कुंडलिनी
योग और कुंडलिनी तंत्र [भैरवी तंत्र ]
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कुंडलिनी
जागरण अथवा कुंडलिनी साधन के दो मुख्य मार्ग हैं |योग द्वारा कुंडलिनी जागरण और
तंत्र द्वारा कुंडलिनी जागरण |योग द्वारा कुंडलिनी साधना को कुंडलिनी योग कहते हैं
और तंत्र द्वारा कुंडलिनी साधना को कुंडलिनी तंत्र साधना कहते हैं |दोनों
पद्धतियाँ यद्यपि एक दुसरे से कई प्रकार से मिली हुई हैं पर इनमे मूलभूत और
व्यावहारिक अंतर भी है |कुंडलिनी तंत्र में योग के कई अंश प्राप्त होते हैं तो
कुंडलिनी योग में तंत्र के विभिन्न सूत्रों का प्रयोग होता है |इनमे मूल भूत अंतर
यह है की योग ,सहस्त्रार से नीचे मूलाधार की ओर चलते हुए कुंडलिनी जागरण को
महत्त्व देता है ,जबकि तंत्र मूलाधार को पहले जाग्रत करके तब उपर उठने की बात करता
है |
योग मार्ग
,कुंडलिनी जागरण के लिए कठिन तपस्या ,मन और विचारों पर पूर्ण नियंत्रण ,भैतिकता
,विलाश ,कामुकता ,विषयात्मक संबंधों का पूर्ण परित्याग ,कठिन यौगिक शारीरिक
क्रियाओं द्वारा खुद को पूर्ण नियंत्रित कर कुंडलिनी जागरण की बात करता है ,जबकि
तंत्र ,योग द्वारा परित्यक्त जनन ऊर्जा ,लैंगिक सम्बन्ध ,स्त्री -पुरुष सम्भोग
,संतानोत्पत्ति क्षमता का ही उपयोग कर कुंडलिनी जागरण कर सृष्टि उत्पन्न करने की
क्षमता से सृष्टिकर्ता तक पहुँचने की बात करता है |इसलिए दोनों दो छोरों से चलते
हैं |योग मार्ग खुद को नियंत्रित ,विरक्त कर सहस्त्रार से नीचे की ओर चलते हुए
मूलाधार में सुप्त कुंडलिनी पर दबाव बना उसे जगाता है और फिर उर्ध्वगामी करता है
,जबकि तंत्र मूलाधार को ही प्रथम लक्ष्य बनाता है और इसे सशक्त करते हुए यहाँ
स्थित ग्रंथियों ,अंगों के उपयोग से ही इसे जाग्रत कर कुंडलिनी को उर्ध्वगामी करते
हुए विभिन्न चक्रों का भेदन कर सहस्त्रार तक लाता है |
मार्ग
कोई भी हो सर्वाधिक कठिन मूलाधार का जागरण ही है |इसके जागरण पर भारी परिवर्तन
होता है क्योकि यहीं कुंडलिनी शक्ति सुप्तावस्था में रहती है |योग द्वारा चूंकि
व्यक्ति पहले से ही नियंत्रित हुआ रहता है अतः उसपर इसके जागरण से बहुत मानसिक
-शारीरिक प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु तंत्र में चूंकि यहीं से शुरुआत होती है अतः यह
आग से खेलने के समान हो जाता है |99
प्रतिशत साधक इस आग में जल भी जाते हैं |तंत्र में शारीरिक क्रियाओं ,यौनांगों
,शारीरिक सम्बन्ध ,जनन क्षमता ,स्त्री का उपयोग होता है और इन्हें तीव्र से
तीव्रतर किया जाता है ,ताकि यह कुंडलिनी को उद्वेलित कर जगा दें |इस प्रक्रिया में
ऊर्जा न संभलने से व्यक्ति की स्थिति महिसासुर सी हो जाती है जो कुछ नहीं पहचानता
और अधिकतर इस स्थिति में पतित हो जाते हैं |तंत्र यहाँ ऊर्जा उत्पन्न कर उसे बढ़ाकर
नियंत्रित कर आगे बढने की बात करता है अतः यह मार्ग अधिक कठिन हो जाता है ,जिससे
केवल कुछ साधक ही सफल हो पाते हैं |इस मार्ग में स्त्री का उपयोग किया जाता है
जिसे यहाँ भैरवी कहते हैं और साधक भैरव स्वरुप होता है ,अतः इस मार्ग को भैरवी
तंत्र भी कहते हैं |......................................................हर-हर महादेव
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