Sunday, 20 May 2018

कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -३]


कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -]
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चक्रवेधनचक्रशोधनचक्र परिष्कारचक्र जागरण आदि नामों से बताये गये विवेचनों एवं विधानों मेंकहा गया है कि इस प्रयास से अदक्षताओं एवं विकृतियों का निराकरण होता है  जो उपयुक्त है उसकीअभिवृद्धि का पथ प्रशस्त होता है  सत्प्रवृत्तियों के अभिवर्धनदुष्प्रवृत्तियों के दमन में यह चक्रवेधनविधान कितना उपयोगी एवं सहायक है इसकी चर्चा करते हुए शारदा तिलक ग्रंथ के टीकाकार ने'आत्म विवेकनामक किसी साधना ग्रंथ का उदाहरण प्रस्तुत किया है  कहा गया है कि-
गुदलिङान्तरे चक्रमाधारं तु चतुर्दलम् 
परमः सहजस्तद्वदानन्दो वीरपूर्वकः॥
योगानन्दश्च तस्य स्यादीशानादिदले फलम् 
स्वाधिष्ठानं लिंगमूले षट्पत्रञ्त्र् क्रमस्य तु॥
पूर्वादिषु दलेष्वाहुः फलान्येतान्यनुक्रमात् 
प्रश्रयः क्रूरता गर्वों नाशो मूच्छर् ततः परम्॥
अवज्ञा स्यादविश्वासो जीवस्य चरतो धु्रवम् 
नाभौ दशदलं चक्रं मणिपूरकसंज्ञकम् 
सुषुप्तिरत्र तृष्णा स्यादीष्र्या पिशुनता तथा॥
लज्ज् भयं घृणा मोहः कषायोऽथ विषादिता 
लौन्यं प्रनाशः कपटं वितर्कोऽप्यनुपिता॥
आश्शा प्रकाशश्चिन्ता  समीहा ममता ततः 
क्रमेण दम्भोवैकल्यं विवकोऽहंक्वतिस्तथा॥
फलान्येतानि पूर्वादिदस्थस्यात्मनों जगुः 
कण्ठेऽस्ति भारतीस्थानं विशुद्धिः षोडशच्छदम्॥
तत्र प्रणव उद्गीथो हुँ फट् वषट् स्वधा तथा 
स्वाहा नमोऽमृतं सप्त स्वराः षड्जादयो विष॥
इति पूर्वादिपत्रस्थे फलान्यात्मनि षोडश॥
(गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्रहै  वहाँ वीरता और आनन्द भाव कानिवास है 
(इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है  उसकी छः पंखुरियाँ हैं  इसके जाग्रत होने परक्रूरतागर्वआलस्यप्रमादअवज्ञाअविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है 
(नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है  यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णाईर्ष्याचुगलीलज्जा,भयघृणामोहआदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं
(हृदय स्थान में अनाहत चक्र है  यह बारह पंखरियों वाला है  यह सोता रहे तो लिप्साकपट,तोड़-फोड़कुतर्कचिन्तामोहदम्भअविवेक अहंकार से भरा रहेगा  जागरण होने पर यह सबदुर्गुण हट जायेंगे 
(कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है  यह सोलह पंखुरियों वाला है  यहाँ सोलहकलाएँ सोलह विभतियाँ विद्यमान है
(भू्रमध्य में आज्ञा चक्र हैयहाँ 'उद्गीयहूँफटविषदस्वधा स्वहासप्त स्वर आदि कानिवास है  इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं 
श्री हडसन ने अपनी पुस्तक 'साइन्स आव सीयर-शिपमें अपना मत व्यक्त किया है  प्रत्यक्ष शरीरमें चक्रों की उपस्थिति का परिचय तंतु गुच्छकों के रूप में देखा जा सकता है  अन्तः दर्शियों काअनुभव इन्हें सूक्ष्म शरीर में उपस्थिति दिव्य शक्तियों का केन्द्र संस्थान बताया है 
कुण्डलिनी के बारे में उनके पर्यवेक्षण का निष्कर्ष है कि वह एक व्यापक चेतना शक्ति है  मनुष्य केमूलाधार चक्र में उसका सम्पर्क तंतु है जो व्यक्ति सत्ता को विश्व सत्ता के साथ जोड़ता है ।कुण्डलिनी जागरण से चक्र संस्थानों में जागृति उत्पन्न होती है  उसके फलस्वरूप पारभौतिक (सुपरफिजीकलऔर भौतिक (फिजीकलके बीच आदान-प्रदान का द्वार खुलता है  यही है वह स्थितिजिसके सहारे मानवी सत्ता में अन्तर्हित दिव्य शक्तियों का जागरण सम्भव हो सकता है ...........[क्रमशः ]..............................................हर -हर महादेव 

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