Sunday, 20 May 2018

कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -५]


कुण्डलिनी में षठ चक्र और उनका भेदन [भाग -]
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मेरुदण्ड को शरीर-शास्त्री स्पाइनल कामल कहते हैं  स्पाइनल एक्सिस एवं वर्टीब्रल कॉलम-शब्द भीउसी के लिए प्रयुक्त होते हैं  मोटे तौर पर यह ३३ अस्थि घटकों से मिलकर बनी हुई एक पोली दण्डीभर है  इन हड्डियों को पृष्ठ वंश-कशेरुका या 'वटिब्रीकहते हैं  स्थति के अनुरूप इनका पाँच भागोंमें विभाजन किया जा सकता है 
(ग्रीवा प्रदेश-सर्वाइकल रीजन- अस्थि खण्ड, (वक्ष प्रदेश-डार्सल रीजन-१२ अस्थि खण्ड, ()कटि प्रदेश-लम्बर रीजन- अस्थि खण्ड, (त्रिक या वस्तिगह-सेक्रल रीजन- अस्थि खण्ड, ()चेचु प्रदेश-काक्सीजियल रीजन- अस्थि खण्ड 
मेरुदण्ड पोला है  उससे अस्थि खण्डों के बीच में होता हुआ यह छिद्र नीचे से ऊपर तक चला गया है ।इसी के भीतर सुषुम्ना नाड़ी विद्यमान है  मेरुदण्ड के उर्पयुक्त पाँच प्रदेश सुषुम्ना में अवस्थित पाँचचक्रों से सम्बन्धित हैं-(मूलाधार चक्र-चेचु प्रदेश (स्वाधिष्ठान-त्रिक प्रदेश (मणिपूर-कटिप्रदेश (बनाहत-वक्ष प्रदेश (विशुद्धि-ग्रीवा प्रदेश छठे आज्ञा चक्र का स्थान मेरुदण्ड में नहीं आता।
सहस्रार का सम्बन्ध भी रीढ़ की हड्डी से सीधा नहीं है  इतने पर भी सूक्ष्म शरीर का सुषुम्ना मेरुदण्डपाँच रीढ़ वाले और दो बिना रीढ़ वाले सभी सातों चक्रों को एही श्रृंखला में बाँधे हुए है  सूक्ष्म शरीर कीसुषुम्ना में यह सातों चक्र जंजीर की कड़ियों की तरह परस्पर पूरी तरह सम्बन्ध हैं 
यहाँ यह तथ्य भली-भाँति स्मरण रखा जाना चाहिए कि शरीर विज्ञान के अंतर्गत वर्णित प्लेक्सस,नाड़ी गुच्छक और चक्र एक नहीं है यद्यपि उनके साथ पारस्परिक तारतम्य जोड़ा जा सकता है  योंइन गुच्छकों की भी शरीर में विशेष स्थिति है और उनकी कायिक और मानसिक स्वास्थ्य कोप्रभावित करने वाली प्रतिक्रिया होती रहती है 
शरीरशास्त्र के अनुसार प्रमुख नाड़ी गुच्छकों (प्लेक्ससेजमें १३ प्रधान हैं  उनके नाम हैं (हिपेटिक(सर्वाकल (बाँकियल (काक्जीजियल (लम्बर (सेक्रल (कार्डियक (इपिगेस्टि्रक(इसोफैजियल (१०फेरेन्जियल (११पलमोनरी (१२लिंगुअल (१३प्रोस्टटिक 
इन गुच्छकों में शरीर यात्रा में उपयोगी भूमिका सम्पन्न करते रहने के अतिरिक्त कुछ विलक्षणविशेषतायें भी पाई जाती हैं  उनसे यह प्रतीत होता है कि उनके साथ कुछ रहस्यमय तथ्य भी जुड़े हुएहैं  यह सूक्ष्म शरीर के दिव्य चक्रों के सान्निध्य से उत्पन्न होने वाला प्रभाव ही कहा गया जा सकताहै 
चक्रशक्ति संचरण के एक व्यवस्थितसुनिश्चित क्रम को कहते हैं  वैज्ञानिक क्षेत्र में विद्युत,ध्वनिप्रकाश सभी रूपों में शक्ति के संचार क्रम की व्याख्या चक्रों (साइकिल्सके माध्यम से ही कीजाती है  इन सभी रूपों में शक्ति का संचारतरंगों के माध्यम से होता है  एक पूरी तरंग बनने केक्रम को एक चक्र (साइकिलकहते हैं  एक के बाद एक तरंगएक के बाद एक चक्र (साइकिलबननेका क्रम चलता रहता है और शक्ति का संचरण होता रहता है 
शक्ति की प्रकृति (नेचरका निर्धारण इन्हीं चक्रों के क्रम के आधार पर किया जाता है  औद्यौगिकक्षेत्र में प्रयुक्त विद्युत के लिए अंतराष्ट्रीय नियम है कि वह ५० साइकिल्स प्रति सेकेन्ड के चक्र क्रमकी होनी चाहिए  विद्युत की मोटरों एवं अन्य यंत्रों को उसी प्रकृति की बिजली के अनुरूप बनायाजाता है  इसीलिए उन पर हार्सपावरवोल्टेज आदि के साथ ५० साइकिल्स भी लिखा रहता है  अस्तुशक्ति संचरण के साथ 'चक्रप्रक्रिया जुड़ी ही रहती है  वह चाहे स्थूल विद्युत शक्ति हो अथवा सूक्ष्मजैवीय विद्युत शक्ति 
नौ के वर्णन में भी नाम और स्थानों की भिन्नता मिलती है  एक स्थान पर उनके नाम इस प्रकारगिनाये गये हैं-(ब्रह्म चक्र (स्वाधिष्ठान चक्र (नाभि चक्र (हृदय चक्र (कण्ठ चक्र ()तालु चक्र (भूचक्र (निर्वाण चक्र (आकाश चक्र बताये गये हैं  यह उल्लेख सिद्ध सिद्धान्तपद्धाति में विस्तारपूर्वक मिलता है 
संख्या जो भी मानी जाये उन सब का एक समन्वय शक्ति पुंज लोगोज (logos) भी है जिसकी स्थूलसूर्य के समान ही किन्तु अपने अलग ढंग की रश्मियाँ निकलती हैं  सूर्य किरणों में सात रंग अथवाऐसी विशेषतायें होती हैं जिनका स्वरूपविस्तार और कार्यक्षेत्र सीमित है  पर इस आत्मतत्त्व केसूर्य का प्रभाव और विस्तार बहुत व्यापक है  वह प्रकृति के प्रत्येक अणु को नियंत्रित एवं गतिशीलरखता है साथ ही चेतन संसार की विधि व्यवस्था को सँभालता सँजोता है  इसे पाश्चात्य तत्व वेत्तासन्स आफ फोतह (Sons of Fotah ) कहते हैं कि विश्वव्यापी शक्तियों का मानवीकरण इसी केन्द्रसंस्थान द्वारा हो सका है 
सामान्य शक्ति धाराओं में प्रधान गिनी जाने वाली (गति (शब्द (ऊष्मा (प्रकाश () (Electric Fluid) संयोग (विद्युत (चुम्बक यह सात हैं  इन्हें सात चक्रों का प्रतीक ही माननाचाहिए 
कुण्डलिनी शक्ति को कई विज्ञानवेत्ता विद्युत द्रव्य पदार्थ (श्वद्यद्गष्ह्लह्म्द्बष् स्नद्यह्वद्बस्र)या नाड़ी शक्ति कहते हैं 
इस निखिल विश्व ब्रह्मण्ड में संव्याप्त परमात्मा की छःचेतन शक्तियों का अनुभव हमें होता है  योंशक्ति पुञ्ज परब्रह्म की अगणित शक्ति धाराओं को पता सकना मनुष्य की सीमित बुद्धि के लिएअसम्भव है  फिर भी हमारे दैनिक जीवन में जिनका प्रत्यक्ष संम्पर्क संयोग रहता है उनमें प्रमुख यहहैं- (परा शक्ति (ज्ञान शक्ति (इच्छा शक्ति (क्रिया शक्ति (कुण्डलिनी शक्ति ()मातृका शक्ति (गुहृ शक्ति 
इन सबकी सम्मिलित शक्ति पुञ्ज ईश्वरीय प्रकाश सूक्ष्म प्रकाश (Astral Light) कह सकते हैं  यहसातवीं शक्ति है कोई चाहे तो इस शक्ति पुञ्ज को उर्पयुक्त छःशक्तियों का उद्गम भी कह सकता है। इन सबको हम चैतन्य सत्ताएँ कह सकते हैं  उसे पवित्र अग्नि (Sacred Fire) के रूप में भी कईजगह वर्णित किया गया है और कहा गया है उसमें से आग ऊष्मा तो नहीं पर प्रकाश किरणें निकलतीहैं और वे शरीर में विद्यमान ग्रंथियों ग्लैण्ड्सकेन्द्रों (Centres) और गुच्छकों को आसाधारण रूप सेप्रभावित करती हैं  इससे मात्र शरीर या मस्तिष्क को ही बल नहीं मिलता वरन् समग्र व्यक्तित्व कीमहान सम्भावना को और अग्रसर करती हैं 
इन सात चक्रों में अवस्थित सात उर्पयुक्त शक्तियों का उल्लेख साधना ग्रंथों में अलंकारिक रूप मेंहुआ है  उन्हें सात लोकसात समुद्रसात द्वीपसात पर्वतसात ऋषि आदि नामों से चित्रित कियागया है 
इस चित्रण में यह संकेत है कि इन चक्रों में किन-किन स्तर के विराट् शक्ति स्रोतों के साथ सम्बन्ध है। बीज रूप में कौन महान सामर्थ्य इन चक्रों में विद्यमान है और जाग्रत होने पर उन चक्र संस्थानोंमाध्यम से मनुष्य का व्यक्तित्व छोटे से कितना विराट और विशाल हो सकता है  टोकरी भर बीज सेलम्बा-चौड़ा खेत हरा-भरा हो सकता है  अपने बीज भण्डार में सात टोकरी भरा-सात किस्म काअनाज सुरक्षित रखा है 
चक्र एक प्रकार के शीत गोदाम-कोल्डस्टोर है और इन ताला जड़ा हुआ है  इन सात तालों की एक हीताली है उसका नाम है 'कुण्डलिनी जब उसके जागरण की जाती है  शरीर रूपी साढ़े तीन एकड़ केखेत में वह बोया जाता है  यह छोटा खेत अपनी सुसम्पन्नता को अत्यधिक व्यापक बना देता है 
पुराण कथा के अनुसार राजा बलि का राज्य तीनों लोकों में था  भगवान् ने वामन रूप में उससे साढ़ेतीन कदम भूमि की भीक्षा माँगी  बलि तैयार हो गये  तीन कदम में तीन लोक और आधे कदम मेंबलि का शरीर नाप कर विराट् ब्रह्म ने उस सबको अपना लिया 
हमारा शरीर साढ़े तीन हाथ लम्बा है  चक्रों के जागरण में यदि उसे लघु से महान्-अण्ड से विभु करलिया जाय तो उसकी साढ़े तीन हाथ की लम्बाई-साढ़े तीन एकड़ जमीन  रहकर लोक-लोकान्तरोंतक विस्तृत हो सकती है और उस उपलब्धि की याचना करने के लिए भगवान् वामन रूप धारण करकेहमारे दरवाजे पर हाथ पसारे हुए उपस्थित हो सकते हैं  ..........................................................................हर-हर महादेव 

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