श्री यन्त्र :: ब्रह्माण्ड का ऊर्जा स्वरुप
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श्री यंत्र या श्री चक्र एक मूल आकृति या यंत्र है ब्रह्मांडीय मूल ऊर्जा या शक्ति का |इसकी आराधना से ,साधना से मूल आदि शक्ति का साक्षात्कार होता है |यह सभी महान लोगों द्वारा पूजित यंत्र है |यहाँ तक की विज्ञानियों द्वारा भी अनुमोदित मूल आकृति है |श्री चक्र एक यंत्र है जिसका प्रयोग श्री विद्या की प्राप्ति में होता है |इसे श्री चक्र ,श्री यंत्र ,नव चक्र और महामेरु भी कहते हैं |यह सभी यंत्रों में शिरोमणि यन्त्र हैं और इसे यंत्रराज कहा जाता है। वस्तुतः यह एक एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र की स्थापना और पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। नवरात्रि, धनतेरस के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
श्री यन्त्र एक मात्र ऐसा यन्त्र है जो सम्पूर्ण पृथ्वी पर सर्वत्र पाया जाता है किसी न किसी रूप में |अभी हाल ही में इनकी आकृति स्वयमेव अमेरिका की जमीन पर एक बड़े भूभाग पर उभर आई जिसको हवाई जहाज से देखा गया और वैज्ञानिकों की समझ में नहीं आया की एक दिन में ऐसा यन्त्र आकृति इतने बड़े भूभाग में कैसे चित्रित हो गई जमीन पर |गूगल पर इसके चित्र उपलब्ध हैं |माना जाता है की यह किसी अन्य ग्रह या लोक के किसी शक्ति शक्ति द्वारा चित्रित कर दी गई |श्री यन्त्र ब्रह्माण्ड में सर्वत्र पाया जाता है |आपको जानकार आश्चर्य होगा की ॐ की ध्वनि से जो तरंगीय आकृति उभरती है वह श्री यन्त्र की होती है |जैसे ॐ आदि ध्वनि और मूल ध्वनि है वैसे ही श्री चक्र या श्री यंत्र मूल आकृति है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की |यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा संरचना की आकृति और संकेतक है |श्री स्सोक्त का पाठ वैदिक काल से होता रहा है ,वस्तुतः यह भी श्री चक्र अथवा श्री विद्या की ओर संकेत करता है की यह मूल आदि शक्ति है |साधकों में चक्र साधना ,चक्र निर्माण ,ज्यामितीय यंत्रादी का प्रयोग श्री चक्र से जुड़ा है और सभी देवी -देवताओं का श्री चक्र में स्थान है |
श्री यंत्र के केन्द्र में एक बिंदु है। इस बिंदु के चारों ओर 9 अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं जो नवशक्ति के प्रतीक हैं | इन नौ त्रिभुजों के अन्तःग्रथित होने से कुल ४३ लघु त्रिभुज बनते हैं | इस यन्त्र में अद्दृश्ये रूप से २८१६ देवी देवता विद्धमान है |श्री यन्त्र तीनो लोको का प्रतीक है इसलिए इसे त्रिपुर चक्र भी कहा जाता है | श्री यन्त्र का स्वरुप मनोहर व् विन्यास विचित्र है, इसके बीचो बीच बिंदु और सबसे बाहर भूपुर है भूपुर के चारो और चार द्वार है बिंदु से भूपुर तक कुल दस अवयव है -बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, बहिदारशर, चतुर्दर्शार, अष्टदल, षोडशदल, तीन वृत, तीन भूपुर | इस श्री यन्त्र की आराधना साधना आदि शंकराचार्य द्वारा भी की गई और उनके द्वारा स्थापी सभी पीठों की अधिष्ठात्री भगवती त्रिपुर सुंदरी है और श्री यन्त्र उनकी आराधना साधना का मुख्य यंत्र |
श्री यंत्र की आराध्या देवी श्री त्रिपुर सुन्दरी देवी मानी जाती हैं।इन्ही का नाम श्री विद्या ,ललिता त्रिपुर सुंदरी ,बाला त्रिपुर सुन्दरी ,षोडशी आदि भी है | पौष मास की सक्रांति के दिन और वह भी रविवार को बना हुआ श्रीयंत्र बेहद दुर्लभ और सर्वोच्च फल देने वाला होता है, लेकिन ऐसा ना होने पर आप किसी भी माह की सक्रांति के दिन या शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन इस यंत्र का निर्माण कर सकते हैं। यह यंत्र ताम्रपत्र (तांबे की प्लेट), रजतपत्र या स्वर्ण-पत्र पर ही बना होना चाहिए।
श्री यन्त्र मूलतः श्री विद्या त्रिपुर सुन्दरी का यन्त्र है ,तथापि श्रीयंत्र की पूजा के लिए लक्ष्मी जी के बीज मंत्र "ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्मै नम:" का प्रयोग भी हो सकता है, और अद्भुत लाभ भी मिलता है |अधिकतर लोग श्री यन्त्र को कमला या लक्ष्मी का ही यन्त्र समझते हैं और उन्हें फल भी प्राप्त होता है |क्यंकि कमला जो लक्ष्मी का रूप है श्री कुल की ही महाविद्या हैं और इनकी पूजा श्री चक्र में होती भी है और की भी जा सकती है |कथानुसार महात्रिपुर सुन्दरी ने प्रसन्न होकर अपना श्री उपाधि लक्ष्मी को प्रदान की थी ,तबसे लक्ष्मी ,श्री लक्ष्मी कहलाने लगी |अतः लक्ष्मी ,कमला ,त्रिपुरा श्री विद्या सभी की आराधना श्री चक्र पर हो सकती है |यहाँ तक की सभी महाविद्याओं की भी |
स्फटिक के श्री यन्त्र को शंख से श्री सूक्त पढ़ते हुए पंचाम्रत अभिषेक करने से अतुल वैभव के प्राप्ति होती है |
इस यंत्र को अपनाने से समस्त सुख व समृद्धि प्राप्त होती है | निर्धन धनवान बनता है और अयोग्य योग्य बनता है. |इसकी उपासना से व्यक्ति कि मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.| इस यंत्र को समस्त यंत्र में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है.
स्फटिक श्री यंत्र ऎश्वर्यदाता और लक्ष्मीप्रदाता है.| यह यंत्र आय में वृद्धि कारक व व्यवसाय में सफलता दिलाने वाला होता है.| आज के समय में स्थाई धन की अभिलाषा सभी के मन में देखी जा सकती है.| अधिकतर व्यक्ति कितना भी कमाएं परंतु धन उनके पास जमा नहीं हो पाता व्यय बने ही रहते हैं |. धन का संचय कर पाना कठिन काम हो जाता है |
श्री यन्त्र की साधना ,उपासना ,अर्चन की विधि बहुत गूढ़ और क्लिष्ट है और कहा जाता है की बिना गुरु दीक्षा के इसका पूजन नहं करना चाहिए ,किन्तु फिर भी सामान्य रूप से भी पूजित श्री यन्त्र अत्यंत प्रभावशाली और प्रभावकारी होता ही है |श्री विद्या के मूल षोडशी मन्त्र की साधना और विशिवत श्री चक्र की साधना ,अर्चन गुरु परम्परा और गुरु दीक्षा के द्वारा ही होती है |कहा जाता है की षोडशी मंत्र बिना योग्य गुरु की दीक्षा के नहीं करना चाहिए |किन्तु केवल श्री यन्त्र की पूजा और श्री सूक्त का पाठ ,श्री यंत्र अभिषेक ,कमला मंत्र जप ,लक्ष्मी मंत्र जप इस पर हो सकते हैं और यह तीब्र लाभकारी भी होते हैं |इसका किसी भी रूप में उपयोग कल्याणकारी होता है |.................................................................हर-हर महादेव
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श्री यंत्र या श्री चक्र एक मूल आकृति या यंत्र है ब्रह्मांडीय मूल ऊर्जा या शक्ति का |इसकी आराधना से ,साधना से मूल आदि शक्ति का साक्षात्कार होता है |यह सभी महान लोगों द्वारा पूजित यंत्र है |यहाँ तक की विज्ञानियों द्वारा भी अनुमोदित मूल आकृति है |श्री चक्र एक यंत्र है जिसका प्रयोग श्री विद्या की प्राप्ति में होता है |इसे श्री चक्र ,श्री यंत्र ,नव चक्र और महामेरु भी कहते हैं |यह सभी यंत्रों में शिरोमणि यन्त्र हैं और इसे यंत्रराज कहा जाता है। वस्तुतः यह एक एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र की स्थापना और पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। नवरात्रि, धनतेरस के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
श्री यन्त्र एक मात्र ऐसा यन्त्र है जो सम्पूर्ण पृथ्वी पर सर्वत्र पाया जाता है किसी न किसी रूप में |अभी हाल ही में इनकी आकृति स्वयमेव अमेरिका की जमीन पर एक बड़े भूभाग पर उभर आई जिसको हवाई जहाज से देखा गया और वैज्ञानिकों की समझ में नहीं आया की एक दिन में ऐसा यन्त्र आकृति इतने बड़े भूभाग में कैसे चित्रित हो गई जमीन पर |गूगल पर इसके चित्र उपलब्ध हैं |माना जाता है की यह किसी अन्य ग्रह या लोक के किसी शक्ति शक्ति द्वारा चित्रित कर दी गई |श्री यन्त्र ब्रह्माण्ड में सर्वत्र पाया जाता है |आपको जानकार आश्चर्य होगा की ॐ की ध्वनि से जो तरंगीय आकृति उभरती है वह श्री यन्त्र की होती है |जैसे ॐ आदि ध्वनि और मूल ध्वनि है वैसे ही श्री चक्र या श्री यंत्र मूल आकृति है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की |यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा संरचना की आकृति और संकेतक है |श्री स्सोक्त का पाठ वैदिक काल से होता रहा है ,वस्तुतः यह भी श्री चक्र अथवा श्री विद्या की ओर संकेत करता है की यह मूल आदि शक्ति है |साधकों में चक्र साधना ,चक्र निर्माण ,ज्यामितीय यंत्रादी का प्रयोग श्री चक्र से जुड़ा है और सभी देवी -देवताओं का श्री चक्र में स्थान है |
श्री यंत्र के केन्द्र में एक बिंदु है। इस बिंदु के चारों ओर 9 अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं जो नवशक्ति के प्रतीक हैं | इन नौ त्रिभुजों के अन्तःग्रथित होने से कुल ४३ लघु त्रिभुज बनते हैं | इस यन्त्र में अद्दृश्ये रूप से २८१६ देवी देवता विद्धमान है |श्री यन्त्र तीनो लोको का प्रतीक है इसलिए इसे त्रिपुर चक्र भी कहा जाता है | श्री यन्त्र का स्वरुप मनोहर व् विन्यास विचित्र है, इसके बीचो बीच बिंदु और सबसे बाहर भूपुर है भूपुर के चारो और चार द्वार है बिंदु से भूपुर तक कुल दस अवयव है -बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, बहिदारशर, चतुर्दर्शार, अष्टदल, षोडशदल, तीन वृत, तीन भूपुर | इस श्री यन्त्र की आराधना साधना आदि शंकराचार्य द्वारा भी की गई और उनके द्वारा स्थापी सभी पीठों की अधिष्ठात्री भगवती त्रिपुर सुंदरी है और श्री यन्त्र उनकी आराधना साधना का मुख्य यंत्र |
श्री यंत्र की आराध्या देवी श्री त्रिपुर सुन्दरी देवी मानी जाती हैं।इन्ही का नाम श्री विद्या ,ललिता त्रिपुर सुंदरी ,बाला त्रिपुर सुन्दरी ,षोडशी आदि भी है | पौष मास की सक्रांति के दिन और वह भी रविवार को बना हुआ श्रीयंत्र बेहद दुर्लभ और सर्वोच्च फल देने वाला होता है, लेकिन ऐसा ना होने पर आप किसी भी माह की सक्रांति के दिन या शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन इस यंत्र का निर्माण कर सकते हैं। यह यंत्र ताम्रपत्र (तांबे की प्लेट), रजतपत्र या स्वर्ण-पत्र पर ही बना होना चाहिए।
श्री यन्त्र मूलतः श्री विद्या त्रिपुर सुन्दरी का यन्त्र है ,तथापि श्रीयंत्र की पूजा के लिए लक्ष्मी जी के बीज मंत्र "ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्मै नम:" का प्रयोग भी हो सकता है, और अद्भुत लाभ भी मिलता है |अधिकतर लोग श्री यन्त्र को कमला या लक्ष्मी का ही यन्त्र समझते हैं और उन्हें फल भी प्राप्त होता है |क्यंकि कमला जो लक्ष्मी का रूप है श्री कुल की ही महाविद्या हैं और इनकी पूजा श्री चक्र में होती भी है और की भी जा सकती है |कथानुसार महात्रिपुर सुन्दरी ने प्रसन्न होकर अपना श्री उपाधि लक्ष्मी को प्रदान की थी ,तबसे लक्ष्मी ,श्री लक्ष्मी कहलाने लगी |अतः लक्ष्मी ,कमला ,त्रिपुरा श्री विद्या सभी की आराधना श्री चक्र पर हो सकती है |यहाँ तक की सभी महाविद्याओं की भी |
स्फटिक के श्री यन्त्र को शंख से श्री सूक्त पढ़ते हुए पंचाम्रत अभिषेक करने से अतुल वैभव के प्राप्ति होती है |
इस यंत्र को अपनाने से समस्त सुख व समृद्धि प्राप्त होती है | निर्धन धनवान बनता है और अयोग्य योग्य बनता है. |इसकी उपासना से व्यक्ति कि मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.| इस यंत्र को समस्त यंत्र में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है.
स्फटिक श्री यंत्र ऎश्वर्यदाता और लक्ष्मीप्रदाता है.| यह यंत्र आय में वृद्धि कारक व व्यवसाय में सफलता दिलाने वाला होता है.| आज के समय में स्थाई धन की अभिलाषा सभी के मन में देखी जा सकती है.| अधिकतर व्यक्ति कितना भी कमाएं परंतु धन उनके पास जमा नहीं हो पाता व्यय बने ही रहते हैं |. धन का संचय कर पाना कठिन काम हो जाता है |
श्री यन्त्र की साधना ,उपासना ,अर्चन की विधि बहुत गूढ़ और क्लिष्ट है और कहा जाता है की बिना गुरु दीक्षा के इसका पूजन नहं करना चाहिए ,किन्तु फिर भी सामान्य रूप से भी पूजित श्री यन्त्र अत्यंत प्रभावशाली और प्रभावकारी होता ही है |श्री विद्या के मूल षोडशी मन्त्र की साधना और विशिवत श्री चक्र की साधना ,अर्चन गुरु परम्परा और गुरु दीक्षा के द्वारा ही होती है |कहा जाता है की षोडशी मंत्र बिना योग्य गुरु की दीक्षा के नहीं करना चाहिए |किन्तु केवल श्री यन्त्र की पूजा और श्री सूक्त का पाठ ,श्री यंत्र अभिषेक ,कमला मंत्र जप ,लक्ष्मी मंत्र जप इस पर हो सकते हैं और यह तीब्र लाभकारी भी होते हैं |इसका किसी भी रूप में उपयोग कल्याणकारी होता है |.................................................................हर-हर महादेव
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