भस्रिका प्राणायाम
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ध्यानात्मक आसन में बैठें। दाहिने नासिका छिद्र को बन्द कर बाएँ से दस बार जल्दी- जल्दी श्वासलें और छोड़ें। श्वास के साथ पेट लयपूर्ण ढंग से फैलना और सिकु ड़ना चाहिए। वायु भरने और छोड़नेकी क्रिया पेट द्वारा ही होनी चाहिए। वक्ष को न फैलायें और न ही कन्धों को उठायें। नासिका में सूँ-सूँ की आवाज होनी चाहिए ,, किन्तु गले और छाती से कोई आवाज नहीं आनी चाहिए। 10 बार पूरकऔर रेचक करने के बाद, बाएँ नासिका छिद्र से गहरी श्वास लें। अन्तःकुम्भक करें। बाएँ नासिकाछिद्र से ही रेचक करें। इसी प्रकार सारी क्रियाएँ दाहिनी नासिका से 10 बार एवं दोनों नासिका से 10बार करें। ऊपर बतायी गई विधि के अनुसार पहले बाएँ फिर दाएँ और अन्त में दोनों नासिका छिद्रोंसे श्वसन करने से अभ्यास का एक चक्र पूरा होता है। अभ्यास के दौरान सजगता नाभि पर बनायेंरखें।
सावधानियाँ- नये अभ्यासियों को प्रत्येक चक्र के बाद थोड़ा विश्राम कर लेना चाहिए। उच्चरक्तचाप, हृदयरोग, हर्निया, गैस्ट्रिक, अल्सर, दौरा, मिर्गी या चक्कर आने की बीमारी वाले लोगोंको भस्रिका का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
लाभ- शरीर के विषैले पदार्थ को जलाता है। वात,पित्त,कफ से सम्बन्धित रोगों को दूर करता है।पाचन संस्थान को पुष्ट करता है। दमा एवं फेफड़े के रोग में उत्तम। गले की सूजन एवं कफ केजमाव को दूर करता है। मानसिक शान्ति और एकाग्रता में उपयोगी।
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