………………...हर-हर महादेव 

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