प्राणाकर्षण प्राणायाम
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शरीर, विज्ञान के ज्ञाता प्राणायाम को फेफड़ों की कसरत मानते हैं और उसके लाभ, श्वास तथा क्षयसरीखे रोगों से छुटकारा मिलना समझते हैं। सीने की चौड़ाई बढ़ने और श्वास-प्रश्वास क्रिया मेंतीव्रता आने से हृदय तथा मस्तिष्क को बल मिलने एवं आयुष्य बढ़ने की बात भी डाक्टरों द्वारास्वीकार की गई हैं। कितने ही चिकित्सक प्राणायाम की विभिन्न विधियों द्वारा नाना प्रकार के रोगोंकी चिकित्सा भी करने लगे हैं और उसके परिणाम भी आशाजनक हुए हैं। शारीरिक दृष्टि सेप्राणायाम का बहुत महत्व हैं पर आध्यात्मिक दृष्टि से उसकी महत्ता अत्यधिक हैं। मन कीचंचलता दूर करके उसमें एकाग्रता उत्पन्न करने के लिए प्राणायाम को एक अमोघ अस्त्र माना जाताहैं । योग का आधार ही चित्त वृत्तियों का निरोध अथवा एकाग्रता हैं। जिसका चित्त चंचलता कोछोड़कर एक बिंदु पर एकाग्र हो गया उसे तुरन्त समाधि की स्थिति प्राप्त होती है और तत्क्षणआत्मा का दर्शन होने लगता है।
(1) प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख, पालती मार कर आसन पर बैठिए । दोनोंहाथों को घुटनों पर रखिए। मेरुदण्ड, सीधा रखिए। नेत्र बन्द कर लीजिए। ध्यान कीजिए कि अखिलआकाश में तेज और शक्ति से ओत-प्रोत प्राण-तत्त्व व्याप्त हो रहा हैं। गरम भाप के, सूर्य प्रकाश मेंचमकते हुए, बादलों जैसी शकल के प्राण का उफन हमारे चारों ओर उमड़ता चला आ रहा है। और उसप्राण-उफन के बीच हम निश्चिन्त, शान्तचित्त एवं प्रसन्न मुद्रा में बैठे हुए हैं।
एक बलवान और बुद्धिमान मनुष्य को बल इसलिए मिलता हैं कि वह दुर्बलों को कुचले नहीं, किन्तुउनकी सहायता करे, उनका मार्ग-दर्शन करे।
(2)नासिका के दोनों छिद्रों से धीरे-धीरे साँस खींचना आरंभ कीजिए और भावना कीजिए किप्राणतत्त्व के उफनते हुए बादलों को हम अपनी साँस द्वारा भीतर खींच रहे हैं। जिस प्रकार पक्षीअपने घोंसले में, साँप अपने बिल में प्रवेश करता हैं उसी प्रकार वह अपने चारों ओर बिखरा हुआप्राण-प्रवाह हमारी नासिका द्वारा साँस के साथ शरीर के भीतर प्रवेश करता हैं और मस्तिष्क छाती,हृदय, पेट, आँतों से लेकर समस्त अंगों में प्रवेश कर जाता हैं।
(3)जब साँस पूरी खिंच जाय तो उसे भीतर रोकिए और भावना कीजिए कि −जो प्राणतत्त्व खींचागया हैं उसे हमारे भीतरी अंग प्रत्यंग सोख रहे हैं। जिस प्रकार मिट्टी पर पानी डाला जाय तो वह उसेसोख जाता है, उसी प्रकार अपने अंग सूखी मिट्टी के समान हैं और जल रूप इस खींचे हुए प्राण कोसोख कर अपने अन्दर सदा के लिए धारण कर रहें हैं। साथ ही प्राणतत्त्व में संमिश्रित चैतन्य, तेज,बल, उत्साह, साहस, धैर्य, पराक्रम, सरीखे अनेक तत्त्व हमारे अंग-अंग में स्थिर हो रहे हैं।
(4) जितनी देर साँस आसानी से रोकी जा सके उतनी देर रोकने के बाद धीरे-धीरे साँस बाहरनिकालिए। साथ ही भावना कीजिए कि प्राण वायु का सारतत्त्व हमारे अंग-प्रत्यंगों के द्वारा खींचलिए जाने के बाद अब वैसा ही निकम्पा वायु बाहर निकाला जा रहा है जैसा कि मक्खन निकाल लेनेके बाद निस्सार दूध हटा दिया जाता है। शरीर और मन में जो विकार थे वे सब इस निकलती हुईसाँस के साथ घुल गये हैं और काले धुँऐ के समान अनेक दोषों को लेकर वह बाहर निकल रहे हैं।
(5) पूरी साँस बाहर निकल जाने के बाद कुछ देर साँस रोकिए अर्थात् बिना साँस के रहिए और भावनाकीजिए कि अन्दर के दोष बाहर निकाले गये थे उनको वापिस न लौटने देने की दृष्टि से दरवाजाबन्द कर दिया गया है और वे बहिष्कृत होकर हमसे बहुत दूर उड़ें जा रहे हैं। इस प्रकार पाँच अंगों मेंविभाजित इस प्राणाकर्षण प्राणायाम को नित्य ही जप से पूर्व करना चाहिए। आरंभ 5 प्राणायामों सेकिया जाय । अर्थात् उपरोक्त क्रिया पाँच बार दुहराई जाय। इसके बाद हर महीने एक प्राणायामबढ़ाया जा सकता है। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ाते हुए एक वर्ष में आधा घंटा तक पहुँचा देनी चाहिए।प्रातःकाल जप से पर्व तो यह प्राणाकर्षण प्राणायाम करना ही चाहिए। इसके अतिरिक्त भी कोईसुविधा का शान्त, एकान्त अवसर मिलता हो तो उस में भी इसे किया जा सकताहैं।...........................................................हर-हर महादेव
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