नाड़ीशोधन प्राणायाम
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सहज आसन में मेरुदण्ड सीधा करके बैठिए। प्राणायाम मुद्रा में दायाँ नथुना बन्द करके बायें नथुनेसे गहरी श्वास खीचिए और उसे नाभि चक्र तक ले जाइए। ध्यान कीजिए कि नाभि स्थान में पूर्णिमाके पूर्ण चन्द्र के समान पीतवर्ण शीतल प्रकाश विद्यमान है। खींचा हुआ श्वास उसे स्पर्श कर रहा है।आसानी से जितना सम्भव हो श्वास भीतर रोकिए। ध्यान कीजिए, पूर्ण चन्द्र को खींचा हुआ श्वासस्पर्श करके स्वयं शीतल और प्रकाशवान् बन रहा है। जिस नथुने से श्वास खींचा था, उसी बाएँ छिद्रसे ही श्वास बाहर निकालिए, ध्यान कीजिए लौटने वाली वायु इड़ा नाड़ी को शीतल प्रकाशवान् बनारही है। कुछ देर श्वास बाहर रोकिए और फिर से उपर्युक्त क्रिया बाएँ नथुने से ही तीन बार कीजिए।
जिस प्रकार बाएँ नथुने से पूरक, अन्तःकुम्भक, रेचक, बाह्य कुम्भक किया था; उसी प्रकार दाहिनेनथुने से भी उपर्युक्त क्रिया तीन बार कीजिए। नाभिचक्र में चन्द्रमा के स्थान पर सूर्य का ध्यानकीजिए और श्वास छोड़ते समय भावना कीजिए, लौटने वाली वायु पिंगला नाड़ी के भीतर उष्णताएवं प्रकाश पैदा कर रही है।
अब नासिका के दोनों छिद्रों से श्वास लीजिए, भीतर रोकिए और मुँह खोलकर श्वास बाहर निकालदीजिए। तीन बार बाएँ नासिका से श्वास खींचना- छोड़ना, तीन बार दाएँ नासिका से श्वास खींचना-छोड़ना तथा एक बार दोनों नासिका छिद्र से श्वास खींचना और मुँह से निकालना, यह सात विधानमिलकर एक नाड़ी शोधन प्राणायाम हुआ। ऐसे तीन प्राणायाम पूरे कीजिए शेष समय में सहजलयबद्ध श्वास के साथ शान्ति का अनुभव कीजिए। ............................................................................हर-हर महादेव
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