प्रसाद चढाने से भगवान परीक्षा में पास नहीं करेगा
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जब किसी परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू का समय आता है तब बच्चों और युवाओं को भगवान की अधिक याद आती है ,इनके साथ इनके माता -पिता भी चाहते हैं की बच्चे ने जो किया वो किया ,बस भगवान की कृपा हो जाए और उनका पुत्र /पुत्री सम्बंधित परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू में सफल हो जाए |माता -पिता खुद प्रेरित भी करते हैं इन्हें की भगवान् का हाथ जोड़ कर जाओ ,उन्हें मना कर जाओ की तुम सफल हो जाओ ,कहो की सफल हो जाओगे तो इतना प्रसाद चढाओगे ,खुद भी कुछ लोग बोलते हैं उनकी संतान सफल हो जायेगी तो इतना प्रसाद चढ़ाएंगे ,ये ये अर्पित करेंगे |जैसे भगवान इन चीजों का भूखा है और उसे कुछ मिल नहीं रहा की वह इन्हें सफलता दिला दे और उसे ये चीजे लोग चढ़ाएं |बच्चे और युवा भगवान् से मिन्नतें माँगते फिरते हैं इस अवधि में की भगवान कल्याण कर दो |भाग्य अच्छा है और कुछ मेहनत भी की है ,किसी तरह की कोई बाधा आदि घर में नहीं है तो कुछ को सफलता मिल जाती है और वे भगवान् का शुक्रिया अदा कर देते हैं ,कुछ अपनी मान्यता भूल जाते हैं और कुछ याद रख चढ़ा भी दी हैं |अधिकतर के साथ होता वही है जो उनके कर्म होते हैं और जो भाग्य में होता है ,कभी कभी उससे भी कम मिलता है |तब वो कहते हैं भगवान् भी नहीं सुनता |
भगवान कोई मनुष्य नहीं जो उसे प्रसाद ,चढ़ावे की आकांक्षा हो ,यह जानते तो सभी हैं पर फिर भी उसे रिश्वत देने का प्रयास करते ही हैं ,क्योकि रिश्वत से वह सभी को प्रसन्न होकर कार्य करते देखते हैं तो सोचते हैं की भगवान् भी ऐसा करेगा और भूल जाते हैं की भगवान् मनुष्य नहीं है |भगवान् एक शक्ति है ऊर्जा है जो सर्वत्र व्याप्त होता है ,शरीर के अंदर भी और शरीर के बाहर भी ,मंदिर में भी और घर में भी |उसका कोई स्थान निश्चित नहीं ,स्थान तो हमने निश्चित किये हैं अपनी सुविधा के लिए |छोटे बच्चे तो पवित्र होते हैं और उनकी भावनाओं का सचमुच कुछ असर होता है और भगवान् की सर्वत्र व्याप्त ऊर्जा उनकी भावनाओं से प्रभावित भी होती है किन्तु युवा और बड़े में ऐसा कम होता जाता है |किसी भी कर्म की सफलता -असफलता का अपना विज्ञान होता है ,नियम होते हैं ,भगवान् भी सामान्य स्थिति में उन नियमों को नहीं तोड़ सकता ,क्योकि यह नियम प्रकृति में खुद उसने ही बनाये होते हैं |वह उतना ही अधिकतम देता है जितना उसने किसी के भाग्य में निश्चित किया होता है ,किसी की कल्पना से या अधिक चाहने से वह अधिक नहीं दे देता |जो भाग्य उसने निश्चित किया होता है सामान्य रूप से उतना भी किसी को नहीं मिल पाता क्योकि उसे रोकने वाले भी बहुत से कारण होते हैं |
लोग कह सकते हैं की भगवान् ने जब भाग्य निश्चित किया तो उसे कौन दूसरा रोक सकता है ,क्या कोई भगवान् से भी उपर होता है |नहीं कोई भगवान् से तो उपर नहीं होता किन्तु फिर भी कुछ शक्तियाँ भगवान् के कार्यों में बाधा उत्पन्न करती हैं |अगर ऐसा न होता तो भगवान् को भी बार बार जन्म लेकर ,अवतार लेकर उन्हें नष्ट नहीं करना पड़ता |कभी खुद भगवान् ने ही इन्हें उत्पन्न किया था पर अपने कर्मों अथवा अपनी प्रकृति के कारण यह और इनकी शक्ति विकृत हो गयी तथा यह अब मनुष्यों को प्रभावित करते हैं |जैसे हर मनुष्य भगवान् को नहीं मानता और कोई कोई उन्हें महत्त्व नहीं देता ,खुद को ही शक्तिशाली समझता है ,वैसे ही कुछ यह शक्तियाँ भी भगवान् की रचना को कष्ट देने का प्रयास करती हैं और अपना स्वार्थ देखती हैं |यह शक्तियाँ अवरोध उत्पन्न करके लोगों को उनका निश्चित भाग्य भी नहीं लेने देती |इसमें भगवान् की नहीं खुद मनुष्य की गलती होती है |बच्चे और युवा इनमे से अधिकतर के जिम्मेदार नहीं होते पर भुगतते वह भी हैं |इन स्थितियों में वह भगवान् को मनाते फिरते हैं पर होता वही है जो भाग्य और यह बाधाएं चाहती हैं |
मेरी बात हो सकता है बहुत लोगों को समझ न आयें और कुछ लोगों को अनुपयुक्त भी लगे ,पर यह हमारा व्यक्तिगत अनुभव है और हमने अनेक मामलों में ऐसा पाया है |समुचित ध्यान देने पर अनेक बच्चों और युवाओं को सफलता दिलाई है ,सफल होते देखा है |परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू दे लेने के बाद कोई भगवान् कुछ नहीं कर सकता ,वह न नंबर बढाता है ,न रिजल्ट बदलता है |जो करना होता है वह सबकुछ परीक्षा के पहले भगवान् करता है |भगवान् अधिकतम यही करता है की वह व्यक्ति पर से किसी तरह की नकारात्मक प्रभाव अथवा बाधा को हटा देता है ,वह भी तब जब सही तरीके से उसे पूजा जाय और सचमुछ उसकी कृपा हो जाए |प्रसाद चढाने या मान्यता मानने से वह कुछ नहीं करता ,वह मन को ,बुद्धि को पढ़ लेता है ,किसी स्वार्थ को समझ जाता है |सचमुच उसकी कृपा हो जाने पर भी व्यक्ति को उसके निश्चित भाग्य जितना मिल जाता है |अगर किसी की किस्मत में आई.ए.एस. बनना नहीं लिखा तो भगवान् उसे आई.ए.एस. नहीं बनाता क्योकि भाग्य तो उसने ही लिखा होता है |वह सभी बाधाएं हटा जो लिखा होता है वह दिला देता है |किस्मत से अधिक पाने के लिए भगवान् को मजबूर करना होता है और यह बच्चो ,युवाओं ,सामान्य लोगों के वश का नहीं होता |यह विषय तंत्र और गहन साधना के अंतर्गत आ जाता है जहां विरले और उच्च कोटि के साधक ही पहुँच पाते हैं ,अधिकतर साधक तो खुद के भी भाग्य तक का नहीं ले पाते ,किस्मत से अधिक लेने की तो बात ही बहुत बड़ी है |
इस प्रकार भगवान् भी अधिकतम भाग्य का ही जब देता है तो उसे झूठे लालच देने का कोई मतलब नहीं ,वह न कुछ खाता है न पीता है ,न पहनता है ,वह तो सबके अन्दर और सब जगह रहता है हवा ,ऊर्जा रूप में |एक बूँद जल से उसकी तृप्ति हो जाती है ,मन से कुछ चढाने पर भी वो उसे ग्रहण कर लेता है ,उसे चढ़ावे का लालच देना बेकार होता है |बेहतर होता है परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू से कुछ महीने पहले से उसकी प्रार्थना की जाए |कोई बाधा तो नहीं जो भाग्य रोके इसका पता लगाया जाए और समुचित उपाय किया जाए ,अपने अवचेतन को मजबूत किया जाए जिससे आत्मविश्वास उत्पन्न हो जो किन्ही परिस्थितियों और व्यक्तियों का सामना करते समय उन पर प्रभाव डाले ,सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करें जिससे जो पढ़ें ,याद करें समय पर काम आये |घर के वातावरण को सुधारा जाए ऐसी ऊर्जा उत्पन्न की जाए जिससे परिस्थितियां कुछ भी हों बच्चा अथवा पुत्र /पुत्री पर उनका प्रभाव कम से कम पड़े |ऐसी धनात्मक वातावरण का निर्माण किया जाए की बच्चों की एकाग्रता बढ़े ,शन्ति हो और वह अपने लक्ष्य को पाने के प्रति दत्त चित्त हों |तब सफलता मिलेगी ,न की परीक्षा देकर मंदिर ,मंदिर घूमकर मनाने से की भगवान सफलता दे दो |
हमने जो तकनीक इन मामलों में कारगर पायी है वह हम लिख रहे ,किसी को समझ आता है तो ठीक ,नहीं आता मत माने |हम व्यावहारिक ,तार्किक और वैज्ञानिक बात मानते हैं भले ही हम तंत्र साधक हैं |कोरी कल्पना ,अंधविश्वास ,यथार्थ से मुंह मोड़ना हमारे वश का नहीं क्यंकि हम खुद विज्ञान के छात्र रहे हैं |परीक्षा सीजन में बच्चों ,युवाओं की स्थिति देख यह लेख लिखने की हमें प्रेरणा मिली |शायद इससे कुछ का कल्याण हो जाए और उनके अथवा उनके माता -पिता की समझ में आ जाए की सफलता कैसे अधिकतम मिल सकती है |सबसे पहले तो बचपन में ही बच्चे की क्षमता और योग्यता का आकलन कर उसे उपयुक्त राह की प्रेरणा देते रहें जिससे उसमे उस राह की उत्कंठा बढे |हर कोई डाक्टर ,इंजीनियर ,वैज्ञानिक ,आई .ए.एस .नहीं हो सकता और कोई भी काम छोटा नहीं होता |किसी भी मार्ग में उच्चता मिले तो वह विशिष्ट हो जाती है |दूसरा काम बच्चों के लिए यह होना चाहिए की कभी उन्हें हताश न करें ,हमेशा उत्साहित करें ,भले उनकी क्षमता कम हो अथवा वह गंभीर न हों ,ध्यान न देते हों |उनका विश्वास बढायें |उनके अवचेतन को जगाएं ,वह क्कुछ भी कर सटे हैं ,कुछ भी पा सकते हैं यह विश्वास उनके अवचेतन में भरें ,जिससे उनमे पाजिटिव सोच ही उभरे और वह अपनी सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सकें |उनमे नकारात्मक भावना ,सोच ,हीन भावना ,खुद की परिस्थितियों की भावना ,खुद के कम होने की भावना ही न उभरे और वह संघर्षशील हों |
तीसरा काम बच्चे और संतान की उन्नति के लिए यह हो की माता -पिता यह देखें की कोई बाधा तो घर -परिवार -संतान की उन्नति प्रभावित नहीं कर रही ,जैसे पित्र दोष ,कुलदेवता दोष तो नहीं है ,कोई बाधा बाहर से आकर तो नहीं प्रभावित कर रही ,किसी ने बच्चे की उन्नति तो नहीं रोकी या कुछ किया तो नहीं ,किसी ने परिवार के विरुद्ध कोई तांत्रिक क्रिया ,अभिचार आदि तो नहीं किया ,कोई अन्य बाधा बच्चे या युवा पर तो नहीं लगी ,किसी ने कोई वशीकरण ,उच्चाटन आदि तो नहीं किया |इन सबका भी प्रभाव मष्तिष्क पर होता है और व्यक्ति अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता ,मष्तिष्क पर बोझ होता है अथवा मन भटकता है ,रोग -बीमारी -दुर्घटना अनावश्यक आती है |हजारों फीस भरकर भी उपयुक्त सफलता न पाने अथवा दवा ,दुआ ,उपायों पर खर्च करने से बेहतर है इनसे बचने का उपाय किया जाए जिससे जो लगे उसके सदुपयोग हो और अनावश्यक लगने से बचे |इन स्थितियों में किसी उग्र महाविद्या का कवच /ताबीज बेहद लाभप्रद होता है जो उत्साह ,ऊर्जा बढाने के ही साथ सभी तरह के नकारात्मक प्रभाव शरीर से दूर रखता है और बच्चा अथवा युवा अपनी योग्यतानुसार उन्नति कर पाता है |
चौथा काम यह होना चाहिए की बच्चे अथवा युवा को छोटा सा 5 से १० मिनट की प्रार्थना -पूजा -त्राटक आदि जरुर कराई जाए |इनका अपना विज्ञान है और यह पूर्ण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है की इससे उनके अवचेतन पर तथा एकाग्रता पर उत्तम प्रभाव पड़ता है |इस स्थिति में परीक्षा समय की गयी प्रार्थना असर देती है ,साथ ही अवचेतन उन्हें ऐसी ऐसी सूचना देता है की वह खुद आश्चर्यचकित हो जाएँ |पांचवा कार्य यह हो की बच्चा अथवा युवा बिगड़ तो नहीं रहा या बिगड़ तो नहीं गया |उसे कैसे कैसे सलाह मिल रहे ,उसके आसपास अथवा दोस्त मित्र कैसे हैं यह ध्यान दिया जाए |चाल चलन ,स्वभाव से भी यह सब जाना जा सकता है ,ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है की उनके अंतर्मन ,नैतिकता ,नैसर्गिक स्वभाव को जगाया जाए जिससे खुद उनमे ऐसी क्षमता उत्पन्न हो की वह अपना भला बुरा सोच सकें |यदि वह बात मानें तो उनसे सेल्फ रियलाइजेसन अथवा आत्म विश्लेषण कराया जाये ,अगर न मानें तो किसी सात्विक उच्च महाविद्या का कवच धारण कराया जाए |इससे उनका अंतर्मन और नैतिकता जाग्रत हो जाती है ,खुद की विश्लेष्ण क्षमता और अच्छा बुरा समझने की क्षमता का उदय होता है |इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढने से औरा ,प्रभावशालिता ,मष्तिष्क की कार्यप्रणाली ,बुद्धि की क्षमता में वृद्धि होने के साथ ही आसपास का वातावरण और स्थितियां भी सुधरती हैं |
इन बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो पहले तो परीक्षा /प्रतियोगिता /इंटरव्यू के बाद भगवान् को मनाने की ही नौबत नहीं आएगी और बच्चा /युवा खुद इस योग्य होगा की वह अपने बल पर अपने भाग्यानुसार सफलता पा ले |इसके बाद भी उसकी की गयी प्रार्थना का प्रभाव भी होगा क्योकि उसने सही दिशा में प्रयास किया है ,पहले से तैयारी की है ,भगवान् जो उसके अन्दर है उसे प्रसन्न रखा है अतः उसकी वह सुनेगा |कोई बाधा उसे रोकने वाली नहीं है |जो भी बच्चे की योग्यता ,कर्म और भाग्य होगा वह उसे मिलेगा |भगवान् भी उसकी सहायता करेगा ,क्योकि कहा गया है ईश्वर भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करे |.....[[यह हमारे व्यक्तिगत विचार और सोच हैं ,जरुरी नहीं की हर कोई सहमत हो अथवा सही माने ,जो अनुभव किया है ,जो देखा है ,जो लोगों से कराया है वह लिख दिया अपने ब्लॉग पाठकों के लिये ]].......................................................हर हर महादेव
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जब किसी परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू का समय आता है तब बच्चों और युवाओं को भगवान की अधिक याद आती है ,इनके साथ इनके माता -पिता भी चाहते हैं की बच्चे ने जो किया वो किया ,बस भगवान की कृपा हो जाए और उनका पुत्र /पुत्री सम्बंधित परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू में सफल हो जाए |माता -पिता खुद प्रेरित भी करते हैं इन्हें की भगवान् का हाथ जोड़ कर जाओ ,उन्हें मना कर जाओ की तुम सफल हो जाओ ,कहो की सफल हो जाओगे तो इतना प्रसाद चढाओगे ,खुद भी कुछ लोग बोलते हैं उनकी संतान सफल हो जायेगी तो इतना प्रसाद चढ़ाएंगे ,ये ये अर्पित करेंगे |जैसे भगवान इन चीजों का भूखा है और उसे कुछ मिल नहीं रहा की वह इन्हें सफलता दिला दे और उसे ये चीजे लोग चढ़ाएं |बच्चे और युवा भगवान् से मिन्नतें माँगते फिरते हैं इस अवधि में की भगवान कल्याण कर दो |भाग्य अच्छा है और कुछ मेहनत भी की है ,किसी तरह की कोई बाधा आदि घर में नहीं है तो कुछ को सफलता मिल जाती है और वे भगवान् का शुक्रिया अदा कर देते हैं ,कुछ अपनी मान्यता भूल जाते हैं और कुछ याद रख चढ़ा भी दी हैं |अधिकतर के साथ होता वही है जो उनके कर्म होते हैं और जो भाग्य में होता है ,कभी कभी उससे भी कम मिलता है |तब वो कहते हैं भगवान् भी नहीं सुनता |
भगवान कोई मनुष्य नहीं जो उसे प्रसाद ,चढ़ावे की आकांक्षा हो ,यह जानते तो सभी हैं पर फिर भी उसे रिश्वत देने का प्रयास करते ही हैं ,क्योकि रिश्वत से वह सभी को प्रसन्न होकर कार्य करते देखते हैं तो सोचते हैं की भगवान् भी ऐसा करेगा और भूल जाते हैं की भगवान् मनुष्य नहीं है |भगवान् एक शक्ति है ऊर्जा है जो सर्वत्र व्याप्त होता है ,शरीर के अंदर भी और शरीर के बाहर भी ,मंदिर में भी और घर में भी |उसका कोई स्थान निश्चित नहीं ,स्थान तो हमने निश्चित किये हैं अपनी सुविधा के लिए |छोटे बच्चे तो पवित्र होते हैं और उनकी भावनाओं का सचमुच कुछ असर होता है और भगवान् की सर्वत्र व्याप्त ऊर्जा उनकी भावनाओं से प्रभावित भी होती है किन्तु युवा और बड़े में ऐसा कम होता जाता है |किसी भी कर्म की सफलता -असफलता का अपना विज्ञान होता है ,नियम होते हैं ,भगवान् भी सामान्य स्थिति में उन नियमों को नहीं तोड़ सकता ,क्योकि यह नियम प्रकृति में खुद उसने ही बनाये होते हैं |वह उतना ही अधिकतम देता है जितना उसने किसी के भाग्य में निश्चित किया होता है ,किसी की कल्पना से या अधिक चाहने से वह अधिक नहीं दे देता |जो भाग्य उसने निश्चित किया होता है सामान्य रूप से उतना भी किसी को नहीं मिल पाता क्योकि उसे रोकने वाले भी बहुत से कारण होते हैं |
लोग कह सकते हैं की भगवान् ने जब भाग्य निश्चित किया तो उसे कौन दूसरा रोक सकता है ,क्या कोई भगवान् से भी उपर होता है |नहीं कोई भगवान् से तो उपर नहीं होता किन्तु फिर भी कुछ शक्तियाँ भगवान् के कार्यों में बाधा उत्पन्न करती हैं |अगर ऐसा न होता तो भगवान् को भी बार बार जन्म लेकर ,अवतार लेकर उन्हें नष्ट नहीं करना पड़ता |कभी खुद भगवान् ने ही इन्हें उत्पन्न किया था पर अपने कर्मों अथवा अपनी प्रकृति के कारण यह और इनकी शक्ति विकृत हो गयी तथा यह अब मनुष्यों को प्रभावित करते हैं |जैसे हर मनुष्य भगवान् को नहीं मानता और कोई कोई उन्हें महत्त्व नहीं देता ,खुद को ही शक्तिशाली समझता है ,वैसे ही कुछ यह शक्तियाँ भी भगवान् की रचना को कष्ट देने का प्रयास करती हैं और अपना स्वार्थ देखती हैं |यह शक्तियाँ अवरोध उत्पन्न करके लोगों को उनका निश्चित भाग्य भी नहीं लेने देती |इसमें भगवान् की नहीं खुद मनुष्य की गलती होती है |बच्चे और युवा इनमे से अधिकतर के जिम्मेदार नहीं होते पर भुगतते वह भी हैं |इन स्थितियों में वह भगवान् को मनाते फिरते हैं पर होता वही है जो भाग्य और यह बाधाएं चाहती हैं |
मेरी बात हो सकता है बहुत लोगों को समझ न आयें और कुछ लोगों को अनुपयुक्त भी लगे ,पर यह हमारा व्यक्तिगत अनुभव है और हमने अनेक मामलों में ऐसा पाया है |समुचित ध्यान देने पर अनेक बच्चों और युवाओं को सफलता दिलाई है ,सफल होते देखा है |परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू दे लेने के बाद कोई भगवान् कुछ नहीं कर सकता ,वह न नंबर बढाता है ,न रिजल्ट बदलता है |जो करना होता है वह सबकुछ परीक्षा के पहले भगवान् करता है |भगवान् अधिकतम यही करता है की वह व्यक्ति पर से किसी तरह की नकारात्मक प्रभाव अथवा बाधा को हटा देता है ,वह भी तब जब सही तरीके से उसे पूजा जाय और सचमुछ उसकी कृपा हो जाए |प्रसाद चढाने या मान्यता मानने से वह कुछ नहीं करता ,वह मन को ,बुद्धि को पढ़ लेता है ,किसी स्वार्थ को समझ जाता है |सचमुच उसकी कृपा हो जाने पर भी व्यक्ति को उसके निश्चित भाग्य जितना मिल जाता है |अगर किसी की किस्मत में आई.ए.एस. बनना नहीं लिखा तो भगवान् उसे आई.ए.एस. नहीं बनाता क्योकि भाग्य तो उसने ही लिखा होता है |वह सभी बाधाएं हटा जो लिखा होता है वह दिला देता है |किस्मत से अधिक पाने के लिए भगवान् को मजबूर करना होता है और यह बच्चो ,युवाओं ,सामान्य लोगों के वश का नहीं होता |यह विषय तंत्र और गहन साधना के अंतर्गत आ जाता है जहां विरले और उच्च कोटि के साधक ही पहुँच पाते हैं ,अधिकतर साधक तो खुद के भी भाग्य तक का नहीं ले पाते ,किस्मत से अधिक लेने की तो बात ही बहुत बड़ी है |
इस प्रकार भगवान् भी अधिकतम भाग्य का ही जब देता है तो उसे झूठे लालच देने का कोई मतलब नहीं ,वह न कुछ खाता है न पीता है ,न पहनता है ,वह तो सबके अन्दर और सब जगह रहता है हवा ,ऊर्जा रूप में |एक बूँद जल से उसकी तृप्ति हो जाती है ,मन से कुछ चढाने पर भी वो उसे ग्रहण कर लेता है ,उसे चढ़ावे का लालच देना बेकार होता है |बेहतर होता है परीक्षा ,प्रतियोगिता ,इंटरव्यू से कुछ महीने पहले से उसकी प्रार्थना की जाए |कोई बाधा तो नहीं जो भाग्य रोके इसका पता लगाया जाए और समुचित उपाय किया जाए ,अपने अवचेतन को मजबूत किया जाए जिससे आत्मविश्वास उत्पन्न हो जो किन्ही परिस्थितियों और व्यक्तियों का सामना करते समय उन पर प्रभाव डाले ,सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करें जिससे जो पढ़ें ,याद करें समय पर काम आये |घर के वातावरण को सुधारा जाए ऐसी ऊर्जा उत्पन्न की जाए जिससे परिस्थितियां कुछ भी हों बच्चा अथवा पुत्र /पुत्री पर उनका प्रभाव कम से कम पड़े |ऐसी धनात्मक वातावरण का निर्माण किया जाए की बच्चों की एकाग्रता बढ़े ,शन्ति हो और वह अपने लक्ष्य को पाने के प्रति दत्त चित्त हों |तब सफलता मिलेगी ,न की परीक्षा देकर मंदिर ,मंदिर घूमकर मनाने से की भगवान सफलता दे दो |
हमने जो तकनीक इन मामलों में कारगर पायी है वह हम लिख रहे ,किसी को समझ आता है तो ठीक ,नहीं आता मत माने |हम व्यावहारिक ,तार्किक और वैज्ञानिक बात मानते हैं भले ही हम तंत्र साधक हैं |कोरी कल्पना ,अंधविश्वास ,यथार्थ से मुंह मोड़ना हमारे वश का नहीं क्यंकि हम खुद विज्ञान के छात्र रहे हैं |परीक्षा सीजन में बच्चों ,युवाओं की स्थिति देख यह लेख लिखने की हमें प्रेरणा मिली |शायद इससे कुछ का कल्याण हो जाए और उनके अथवा उनके माता -पिता की समझ में आ जाए की सफलता कैसे अधिकतम मिल सकती है |सबसे पहले तो बचपन में ही बच्चे की क्षमता और योग्यता का आकलन कर उसे उपयुक्त राह की प्रेरणा देते रहें जिससे उसमे उस राह की उत्कंठा बढे |हर कोई डाक्टर ,इंजीनियर ,वैज्ञानिक ,आई .ए.एस .नहीं हो सकता और कोई भी काम छोटा नहीं होता |किसी भी मार्ग में उच्चता मिले तो वह विशिष्ट हो जाती है |दूसरा काम बच्चों के लिए यह होना चाहिए की कभी उन्हें हताश न करें ,हमेशा उत्साहित करें ,भले उनकी क्षमता कम हो अथवा वह गंभीर न हों ,ध्यान न देते हों |उनका विश्वास बढायें |उनके अवचेतन को जगाएं ,वह क्कुछ भी कर सटे हैं ,कुछ भी पा सकते हैं यह विश्वास उनके अवचेतन में भरें ,जिससे उनमे पाजिटिव सोच ही उभरे और वह अपनी सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सकें |उनमे नकारात्मक भावना ,सोच ,हीन भावना ,खुद की परिस्थितियों की भावना ,खुद के कम होने की भावना ही न उभरे और वह संघर्षशील हों |
तीसरा काम बच्चे और संतान की उन्नति के लिए यह हो की माता -पिता यह देखें की कोई बाधा तो घर -परिवार -संतान की उन्नति प्रभावित नहीं कर रही ,जैसे पित्र दोष ,कुलदेवता दोष तो नहीं है ,कोई बाधा बाहर से आकर तो नहीं प्रभावित कर रही ,किसी ने बच्चे की उन्नति तो नहीं रोकी या कुछ किया तो नहीं ,किसी ने परिवार के विरुद्ध कोई तांत्रिक क्रिया ,अभिचार आदि तो नहीं किया ,कोई अन्य बाधा बच्चे या युवा पर तो नहीं लगी ,किसी ने कोई वशीकरण ,उच्चाटन आदि तो नहीं किया |इन सबका भी प्रभाव मष्तिष्क पर होता है और व्यक्ति अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता ,मष्तिष्क पर बोझ होता है अथवा मन भटकता है ,रोग -बीमारी -दुर्घटना अनावश्यक आती है |हजारों फीस भरकर भी उपयुक्त सफलता न पाने अथवा दवा ,दुआ ,उपायों पर खर्च करने से बेहतर है इनसे बचने का उपाय किया जाए जिससे जो लगे उसके सदुपयोग हो और अनावश्यक लगने से बचे |इन स्थितियों में किसी उग्र महाविद्या का कवच /ताबीज बेहद लाभप्रद होता है जो उत्साह ,ऊर्जा बढाने के ही साथ सभी तरह के नकारात्मक प्रभाव शरीर से दूर रखता है और बच्चा अथवा युवा अपनी योग्यतानुसार उन्नति कर पाता है |
चौथा काम यह होना चाहिए की बच्चे अथवा युवा को छोटा सा 5 से १० मिनट की प्रार्थना -पूजा -त्राटक आदि जरुर कराई जाए |इनका अपना विज्ञान है और यह पूर्ण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है की इससे उनके अवचेतन पर तथा एकाग्रता पर उत्तम प्रभाव पड़ता है |इस स्थिति में परीक्षा समय की गयी प्रार्थना असर देती है ,साथ ही अवचेतन उन्हें ऐसी ऐसी सूचना देता है की वह खुद आश्चर्यचकित हो जाएँ |पांचवा कार्य यह हो की बच्चा अथवा युवा बिगड़ तो नहीं रहा या बिगड़ तो नहीं गया |उसे कैसे कैसे सलाह मिल रहे ,उसके आसपास अथवा दोस्त मित्र कैसे हैं यह ध्यान दिया जाए |चाल चलन ,स्वभाव से भी यह सब जाना जा सकता है ,ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है की उनके अंतर्मन ,नैतिकता ,नैसर्गिक स्वभाव को जगाया जाए जिससे खुद उनमे ऐसी क्षमता उत्पन्न हो की वह अपना भला बुरा सोच सकें |यदि वह बात मानें तो उनसे सेल्फ रियलाइजेसन अथवा आत्म विश्लेषण कराया जाये ,अगर न मानें तो किसी सात्विक उच्च महाविद्या का कवच धारण कराया जाए |इससे उनका अंतर्मन और नैतिकता जाग्रत हो जाती है ,खुद की विश्लेष्ण क्षमता और अच्छा बुरा समझने की क्षमता का उदय होता है |इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढने से औरा ,प्रभावशालिता ,मष्तिष्क की कार्यप्रणाली ,बुद्धि की क्षमता में वृद्धि होने के साथ ही आसपास का वातावरण और स्थितियां भी सुधरती हैं |
इन बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो पहले तो परीक्षा /प्रतियोगिता /इंटरव्यू के बाद भगवान् को मनाने की ही नौबत नहीं आएगी और बच्चा /युवा खुद इस योग्य होगा की वह अपने बल पर अपने भाग्यानुसार सफलता पा ले |इसके बाद भी उसकी की गयी प्रार्थना का प्रभाव भी होगा क्योकि उसने सही दिशा में प्रयास किया है ,पहले से तैयारी की है ,भगवान् जो उसके अन्दर है उसे प्रसन्न रखा है अतः उसकी वह सुनेगा |कोई बाधा उसे रोकने वाली नहीं है |जो भी बच्चे की योग्यता ,कर्म और भाग्य होगा वह उसे मिलेगा |भगवान् भी उसकी सहायता करेगा ,क्योकि कहा गया है ईश्वर भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करे |.....[[यह हमारे व्यक्तिगत विचार और सोच हैं ,जरुरी नहीं की हर कोई सहमत हो अथवा सही माने ,जो अनुभव किया है ,जो देखा है ,जो लोगों से कराया है वह लिख दिया अपने ब्लॉग पाठकों के लिये ]].......................................................हर हर महादेव
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