शीतली व् शीतकारी प्राणायाम
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ध्यान के सुविधाजनक आसन में बैठें। जिह्वा के दोनों किनारों को इस प्रकार मोड़ें की उसकी आकृतिएक नलिका सी हो जाए। इस नली के द्वारा सी- सी की आवाज करते हुए श्वास अन्दर खींचें। पूरकके अन्त में जिह्वा अन्दर कर लें, मुँह को बन्द करें और नासिका के द्वारा रेचक करें। जिह्वा केऊपरी भाग में शीतलता का अनुभव करें।
लाभ- शरीर एवं मन शीतल। कामेच्छा और तापमान- नियमन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्णमस्तिष्कीय केन्द्रों को प्रभावित करता है। मानसिक और भावनात्मक उत्तेजनाओं को शान्ति प्रदानकरता है। भूख- प्यास पर नियन्त्रण कर तृप्ति प्रदान करता है। रक्तचाप और उदर की अम्लता कोकम करता है।
सावधानियाँ- इसका अभ्यास प्रदूषित वायुमण्डल और ठण्डे मौसम में नहीं करना चाहिए। निम्नरक्तचाप या श्वसन सम्बन्धी रोगों जैसे- दमा, ब्रोंकाइटिस और बहुत अधिक कफ से पीड़ितव्यक्तियों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
शीतकारी प्राणायाम
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अपने जबड़े व दाँत सहजता से बन्द रखें। दोनों होठों को थोड़ा सा खोल लें, पूरक करें। अन्य क्रियाएँतथा लाभ एवं सावधानियाँ शीतली प्राणायाम जैसी हीहैं।............................................................हर-हर महादेव
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