रविवार, 15 मार्च 2020

पुतली विद्या अथवा वुडू कैसे कार्य करता है ?

 वुडू स्पेल अथवा पुतली विद्या की कार्यप्रणाली 
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हमने अपने पिछले अंक में वुडू स्पेल [vudoo spell] अथवा पुतली विद्या के बारे में लिखा है और जानने का प्रयत्न किया है की यह विद्या है क्या |इस अंक में हम यह देखने का प्रयत्न करते हैं की यह क्रिया कैसे कार्य करती है ,क्या तकनिकी अपनाते हैं की यह किसी व्यक्ति को प्रभावित करती है ,यहाँ तक की किसी का प्राण हरण तक कर लेती है |वुडू प्रयोग [vudoo spell ],पुतली विद्या या प्रयोग एक तरंगों पर आधारित क्रिया है जिसमे सूक्ष्म वातावरणीय तरंगों के माध्यम से लक्ष्य को प्रभावित किया जाता है और एक तरफ व्यक्ति का शरीर तथा दूसरी तरफ उसका पुतला होता है |प्रबल मानसिक शक्तियों से इन दोनों के बीच ऐसा सम्बन्ध बनाया जाता है की पुतले से अथवा उसके अंगों से व्यक्ति के वास्तविक शरीर प्रभावित कर दिया जाता है |इस क्रम में दोनों तरह की क्रियाएं होती हैं किसी की समस्या को दूर भी किया जा सकता है और किसी को कष्ट भी पहुंचाया जा सकता है |कष्टों को दूर करने अथवा लाभ पहुंचाने के लिए आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा या शक्तियों का प्रयोग किया जाता है जबकि कष्ट पहुंचाने के लिए वातावरण की नकारात्मक शक्तियों अथवा आत्माओं की शक्ति का उपयोग किया जाता है |जब नकारात्मक ऊर्जा या शक्ति अथवा आत्माओं या पृथ्वी के वातावरण के निचले सतह से सम्बंधित शक्तियों के सहारे किसी को कष्ट दिया जाता है तो यह क्रिया काला जादू या ब्लैक मैजिक कहलाती है |यद्यपि वुडू या पुतली विद्या से दोनों कार्य होते हैं पर अधिकतर इससे कष्ट पहुंचाने अथवा प्राण हरण के ही कार्य होने से यह बदनाम हो गयी और काले जादू के रूप में प्रचलित हो गयी |यह क्या है ,इस विषय पर हमने अपने पिछले अंक में चर्चा किया है |इस अंक में हम इसकी कार्यप्रानाली पर चर्चा करते हैं और समझने का प्रयास करते हैं की आखिर इसकी क्रियाविधि का होती है यह कैसे प्रभावित करता है |
पुतली विद्या अथवा वुडू स्पेल के पीछे पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति कार्य करती है और यह प्रकृति के नियमों के अनुसार ही संचालित होती है |इस विज्ञान के सूत्रों एवं नियमों का ज्ञान न होने के कारण आधुनिक वैज्ञानिक जगत इसे अंधी आस्था कहता है और सामान्य आदमी कालाजादू । सामान्य तांत्रिकों और तंत्र ओझाओं को इस विद्या की अन्दूरनी बातों का ज्ञान नहीं होता, इसलिए तामझाम दिखाकर भयादोहन करते है। यह विद्या इतनी सरल नहीं है।सभी कुछ जानने के बाद भी इसे करने के लिए जिस साहस और विश्वास की जरूरत होती है; वह सामान्य साधकों के लिए संभव नहीं है। उसपर तांत्रिक क्षेत्र के विस्तृत ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। यह एक अतिगुप्त विद्या है जो पारंपरिक और गुरु शिष्य परंपरा पर चलती रही है क्योकि यह एक पूर्ण प्रायोगिक विद्या है | वुडू प्रयोग या पुतली प्रयोग नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा को ट्रांसफर करने का माध्यम है। जिसकी वजह से हम किसी में भी अपनी नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा भेज कर उसकी खुद की जीवनी ऊर्जा को नष्ट करते है या बढाते हैं । यह मानसिक एकाग्रता और अच्छे -बुरे विचारो पर काम करता है। इस प्रक्रिया के लिए कर्ता को खुद ऊर्जा को धारण करना होता है। यह जादू तभी काम कर सकता है जब कर्ता पूरी तरह से नकारात्मक या सकारात्मक प्रवृति को अपना लेता है। यह एक विद्या है और केवल विनाशक नहीं है। इससे दूर बैठकर किसी भी स्त्री-पुरुष के गंभीर लाइलाज रोगों की भी चिकित्सा की जा सकती है और इसका उपयोग वशीकरण, मोहन, स्तम्भन से लेकर मारण कार्यों तक किया जा सकता है।
इस विद्या के लिए जिस पर प्रयोग किया जाता है उसकी मूल भूत जानकारी की आवश्यकता होती है | नाम ,पता के साथ संभव हो तो उसका चित्र उसके कपडे ,बाल ,आभूषण आदि का उपयोग होता है |उसके जन्म नक्षत्र ,राशि आदि का प्रयोग भी कुछ स्थानों या क्षेत्रों में होता है |विश्व के अलग क्षेत्रों में कुछ अलग पद्धति अपनाई जाती है किन्तु सब में व्यक्ति के शरीर और उसके आभामंडल को प्रभावित करने योग्य परिस्थितियों का निर्माण करना ही होता है |पुतली बनाने में कहीं खाद्य पदार्थों का उपयोग जैसे बेसन ,उड़द आदि तो कहीं मिटटी ,लकड़ी आदि का प्रयोग होता है |पुतली के पदार्थ के साथ पद्धति अनुसार बाल ,कपडे आदि मिलाये जाते हैं अथवा जानवरों के अंगों का उपयोग होता है अथवा चिता राख या हवन राख ,उद्देश्य अनुसार विशेष वृक्ष के अवयव ,खाद्य कच्चे पदार्थ आदि मिलाये जाते हैं |पुतली के निर्माण में माप को भी महत्त्व दिया जाता है ,अधिकतर स्थानों पर लम्बाई चौड़ाई निश्चित होती है ,कहीं कहीं तो अंगों आदि की लम्बाई चौड़ाई पर भी ध्यान दिया जाता है | पुतली निर्माण में दिन ,तिथि ,समय को भी महत्त्व दिया जाता है |
इसके बाद इस पुतली की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है जिसके लिए हर क्षेत्र स्थान की अलग पद्धति और मंत्र होते हैं |भारतीय तंत्र जगत में तो कुछ पद्धतियों में महीनों इस प्राण प्रतिष्ठा में लग जाते हैं जबकि भिन्न स्थानों पर लग अलग दिन और समय लगते हैं |इस प्रक्रिया में सबसे मुख्य साधक की मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता होती है |सक्षम न हुआ तो पुतली प्रतिष्ठित नहीं होगी अथवा पूर्ण प्रक्रिया मालूम न हुई तो कुछ नहीं होगा |छोटी सी तकनिकी त्रुटी अनर्थ कर सकती है | प्राण प्रतिष्ठा के बाद वशीकरण , आकर्षण , विद्वेषण , स्तम्भन , उच्चाटन और मारण की क्रियाएं शुभाशुभ भेद से तिथि , आकल, राशि-साध्य का शुभाशुभ काल आदि देखकर किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार विषयोग , मृत्यु योग, शूल योग, कंटक योग आदि अशुभ और इसी प्रकार शुभ योगों का चयन करके क्रिया की जाती है।यहाँ भी अलग क्षेत्रों की अलग पद्धति होती ,समय ,स्थान होते हैं |
प्राण प्रतिष्ठा ,क्रिया का समय निर्धारण होने के बाद क्रिया की जाती है जहाँ अलग क्षेत्र के अलग मंत्र ,पद्धति होते हैं किन्तु सबमे मानसिक शक्ति ,लक्ष्य पर एकाग्रता आवश्यक होती है |इसके साथ खुद की सुरक्षा का भी पूरी व्यवस्था साधक रखता है |पुतली विद्या या वुडू प्रयोग में व्यक्ति की औरा ,सूक्ष्म शरीर ,चक्र ,जीवनी ऊर्जा को लक्ष्य कर क्रिया की जाती है |इसमें व्यक्ति के अमृत स्थान अथवा विष स्थान को ध्यान में रखा जाता है जो की तिथि आदि के अनुसार पुरुष अथवा स्त्री में बदलता रहता है या अलग होता है |प्रयोग करने वाले साधक को शरीर के मर्म स्थानों की पूरी जानकारी होती है जो की संख्या में ३८ होते हैं |ये मर्म स्थान सिद्ध होने पर अलौकिक शक्तियों को देने वाले हैं. पर ये मारक स्थान भी हैं. इन पर अभिचार करके सभी प्रकार के रोगों को  दूर किया जा सकता है, तो अभिचार से क्षति भी पहुंचाई जा सकती है |अभिषेक करके गुरु शक्ति दान भी यहाँ किया जा सकता है; पर इन्ही पर समस्त भयानक अभिचार कर्म भी किया जाता है.
इस प्रकार की क्रिया या जादू में नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा ,मानसिक ऊर्जा में बदल कर माध्यम के ऊर्जा क्षेत्र पर दबाव बनाती है. | जब साधक द्वारा प्रक्षेपित ऊर्जा व्यक्ति पर प्रभावी होती है तो दोनों की ऊर्जा का आपस में टकराव होता है |जिस अंग पर पुतली पर प्रयोग किया जा रहा होता है उस अंग से सम्बंधित चक्र और औरा पर तत्काल प्रभाव पड़ता है जिससे वह सुरक्षा में अक्षम हो जाते हैं और अंग पर तरंगों का आघात होता है |वस्तुतः यह शस्त्र आघात सा नहीं होता अपितु जो ऊर्जा या आतंरिक शक्ति उस अंग को संचालित कर रही होती है ,उसमे रुकावट या विक्षोभ होने लगता है |इसीलिए यदि ह्रदय पर क्रिया की जाए तो लगता है की कोई ह्रदय को भींच रहा है या दबा रहा है |पैर पर क्रिया हो तो लगता है पैर काम नहीं कर रहे |शरीर के अंग वैसे ही रहते हैं किन्तु वहां की जीवनी शक्ति निष्क्रिय या समाप्त कर दी जाती है |जब यही क्रिया लाभ के लिए की जाती है तब सम्बंधित अंग में अतिरिक्त ऊर्जा भेजी जाती है जिससे सम्बंधित अंग अथवा शरीर से कोई भी समस्या समाप्त हो जाती है |
यह एक जटिल तंत्र क्रिया है। इन सारी क्रियाओं को करने में महीनों का वक्त लगता है , जैसी पद्धति हो |कुछ पद्धतियों में सेकेण्ड भर में काम खत्म हो जाता है किसी में महीनो लगते हैं |अक्सर निर्माण या सुधार की क्रिया में महीनों लगते है जबकि क्षति की क्रिया बहुत कम समय में हो जाती है |यहाँ सबसे अधिक महत्व क्रिया करने वाले की शक्ति की होती है |भेजी जा रही ऊर्जा को लक्ष्य  व्यक्ति के कपड़े ,बाल आदि के माध्यम से तरंगों को मिलता है जो सम्बंधित व्यक्ति को खोज लेती है |जहाँ इसका प्रयोग नहीं होता वहां भेजी जा रही शक्ति नाम ,पते ,चित्र आदि द्वारा वातावरण की शक्तियों से संपर्क बना लक्ष्य खोजती है |यदि कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष इससे पीड़ित है। कहीं कोई ऐसी तन्त्र क्रिया किया करता है, तो उसे ढूंढना और पुतली को नष्ट करना असम्भव है। इसके द्वारा तेज दर्द, सुई चुभने या भाला मारने जैसी पीड़ा , काटने – चीरने जैसी पीड़ा , ज्वर , उन्माद आदि भयानक रूप ले लेता है। जब तक पुतली पर अत्याचार होता रहेगा , पीड़ित भी पीड़ित रहेगा। कोई उपचार कारगर नहीं होगा। जबकि अगर किसी के लाभ के लिए कोई क्रिया पुतली पर होती है तो व्यक्ति को अनायास ,अचानक लाभ होता है ,समबन्धित अंग अथवा शरीर स्वस्थ हो जाता है ,शक्ति ,ऊर्जा बढ़ जाती है ,कोई समस्या है तो वह निकल जाती है |..................................................हर-हर महादेव 

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